मुहम्मद गजनवी - 2 - दिल दहला देने वाली क्रूरता एवम सोमनाथ की लूट
मुल्तान में एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर था , हजारों वर्षों से दूर दूर से तीर्थयात्री श्रद्धाजंलि अर्पित करने आते थे । इस प्रकार मुल्तान के मंदिर में कुबेर का धन एकत्रित हो गया था । मुल्तान सोने की नगरी के रूप में विख्यात था । मगर अफसोस गजनवी वहां 300 वर्ष की देरी से पहुंचा । पहले लुटेरे कासिम ने ही इसे खाली कर दिया था । इसका परवर्ती शाशक ( भूतपूर्व हिन्दू ) इस लुटे देवस्थान का दोहरा उपयोग करता था । सर्वप्रथम देवस्थान यह मछली फसाने का चारा बन गया था । दूर दूर से तीर्थयात्री आकर यहां भेंट अर्पित करते थे । वहां का शाशक अब मूर्तिरक्षक नही, मूर्तिभंजक था । ओर दूसरा उपयोग काक-भगोड़े जैसा था, जब भी हिन्दू शाशक मुल्तान को हिन्दुस्थान में मिलाने की बात करते, वह मूर्ति को चूर चूर करने की धमकी देता था । बस कौवे सहम जाते थे ।।
सन 1010-11 में महमूद के दुस्ट दल ने मुल्तान को दुबारा लुटा । अनाचार के मूल्य का नगर बिक गया । कहा जाता है कि केवल मुसलमानो को प्रशन्न करने के लिए कुछ लोगो के हाथ पैर काट दिए गए, बाकी कुछ लोगो को चीर फाड़ दिया गया । स्पष्ठ है कि मध्ययुगीन भारत मे हिन्दुओ के खून से ही रक्तउत्सव बनाया जाता था ।
1011-12 इशवी में पंजाब में स्थानेश्वर तीर्थयात्रियों का एक प्रमुख देवस्थान था । यहां चक्रधारी विष्णु का एक प्राचीन " चक्रस्वामी " मंदिर था । अत्याचार की पराकाष्ठा से वहां का शाशक आनन्दपाल महूमद का गुलाम सा हो गया था ।मुल्तान के सूर्य मंदिर की भांति ही चक्रस्वामी मंदिर भी कुबेर-गृह ही था । शताब्दियों से तीर्थ यात्री वहां धन बरसा रहे थे । कोषागारों को परखने की महमूद की दृष्टि चोर डाकुओं की भांति ही थी । स्थानीय दुर्ग रक्षकों ने इसका विरोध किया तो मुस्लिम यंत्रणा की बाढ़ ने नही उखाड़ फेंका । मंदिर को झाड़ पूँछकर लुटा गया । असीम धन के साथ गजनवी चक्रपाणि की मूर्ति को गजनी ले गया । आज भी वह प्रतिमा गजनी के घुड़दौड़ मैदान में टूटी पड़ी है । कभी गजनी प्राचीन हिन्दू सभ्यता का केंद्र था । आज गजनी हिन्दू संभ्यताओ ओर मूर्ति की कब्रगाह बना हुआ है । हम भारतीयों ओर भारतीय सरकार का कर्तव्य है कि उन बहुमूल्य प्राचीन कलाकृतियों को खोजकर वापस भारत लाया जाए ।
रत्नों, सोने चांदी की ईंटो, बहुमूल्य वस्त्रो के साथ नोकरो ओर गुलामो की भारी भीड़ भी महमूद के साथ गयी । कोई भी आसानी से अनुमान लगा सकता है कि " भीड़ " की इन अभागी स्त्रियो ओर लोगो को न जाने कितनी यंत्रणाएँ , पीड़ा, निरादर , अपमान ओर निराशा का सामना कर पश्चिम एशिया के दास बाजारों में सामान की भांति बिकना पड़ा था । इस लूट के दुःख के कारण आंनदपाल का शरीर हमेशा के लिए शांत हो गया । इसके बाद उसका पौत्र भीमसेन गद्दी पर बैठा । भीमसेन बड़ा ही ओजस्वी शाशक निकला, अपने बाप दादा की की हुई शांति- संधियों को उसने तोड़ना शुरू किया, टेक्स देना बंद कर दिया । मुसलमानी चिन्हों को उसने मिटानाशुरू कर दिया । इससे प्रभावित होकर अन्य हिन्दू राजाओं ने भी उसे सैनिक सहयता देनी प्रारम्भ कर दी । यह बात गजनवी को कहां बर्दास्त होनी थी, वो जाकर भीमसेन से टकरा गया, किन्तु उसे इस बार अपने ही जूतों की खानी पड़ी । जैसे तैसे वो जान बचाकर भागा ।
