ब्राह्मण पर कब तक अत्यचार होगा

ब्राह्मण पर कब तक अत्यचार होगा मनुवाद और ब्रह्मवाद का ब्यंग कर !!
बहुत से मठ और पीठ छः दशक पूर्व ब्राह्मण पीठ हुआ करते थे जिसमें एक गोरखपुर का भी पीठ है आज ज्यादातर पीठों से ब्राह्मणों को एन केन प्रकारेण जड़ से निर्मूल कर दिया गया ज्यादातर मठों में क्षत्रिय महंत (उदाहरण योगी आदित्यनाथ) या यादव महंत (उदाहरण रामदेव बाबा) काबिज हो गए हैं क्या कभी ब्राह्मणों ने प्रतिरोध किया?
सिर्फ तुक्ष राजनितिक स्वार्थ के लिए एक पुरे जीवंत,जग्रत और मनीषी कौम का तिरस्कार, उलाहना, और प्रतिभा प्रतिरोध को मजबूरी का नाम गिनाना उसी तरह का घिनौना अपराध है

जिस तरह मुहम्मद ग़ज़नवी ने पचास हज़ार ब्राह्मणों के सामने उस समय प्रस्ताव रखा की वे अपने सर का बलिदान दे देंगे तो सोमनाथ को छोड़ देगा, जबकि इस आक्रमण की खबर पाते ही वहां का पाल वंशी राजा अपने ढाई लाख रेगुलर सैनिकों के साथ बिना प्रतिरोध किये मंदिर छोड़ पलायन कर गया था।इसके बाद जो हुआ सबको विदित है कतार में ब्राह्मण निहत्थे आते गये और सोमनाथ के प्रांगण में एक एक कर पचास हज़ार शीश न्योछावर कर दिया।
इसको छिपाने वाले भी इस काल के ज्यादातर सवर्ण या ब्राह्मण कामपंथी इतिहासकार ही हैं।
यह कहने का मतलब ये है कि विगत 2000 वर्षों में धर्म के नाम पर 10 करोड़ बलिदान दे देने वाले कौम को आज हर छोटे बड़े स्वार्थ, आरक्षण के नाम पर , हिंदुओं के ताने बाने ग्राम्य स्तर तक आघात पहुचाने के षड्यंत्र के तहत मनुवादी कह प्रताड़ित अपमानित किया जा रहा है
आखिर कब तक???
एक सीरियाई महमूद मुर्सी के लिए सहानुभूति की गंगा जमुना हफ़्तों महीनों मिडिया में बह निकलती है पर जब काश्मीर में पण्डितो के अबोध बच्चों का कत्ल कर बाहर बिजली के तारों पर सूखा दिया गया था तो इन्ही हरामजादों के मुंह में ताला जड़ गया!!
भारत में आप मनुवाद और ब्राह्मणवाद कह के कुछ भी कह सकते है कोई कुछ नहीं कहने वाला नहीं यूपी और बिहार में, ब्राह्मणों के इज्जत के साथ खेला जाता है सरकार चुप रहती है उन गुंडों पर कोई करवाई नहीं होता किन्तु यदि ब्राह्मण आपने आत्म रक्षा में सस्त्र या शब्द उठा के बोल दे तो उन्हें जेल में डाल दिया जाता है
दलित और बुद्धिजीवी लोग तर्क देते है ब्राह्मणों ने बहुत अत्यचार किया है जब की राज मुग़ल और अंग्रेज किये है तो अत्यचार ब्राह्मण कैसे कर लिए प्रश्न बहुत कठिन बनते जा रहा है


ब्राह्मणो का योगदान -
भारत के क्रान्तिकारियो मे 90% क्रान्तिकारी ब्राह्मण थे जरा देखो कुछ मशहूर ब्राह्मण क्रान्तिकारियो के नाम
ब्राह्मण स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी

(१) चंद्रशेखर आजाद
(२) सुखदेव
(३) विनायक दामोदर सावरकर( वीर सावरकर )
(४) बाल गंगाधर तिलक
(५) लाल बहाद्दुर शास्त्री
(६) रानी लक्ष्मी बाई
(७) डा. राजेन्द्र प्रसाद
(८) पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल
(९) मंगल पान्डेय
(१०) लाला लाजपत राय
(११) देशबन्धु डा. राजीव दीक्षित
(१२) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
(१३) शिवराम राजगुरु
(१४) विनोबा भावे
(१५) गोपाल कृष्ण गोखले
(१६) कर्नल लक्ष्मी सह्गल ( आजाद हिंद फ़ौज
की पहली महिला )
(१७) पण्डित मदन मोहन मालवीय
(१८) डा. शंकर दयाल शर्मा
(१९) रवि शंकर व्यास
(२०) मोहनलाल पंड्या
(२१) महादेव गोविंद रानाडे
(२२) तात्या टोपे
(२३) खुदीराम बोस
(२४) बाल गंगाधर तिलक
(२५) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
(२६) बिपिन चंद्र पाल
(२७) नर हरि पारीख
(२८) हरगोविन्द पंत
(२९) गोविन्द बल्लभ पंत
(३०) बदरी दत्त पाण्डे
(३१) प्रेम बल्लभ पाण्डे
(३२) भोलादत पाण्डे
(३३) लक्ष्मीदत्त शास्त्री
(३४) मोरारजी देसाई
(३५) महावीर त्यागी
(३६) बाबा राघव दास
(३७) स्वामी सहजानन्द

