आर एस एस

आर एस एस सन् 1925 में बना था और स्वाधीनता संग्राम आंदोलनों के समय एक बहुत छोटा संगठन था। संघ का मुख्य उद्देश्य उस समय अपने आप को मजबूत करना होना चाहिए था क्योंकि अंग्रेज, कांग्रेस, मुस्लिम लीग जैसे विरोधी संघ को आसानी से कुचल सकते थे। किंतु संघ ने स्वाधीनता संग्राम में पूरी तरह योगदान दिया। कांगेरस जिसकी स्थापना सन् 1885 में कई क्षेत्रीय पार्टीयों के विलय से हुई थी उसे भी मजबूत बनने में कम से कम 20 साल लगे थे जबकि संघ शून्य से खड़ा हुआ था। डाॅ हेडगेवार ने संघ की स्थापना इस लक्ष्य से की थी कि वह लोगों में राष्ट्रीयता, देशभक्ति की भावना भरकर एक ऐसा मजबूत राष्ट्रª निर्माण करें जो एक बार फिर भारत को विश्व गुरू का गौरव दिला सके। बहुत कम ही लोगों को पता है कि संघ के स्वंय सेवक आजादी की लड़ाई में जमकर लड़े और अंग्रेजी हुकुमत की गोलियां और लाठियां खाईं। ऐसा इसलिए है क्योंकि संघ के प्रवृति में अपना गुणगान करने की भावना कभी भी नहीं रही। स्वंय डाॅ हेडगेवार को महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था और एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। संघ की प्रार्थना में भी मातृभूमि को विदेशियों से मुक्त करने का भाव है। महामना मदन मोहन मालवीय सन् 1929 में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की नागपूर शाखा का हिस्सा बने थे। 25 दिसंबर 1934 को वर्धा के एक संघ शिविर में महात्मा गांधी शामिल हुए थे और प्रार्थना के बाद उन्होंने डाॅ हेडगेवार से आजादी की लड़ाई को लेकर घंटो बातचीत की थी जिसमें वह डाॅ साहब से बहुत प्रभावित भी हुए थे। नेता जी सुभाष चंद्र बोस और श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी सन् 1940 में डाॅ साहब से मिले थे और स्वाधीनता संग्राम को लेकर काफी समय तक विचार विमर्श किया था।
संघ के द्वितीय संघ चालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जिन्हें गुरूजी के नाम से जाना जाता है सन् 1942 के अपने संघ शिक्षा वर्ग के एक कार्यक्रम में कहा था कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भारत छोड़ों आंदोलन में पूरी तरह खड़ा है। अंग्रेजी हुकुमत के अनुसार संघ ने किसी भी विरोध की परवाह किए बिना अपने दम पर संघर्ष करने का निर्णय लिया था और यह भी निश्चय किया था कि स्वराज अंग्रेजों से भीख मांगकर नहीं बल्कि अपनी क्षमता और संघर्ष के दम पर ही प्राप्त हो सकता है।

 कांग्रेस ने 9 अगस्त 1942 को बिना पर्याप्त तैयारी के महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया था। अंग्रेजी हुकुमत ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया। परिणामस्वरूप नेतृत्व के अभाव में भारत छोड़ो आंदोलन विफलता की ओर बढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा था। तब संघ के स्वंयसेवकों ने बिना किसी डर के आंदोलन की पूरी कमान संभाल ली थी। उदाहरण के तौर पर कुछ स्वंय सेवक विदर्भ क्षेत्र के चिमूर तथा अष्टि जिलों में समानांतर सरकार बनाने में कामयाब भी हो गए थे।