अब सन 1015 में मानसून का अंत था । भीमसेन को इसकी सजा देनी थी । लूट की भुख ओर प्यास ओर बढ़ गयी थी । भीमसेन से टकराने के लिए अब गिरोह को विशालतम होना चाहिए था । अतएव सारे पश्चिम एशिया में ढोल पीट दिया गया , की इस बार मुहम्मद ने उपजाऊ जमीन को बंजर करने ओर उन मंदिरों को लूटने की योजना बनाई है , जिसके स्वप्न वह बराबर देखते आ रहा था । लुटेरों में हलचल मच गई । भारत को लूटने की सुनहरी आशा से तुर्किस्तान से लेकर खुरासान तक के 20000 जंगली बर्बर अपराधी जमा हो गए । एक लाख आतंकवादी महमूद के पास पहले से थे, 200000 अब ओर आकर इकट्ठे हो गए । वही हुआ, जो होता आया । पंजाब तबाह हो गया ।
#मथुरा_की_लूट
यमुना की दूसरी ओर पवित्र प्राचीन नगरी मथुरा थी । इसके चारों ओर पत्थर की प्राचीर थी । दो द्वार नदी की ओर खुलते थे, नदी के चारो ओर एक हजार मंदिर थे । सभी लोहे की किलो से जकड़े हुए थे । नगर के मध्य में सभी महलों से बड़ा और विशालकाय मंदिर था । " मुस्लिम इतिहासकार इसकी ना तो भव्यता प्रकट करने में सक्षम है, ना इसका खाका तैयार करने में " । जनसंख्या ओर भवनों की भव्यता में मथुरा नगर अद्वित्य था । मानववाणी इसके ऐश्वर्य का वर्णन करने में असमर्थ थी । बड़े दुख की बात है कि आज मथुरा एक भग्न प्रतिमा है । महमूद ओर इसके परवर्ती शाशको ने इसे इतना लुटा , चूसा ओर निचोड़ा की इसका सारा वैभव सुख गया ।
प्रत्येक विदेशी मुस्लिम शाशक ने भारत के एक शहर से दूसरे शहर को लूटने के सिवा और कुछ नही किया । फिर बजी इतिहास की वर्तमान पाठ्य पुस्तकों में उन्हें शहरो , मस्जिदों ओर असंख्य मकबरों के निर्माण का श्रेय दिया है।
मथुरा असुरक्षित था । पड़ोस की सारी सेनाएं या तो काटकर फेंक दी गयी, या उन्हें बंदी बना लिया गया । कोई विरोध नही था । उस समय नगर में लाखों लोग ओर हजारों तीर्थयात्री थे । अपनी लूट खसोट के लिए महमूद मुक्त था । उसने आज्ञा दी कि प्रत्येक मंदिरों को अग्निपिंडों ओर मसालों से जलाकर राख कर दिया जाए । प्रो० हबीब कहते है " मालूम होता है कि ईर्ष्या से महमदः पागल हो चुका था " ।
मथुरा को तस्सली से लुटा गया । 55000 विशाल सर्वण प्रतिमाएं उसे मिली, चांदी की 200 प्रतिमाएं इतनी विशाल थी कि तोड़े बिना उनको मापना मुश्किल था । ५०००० दीनार मूल्य के बड़े बड़े लाल रत्न , ६५० मिस्क्वाल का एक नीलम ओर इसी प्रकार के बहुमूल्य रत्नों को लूटा गया, जो केवल मथुरा में मिल सकता था । भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर को मस्जिद बना दिया गया । आज तक उस मस्जिद को फिर से मंदिर बनाकर हिन्दुओ ने न्याय नही किया है। मथुरा का तलपट तक लूटकर वह कृष्ण के बचपन के नगर बृन्दावन की ओर बढ़ा । इस खूबसूरत नगरी में 7 दुर्ग थे । थोड़े से दुर्गरक्षक भी थे, जो महमूद का सामना करने में सक्षम नही थे । व्रन्दावन को भी भलीभाँति लूटकर सारी संपत्ति इकट्ठी कर ली गयी ।
#इस्लाम_पर_कलंक
महमूद की अंतरास्ट्रीय डाकू चरित्र की सफलता से खलीफा फुला नही समा रहा था । उसने एक विशिष्ठ दरबार का आयोजन किया । भारतीय स्त्रियों और बच्चो के अपहरण ओर बलात्कार से प्रतिवर्ष बरसती सम्पति के विस्तृत विवरण ओर डकैती पर महमूद के निबंधों को खलीफा ने बड़े सादर से ग्रहण किया, ओर अपने दरबारियों को सुनाया ।
