Saturday 26 August 2017

काल्पनिक कहानी

काल्पनिक कहानी (पात्र घटना स्थान सब काल्पनिक है )

#कैसे_बने_56_इस्लामिक_देश - प्रथम भाग ( सऊदी अरब ) 622 -634

अरब में जिहाद का मुख्य कर्ताधर्ता हमारे मुहम्मद साहब ही थे । इसलिए हमें इन लेख में उन्हें भी समझना होगा । सऊदी के उस समय के हालात को समझना होगा । अरब में उस समय दो जाती निवास करती थी, एक यहूदी ओर एक हिन्दू । इन दोनों जातियों में कोई द्वेष भाव नही था । गरीबी अपने चरम पर थी । रोजगार के साधन नही थे, भारत से ही खाने पीने को जाया करता था । सुमेर नाम का राजा या कोई राजघराना उस समय वहां शाशन कर रहा था, उसके भी आय का साधन भारत आए गयी वस्तुओं पर टैक्स वसूलकर ही राज्य चलाना ही था । सुमेरकाल के अवशेष आज भी अरब में टूटे फूटे खंडहर के रूप में बिखरे पड़े है ।


570 ईस्वी में अरब में एक बड़ी विकृत मानसिकता वाले बालक का जन्म हुआ । नाम मुहम्मद तो नही था, शायद महादेव नाम था । एक ब्राह्मण परिवार में इसका जन्म हुआ था । उसका कुल मक्का के मंदिर में मुख्य पुजारी का काम करता था । पिता का नाम था अब्दुल्लाह ( अल्ला: देवी का भक्त ) और माता का नाम था अमीना । माता का नाम संभवतः मैना या मीना था, जिसे अरबो ने अब अमीना कर दिया है ।

मुहम्मद के जन्म के कुछ महीने पूर्व ही उसके पिता का देहांत हो गया । और बचपन मे ही माँ मैना चल बसी । उसके चाचा ने इसे पाल पोषकर बड़ा किया । लेकिन यह सत्य है, मुहम्मद हमेशा माता पिता के वात्सल्य से वंचित ही रहा । चाचा आदि खाने को दो समय का भोजन दे देते यही बड़ी बात थी, उसके बदले कड़ी धूप में एक बालक को भेड़ बकरियां चराने भेज दिया जाता । एक बालक को जो जरूरी संस्कार मिलने चाहिए थे, वह मुहम्मद को कभी ना मिले, ऊपर से चाच के दुस्ट लड़के उसका यौनशोषण भी करते थे । पूरा बचपन इन तरह के अत्याचार में बिता , संस्कार मिले नही, चाची आदि अपने पुत्रों को प्रेम करती, लेकिन मुहहमद का कोई ख्याल किसी को नही था । यही कारण था, की स्त्री जात से मुहम्मद घृणा करने लगा । स्त्री की शक्ल देखना भी वो पंसद ना करता था । हिजाब , बुरका आदि उसके नियम इसी घृणा की उपज थे ।

जिसका पूरा परिवार एक सम्पन्न परिवार हो, ओर सिर्फ एक बच्चे के साथ ऐसा दुर्व्यवहार , यह सब अमानवीय व्यवहार ने मुहहमद को उम्र से पहले ही परिपक्कव बना देती है । उसने दर्द को सहना सिख लिया था । मिर्गी के दौरे पड़ते, कोई संभालने वाला नही था । खुद ही तड़पता, खुद ही संभल भी जाता । 30 वर्ष की आयु तक तो घरवालों ने उसके विवाह के बारे में भी नही सोचा । मुहम्मद की कुरूपता भी उसके लिए अभिशाप बन गयी । कहीं से भी उसे रतिभर भी प्रेम ना मिला ।

लेकिन यह बालक जो अब युवा हो चुका था, यह बड़ा विलक्षण प्रतिभाशाली था । वह सही मायनों में अब वन मेन आर्मी बन चुका था, उसको बेवकूफ कहना उचित नही, उसने खुद अपनी रणनीति बनाई, खुद ही सैनिक कमांडर था, खुद ही लोगो को प्रेरित करता था । इतना प्रतिभाशाली था, की अपनी बीमारी को भी उसने एक हथियार के रूप में उपयोग किया, जब भी उसे मिर्गी के दौरे पड़ते, तो कहता, वह अल्ला से मिल रहा है ।

इसी बीच मुहम्मद को भेड़ चराते चराते खदीजा नाम की धनवान स्त्री मिल गयी । वह विधवा थी, उम्र में मुहम्मद की माँ के बराबर, बहुत धनवान थी । इसी खदीजा से मुहहमद ने विवाह किया । अब मुहम्मद धनवान था, उसके पास सम्पति थी, की वह गुंडे इक्कठे कर सके । इसमे पहला गुंडा बना मुहम्मद का बचपन का दोस्त अबु बकर ।