यह है ब्राह्मणो का भारत की क्रांती मे योगदान , तुम्हारा क्या है ? जरा बताओ तो तुम किस अधिकार से स्वयं को भारतीय
कहते हो और ब्राह्मणो का विरोध करते हो ।मुझे गर्व है
मैं ब्राह्मण हूं "
यदि ब्राह्मण नही होगा तो किसी का भी अस्तित्व
नही होगा


सबसे पहले तो आज भीमटो ओर अन्य वामपंथी लोगो के नास्तिक शब्द का विश्लेषण ही कर लेते है - देखते है यह किंतने ज्ञानी है, जो खुद को " नास्तिक " कहकर टेढ़े हुए घूमते है ।।

Gnostic ( नास्तिक ) यह पूरा का पूरा मूल संस्कृत शब्द ही है । ईश्वर में विश्वास रखने वालों के लिए आधुनिक संस्कृत में आस्तिक शब्द का प्रयोग हुआ है । ओर नास्तिक शब्द उनके लिए, जो ईश्वर में विश्वास नही रखते । लेकिन सही संस्कृत शब्द अगर देखे तो नास्तिक मतलब ईश्वर में विश्वास रखने वाला होता है , ओर जो ईश्वर में विश्वास नही रखते, उसे A-gnostic यानी "अ-नास्तिक" कहते है । बुद्ध ने तो यही कहा था - में नास्तिक हूँ ! अर्थात में ईश्वर में विश्वास रखता हूँ । बुद्ध ने खुद को तो ईश्वर कहा नही, तो कौनसा ईश्वर था, जिसपर बुद्ध को विश्वास था ? साफ है, वो महादेव, नारायण इनमे से ही कोई एक था । अब एक छोटे से शब्द का पता भीमराव अंबेडकर जैसे पढ़े लिखे लोग नही कर पाए ! तो इनकी बुद्धि का अंदाजा आप खुद लगा सकते है ।।


अब क्रिश्चनिटी (Chirsnity ) शब्द को ध्यान से पढिये - अगर हम "Chirs+n+ity " को अलग अलग विभाजित यानी संधि विच्छेद करके C को "क" पढ़े जैसे कि Cricket के C को क पढ़ते है । तो इसका अर्थ कुछ यूं बनता है = कृष + न + इति = कृष्णनीति ! यह साफ साफ कृष्णनीति शब्द बनता है । क्यो की ईसाई पंथी कभी कृष्णपंथी ही थे ।। ओर अगर यह कृष्ण नीति नही होता तो जैसे बुद्ध का बुद्धिज्म ( बुद्ध-इज्म) बना , कम्युनिज्म बना , उसी प्रकार ईशा पंथ का का नाम क्राइस्ट-इज्म या जीजस-इज्म होता । परिणामतः ईसाइयो को दुबारा अपने मूल धर्मग्रन्थ " भगवतगीता " की और लौट आना चाहिए, क्यो की " बाइबिल " ना तो कृष्ण ने लिखा, ओर ना क्राइस्ट ने ।

ईसाई लोग अपने साधुओं को सेंट कहते है । यह संस्कृत के "सन्त " का ही अपभ्रंस तो है । पाल नाम का एक सन्त ईसाइयो में था , वह कपोलकल्पित ही था । वह सन्त कोई और नही, " गौ-पाल " यानी कृष्ण ही था, ओर उन्हें सन्त इसलिए कहा गया, क्यो की कृष्ण ने बिना परिणाम की चिंता किये, बिना किसी स्वार्थ के , बिना किसी से द्वेष रखे महाभारत के युद्ध मे अर्जुन की सहायता की, अर्जुन की सहायता तो की ही, साथ मे अपनी " नारायणी " सेना दुर्योधन को सौंपकर भी एक सन्त होने का ही परिचय दिया ।

अब थोड़ा और आगे चलते है । ईसाई पादरियों ओर साध्वी के गृहों को " मोनास्ट्रीज " कहा जाता है । यह शब्द का संस्कृत का मुनि-स्था-रि है । मुनि का अर्थ - गुणी , पुण्य, पवित्र होता है , स्था का मतलब "स्टे " ( रुकना, ठहरना आदि होता है । रि शब्द का विशिष्ठ प्रयोग होता है । अतः यह शब्द मुनिस्थारी संस्कृत शब्द का बिगड़ा रूप ही है ।

अब इनके चर्च शब्द को ले लेते है । चर्च - चर्चा का धोतक शब्द है, यानी चर्चा का । चूंकि कृष्ण नीति कृष्ण सम्प्रदाय की बैठकों में सभाओं में भगवतगीता आदि की चर्चा होती थी, जिस स्थान पर वो चर्चा करते, उसी भवनों को , मंदिरों को बाद में चर्चा से चर्च का नाम दे दिया गया



1 comment:

  1. भाई मैं कहता हूँ क्यों न ब्राह्मण नास्तिकता का प्रचार कर सबको धर्म से भ्रष्ट करदे।

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