#सोमनाथ_की_लूट
सारा भारत लूट लिया गया !! लेकिन अब तक सोमनाथ सिर ऊंचा किये खड़ा था । महमूद के लूटने जलाने से पहले सोमनाथ एक भव्य शहर था । उसके चारों ओर पत्थर की दीवार थी । भीतर भव्य भवन , विशाल गुम्बद ( टावर ) ऊंचे स्तंभ ( मीनार ) मस्तक ताने खड़े थे ।
बृहस्पति वार के दिन महमूद सोमनाथ शहर के बाहर पहुंचा । तंबू लगाने में दिन ढल गया । इन गुंडों की भीड़ का समाचार भीतर पहुंचते ही नागरिको की भीड़ इकट्ठा होने लगी । उनके चेहरों पर चिंता झलक रही थी । इस्लाम के नाम पर जो जुल्म ओर सितम इस्लाम ने ढाया था , उस थर्राने वाली कहानियों को उन्होंने सुन रखा था ।
दूसरे दिन प्रातः 1023 ईश की दूसरी सप्ताह की सुबह को महमूद की भयंकर शैतानी मशीनों ने पवित्र शहर के भीतर अग्नि पिंडो ओर पत्थरो की वर्षा कर दी । दोपहर तक एक बुर्ज में छेद हो गया । उसने प्रवेश का प्रयास किया, किन्तु वे पीछे धकेल दिये गए । रात में भी महमूद ने चैन नही किया । अग्नि पिंडो की वर्षा जारी रही । तीर्थयात्रियों की भरी भूरी धर्मशालाओं में ओर नागरिक ग्रहों में आग लगती रही । शनिवार की सुबह शैतानी सेना ने नगर के द्वार को भेद ही दिया । अब अंतिम युद्ध की तैयारी शुरू हई । सोमनाथ पर अब श्रद्धाजंलि ओर जलांजलि नही, अपनी अंतिम रक्तांजली चढ़ाने के लिए नागरिक ओर तीर्थयात्री तैयार हो गए । कसाइयों के क्रूर आक्रमण के सामने उन्हें जो कुछ मिला , उसी को लेकर सीना तान कर खड़े हो गए । शहर के सेंकडो द्वारों पर लोग कटने ओर मरने को लगे । वीर हिन्दू रक्षकों की लाशों को कुचलता हुआ क्रूर महमूद का शैतानी दल भीतर मन्दिरमे घुसने के लिए भयंकर दाबाव दे रहा था । ज्यो ज्यो मंदिर के भीतर पहुंच रहे थे , विरोध तेज और रक्तिम होता जा रहा था ।
पश्चिम सागर में सूर्य अस्त हो गया था । मगर सोमनाथ को अभी तक कला-भंजक मुस्लिम छु नही पा रहे थे । मुट्ठी भर रक्षकों ने अनन्य ओर अनोखे विश्वास से तीन दिन ओर तीन रात राक्षसो को रोके रखा । बाहर से कोई भी सहायता नही आई, यह पूरे देश के लिए चुल्लू भर पानी मे डूबने की बात थी । कोई भी मुस्लिम शाशक मुस्लिमो को ललकारता, बिना सांस लिए सरपट दौड़ा नही आया , जबकि वे हिन्दू नागरिको ओर तीर्थयात्रियों को सोमनाथ में जिबह कर रहे थे, उनके घरों में आग लगा रहे थे, हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार कर रहे थे ।
रविवार को महमूद को समाचार मिला कि वास्तव मस एक हिन्दू सेना सोमनाथ की ओर आ रही है । उसके कान खड़े हो गए । अगर हिन्दू सेना विद्युत गति के साथ चुपचाप आकर महमूद को धर दबोचती, तो वह बुरा फंसता । सोमनाथ के नागरिकों ओर तीर्थयात्रियों का गला काटने के लिए उसने सेना की एक टुकड़ी भीतर छोड़ दी, ओर एक टुकड़ी लेकर खुद उस सेना का सामना करने निकल पड़ा । फिर भी हिन्दू सेना मुहम्मद की टुकड़ी से बहुत कम थी । केंद्रीय नेतृत्व के अभाव के कारण भारत की सुरक्षा स्तिथि उस समय दयनीय ही थी । उस सेना के सारे सेनिको को काटकर मुहम्मद वापस मंदिर की ओर मुड़ा , उसके सैनिक अंदर सोमनाथ मंदिर को चुसने में लगे हुए थे । महमूद के के पहुंचते ही पुजारियों को टुकड़े टुकड़े कर उन्हें बिखेर दिया गया । सेंकडो अनुचरों के हाथ पांव काट दिए गए । पाशविक पीड़ा और यंत्रणा की हाहाकार की गणना कौंन कर सकता है ?
