वामपंथी और बौद्ध धर्म

वामपंथी राजनीती और और बौद्ध धर्म
जब वामपंथियो ने राजनेता का इस्तेमाल हिन्दू धर्म का विरोध को बढ़ावा देने के लिए किया|
भीमटा कहते है की बुद्ध ही सत्य है वैज्ञानिक धर्म है यहाँ का मूल धर्म है। लेकिन इन बातो का कोई ठोस आधार नही।है । ये बाते सिर्फ तर्को से ही खण्डित हो जाती है।
और अगर ये बाते सत्य थी तो इनमे को वामपंथियो विचारधारा की 22 प्रतिज्ञा जोड़ने की क्या आवश्यकता थी।।
अब आते है की केवल बौद्ध धर्म ही क्यों चुना सिक्ख जैन आर्यसमाज या फिर ईसाई और इस्लाम क्यों नही।

एक तरफ आप ये भी कहते हो की इन धर्मो में जो लोग गए या जो धर्म बने वो जातिपात या छुआछुत के आधार पे बने तो फिर लोग बौद्ध धर्म में ही क्यों नही गए सिक्ख या इस्लाम या जैन ही क्यों बने ? और जिन अंग्रेजो छुआछुत को मिटाया और आपको शिक्षा का अधिकार दिया आप ने उन्हें क्यों नही अपनाया ?। ये एक सोचने का विषय है।
वामपंथियो ने 22 प्रतिज्ञा मिशन भीमटा के लिए किया |
वामपंथियो विचारधारा की 22 प्रतिज्ञा पढ़े लिखे थे अंग्रेजो के बीच जिंदगी बितायी। जवानी के दिन विदेशो में सूट बूट पहन के गुजारे। और डिग्रिया बटोरी।तो जाहिर सी बात है अंग्रेजो का असर तो आयेगा ही। उन्होंने सोचा की जब ये अंग्रेज मुट्टी भर होकर हम पे राज कर सकते है तो मैं क्यों नही।
बस यही से उन्होंने मिशन स्टार्ट किया। मिशन भीमटा ।
मिशन भीमटा के तहत वामपंथियो ने एक शब्द दलित की रचना की जिसमे अछूतों के साथ कई अन्य जातियो को भी समाहित किया और एक वर्ग ओबीसी की कल्पना की जो की अछूत नही थे और न ही घृणित थे। केवल आर्थिक रूप से पिछड़े या कह सकते है गरीब थे और उनकी गरीबी का मुख्य कारण अंग्रेज और इस्लामिक आक्रमणकारी थे जिन्होंने उनकी सम्पदा को लूट कर अपने साथ ले गए। अतः उन्होंने दलित के नाम पे एक वर्ग को अपने साथ जोड़ा और उन्हें हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काया। उन्होंने अपनी बुद्धि के अनुसार कई किताबे लिखी और उनमे धर्म को लेकर जहर घोला।
वामपंथियो की लड़ाई ब्राह्मणो से थी लेकिन उन्होंने धर्म के खिलाफ लड़ाई शुरू की जिसे जेहाद कहते है लेकिन ये जेहाद राजनैतिक था। अगर छुआछुत को मिटाने की बात होती और ब्राह्मणवाद की बात होती तो लड़ाई ब्राह्मण के खिलाफ होती । लेकिन उन्होंने धर्म के खिलाफ जहर उगला। वो चाहते तो अछूतों से ब्राह्मण का बहिस्कार करके खुद का ब्राह्मण स्वयं बनने को कहते।
वामपंथियो ने सिर्फ बौद्ध ही क्यों चुना
वामपंथियो ने इस्लाम क्यों नही स्वीकार किया क्योंकि इस्लाम एकेश्वर वाद पे है और फिर वामपंथियो की राजनीती कैसे होती।और वामपंथियो विचारधारा की वो 22 प्रतिज्ञा को कैसे कुरआन में जोड़ते । और दूसरी बात इस्लाम सऊदी से चलता है और वामपंथियो को तो खुद राजनीती चाहते थे इस्लाम में जाकर उन्हें सऊदी का गुलाम बनाना पड़ता । और भारत में पहले से ही मुसलमान थे तो ये अपनी बातो को उनपर थोप भी न पाते।
ईसाई क्यों नही बने वही बात ईसाई बन कर बाइबल के अनुसार चलना पड़ता क्योंकि यहाँ पहले से अंग्रेज और इसाई थे और को उनके साथ चलना पड़ता। अपनी ज्ञान उनपर थोप न पाते और उनके इतिहास से छेड़छाड़ करने की औकात नही थी।

