हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?
हिन्दू धर्म का उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है इसलिए कुछ अति बुद्धिमान (सेक्यूलर) लोग कहते हैं कि हिन्दू शब्द फारसियों की देन है.
हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में वर्णित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित इस प्रकार से हैं :-
1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!
"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
(अर्थात, हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं)
2- सिर्फ वेद ही नहीं अपितु मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....
"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"
(अर्थात, जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)
3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है....!
"हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।"
(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है )
4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है....!
"हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते ।।"
(अर्थात, जो अपने तप से शत्रुओं, दुष्टों और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है )
5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है....!
"ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य: ।
गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।
(अर्थात, वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है )।
6- केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद ( ८:२:४१ ) में विव हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है । जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी और ऋग्वेद मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है ।
7- ऋग्वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था । जो मध्यकाल में आगे चलकर "हैन्दव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए, जिसका बाद में अपभ्रंश होकर हिन्दू बन गया...!!
8- इसके अतिरिक्त भी कई स्थानों में हिन्दू शब्द उल्लेखित है....।।
इसलिये गर्व से कहो, हाँ हम हिंदू थे, हिन्दू हैं और सदैव सनातनी हिन्दू ही रहेंगे ॥
*आखिर हिन्दू मूर्ति पूजा क्यों करते है ???*
*सटीक जवाब विवेकानंद जी का*
स्वामी विवेकानंद को एक मुल्ला राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला,
*"तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हो जो मिट्टी, पीतल और पत्थर की बनी हुई रहती है, पर मैं ये सब नही मानता ये तो केवल एक पदार्थ है।”*
उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी।
विवेकानंद जी ने राजा से पूछा,”राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?”
राजा बोला, *मेरे पिताजी की*
स्वामी जी बोले,”उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।”
राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।
स्वामीजी ने राजा से कहा *अब आप उस तस्वीर पर थूकिए*
राजा :”ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामीजी ?
स्वामीजी :”मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!”
राजा (क्रोध से) :”स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।”
स्वामी जी बोले,”क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है।”
और स्वामी जी बोलते गए,”इसमें ना हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूंक नहीं सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो।
और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।”
थोड़े मौन के बाद स्वामीजी ने आगे कहाँ,
“वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की बनी मूर्ति की पूजा भगवान का स्वरूप मानकर करते हैं।
*भगवान तो कण-कण मे है, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए ही हम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हैं*
स्वामी जी की बात सुनकर राजा ने स्वामी जी से क्षमा माँगी।
#भारत_का_हर_राजपूत_राजस्थानी
जैसे तपश्या आदि करने के लिए ब्राह्मण ऋषिय प्रदेश जाते थे, जिसे हम आज का रूस कहते है । कारण की वहां हिमपात होता है, प्राकृतिक शांति है ।।
उसी प्रकार राजपूतो को शिक्षा के लिए राजस्थान भेजा था । इसके कारण थे, क्यो की राजस्थान ही ऐसा प्रदेश है, जहां गर्मी के समय प्रचंड गर्मी पड़ती है, उतनी ही, जितनी अरब देशों में ।
ओर ठंड के समय उतनी ही ठंड, जितनी विदेशों में पड़ती है ।। और युद्ध अभ्यास के लिए ऐसा राज्य दूसरा नही हो सकता था , जैसी जलवायु राजस्थान में है ।
यहां से ही राजपूत जीतते जीतते पूरे भारत मे फेल गए । पूरे भारत को जीतते हुए ( जिसमे आज का पाकिस्तान भी है ) वो अलग अलग राज्यो में बस गए ।। जो आज भी अन्य अन्य राज्यो में है ।।
लेकिन अपनी पीढ़ी का इतिहास उठाकर देखेंगे, तो मूल उद्गम राजस्थान से ही निकलेगा ।।
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