मंदिर के कोष कक्षो को तोड़ दिया गया । सारी संपत्ति के हजारों बंडल बना लिए गए ।
धार्मिक उन्माद में गुर्राते हुए महमूद ने शिवलिंग पर हथोड़े का एक वज्र प्रहार किया । शिवलिंग चूर होकर दो बड़े भागो में विभक्त हो गया । सोने और हीरो के परिधानों से लिपटे शिवलिंग को गजनी भेज दिया गया । बाद में शिवलिंग का वह भाग चक्रपाणि प्रतिमा के पास ही गाड़ दिया गया । शिवलिंग का दूसरा भाग गजनी की जामा मस्जिद ( पूर्व हिन्दू मंदिर ) की सीढ़ियों पर जड़ दिया गया । ताकि धर्मपरस्त मुसलमान उसपर जुते पोंछकर मस्जिद में प्रवेश कर सके ।
यह अपवाह झूठी है कि शिवलिंग के भीतर चमकते रत्न बाहर उछल पड़े थे । सोमनाथ का शिवलिंग एक ठोस पत्थर का बना हुआ है । रत्न मंदिर के कोष ग्रह से लुटे गए थे ।
सोमनाथ का विध्वंस कार्य समाप्त हुआ । सोमनाथ का मंदिर पहली बार मस्जिद बन गया । तीन हजार ऊंटों, हजारों घोड़ो, ओर हांथीयो पर खजाना लादा गया । किसी हिन्दू राजा के पास इतने धन का सोंवा भाग भी नही था ।
#राजस्थान_के_जाटो_का_प्रतिशोध
सोमनाथ की लूट सुनकर राजस्थानी लोगो के नसों में बिजली दौड़ गयी । राजस्थानी राजाओं ने अपनी अपनी सेनाएं तैयार की ओर महमूद को पवित्र लूट के साथ वापस ना जाने देने का निर्णय लिया गया । इस संभावना पर विचारकर महमूद ने राजस्थान से ना होकर मुल्तान के रास्ते से जाने का निर्णय लिया । जाट गुरिल्लों ने फिर भी पहुंचकर इसे पानी पिला दिया, महमूद को जाटो ने नचा नचा कर मारा । हिन्दुस्थान की अपार लूट के सहित किसी प्रकार जैसे तैसे वह अपनी जान बचाकर गजनी पहुंचा । जाटो ने फिर भी इसे पूरा धन वापस नही ले जाने दिया । अगर उस समय जाटो के साथ ओर भी संयुक्त सेना होती, तो महमूद जिंदा वापस गजनी नही लौट पाता । इस इतिहास का पता इसलिये लगता है, की महमूद ने जाटो को अपने इतिहास में बहुत गालियों से नवाजा है, मार खाकर वह जाटो से घृणा करने लगा था । जाटो के गुरिल्ले युद्ध की हुंक उसके दिल मे रह रह कर उठती थी । इसका परिणाम बाद में यह हुआ, की महमूद ने मुल्तान आकर लगभग 5000 निहत्थे ओर निर्दोष जाटो को बड़ी बेरहमी से कटवा दिया । बहुत से जाटो को सता सता कर मारा । जाट बच्चो का खतना हुआ और उन्हें गुलाम के बाजारों में बेच दिया गया ।
अंतिम समय मे महमूद को अनेक प्रकार के रोगों ने जकड़ लिया । लगभग 2 साल वो मृत्यु शेया पर लेटा रहा । उसके शरीर मे कीड़े पड़ गए । वह मौत मांगता रहता था, मगर मौत उसे ना आती । इसी हालात में एक दिन वह चल बसा ।
मुल्तान में एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर था , हजारों वर्षों से दूर दूर से तीर्थयात्री श्रद्धाजंलि अर्पित करने आते थे । इस प्रकार मुल्तान के मंदिर में कुबेर का धन एकत्रित हो गया था । मुल्तान सोने की नगरी के रूप में विख्यात था । मगर अफसोस गजनवी वहां 300 वर्ष की देरी से पहुंचा । पहले लुटेरे कासिम ने ही इसे खाली कर दिया था । इसका परवर्ती शाशक ( भूतपूर्व हिन्दू ) इस लुटे देवस्थान का दोहरा उपयोग करता था । सर्वप्रथम देवस्थान यह मछली फसाने का चारा बन गया था । दूर दूर से तीर्थयात्री आकर यहां भेंट अर्पित करते थे । वहां का शाशक अब मूर्तिरक्षक नही, मूर्तिभंजक था । ओर दूसरा उपयोग काक-भगोड़े जैसा था, जब भी हिन्दू शाशक मुल्तान को हिन्दुस्थान में मिलाने की बात करते, वह मूर्ति को चूर चूर करने की धमकी देता था । बस कौवे सहम जाते थे ।।