यही सारी समस्या सिक्ख और जैन धर्म के साथ थी। क्योंकि हर धर्म का धर्म गुरु भारत में पहले से मौजूद था। जिसको वामपंथी अपने प्रभाव में नही ला सकते।और उस धर्म में शामिल होने का मतलब उस धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ाना।।उस धर्म को शक्ति प्रदान करना जबकि शक्ति तो वामपंथि स्वयं पाना चाहते थे।उसी संख्याबल के आधार पे राज भी करना चाहते थे। धर्म विशेष में शामिल होने से वामपंथि को कुछ नही मिलता यह एक सत्य है।
अतः वामपंथियों ने उन्होंने बौद्ध धर्म चुना जिसको न कोई मानाने वाला न कोई जानने वाला और जिसका न कोई धर्म गुरु भारत में था। जिसके साथ ये अपनी term & condition आसानी से जोड़ सकते थे और कोई रोकने वाला भी नही था।और हिन्दू चूँकि बुद्ध को भगवान मानते थे तो उन्हें कोई बुद्ध से समस्या भी नही थी। और बुद्ध के नाम पे ही इन्होंने राजनीती की शुरुआत की ।।
अब वामपंथी फिर एक बार मिशन भीमटा की ओर चल पड़े है |
इस नए राजनितिक धर्म का नाम "भीमटा धर्म" है जो राजनितिक है | जिसे मायावती, इमरान मसूद, हाजी इक़बाल इत्यादि नेता करते है |
भीमटा धर्म = बौद्ध धर्म + २२ हिन्दू विरोधी वामपंथी की प्रतिज्ञा जिससे समाज में राजनितिक रोटी सेंकी जा सके | 

गौतम बुद्ध जन्म - ५६३ ईशा पूर्व
सिद्धार्थ बुद्ध - १८८७ ईशा पूर्व
मैं पुराणों में वर्णित गौतम बुद्ध के जन्म काल को मानता हु जो कि है 1800 ईसापूर्व ।
अब यही सच आपके समझने के लिए काफी होना चाहिए, की गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार नही है । और जो विष्णु के अवतार सिद्धार्थ है , उनके जन्म और गौतम बुद्ध के जन्म में कितना फर्क है ।।
भारतीय इतिहास के शोध में यह एक भयंकर भूल है । क्यो की यह सिद्ध करने के प्रबल साक्ष्य है कि भगवान विष्णु के अवतार सिद्धार्थ का जन्म १८८७ में हुआ । इसका अर्थ यह हुआ कि जिस गौतम को विष्णु का अवतार आज तक भीमटे मानते आए है, वो मात्र एक साधरण सन्यासी था, वो भी भटका हुआ । दोनो के बीच का अंतराल ही 1300 वर्षो का है ।
फिर प्रश्न उठता है, की भारत के इतिहास में इतनी भयंकर भूल कैसे हुई? तो इसका जवाब है कि भारत 1000 साल विदेशियों के गुलाम तो रहा है, साथ मे आजादी के बाद भी विश्वासघाती कांग्रेस और अन्य वामपंथी गद्दार यही रह गए, ओर वे ही इस देश के भाग्य निर्माता बन बेठे ।।
अंग्रेज लोगो को मानव सृष्टि के सम्बंध में बहुत अल्पज्ञान था , वे सोचते थे कि पृथ्वी को बने केवल कुछ हजार वर्ष ही तो हुए है । इसी प्रकार उन्होंने कल्पना कर दी कि भारतीय इतिहास भी 4-5 हजार वर्षों से अधिक पुराना नही । ओर उन्होंने इतिहास की हर घटना को तोड़ मरोड़ दिया ।।
नेपाल में लुम्बिनी में 2013 में पुरातत्वविदो को एक छोटा मंदिर मिला है जिसकी छत नहीं थी और उसके मध्य में बोधि वृक्ष था ।
पुरातत्वविदो के अनुसार कार्बन डेटिंग से उस मंदिर के निर्माण का काल 550 ईसापूर्व आया है ,यानि की विश्व का सबसे प्राचीन बोध मंदिर ।माना जाता था की पुरे भारतीय उप महाद्वीप पर बोद्ध मंदिर और मठो का निर्माण गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बने थे ।
अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद कई मंदिर बनवाये थे और गुप्त राजाओ ने भी इसमें अपना योगदान दिया था ।मध्यधारा के इतिहासकार मानते है कि 480 ईसापूर्व में गौतम बुद्ध जन्मे थे और कुछ के अनुसार 560 ईसापूर्व ।पर यदि उस मंदिर का काल 550 ईसापूर्व है तो या तो वह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवित रहते बना या फिर उनकी मृत्यु के बाद ।
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार तो बोद्ध मंदिर और मठ तो गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद हुआ और यह मैं पहले ही बता चूका हु यानि कि गौतम बुद्ध जन्मे होंगे 630 ईसापूर्व में । गौतम बुद्ध 80 वर्ष जिए तो यदि उनकी मृत्यु 550 ईसापूर्व के आस पास हुई तो 550+80 होगा 630 ।

