नालन्दा ओर अनेक हिन्दू शिक्षा केन्द्र को जलाने वाले बख्तियार खिलजी की जमीन की भुख बढ़ती ही जा रही थी । माया , आतंक ओर यातना के हथियारों का प्रयोग उसने चीन, तुर्किस्तान व तिब्बत में भी करना चाहा । इस इरादे से दस हजार घोड़ो की एक सेना उसने तैयार की। उनके नायकों में बिहार का एक स्थानीय निवासी अली-मिच था,वो हिन्दू से मुसलमान बना था । पहाड़ी मार्गो को बतलाना उसने स्वीकार किया । इससे यह ज्ञात होता है कि मुसलमान बनने के बाद पूर्व हिन्दू ही किस तरह अपनी मातृभूमि के लिए गद्दार हो गए , फिर अकबर, शाहजहां, बहादुरशाह आदि ने भारतीय भूमि के साथ बलात्कार किया, तो इसमें आश्चर्य ही क्या ?
हिन्दू से मायावी मुसलमान बना अली मिच बख्तियार को वर्धानकोट तक ले गया । ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा यह नगर कभी बंगमती नाम से भी विख्यात था । बीस खम्बो का एक प्राचीन पुल इस नदी पर था । साधारण पर्यटक, इतिहास के छात्र , शोधकर्ता ओर सरकारी अधिकारियों को यह जान लेना चाहिए कि भारत मे बने प्राचीन पुलों ओर भवनों का निर्माण मुस्लिम लुटेरों ने नही करवाया वरन मुस्लिम पूर्व हिन्दू कारीगरों ने ही इनका निर्माण किया है। इधर उधर जो बयान है, वह मरम्मत संबधी है, इसी मरम्मत को उन्होंने बढ़ा चढ़ाकर अपना मौलिक निर्माण कहा है । उस मरम्मत का भार भी हिन्दू जनता पर ही लादा जाता था । बख्तियार खिलजी ने बनगांव ( बंगाल में ) में अपना पड़ाव डाला , एकाएक आसाम ही हिन्दू सेना ने आधी रात को ही उसपर चढ़ाई कर दी । आप अनुमान लगा सकते है कम से कम 500 km की दूरी तय कर आसाम की सेना ने उनपर आक्रमण किया था । पहली बार हिन्दू ने इन दुष्टों की नाड़ी पकड़ सूझबूझ का परिचय दिया । आसामी राय की गिनती उन वीर हिन्दू राजाओं में की जानी चाहिए जिन्होंने अपने राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहें परिस्तिथि को पूरी तरह समझा । पवित्र उषाकाल में हिन्दुओ ने आक्रमण किया । दोपहर होते होते तो हिन्दुओ ने 20,000 की घुड़सवार सेना को आधी कर दी । आश्चर्य की बात यह है ( तबकात के अनुसार ) शत्रुओं ( यानी हिन्दुओ ) के पास बांस के भाले थे । उनके पास ढाल तक नही थी, केवल रेशम के कपड़े उनके ढाल थे । सभी के पास धनुष ओर बाण थे । मुसलमानो को वहां पटक पटक के मारा गया, सुंवर के मांस को बड़े चाव से खाने वाले यह आसामी , इन सुंवरो को वैसे ही दंडित किये, जैसे सुंवर को खाने से पहले सका जाता है, मुस्लिम सेना के पिछवाड़े में बांस के भाले घुसेड दिए गए ।
बख्तियार खिलजी ने देखा कि उसकी सेना आधी मार दी गयी है, ओर आधी सेना हताश ओर थकी हुई है । उसने अपने नेतागणों से सलाह मशवरा किया कि दूसरे साल फिर से पूरी तैयारी के साथ यहां आक्रमण करेंगे ।
लेकिन आसामी राय इनसे एक कदम आगे थे । मायावी मुस्लिम सेना को हराने के बाद आसामी सेना ने पूरा ध्यान रखा कि एक भी मुसलमान वापस जिंदा ना पाए, इन्हें खाने का एक दाना ना मिले और पशुओं को खाने को एक घांस का तिनका नसीब ना हो । भूख मरते भागते बख्तियार के सैनिक घोड़ो को मारकर खा गए । बख्तियार भागता हुआ उसी पुल तक आया ओर सन्न रह गया । उसे देखकर यह बड़ा धक्का लगा कि जो सेना उसने पुल पर अपनी सुरक्षा के लिए छोड़ी थी, उसका सफाया कर हिन्दू सेना ने पुल तोड़ दिया था, ताकि यह मल्लेछ वापस भाग ना पाए । उनके भागने का मार्ग पूरी तरह से बन्द कर दिया गया ।