सन 1010-11 में महमूद के दुस्ट दल ने मुल्तान को दुबारा लुटा । अनाचार के मूल्य का नगर बिक गया । कहा जाता है कि केवल मुसलमानो को प्रशन्न करने के लिए कुछ लोगो के हाथ पैर काट दिए गए, बाकी कुछ लोगो को चीर फाड़ दिया गया । स्पष्ठ है कि मध्ययुगीन भारत मे हिन्दुओ के खून से ही रक्तउत्सव बनाया जाता था ।
1011-12 इशवी में पंजाब में स्थानेश्वर तीर्थयात्रियों का एक प्रमुख देवस्थान था । यहां चक्रधारी विष्णु का एक प्राचीन " चक्रस्वामी " मंदिर था । अत्याचार की पराकाष्ठा से वहां का शाशक आनन्दपाल महूमद का गुलाम सा हो गया था ।मुल्तान के सूर्य मंदिर की भांति ही चक्रस्वामी मंदिर भी कुबेर-गृह ही था । शताब्दियों से तीर्थ यात्री वहां धन बरसा रहे थे । कोषागारों को परखने की महमूद की दृष्टि चोर डाकुओं की भांति ही थी । स्थानीय दुर्ग रक्षकों ने इसका विरोध किया तो मुस्लिम यंत्रणा की बाढ़ ने नही उखाड़ फेंका । मंदिर को झाड़ पूँछकर लुटा गया । असीम धन के साथ गजनवी चक्रपाणि की मूर्ति को गजनी ले गया । आज भी वह प्रतिमा गजनी के घुड़दौड़ मैदान में टूटी पड़ी है । कभी गजनी प्राचीन हिन्दू सभ्यता का केंद्र था । आज गजनी हिन्दू संभ्यताओ ओर मूर्ति की कब्रगाह बना हुआ है । हम भारतीयों ओर भारतीय सरकार का कर्तव्य है कि उन बहुमूल्य प्राचीन कलाकृतियों को खोजकर वापस भारत लाया जाए ।
रत्नों, सोने चांदी की ईंटो, बहुमूल्य वस्त्रो के साथ नोकरो ओर गुलामो की भारी भीड़ भी महमूद के साथ गयी । कोई भी आसानी से अनुमान लगा सकता है कि " भीड़ " की इन अभागी स्त्रियो ओर लोगो को न जाने कितनी यंत्रणाएँ , पीड़ा, निरादर , अपमान ओर निराशा का सामना कर पश्चिम एशिया के दास बाजारों में सामान की भांति बिकना पड़ा था । इस लूट के दुःख के कारण आंनदपाल का शरीर हमेशा के लिए शांत हो गया । इसके बाद उसका पौत्र भीमसेन गद्दी पर बैठा । भीमसेन बड़ा ही ओजस्वी शाशक निकला, अपने बाप दादा की की हुई शांति- संधियों को उसने तोड़ना शुरू किया, टेक्स देना बंद कर दिया । मुसलमानी चिन्हों को उसने मिटानाशुरू कर दिया । इससे प्रभावित होकर अन्य हिन्दू राजाओं ने भी उसे सैनिक सहयता देनी प्रारम्भ कर दी । यह बात गजनवी को कहां बर्दास्त होनी थी, वो जाकर भीमसेन से टकरा गया, किन्तु उसे इस बार अपने ही जूतों की खानी पड़ी । जैसे तैसे वो जान बचाकर भागा ।
अब सन 1015 में मानसून का अंत था । भीमसेन को इसकी सजा देनी थी । लूट की भुख ओर प्यास ओर बढ़ गयी थी । भीमसेन से टकराने के लिए अब गिरोह को विशालतम होना चाहिए था । अतएव सारे पश्चिम एशिया में ढोल पीट दिया गया , की इस बार मुहम्मद ने उपजाऊ जमीन को बंजर करने ओर उन मंदिरों को लूटने की योजना बनाई है , जिसके स्वप्न वह बराबर देखते आ रहा था । लुटेरों में हलचल मच गई । भारत को लूटने की सुनहरी आशा से तुर्किस्तान से लेकर खुरासान तक के 20000 जंगली बर्बर अपराधी जमा हो गए । एक लाख आतंकवादी महमूद के पास पहले से थे, 200000 अब ओर आकर इकट्ठे हो गए । वही हुआ, जो होता आया । पंजाब तबाह हो गया ।