नास्तिक
सबसे पहले तो आज भीमटो ओर अन्य वामपंथी लोगो के नास्तिक शब्द का विश्लेषण ही कर लेते है - देखते है यह किंतने ज्ञानी है, जो खुद को " नास्तिक " कहकर टेढ़े हुए घूमते है ।।

Gnostic ( नास्तिक ) यह पूरा का पूरा मूल संस्कृत शब्द ही है । ईश्वर में विश्वास रखने वालों के लिए आधुनिक संस्कृत में आस्तिक शब्द का प्रयोग हुआ है । ओर नास्तिक शब्द उनके लिए, जो ईश्वर में विश्वास नही रखते । लेकिन सही संस्कृत शब्द अगर देखे तो नास्तिक मतलब ईश्वर में विश्वास रखने वाला होता है , ओर जो ईश्वर में विश्वास नही रखते, उसे A-gnostic यानी "अ-नास्तिक" कहते है । बुद्ध ने तो यही कहा था - में नास्तिक हूँ ! अर्थात में ईश्वर में विश्वास रखता हूँ । बुद्ध ने खुद को तो ईश्वर कहा नही, तो कौनसा ईश्वर था, जिसपर बुद्ध को विश्वास था ? साफ है, वो महादेव, नारायण इनमे से ही कोई एक था । अब एक छोटे से शब्द का पता भीमराव अंबेडकर जैसे पढ़े लिखे लोग नही कर पाए ! तो इनकी बुद्धि का अंदाजा आप खुद लगा सकते है ।।


अब क्रिश्चनिटी (Chirsnity ) शब्द को ध्यान से पढिये - अगर हम "Chirs+n+ity " को अलग अलग विभाजित यानी संधि विच्छेद करके C को "क" पढ़े जैसे कि Cricket के C को क पढ़ते है । तो इसका अर्थ कुछ यूं बनता है = कृष + न + इति = कृष्णनीति ! यह साफ साफ कृष्णनीति शब्द बनता है । क्यो की ईसाई पंथी कभी कृष्णपंथी ही थे ।। ओर अगर यह कृष्ण नीति नही होता तो जैसे बुद्ध का बुद्धिज्म ( बुद्ध-इज्म) बना , कम्युनिज्म बना , उसी प्रकार ईशा पंथ का का नाम क्राइस्ट-इज्म या जीजस-इज्म होता । परिणामतः ईसाइयो को दुबारा अपने मूल धर्मग्रन्थ " भगवतगीता " की और लौट आना चाहिए, क्यो की " बाइबिल " ना तो कृष्ण ने लिखा, ओर ना क्राइस्ट ने ।