अरूणा आसफ अली जिन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बयालीस की बिजली का दर्जा दिया गया, सन् 1967 में दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा है “जब कांगेरसी नेताओं की गिरफ्तारियों के बाद आंदोलन दिशाहीन हो गया तब दिल्ली के संघ के प्रांत संघचालक लाला हंसराज गुप्ता ने अपने घर में मुझे शरण दी तथा मेरी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा।”</strong> सोलापुर महाराष्ट्र के कई सारे कांग्रेस समीति के सदस्य संघ चालकों और स्वंय सेवकों के घर छिपे थे। चिकित्सा व्यवस्था से लेकर कानूनी कार्यवाही में भी स्वंय सेवकों ने भी उनकी बहुत मदद की। यह स्वीकार होना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वंय सेवकों की देशभक्ति और नैतिकता पर आधारित अनुशासित जीवन संदेह से परे है।
सन् 1947 में संघ ने कश्मीर के भारत विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ना सिर्फ संघ के प्रचारक बलराज मढोक ने शेख अब्दुल्ला की नीयत के बारे में सरदार पटेल को अवगल कराया था बल्कि गुरूजी ने राजा हरी सिंह को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संघ के स्वंयसेवक श्रीनगर हवाई अड्डे की सुरक्षा में तब तक खड़े रहे जब तक भारतीय सेना वहां नहीं पहुंच गई। उन्होंने माधोपूर स्थित रावी नदी को पार करने में सेना की काफी सहायता की तथा पाकिस्तानियों द्वारा बिछाए हुए माइंस को नष्ट करने में भी बड़ा योगदान दिया था।

सन् 1954 में संघ समर्थित आजाद गोमातक दल ने दादरा तथा नगर हवेली पर हमला कर उसे पुर्तगालियों से आजाद करा लिया था। इस घटना में कई स्वंयसेवकों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा था। इस सफलता का श्रेय संघ के नेता नाना कजरेकर और राजा वकानकर को जाता है। सन् 1955 में संघ के नेताओं ने गोवा में पुर्तगाली शासन का अंत कर भारत में विलय की मांग की। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सैन्य आक्रमण से मना कर दिया तब संघ के स्वंयसेवक जगन्नाथ राव जोशी सत्याग्रह अभियान का नेतृत्व कर गोवा जा पहुंचे जहां उन्हें पुर्तगालियों पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।


15 अगस्त 1955 को पुर्तगाली सेना द्वारा किए गए हमले में 30 से ज्यादा स्वंयसेवक मारे गए और तब मजबूरन भारत सरकार को बीच में आना पड़ा और सैन्य अभियान के माध्यम से गोवा को आजाद करा लिया गया। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का आजादी से 22 वर्ष पूराना इतिहास भारत के स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में तथा पुर्तगालियों के विरोध में हुए संग्राम में सुनहरे अक्षरों में अंकित है।

स्वतंत्रता संग्राम में RSS की भूमिका


६ अप्रेल १९३० को दांडी में समुद्रतट पर गांधीजी ने
नमक कानून तोड़कर जनांदोलन प्रारम्भ किया.संघ
का कार्य उस समय तक केवल मध्यभारत में
ही प्रभावी हो सका था.वहां पर नमक कानून के स्थान पर
जंगल कानून तोड़कर सत्याग्रह करने का निश्चय
हुआ.डॉ. हेडगेवार द्वारा संघ के सरसंघचालक का दायित्व डॉ परांजपे को सौंपकर स्वयं अनेकों स्वयंसेवकों के साथ
सत्याग्रह करने गए.जुलाई १९३० में सत्याग्रह के लिए
यवतमाळ जाते समय पुसद नमक स्थान पर आयोजित
जनसभा में डॉ.हेडगेवार के सम्बोधन में स्वतंत्रता संग्राम
के प्रति संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है.उन्होंने
कहा था,”स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूटपालिश से लेकर उनके बूट को पैर से निकालकर उससे उनके
ही सिर को लहूलुहान करने तक के सब कार्य मेरे मार्ग में
स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं.मैं
तो इतना ही जनता हूँ की दश को स्वतंत्र कराना है.”
डॉ.हेडगेवार के साथ गए जत्थे में
अप्पाजी जोशी ( जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने),दादाराव परमार्थ( जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम
प्रान्त प्रचारक बने),आदि १२ प्रमुख स्वयंसेवक
थे.उनको ९ मॉस का सश्रम कारावास का दंड
दिया गया.उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख
श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक
श्री अप्पाजी हल्दे आदि अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया.तथा शाखाओं के जत्थों ने भी सत्याग्रह में भाग
लिया.सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के
शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए १००
स्वयंसेवकों की टोली बनायीं गयी जिसके सदस्य
सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे.
८ अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा १४४ तोड़कर जुलूस निकलने पर पुलिस की मार से अनेकों स्वयंसेवक
घायल हुए.
विजयदशमी १९३१ को डॉ. जी जेल में
थे.उनकी अनुपस्थिति में गांव गांव में संघ की शाखाओं
पर एक सन्देश पढ़ा गया, जिसमे कहा गया था:-
“देश की परतंत्रता नष्ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्मनिर्भर नहीं होता तब तक रे मन!
तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिार नहीं.”
जनवरी १९३२ में विप्लबी दल
द्वारा सरकारी खज़ाना लूटने के लिए हुए बालाघाट कांड में
वीर बाघा जतिन (क्रन्तिकारी जतिन्द्र नाथ) अपने
साथियों सहित शहीद हुए और श्री बालाजी हुद्दार आदि कई क्रन्तिकारी बंदी बनाये गए.श्री हुद्दार उस
समय के संघ के अ.भा.सरकार्यवाह थे.
संघ पर प्रतिबन्ध
संघ के विषय में गुप्तचर विभाग की रपट के आधार पर
मध्य भारत सरकार ने जिसके क्षेत्र में नागपुर था,१५
दिसंबर १९३२ को सरकारी कर्मचारियों के संघ में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया.बाद में डॉ.हेडगेवार जी के
देहांत के बाद ५ अगस्त १९४० को संघ की सैनिक
वेशभूषा और प्रशिक्षण पर देश भर में प्रतिबन्ध
लगा दिया.