स्त्री लूट के लालच, धन , घुस देकर मुहम्मद ने एक सुसंगठित सेना का निर्माण किया, जो कि लोगो के घरों में धावे बोलती, महिलाओ की आबरू लुटती, धन चुराती । यह माफिया अब धीरे धीरे अरब में फैल रहा था ।

इसी सनक के बढ़ते बढ़ते, ओर लगातार सफल होते मुहम्मद को लगने लगा, की वह ईश्वर ही है, वह ईश्वर का भेजा कोई दूत है । जो इस पाखण्ड को मिटा कर रख देगा, जो पूजा , अर्चना के नाम पर एक बच्चे से भी अच्छा व्यवहार ना कर सके । उसने खुद को पैग़मर घोषित कर दिया । इसका अरब में विरोध होने लगा । यहां तक कि मुहम्मद ने अब यह दावा भी ठोक दिया, की वही मक्का परिसर मंदिर का मुखिया होगा । एक नए भगवान को मानने के लिए अरबवासी तैयार नही थे । अतः विद्रोह होना ही था । लेकिन गरीब जनता पर मुहम्मद की तलवार भारी पड़ी । बल के दम पर उसने लोगो को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया । धीरे धीरे उसकी टोली में लुटेरो की संख्या बढ़ती ही जा रही थी ।

#मदीना_पर_आक्रमण

मदीना नाम से आपको समझ जाना चाहिए कृष्ण भक्त यहूदियों ने अपने ईश्वर श्री कृष्ण के मदन नाम पर ही इसका नामकरण किया था । इसका दूसरा नाम हेजीरा यातिभ भी था । जिसका अर्थ होता है प्रवासियों का शहर । महाभारत के युद्ध के बाद सौराष्ट्र मे आये प्रलय के कारण यहां आकर बसे थे । यहां बहुदेव पूजा होती थी । यहूदी केवल एक ईश्वर मानते है, लेकिन बहुदेव पूजा का होना यह स्पष्ठ है, की यहूदी ओर हिन्दू आपस मे किसी तरह का बैर भाव नही रखते थे । 620 में खुद को ईश्वर घोषित कर आतंक मचाने वाले मुहम्मद के विरुद्ध मदीना के हिन्दुओ ओर यहूदियों ने ठान लिया कि इस गुंडे को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा । लेकिन आमने सामने की लड़ाई ना लड़ते हुए इस डकैत ने लोगो के घरों में आग लगानी शुरू कर दी । बच्चो को बंधक बना लिया गया । कांफिरो को अपने छल कपट ओर धोखे से ऐसा तलवार का स्वाद चखाया की कुछ ही समय मे काफ़िर मुसलमान बन गए । मदीना की सारी काफिरियात मिटा दी गयी । मदीना से हिंदुत्व ओर यहूदियों का पूर्ण सफाया कर दिया गया । मदीना अब धर्म की नगरी नही, बल्कि गुंडों की नगरी बन चुका था ।


#जंगे_बद्र ( मक्का की लड़ाई )

जंग एक बद्र नाम से ही स्पष्ठ है, यह भगवान शिव उर्फ बद्री के भक्तो के विरुद्ध किया गया संग्राम था । मुहम्मद ओर उसके गुंडों ने पहले आसपास के पूरे मक्का शहर में ही आतंक के मायाजाल से लोगो के अंदर दहशत भर रखी थी । बच्चो को गुलाम बनाया जाता , महिलाए लूटी जाती । शहर भर में व्यभिचारी, अपराधी, लालची ओर कपटी लोग मुगम्मद की गैंग में आकर शामिल होने लगे । 300 लोगो की भीड़ लेकर मक्का के पुजारियों पर पत्थरबाजी करवाई गई थी । आज तक शैतानो को पत्थर मारने की परंपरा है, वह शैतान कोई और नही हिन्दू ही है । जिस समय मुहम्मद ने वहां हमला किया, उस समय पूजा अर्चना चल रही थी । 1000 श्रद्धालु ओर पंडित लोग मन्दिर प्रांगण में थे । मुस्लिम लोग कहते है, की इस लड़ाई में मुहम्मद साहब बिना हथियारों के गए, ओर उसके आगे ही यह भी कहते है कि अपने जहिल चाचा को हाथों में दोनों तलवार लेकर मार डाला । दरअसल वह चाचा हिन्दू ही था ।

मुहम्मद का चाचा उमर बिन्ना हश्शाम जो प्रार्थना करता था, उनमे से एक इस प्रकार है ;-

कफारोमल फिक्र मिल उल मीन अयसरू
कलुबन अभातुल हवाबस तजखरू !!