ईसाई लोग अपने साधुओं को सेंट कहते है । यह संस्कृत के "सन्त " का ही अपभ्रंस तो है । पाल नाम का एक सन्त ईसाइयो में था , वह कपोलकल्पित ही था । वह सन्त कोई और नही, " गौ-पाल " यानी कृष्ण ही था, ओर उन्हें सन्त इसलिए कहा गया, क्यो की कृष्ण ने बिना परिणाम की चिंता किये, बिना किसी स्वार्थ के , बिना किसी से द्वेष रखे महाभारत के युद्ध मे अर्जुन की सहायता की, अर्जुन की सहायता तो की ही, साथ मे अपनी " नारायणी " सेना दुर्योधन को सौंपकर भी एक सन्त होने का ही परिचय दिया ।

अब थोड़ा और आगे चलते है । ईसाई पादरियों ओर साध्वी के गृहों को " मोनास्ट्रीज " कहा जाता है । यह शब्द का संस्कृत का मुनि-स्था-रि है । मुनि का अर्थ - गुणी , पुण्य, पवित्र होता है , स्था का मतलब "स्टे " ( रुकना, ठहरना आदि होता है । रि शब्द का विशिष्ठ प्रयोग होता है । अतः यह शब्द मुनिस्थारी संस्कृत शब्द का बिगड़ा रूप ही है ।
अब इनके चर्च शब्द को ले लेते है । चर्च - चर्चा का धोतक शब्द है, यानी चर्चा का । चूंकि कृष्ण नीति कृष्ण सम्प्रदाय की बैठकों में सभाओं में भगवतगीता आदि की चर्चा होती थी, जिस स्थान पर वो चर्चा करते, उसी भवनों को , मंदिरों को बाद में चर्चा से चर्च का नाम दे दिया गया


भीमटो का रोना है, की हम ब्रह्म के पांव से पैदा हुए , ओर ब्राह्मण मुख से, इसलिए भगवान ने ही हमारे साथ भेदभाव किया !!
अरे ओ निरामूर्खो !! सबसे ज़्यादा गंदगी मुख में होती है ! या पांव में ! पांव में तो केवल धूल ,मिट्टी आदि लगती है । लेकिन मुँह में ही कफ, थूक आदि आते है , उल्टियां भी मुँह से ही होती है । भगवान ने तो तुम्हारे ओर ज़्यादा सहूलियत दी ! तुम्हे पांव यानी सनातन समाज की नींव समझा !
तुम्हे पता भी है, मनुस्मृति में ब्राह्मण के लिए क्या प्रावधान है ? ब्राह्मण एक रुपये का धन नही रख सकता !! इसी कारण उसे कपड़े लत्ते दान देने की परंपरा बन गयी ! वैश्य के लिए व्यापार में कड़े नियम थे ! मुनाफे करने की उसकी निश्चित सीमा होती थी ! क्षत्रिय के लिए तो इतना कड़ा नियम था, की एक वचन टूटने का उसका दण्ड अग्नि में समाधि लेकर खुद को भस्म करना था ।
लेकिन तुम्हारे लिए कोई नियम कानून नही था !! आजाद जीवन जीने की आजादी तुम्हे थी! इसका कारण यह था कि तुम समाज के लिए बहुत मेहनत करते थे । मनुस्मृति तुम्हारी कमाई नही देखती थी, भले ही ज़्यादा कमाओ! लेकिन तुम्हारी मेहनत का उसे ज़रूर ख्याल होता ।।
मनुस्मृति में नारी ओर शुद्र को " पपश्य "कहा गया है । जिसका अर्थ तुम " पाप " लगाकर खुद को बेज्जती करते हो । जबकि पपश्य का संस्कृत अर्थ होता है " सबसे ज़्यादा जिम्मेदार " । अब स्त्री और शूद्र से ज़्यादा जिम्मेदार कौन होगा ! स्त्रियां घर के काम से हर समय व्यस्त रहती है, ओर शुद्र समाज के काम मे ! जैसे स्त्री को घर की चाबी देकर अप्रत्यक्ष रूप से घर का शाशक बना दिया जाता है, उसी तरह तुम पर कोई पांबदी ना लगाकर, तुम्हे समाज का राजा बना दिया !!
आखिर किस बात का रोना रोते हो !! सिर्फ एक बोतल दारू ओर एक अनाज की बारी के चक्कर मे अपना धर्म भुल जा रहे हो ?


