करीब साढ़े बारह साल लगातार कठोर तपस्या करने के बाद महावीर स्वामी ने सच्चे ज्ञान की प्राप्ति की। वो दिन शायद धरती माँ के लिए एक सुनहरा दिन रहा होगा, जब उनका एक पुत्र महावीर दुनिया को बदलने वाला था। भगवान महावीर के इस बौद्ध अवस्था को बुद्ध कहा और भगवान् महावीर बुद्ध कहलाये|
गौतम महावीर सिद्धार्थ बुद्ध ये सब विष्णु के दशावतार अवतार के नाम है|
महावीर ही बुद्ध है| |
हरि ॐ तत्सत
बुद्ध मत के बुद्ध का नाम पाली साहित्य में गोतम है लेकिन जैन आदिपुराण में
आया है :-
"गौतमदागतो देव: स्वर्गाग्रद गौतमो मत ,तेन प्रोक्तमधीनस्त्व चासो गौतामश्रुति "(दितीय पर्व श्लोक ५३ )
अर्थात महावीर स्वामी १६ वे स्वर्ग से
अवतरित हुए इसलिए उन्हें गौतम कहते है और
गौतम की वाणी सुनने से आप का भी नाम गौतम है ,,,
अर्थात गोतम की वाणी सुनने वाला भी गोतम है और स्वयं गोतम भी गोतम है , तो बड़ा संदेहास्पद विषय है कि ई गोतम है कौन? इस दृष्टि से गोतम कोई व्यक्ति विशेष नही है ? गोतम उपाधिनाम है ,
जैन मत की माने तो महावीर स्वामी के शिष्य गणधर ही बुद्ध है :-
आदिनाथ पुराण में आया है :-
" चतुर्भिश्रचमलेर्बोधैरबुद्धतस्वजगद यत:| प्रज्ञापारमित बुद्ध त्वा निराहुरतो बुधा:"
(दितीय पर्व श्लोक ५५ )
हे देव आपने ४ निर्मल ज्ञानो (४ आर्य सत्य ) के द्वारा संसार
को जान लिया है तथा आप बुद्धि के पार को प्राप्त हुए है इसलिए
संसार आपको बुद्ध कहता है ...
अतः इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि महावीर भी गौतम है और गणधर भी गौतम और सिद्धार्थ भी अत: तीनो बुद्ध है ...
दिगंबर जैन के एक और ग्रन्थ धर्म परीक्षा अमितगत (जैन
हितेषी पुस्तकालय कर्नाटक द्वारा प्रसारित पेज
संख्या २५९ की पांति २४ पर उल्लेखित है कि:-
रुष्टश्रवारनाथस्य तपस्वीमोगलायन:|
शिष्य: श्रीपार्श्वनाथस्य विदधेबुद्धदर्शनम ||
पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले वीरनाथ ने रुष्ट हो कर बुद्ध धर्म स्थापित किया |
इस प्रकार आप समझ सकते है कि यहा बुद्ध कहे जाने के चार दावेदार है ,
महावीर भी गोतम बुद्ध है , महावीर के शिष्य गणधर गौतम भी बुद्ध है और पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले विरनाथ भी बुद्ध है और सिद्धार्थ गोतम भी बुद्ध है|
महावीर ही बुद्ध है या बुद्ध ही महावीर है | इस प्रसंग से साबित होता है | भारत में बुद्ध को महावीर और विदेश में महावीर को बुद्ध बोलते हैं|
आप स्वयं देख लीजिए :-
(१) बुद्ध ने खीर खा कर ज्ञान प्राप्त
किया महावीर ने भी खीर खा कर ही ज्ञान प्राप्त किया।
(२) सिद्धार्थ बिम्बसार के बाग़ में ठहरा था महावीर
भी ठहरे थे।
(३) महवीर जी शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण
बताया गया है बुद्ध का एक भिक्षु भी अग्निहोत्र
ब्राह्मण बताया है।
(४) माहवीर को सांप ने काटा तो दूध निकला सिद्धार्थ
को भी सांप ने काटा तो दूध निकला।
(५) चन्दन वाली नामी स्त्री नेमंगा वती साध्वी को इसलिए डाटा की को सारी रात महावीर के संघ में रही |
दोनों के उपदेश और शिक्षा एक ही है | भगवान् बुद्ध के जन्मस्थान के लेकर भी विवाद है | नेपाल और बिहार दोनों ही इनके अपने जन्म लेकर दावा करते है |आया है :-
"गौतमदागतो देव: स्वर्गाग्रद गौतमो मत ,तेन प्रोक्तमधीनस्त्व चासो गौतामश्रुति "(दितीय पर्व श्लोक ५३ )
अर्थात महावीर स्वामी १६ वे स्वर्ग से
अवतरित हुए इसलिए उन्हें गौतम कहते है और
गौतम की वाणी सुनने से आप का भी नाम गौतम है ,,,
अर्थात गोतम की वाणी सुनने वाला भी गोतम है और स्वयं गोतम भी गोतम है , तो बड़ा संदेहास्पद विषय है कि ई गोतम है कौन? इस दृष्टि से गोतम कोई व्यक्ति विशेष नही है ? गोतम उपाधिनाम है ,
जैन मत की माने तो महावीर स्वामी के शिष्य गणधर ही बुद्ध है :-
आदिनाथ पुराण में आया है :-
" चतुर्भिश्रचमलेर्बोधैरबुद्धतस्वजगद यत:| प्रज्ञापारमित बुद्ध त्वा निराहुरतो बुधा:"
(दितीय पर्व श्लोक ५५ )
हे देव आपने ४ निर्मल ज्ञानो (४ आर्य सत्य ) के द्वारा संसार
को जान लिया है तथा आप बुद्धि के पार को प्राप्त हुए है इसलिए
संसार आपको बुद्ध कहता है ...