#मथुरा_की_लूट
यमुना की दूसरी ओर पवित्र प्राचीन नगरी मथुरा थी । इसके चारों ओर पत्थर की प्राचीर थी । दो द्वार नदी की ओर खुलते थे, नदी के चारो ओर एक हजार मंदिर थे । सभी लोहे की किलो से जकड़े हुए थे । नगर के मध्य में सभी महलों से बड़ा और विशालकाय मंदिर था । " मुस्लिम इतिहासकार इसकी ना तो भव्यता प्रकट करने में सक्षम है, ना इसका खाका तैयार करने में " । जनसंख्या ओर भवनों की भव्यता में मथुरा नगर अद्वित्य था । मानववाणी इसके ऐश्वर्य का वर्णन करने में असमर्थ थी । बड़े दुख की बात है कि आज मथुरा एक भग्न प्रतिमा है । महमूद ओर इसके परवर्ती शाशको ने इसे इतना लुटा , चूसा ओर निचोड़ा की इसका सारा वैभव सुख गया ।
प्रत्येक विदेशी मुस्लिम शाशक ने भारत के एक शहर से दूसरे शहर को लूटने के सिवा और कुछ नही किया । फिर बजी इतिहास की वर्तमान पाठ्य पुस्तकों में उन्हें शहरो , मस्जिदों ओर असंख्य मकबरों के निर्माण का श्रेय दिया है।
मथुरा असुरक्षित था । पड़ोस की सारी सेनाएं या तो काटकर फेंक दी गयी, या उन्हें बंदी बना लिया गया । कोई विरोध नही था । उस समय नगर में लाखों लोग ओर हजारों तीर्थयात्री थे । अपनी लूट खसोट के लिए महमूद मुक्त था । उसने आज्ञा दी कि प्रत्येक मंदिरों को अग्निपिंडों ओर मसालों से जलाकर राख कर दिया जाए । प्रो० हबीब कहते है " मालूम होता है कि ईर्ष्या से महमदः पागल हो चुका था " ।
मथुरा को तस्सली से लुटा गया । 55000 विशाल सर्वण प्रतिमाएं उसे मिली, चांदी की 200 प्रतिमाएं इतनी विशाल थी कि तोड़े बिना उनको मापना मुश्किल था । ५०००० दीनार मूल्य के बड़े बड़े लाल रत्न , ६५० मिस्क्वाल का एक नीलम ओर इसी प्रकार के बहुमूल्य रत्नों को लूटा गया, जो केवल मथुरा में मिल सकता था । भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर को मस्जिद बना दिया गया । आज तक उस मस्जिद को फिर से मंदिर बनाकर हिन्दुओ ने न्याय नही किया है। मथुरा का तलपट तक लूटकर वह कृष्ण के बचपन के नगर बृन्दावन की ओर बढ़ा । इस खूबसूरत नगरी में 7 दुर्ग थे । थोड़े से दुर्गरक्षक भी थे, जो महमूद का सामना करने में सक्षम नही थे । व्रन्दावन को भी भलीभाँति लूटकर सारी संपत्ति इकट्ठी कर ली गयी ।
#इस्लाम_पर_कलंक
महमूद की अंतरास्ट्रीय डाकू चरित्र की सफलता से खलीफा फुला नही समा रहा था । उसने एक विशिष्ठ दरबार का आयोजन किया । भारतीय स्त्रियों और बच्चो के अपहरण ओर बलात्कार से प्रतिवर्ष बरसती सम्पति के विस्तृत विवरण ओर डकैती पर महमूद के निबंधों को खलीफा ने बड़े सादर से ग्रहण किया, ओर अपने दरबारियों को सुनाया ।
#सोमनाथ_की_लूट
सारा भारत लूट लिया गया !! लेकिन अब तक सोमनाथ सिर ऊंचा किये खड़ा था । महमूद के लूटने जलाने से पहले सोमनाथ एक भव्य शहर था । उसके चारों ओर पत्थर की दीवार थी । भीतर भव्य भवन , विशाल गुम्बद ( टावर ) ऊंचे स्तंभ ( मीनार ) मस्तक ताने खड़े थे ।