वामपंथी  ने  सत्ता के लिए कई  हथियार  (रोहित वेमुला, दलित कार्ड, अल्पसंख्यक कार्ड ) बनाया | वामपंथियों ने बड़ी बड़ी राजीनीतिक हस्ती का सहारा लिया | जिसमे अभी मायावती, इमरान मसूद, हाजी इक़बाल, ओवैसी, ममता, लालू , नितीश, केजरीवाल इत्यादि | 
इनके कन्हैया उमर हार्दिक प्यादे तो गुलाम अली आज़ाद, दिग्विजय, मणिशंकर वक्ता तो अहमद पटेल सीताराम येचुरी इत्यादि कूटनीतिकार है |   


 
सिंध में बौद्धों ( भीमटो ) ओर ब्राह्मणो में आपस मे विवाद चल रहा था, जैसे आज चल रहा है। ब्राह्मणो को सबक सिखाने के लिए बौद्धों ने मुसलमानो को अरब पार से बुला लिया ! युद्ध के समय मे रात में सोते हुए हिन्दू सेनिको के दुर्ग के द्वार इन बोद्ध मल्लेछो ने खोल दिये । पूरी सेना को सोते हुए में ही काट दिया गया, फिर भी जो बचे, वो दोपहर तक युद्ध करते रहे ।
निसंदेह राजा दाहिर एक वीर हिन्दू था । किंतु सेक्युलर था । उसने बौद्धों को सिर चढ़ाया ओर ब्राह्मणो की अवहेलना की । जिसका परिणाम आज का भारत है ।
इन बोद्ध मल्लेछो को हिन्दू बताने वाले कुत्तो पर लानत है, इन्हें अपना कहने वालों पर लानत है, जो आज तक इतिहास से कुछ ना सीखे ।
आज भी यह सुंवर वही कर रहे है । जय भीम- जय मीम हिन्दुओ के साथ वही इतिहास दोहराने की तैयारी है ।



संविधान पढ़ा है | जिसमे आरक्षण लिखा है |
जिसमे ऊंच नीच में समाज को बांटा गया है | उसमे बहुत सारी केटेगरी उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, सामान्य, अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति,अन्य पिछड़ा ,पिछड़ा, अतिपिछड़ा इत्यादि लिखा है | जिससे समाज में द्वेष फैला है | हर समय झगड़ा फसाद होता है | कभी जाट, कभी गुर्जर, कभी ब्राह्मण, कभी दलित कभी कोई तो कभी कोई | ये समाज में द्वेष फैलाता है | पिछले 70 साल में समस्या जस की तस है | बदतर होती जा रही है | इस आरक्षण के कारन नई नई जाती वर्ग पैदा होता है | यही बवाल और विसंगति की जड़ है |
क्या चाणक्य को ढूंढे जो चन्द्र गुप्त के समय भारत एक संपन्न राष्ट्र था लेकिन खुद कुटिया में रहते थे
जो मनु लाखो बर्ष पहले आये उसे कहा ढूंढे | उनपर कीचड़ उछाले | जो आज समाज में द्वेष पैदा कर रहे है उसे पकडे |

कौटिल्य का नाम ,एक महान राजनीतिज्ञ के नाम पर दर्ज हैं , भारतीय इतिहास के पन्नों में और उनकी दण्डनीति | आज शासन नीति के नाम से जाना जाता है वे राज्य के नियमों का कड़ाई से पालन करवाते थे चन्द्र गुप्त के समय भारत एक संपन्न राष्ट्र था लेकिन खुद कुटिया में रहते थे एक दरिद्र ब्राम्हण की तरह यानी अपरिग्रह ही उनकी जीवन शैली थी शायद तभी से " दरिद्र ब्राम्हण " जैसे शब्दों की नीवं पड़ी होगी इसी को ब्रम्हानिस्म कहते हैं | 

।।नमो बुद्धाय।। जय श्री राम।।

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