अतः इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि महावीर भी गौतम है और गणधर भी गौतम और सिद्धार्थ भी अत: तीनो बुद्ध है ...
दिगंबर जैन के एक और ग्रन्थ धर्म परीक्षा अमितगत (जैन
हितेषी पुस्तकालय कर्नाटक द्वारा प्रसारित पेज
संख्या २५९ की पांति २४ पर उल्लेखित है कि:-
रुष्टश्रवारनाथस्य तपस्वीमोगलायन:|
शिष्य: श्रीपार्श्वनाथस्य विदधेबुद्धदर्शनम ||
पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले वीरनाथ ने रुष्ट हो कर बुद्ध धर्म स्थापित किया |
इस प्रकार आप समझ सकते है कि यहा बुद्ध कहे जाने के चार दावेदार है ,
महावीर भी गोतम बुद्ध है , महावीर के शिष्य गणधर गौतम भी बुद्ध है और पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले विरनाथ भी बुद्ध है और सिद्धार्थ गोतम भी बुद्ध है|
महावीर ही बुद्ध है या बुद्ध ही महावीर है | इस प्रसंग से साबित होता है | भारत में बुद्ध को महावीर और विदेश में महावीर को बुद्ध बोलते हैं|
आप स्वयं देख लीजिए :-
(१) बुद्ध ने खीर खा कर ज्ञान प्राप्त
किया महावीर ने भी खीर खा कर ही ज्ञान प्राप्त किया।
(२) सिद्धार्थ बिम्बसार के बाग़ में ठहरा था महावीर
भी ठहरे थे।
(३) महवीर जी शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण
बताया गया है बुद्ध का एक भिक्षु भी अग्निहोत्र
ब्राह्मण बताया है।
(४) माहवीर को सांप ने काटा तो दूध निकला सिद्धार्थ
को भी सांप ने काटा तो दूध निकला।
(५) चन्दन वाली नामी स्त्री नेमंगा वती साध्वी को इसलिए डाटा की को सारी रात महावीर के संघ में रही |
हिन्दू धर्मग्रंथो में दोनों को एक ही अवतार मानते है | अतः भगवान् महावीर जी का जागृत अवस्था वाले नाम को बुद्ध है | जैसे कृष्ण गोपाल कन्हैया केशव माधव वासुदेव इत्यादि है|
अतः भगवान् बुद्ध को ही महावीर जानकर प्रणाम करता हूँ |
करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस (त्रयोदशी) को वर्धमान का जन्म हुआ। यही वर्धमान बाद में महावीर स्वामी बना। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बसाढ़गांव है, वही उस समय वैशाली के नाम से जाना जाता था। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था। उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए।
भगवान महावीर स्वामी के शुभ संदेश :
उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्मकल्याणक मनाया। महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता। युवावस्था में यशोदा नामक राजकन्या से महावीर का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नामक उन्हें एक पुत्री भी हुई।
जब वे 28 वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई नंदीवर्द्धन के आग्रह पर महावीर 2 वर्षों तक घर में रहे। आखिर 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की।
महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच महाव्रतरूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय-वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते हैं। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनियाभर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महावीर स्वामी के 8 अनमोल वचन :
महावीर कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं- 'जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।
भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया:
महावीर स्वामी का प्रमुख संदेश था, 'जियो और जीने दो'। उन्होंने जैनियों के तीन प्रमुख लक्षण बतलाए हैं, जो निम्न हैं
1. प्रतिदिन देव-दर्शन करना,
2. पानी छानकर पीना,
3. रात्रि भोजन नहीं करना।
पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति,
महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांत :उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार ये सिद्धांत सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
सत्य : सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा : इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंन्द्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो।यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
अपरिग्रह : अपरिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
ब्रह्मचर्य : महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष, स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
क्षमा : क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।' वे यह भी कहते हैं- 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पापवृत्तियां प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियां की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियां विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
उन्होंने अपने जीवनकाल में अहिंसा का भरपूर विकास किया। महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। पूरे विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने बहोत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित 18 गणराजाओं ने रत्नों के प्रकाश से उस रात्रि को आलोकित करके भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया।
भगवान महावीर स्वामी के शुभ संदेश :
उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्मकल्याणक मनाया। महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता। युवावस्था में यशोदा नामक राजकन्या से महावीर का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नामक उन्हें एक पुत्री भी हुई।
जब वे 28 वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई नंदीवर्द्धन के आग्रह पर महावीर 2 वर्षों तक घर में रहे। आखिर 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की।
महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच महाव्रतरूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय-वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते हैं। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनियाभर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महावीर स्वामी के 8 अनमोल वचन :
महावीर कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं- 'जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।
भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया:
महावीर स्वामी का प्रमुख संदेश था, 'जियो और जीने दो'। उन्होंने जैनियों के तीन प्रमुख लक्षण बतलाए हैं, जो निम्न हैं
1. प्रतिदिन देव-दर्शन करना,
2. पानी छानकर पीना,
3. रात्रि भोजन नहीं करना।
पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति,
महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांत :उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार ये सिद्धांत सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
सत्य : सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा : इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंन्द्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो।यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
अपरिग्रह : अपरिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
ब्रह्मचर्य : महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष, स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
क्षमा : क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।' वे यह भी कहते हैं- 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पापवृत्तियां प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियां की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियां विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
उन्होंने अपने जीवनकाल में अहिंसा का भरपूर विकास किया। महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। पूरे विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने बहोत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित 18 गणराजाओं ने रत्नों के प्रकाश से उस रात्रि को आलोकित करके भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया।
Nice One Mahaveer ka janm kahan hua tha Thinks.
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