बृहस्पति वार के दिन महमूद सोमनाथ शहर के बाहर पहुंचा । तंबू लगाने में दिन ढल गया । इन गुंडों की भीड़ का समाचार भीतर पहुंचते ही नागरिको की भीड़ इकट्ठा होने लगी । उनके चेहरों पर चिंता झलक रही थी । इस्लाम के नाम पर जो जुल्म ओर सितम इस्लाम ने ढाया था , उस थर्राने वाली कहानियों को उन्होंने सुन रखा था ।
दूसरे दिन प्रातः 1023 ईश की दूसरी सप्ताह की सुबह को महमूद की भयंकर शैतानी मशीनों ने पवित्र शहर के भीतर अग्नि पिंडो ओर पत्थरो की वर्षा कर दी । दोपहर तक एक बुर्ज में छेद हो गया । उसने प्रवेश का प्रयास किया, किन्तु वे पीछे धकेल दिये गए । रात में भी महमूद ने चैन नही किया । अग्नि पिंडो की वर्षा जारी रही । तीर्थयात्रियों की भरी भूरी धर्मशालाओं में ओर नागरिक ग्रहों में आग लगती रही । शनिवार की सुबह शैतानी सेना ने नगर के द्वार को भेद ही दिया । अब अंतिम युद्ध की तैयारी शुरू हई । सोमनाथ पर अब श्रद्धाजंलि ओर जलांजलि नही, अपनी अंतिम रक्तांजली चढ़ाने के लिए नागरिक ओर तीर्थयात्री तैयार हो गए । कसाइयों के क्रूर आक्रमण के सामने उन्हें जो कुछ मिला , उसी को लेकर सीना तान कर खड़े हो गए । शहर के सेंकडो द्वारों पर लोग कटने ओर मरने को लगे । वीर हिन्दू रक्षकों की लाशों को कुचलता हुआ क्रूर महमूद का शैतानी दल भीतर मन्दिरमे घुसने के लिए भयंकर दाबाव दे रहा था । ज्यो ज्यो मंदिर के भीतर पहुंच रहे थे , विरोध तेज और रक्तिम होता जा रहा था ।
पश्चिम सागर में सूर्य अस्त हो गया था । मगर सोमनाथ को अभी तक कला-भंजक मुस्लिम छु नही पा रहे थे । मुट्ठी भर रक्षकों ने अनन्य ओर अनोखे विश्वास से तीन दिन ओर तीन रात राक्षसो को रोके रखा । बाहर से कोई भी सहायता नही आई, यह पूरे देश के लिए चुल्लू भर पानी मे डूबने की बात थी । कोई भी मुस्लिम शाशक मुस्लिमो को ललकारता, बिना सांस लिए सरपट दौड़ा नही आया , जबकि वे हिन्दू नागरिको ओर तीर्थयात्रियों को सोमनाथ में जिबह कर रहे थे, उनके घरों में आग लगा रहे थे, हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार कर रहे थे ।
रविवार को महमूद को समाचार मिला कि वास्तव मस एक हिन्दू सेना सोमनाथ की ओर आ रही है । उसके कान खड़े हो गए । अगर हिन्दू सेना विद्युत गति के साथ चुपचाप आकर महमूद को धर दबोचती, तो वह बुरा फंसता । सोमनाथ के नागरिकों ओर तीर्थयात्रियों का गला काटने के लिए उसने सेना की एक टुकड़ी भीतर छोड़ दी, ओर एक टुकड़ी लेकर खुद उस सेना का सामना करने निकल पड़ा । फिर भी हिन्दू सेना मुहम्मद की टुकड़ी से बहुत कम थी । केंद्रीय नेतृत्व के अभाव के कारण भारत की सुरक्षा स्तिथि उस समय दयनीय ही थी । उस सेना के सारे सेनिको को काटकर मुहम्मद वापस मंदिर की ओर मुड़ा , उसके सैनिक अंदर सोमनाथ मंदिर को चुसने में लगे हुए थे । महमूद के के पहुंचते ही पुजारियों को टुकड़े टुकड़े कर उन्हें बिखेर दिया गया । सेंकडो अनुचरों के हाथ पांव काट दिए गए । पाशविक पीड़ा और यंत्रणा की हाहाकार की गणना कौंन कर सकता है ?