हिन्दुस्थान ने वीरो की कतार में आसामी राय को रखना ही पड़ेगा, क्यो की उन्होंने ना केवल अपने देश और अपनी प्रजा की रक्षा की बल्कि जागरण, चेतना और दूरदर्शिता का परिचय भी दिया , आसामी राय ने अपने पूर्ण कर्तव्य का पालन किया ।
बख्तियार खिलजी ने वहां अपनी कुछ सेना के साथ एक मंदिर में शरण ली, वहां आसामी राय की सेना ने आड़े तिरछे बांस लगाकर उसे पूरी तरह मंदिर में कैद कर दिया । पिंजरे में घिर जाने के भय से बख्तियार अपनी जान बचाने जंगल मे भाग खड़ा हुआ । आसामी हिंदू सेना का सामना करने का साहस उसमे नही था । उसने हर हाल में नदी पार करने की ठान ली, नदी के पास पहुंचा तो उसके होंश फिर फ़ाख्ता हो गए, क्यो की नदी के पास हिन्दू सेना पूरी तरह से चौकन्नी होकर उसके पीछे पड़ी थी । वहां लगभग 1 घण्टे का युद्ध हुआ, यह युद्ध केवल मुसलमानो को काटने के लिए हुआ था । पूरी सेना को खत्म कर दिया गया । अब केवल एक आदमी जीवित बचा था, ओर वो खुद बख्तियार खिलजी था, वह इसलिए जीवित बचा, क्यो की जब युद्ध हो रहा था, तो मौका देख बख्तियार नदी में कूद गया । हिन्दुओ ने मुल्लो को काट काट के नदी में फेंका था, कुछ मुल्ले डरकर नदी में कूद कर मर गए , उन्ही में से किसी एक लाश का सहारा लेकर बख्तियार दूसरे किनारे तक पहुंचा ।
हिन्दू से मायावी मुसलमान बना अली मिच बख्तियार को वर्धानकोट तक ले गया । ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा यह नगर कभी बंगमती नाम से भी विख्यात था । बीस खम्बो का एक प्राचीन पुल इस नदी पर था । साधारण पर्यटक, इतिहास के छात्र , शोधकर्ता ओर सरकारी अधिकारियों को यह जान लेना चाहिए कि भारत मे बने प्राचीन पुलों ओर भवनों का निर्माण मुस्लिम लुटेरों ने नही करवाया वरन मुस्लिम पूर्व हिन्दू कारीगरों ने ही इनका निर्माण किया है। इधर उधर जो बयान है, वह मरम्मत संबधी है, इसी मरम्मत को उन्होंने बढ़ा चढ़ाकर अपना मौलिक निर्माण कहा है । उस मरम्मत का भार भी हिन्दू जनता पर ही लादा जाता था । बख्तियार खिलजी ने बनगांव ( बंगाल में ) में अपना पड़ाव डाला , एकाएक आसाम ही हिन्दू सेना ने आधी रात को ही उसपर चढ़ाई कर दी । आप अनुमान लगा सकते है कम से कम 500 km की दूरी तय कर आसाम की सेना ने उनपर आक्रमण किया था । पहली बार हिन्दू ने इन दुष्टों की नाड़ी पकड़ सूझबूझ का परिचय दिया । आसामी राय की गिनती उन वीर हिन्दू राजाओं में की जानी चाहिए जिन्होंने अपने राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहें परिस्तिथि को पूरी तरह समझा । पवित्र उषाकाल में हिन्दुओ ने आक्रमण किया । दोपहर होते होते तो हिन्दुओ ने 20,000 की घुड़सवार सेना को आधी कर दी । आश्चर्य की बात यह है ( तबकात के अनुसार ) शत्रुओं ( यानी हिन्दुओ ) के पास बांस के भाले थे । उनके पास ढाल तक नही थी, केवल रेशम के कपड़े उनके ढाल थे । सभी के पास धनुष ओर बाण थे । मुसलमानो को वहां पटक पटक के मारा गया, सुंवर के मांस को बड़े चाव से खाने वाले यह आसामी , इन सुंवरो को वैसे ही दंडित किये, जैसे सुंवर को खाने से पहले सका जाता है, मुस्लिम सेना के पिछवाड़े में बांस के भाले घुसेड दिए गए ।