वा ताबख़्यरोबा उदन कलावन्दे -ए - लिखो आबा
बलुकायने जललति - हे रोमा तब अयशरू

वा आबा लोल्हा अजबु अमीमन महादेव - ओ
मनोबली इनामुद्दीन मिनहुम या सयतरु

मय्यसरे अखलाखन हस्सान कुल्लहूम
नुजमुम अता अत सुम्मा गुबुल हिन्दू

इस कविता का अर्थ इस प्रकार है

यदि कोई व्यक्ति पापी या अधर्मी बने
वह काम और क्रोध में डूबा रहे
किन्तु पश्चाताप कर वह सद्गुणी बन जाये
तो क्या उसे सद्गति प्राप्त हो सकती है ?
हां ! अवश्य यदि वह शुद्ध अंतःकरण से
शिवभक्ति में लीन हो जाये तो
उसकि आध्यात्मिक उन्नति होगी
हे भगवान शिव मुझे मेरे सारे जीवन के बदले
मुझे केवल एक दिन भारत निवास का अवसर दे
जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो ।
भारत की एक मात्र यात्रा करने से , सबको पुन्यप्राप्ति ओर सन्तसमागम का लाभ प्राप्त होता है । इसे मुसलमा लोग जहिल अर्थात बुद्धू कहने लगे थे ।

ईसे ही मुहम्मद ने मार डाला, मंदिर परिसर के सारे श्रद्धालुओ के प्राण ले लिए गए, पूजा आरती के आनन्द की जगह अब रक्त ही रक्त फैला हुआ था ।

यहां मक्का के मंदिर में घुसकर मुहम्मद में भयंकर तोड़ तोड़ मचाई । 379 मुर्तिया उस मंदिर में थी । एक मूर्ति का नाम Al - Debran नाम की मूर्ति थी यह वरुण देव मि मूर्ति थी । एक मूर्ति का नाम allat देवी था, यह अल्लाह कोई ओर नही मा दुर्गा की मूर्ति ही थी । al - ozi यह सुमेरिया राजघराने की कुल देवी थी । जो ऊर्जा का प्रतीक वाली देवी थी । एक मूर्ति अव्वल देवता की थी, अव्वल यानी प्रथम यह गणेश जी की मूर्ति थी । बग नाम की मूर्ति जो भगवान शब्द का ही उच्चार था ।भगवान से वान हटकर भग बना, उसी से बग । काबा के मंदिर को विश्व की नाभि कहा जाता है मेरा अनुमान है, की यहां भगवान विष्णु लेती अवस्था मे की विशाल प्रतिमा थी । जिसपर आज काला पर्दा पड़ा हुआ है । एक बजर नाम के देव की मूर्ति थी, यह बज्र इंद्र का नाम है ।
अब पूरे मक्का ओर काबा मंदिर पर मुहम्मद का अधिकार हो चुका था । इन सभी मूर्तियों को तोड़ फोड़ दिया गया ।


#यहूदियों_पर_अत्याचार_की_एक_झलकी

बहुत लंबे समय तक यहूदियों ओर मुसलमानों के बीच संघर्ष चलता रहा । मदीना से लगभग 90 किलोमीटर दूर कुरुजा नाम के स्थान पर एओ यहूदी कबीला रहा करता था । मुहम्मद ने इस कबीले पर अचानक धावा बोल दिया । उस समय पुरुष जानवरो को पानी पिला रहे थे, महिलाए घर के काम मे लगी थी, बच्चे खेल रहे थे । उस कबीले के सरदार ओर धर्मगुरु किनाना की शादी एक दिन पहले ही 20 साल की जुबैरिया के साथ हुई थी । जुबैरिया अद्भुत सुंदरी थी । शादी के माहौल, एकदम मातम में बदल दिया, इस्लामी गुंडो ने अचानक घरों में आग लगानी शुरू की, बच्चो को जबदस्ती कलमा पढ़ाने लगे, पुरषो को काट काट कर फेंका जाने लगा । सभी स्त्री पुरषो ओर महिलाओ को बंधक बना लिया गया । जुबैरिया ने मुहम्मद के पांव पकड़ लिए, की इन्हें बक्श दीजिये । लेकिन मुहम्मद ने जान के बदले जुबैरिया के सामने संभोग की शर्त रख दी म निःसहाय अबला नारी को इतने प्राणों के बदले यह मानना ही पड़ा । बंधक बनाकर जुबैरिया को मुहम्मद अपने व्यभिचार के लिए ले आया ।

इसी तर्ज पर पूरे अरब में इस्लाम फैला । 622 से 634 तक पूरा सऊदी अरब इस्लामिक बन गया । गुंडो की टोली तैयार थी, निगाहों में ईरान, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान था ।

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