मंदिर के कोष कक्षो को तोड़ दिया गया । सारी संपत्ति के हजारों बंडल बना लिए गए ।
धार्मिक उन्माद में गुर्राते हुए महमूद ने शिवलिंग पर हथोड़े का एक वज्र प्रहार किया । शिवलिंग चूर होकर दो बड़े भागो में विभक्त हो गया । सोने और हीरो के परिधानों से लिपटे शिवलिंग को गजनी भेज दिया गया । बाद में शिवलिंग का वह भाग चक्रपाणि प्रतिमा के पास ही गाड़ दिया गया । शिवलिंग का दूसरा भाग गजनी की जामा मस्जिद ( पूर्व हिन्दू मंदिर ) की सीढ़ियों पर जड़ दिया गया । ताकि धर्मपरस्त मुसलमान उसपर जुते पोंछकर मस्जिद में प्रवेश कर सके ।
यह अपवाह झूठी है कि शिवलिंग के भीतर चमकते रत्न बाहर उछल पड़े थे । सोमनाथ का शिवलिंग एक ठोस पत्थर का बना हुआ है । रत्न मंदिर के कोष ग्रह से लुटे गए थे ।
सोमनाथ का विध्वंस कार्य समाप्त हुआ । सोमनाथ का मंदिर पहली बार मस्जिद बन गया । तीन हजार ऊंटों, हजारों घोड़ो, ओर हांथीयो पर खजाना लादा गया । किसी हिन्दू राजा के पास इतने धन का सोंवा भाग भी नही था ।
#राजस्थान_के_जाटो_का_प्रतिशोध
सोमनाथ की लूट सुनकर राजस्थानी लोगो के नसों में बिजली दौड़ गयी । राजस्थानी राजाओं ने अपनी अपनी सेनाएं तैयार की ओर महमूद को पवित्र लूट के साथ वापस ना जाने देने का निर्णय लिया गया । इस संभावना पर विचारकर महमूद ने राजस्थान से ना होकर मुल्तान के रास्ते से जाने का निर्णय लिया । जाट गुरिल्लों ने फिर भी पहुंचकर इसे पानी पिला दिया, महमूद को जाटो ने नचा नचा कर मारा । हिन्दुस्थान की अपार लूट के सहित किसी प्रकार जैसे तैसे वह अपनी जान बचाकर गजनी पहुंचा । जाटो ने फिर भी इसे पूरा धन वापस नही ले जाने दिया । अगर उस समय जाटो के साथ ओर भी संयुक्त सेना होती, तो महमूद जिंदा वापस गजनी नही लौट पाता । इस इतिहास का पता इसलिये लगता है, की महमूद ने जाटो को अपने इतिहास में बहुत गालियों से नवाजा है, मार खाकर वह जाटो से घृणा करने लगा था । जाटो के गुरिल्ले युद्ध की हुंक उसके दिल मे रह रह कर उठती थी । इसका परिणाम बाद में यह हुआ, की महमूद ने मुल्तान आकर लगभग 5000 निहत्थे ओर निर्दोष जाटो को बड़ी बेरहमी से कटवा दिया । बहुत से जाटो को सता सता कर मारा । जाट बच्चो का खतना हुआ और उन्हें गुलाम के बाजारों में बेच दिया गया ।
अंतिम समय मे महमूद को अनेक प्रकार के रोगों ने जकड़ लिया । लगभग 2 साल वो मृत्यु शेया पर लेटा रहा । उसके शरीर मे कीड़े पड़ गए । वह मौत मांगता रहता था, मगर मौत उसे ना आती । इसी हालात में एक दिन वह चल बसा ।
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