घ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत
छोडो आंदोलन में भी सक्रिय
भूमिका निभायी थी.विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में
सामानांतर सरकार स्थापित करदी.अमानुषिक
अत्याचारों का सामना किया.उस क्षेत्र में एक दर्ज़न से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर
दिया.नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर
कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब
देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड
सुनाया गया.बाद में आम माफ़ी के समय मुक्त होकर
उन्होंने बनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की. देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे.दिल्ली-
मुजफ्फरनगर रेल लाईन पूरी तरह क्षतिग्रस्त
करदी गयी.आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन
को जला दिया गया.मेरठ जिले में मवाना तहसील पर
झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने
गोली चलायी जिसमे अनेकों घायल हुए. आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य
भी बहुत महत्त्व का था.केवल अंग्रेजी सरकार के गुप्तचर
ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के
कार्यकर्त्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार
देशभक्तों को पकड़वा रहे थे.ऐसे में जयप्रकाश नारायण
और अरुणा(आसफ अली) दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज जी गुप्त के यहाँ आश्रय पाते थे.प्रसिद्द
समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरूजी ने पुणे
के संघचालक श्री भाऊसाहब देशमुख के घर पर केंद्र
बनाया था.’पतरी सरकार’ गठित करनेवाले प्रसिद्द
क्रन्तिकारी नाना पाटिल को आंध(जिला सतारा) में
संघचालक पं.सातवलेकर जी ने आश्रय दिया. संघ की स्वतंत्रता-प्राप्ति की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने १९४३ के अंत में
संघ के विषय में जो रपट प्रस्तुत की वह राष्ट्रिय
अभिलेखगर की फाइलों में सुरक्षित है.जिसमे सिद्ध
किया है की संघ योजनापूर्वक स्वतंत्रता-
प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है. फाइलों में सुरक्षित प्रमाणों के कुछ अंश