बख्तियार खिलजी ने देखा कि उसकी सेना आधी मार दी गयी है, ओर आधी सेना हताश ओर थकी हुई है । उसने अपने नेतागणों से सलाह मशवरा किया कि दूसरे साल फिर से पूरी तैयारी के साथ यहां आक्रमण करेंगे ।
लेकिन आसामी राय इनसे एक कदम आगे थे । मायावी मुस्लिम सेना को हराने के बाद आसामी सेना ने पूरा ध्यान रखा कि एक भी मुसलमान वापस जिंदा ना पाए, इन्हें खाने का एक दाना ना मिले और पशुओं को खाने को एक घांस का तिनका नसीब ना हो । भूख मरते भागते बख्तियार के सैनिक घोड़ो को मारकर खा गए । बख्तियार भागता हुआ उसी पुल तक आया ओर सन्न रह गया । उसे देखकर यह बड़ा धक्का लगा कि जो सेना उसने पुल पर अपनी सुरक्षा के लिए छोड़ी थी, उसका सफाया कर हिन्दू सेना ने पुल तोड़ दिया था, ताकि यह मल्लेछ वापस भाग ना पाए । उनके भागने का मार्ग पूरी तरह से बन्द कर दिया गया ।
हिन्दुस्थान ने वीरो की कतार में आसामी राय को रखना ही पड़ेगा, क्यो की उन्होंने ना केवल अपने देश और अपनी प्रजा की रक्षा की बल्कि जागरण, चेतना और दूरदर्शिता का परिचय भी दिया , आसामी राय ने अपने पूर्ण कर्तव्य का पालन किया ।
बख्तियार खिलजी ने वहां अपनी कुछ सेना के साथ एक मंदिर में शरण ली, वहां आसामी राय की सेना ने आड़े तिरछे बांस लगाकर उसे पूरी तरह मंदिर में कैद कर दिया । पिंजरे में घिर जाने के भय से बख्तियार अपनी जान बचाने जंगल मे भाग खड़ा हुआ । आसामी हिंदू सेना का सामना करने का साहस उसमे नही था । उसने हर हाल में नदी पार करने की ठान ली, नदी के पास पहुंचा तो उसके होंश फिर फ़ाख्ता हो गए, क्यो की नदी के पास हिन्दू सेना पूरी तरह से चौकन्नी होकर उसके पीछे पड़ी थी । वहां लगभग 1 घण्टे का युद्ध हुआ, यह युद्ध केवल मुसलमानो को काटने के लिए हुआ था । पूरी सेना को खत्म कर दिया गया । अब केवल एक आदमी जीवित बचा था, ओर वो खुद बख्तियार खिलजी था, वह इसलिए जीवित बचा, क्यो की जब युद्ध हो रहा था, तो मौका देख बख्तियार नदी में कूद गया । हिन्दुओ ने मुल्लो को काट काट के नदी में फेंका था, कुछ मुल्ले डरकर नदी में कूद कर मर गए , उन्ही में से किसी एक लाश का सहारा लेकर बख्तियार दूसरे किनारे तक पहुंचा ।
देवकोट पहुंचकर वह बीमार पड़ गया । अब इस नीच के पास खाने तक को पैसे नही थे । लोगो से यह घृणा इतनी कमा चुका था, की इसे कोई पीने का पानी तक ना देता, नालियों का पानी पी पी कर इसने अपना आखिरी समय गुजारा, सड़को पर जाता, तो लोग इसे गालियां देते, इसको थप्पड़ मारते । बख्तियार खिलजी कभी मायावी मुसलमानो का चमकता सितारा था , लेकिन आसामी राय की बहादुरी ने आज इसे भिखारी से भी बदतर बना दिया था । देवकोट में ही यह सड़क पर कहीं मुँह छिपाए पड़ा था, ओर किसी सनकी हिन्दू ने आकर भयंकर गालियां देते हुए, चाकुओं से गोद गोद कर इसकी हत्या कर दी ।
No comments:
Post a Comment