ब्राह्मणों द्वारा अत्याचार एक झूठ है | जिसे वामपंथी मुग़ल इतिहास कार ने षड़यंत्र तहत हिन्दू समाज तोड़ा है |
लोग नदी तालाब के पास रहते थे ! लकड़ी खडाऊ पहनता था |
कोई शोचालय नही था ! कोई चमार नही था ना कोई चमरे का व्यापार ! पालतुपशु का दाह संसकार होता था !ज़िसका पशु होता था वो और उसके परिजन दाह संसकार करते थे !लोग फल फूल खाते थे ! शिकार सिर्फ हिंसक जानवर का होता था !कितना बाताऊँ घोडे का ज़िन और दास्ताने मुगल काल मे आये और मैला कारोबार ! मन्दिर मे ढ़ोल नही कीर्तान नही हवन और वैदिक मंत्रोचारांन होता था !
ढ़ोल कीर्तान भक्ती काल मे आये !
तांत्रिक पूजा मे तांत्रिक बलि देते है ! तांत्रिक ओउघड अाज भी देते है !
औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी बर्षो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा
हरिजन जाति गांधी ने बनाया ! संविधान ने ऊँच निच बनाया ! मनुस्मृति मनु माहाराज राजपूत ने लिखा तो ब्राहमन को गाली क्यों ?
चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।
ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया।
उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा :- ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥” यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया।
हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं।
हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।
चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है।
हमारे भगवान् संत रविदास ने इस प्रकार कहा है :
SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।
लोग नदी तालाब के पास रहते थे ! लकड़ी खडाऊ पहनता था |
कोई शोचालय नही था ! कोई चमार नही था ना कोई चमरे का व्यापार ! पालतुपशु का दाह संसकार होता था !ज़िसका पशु होता था वो और उसके परिजन दाह संसकार करते थे !लोग फल फूल खाते थे ! शिकार सिर्फ हिंसक जानवर का होता था !कितना बाताऊँ घोडे का ज़िन और दास्ताने मुगल काल मे आये और मैला कारोबार ! मन्दिर मे ढ़ोल नही कीर्तान नही हवन और वैदिक मंत्रोचारांन होता था !
ढ़ोल कीर्तान भक्ती काल मे आये !
तांत्रिक पूजा मे तांत्रिक बलि देते है ! तांत्रिक ओउघड अाज भी देते है !
औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी बर्षो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा
हरिजन जाति गांधी ने बनाया ! संविधान ने ऊँच निच बनाया ! मनुस्मृति मनु माहाराज राजपूत ने लिखा तो ब्राहमन को गाली क्यों ?
चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।
ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया।
उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा :- ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥” यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया।
हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं।
हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।
चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है।
हमारे भगवान् संत रविदास ने इस प्रकार कहा है :
SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।
Hi, Hope you are doing great,
ReplyDeleteI am Navya, Marketing executive at Pocket FM (India's best audiobooks, Stories, and audio show app). I got stumbled on an excellent article of yours about Parasuram Bhagwan and am really impressed with your work. So, Pocket FM would like to offer you the audiobook of Parasuram Bhagwan's biography (https://www.pocketfm.in/show/0388b8b71833ec82c199a8118ee033284a01959d). Pls mail me at navya.sree@pocketfm.in for further discussions.
PS: Sry for the abrupt comment (commented here as I couldn't access your contact form)
निशब्द तारीफ में 🙏
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