मई-जून १९४३ — संघ कार्य तेजी से फ़ैल रहा है.उसके
अधिकारी शिक्षण शिविर (ओ.टी.सी.) ११
स्थानों पर लगे.पूना शिविर के समारोप में संघ प्रमुख
गोलवलकर ने कहा- त्याग का सर्वोच्च प्रकार
हुतात्मा(शहीद) होना है.उन्होंने रामदास का दोहा सुनाया, जिसमे कहा गया– हिन्दुओं को धर्म के लिए प्राण
न्योछावर कर देना चाहिए.पर उसके पूर्व अधिक से
अधिक शत्रुओं को मार दे. इन शिविरों में
स्वयंसेवकों से कहा गया–”वे यहाँ सैनिक जीवन
का अनुभव करने आये हैं, शीघ्र ही विदेशियों के साथ
शक्ति-परिक्षण होगा.” इन शिविरों में लड़ाकू और खतरनाक किस्म
की ट्रेनिंग दी जाती है.और बताया जाता है कि संगठन
के शक्तिशाली होने पर अंग्रेजों से दास्तामुक्ति-
मुक्ति का संघर्ष शुरू किया जायेगा.
अन्य संघ अधिकारीयों के प्रवास व संघ के
कार्यक्रमों पर भी गुप्तचर विभाग ने चिंता प्रकट की है.
संघ के अन्य प्रमुख नेता बाबासाहेब आप्टे ने १२
सितम्बर ‘४३ को जबलपुर में गुरुदक्षिणा उत्सव पर
कहा-”अंग्रेजों का अत्याचार असहनीय है, देश
को आज़ादी के लिए तैयार हो जाना चाहिए.”
गुप्तचर विभाग की रपट में संघ के क्रांतिकारियों से संबंधों का भी उल्लेख है.–पूना के संघ शिविर और
अमरावती के राष्ट्र सेविका समिति के शिविर में
सावरकर उपस्थित रहे.बदायूं (उ.प्र.) में संघ शिविर में
विदेशों में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ने वाले
राजा महेंद्र प्रताप का चित्र लगाया गया. इन
शिविरों तथा कार्यक्रमों में पूर्ण गोपनीयता बरती जाती है.
आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ सहयोग में संघ की पूर्व
तैयारी
२० सितम्बर १९४३ को नागपुर में हुई संघ की गुप्त
बैठक में आज़ाद हिन्द फ़ौज़ द्वारा जापान की सहायता से
अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले हमले के समय संघ की संभावित योजना पर विचार हुआ.
रियासतों में संघ कार्य पर प्रतिबन्ध
गुप्तचर विभाग से यह सूचना प्राप्त कर कि संघ ने
हिन्दू रियासतों के क्षेत्र में अपना संगठन मजबूत
किया है, वहां स्वयंसेवकों को शस्त्रों का खुलेआम
प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ब्रिटिश सरकार ने सभी ब्रिटिश रेजिडेंटों को संघ
कि गतिविधियों को रुकवाने व प्रमुख कार्यकर्ताओं
के विषय में जानकारी एकत्र करने का निर्देश दिया.
प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण से गुप्तचर विभाग इस
निष्कर्ष पर पहुंचा कि संगठन के लिए संगठन,
राजनीती से सम्बन्ध नहीं, हमारा कार्य सांस्कृतिक है– जैसे वाक्य वास्तविक उद्देश्य पर आवरण डालने के लिए

विशेष : आज़ाद हिन्द फौज, आरएसएस, हिन्दू महासभा संगठन के क्रन्तिकारी ने स्वत्रंत्रता संग्राम में बलिदान दिया | इसके क्रन्तिकारी मरते दम तक संगठन का नाम नहीं बताता था | इसका अंग्रेज विरोधी और राष्ट्रवादी विचारधारा के कारन अंग्रेज ने प्रतिबन्ध लगा दिया था|
कांग्रेस को अंग्रेजो ने बनाया था |विश्व युद्ध के लिए "कांग्रेस" भारतीयों की सेना में बहाली का काम करती थी | इसलिए अंग्रेज ने कांग्रेस पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया | कांग्रेस के माध्यम से अंग्रेज भारतीयों पर नियंत्रण रखते थे | कतिकारियों की गतिविधि की जानकारी अंग्रेज को कांग्रेस द्वारा ही मिलती थी |
राष्ट्रवादी संगठन आज़ाद हिन्द फौज का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस, आरएसएस का डॉक्टर हेडगेवार और हिन्दू महासभा की कमान विनायक दामोदर सावरकर के हाथो था | जिसने देश हित में सर्वस्व न्योछावर कर दिया | 
अंग्रेजो ने इन सभी संग़ठन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था |
अंग्रेजो ने कांग्रेस को इन सभी संग़ठन को बंद करवाने के लिए आदेश दिए थे | आज़ाद हिन्द फौज को कांग्रेस ने बंद कर दिया | बाकि राष्ट्रवादी संगठन पर प्रतिबन्ध वोटों की राजनीति के कारन नहीं कर पाया |


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