उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। जनश्रुति है कि वो मुल्ला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर स्वयं उनके शिष्य बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिन्दू हो गया। सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।
वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान
वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार
चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा । इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं
बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यादरा इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इसलाम धर्म स्वीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।
जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं था।
मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।
सदना पीर कहता है -
" एक हिन्दू एक तुरक है ,प्रकट दोनों दीन |
अल्ला ताला ने किये ,दोनों मत प्रवीन || -रविदास रामायण
एक हिन्दू है और एक तुरक है दोनों धर्मो को मानने वाले है | अल्ला ताला ने ही दोनों को पैदा किया उनका दीन धर्म भी उसी ने प्रकट करा |
अब संत रविदास जोरदार जवाब देते हुए कहते है -
हिन्दू और तुरक दोनों शब्द को नवीन बताते हुए वेदों के देव शब्द को प्राचीन कहते है -
" हिन्दू तुरक दो शब्द नवीना | देव शब्द आदि प्राचीना ||
ये स्वभाव आद से आवै | काल पलट जग पलटा खावै ||
वैधर्म आ जगत में छाया | देव शब्द से हिन्दू कहलाया ||
अर्थात - हिन्दू और तुरक यह दोनों शब्द नवीन है यह दोनों शब्द अभी हाल के ही है हिन्दू और तुरक में भेद नही यह इस तर्क से ही अलग है | वेद धर्म से ही जगत अस्तित्व में आया है | जो देव से जुडा वही आज हिन्दू कहलाया है |
अब कुरान और मुस्लिमो पर प्रहार कर वेद का महत्व बताते हुए संत रविदास कहते है -
" तुरक शब्द की नाही निशानी | मोहमदीन नही मुल्लामानी ||
जाप जपत जगत वेद दुबारा | बिस्मिल पद नही कुरआन सिपारा || -रविदास रामायण
अर्थात मुस्लिम शब्द का तो कोई निशान ही नही मिलता है | यह संसार किसी मोहम्मद ,मुल्ला को नही मानता है | जो भी जपता है वो वेद के उपदेश से जपता है | कुरआन के बिस्मिल्ला का नही अर्थात लोग वेद के ही ईश्वर का जाप करते है कुरआन के बिस्मिला का नही |
वेद धर्म को २ अरब वर्ष पुराना संत रविदास जी बताते हुए कहते है -
" दो वृन्द काल लोक सुखदाई | वेद धर्म की ध्वजा फहराई ||
अर्थात २ अरव वर्षो से वेद धर्म जगत को सुख देते हुए ध्वजायमान है |
मुस्लिम लोग आवागमन नही मानते अर्थात पुनर्जन्म इस पर रविदास जी सदना पीर को कहते है -
" आवागमन को जो नही माने | ईशर्य्य ज्ञान क्या मुर्ख जाने || - रविदास रामायण
अर्थात जो आवागमन (पुनर्जन्म ) को नही मानता वो मुर्ख कैसे ईश्वर के ज्ञान को जान सकता है |
इस तरह कई संत रविदास ने दार्शनिक तर्को द्वारा सदना पीर की बोलती बंद कर दी तथा वेद धर्म श्रेष्ठ का मंडन भी कर दिया |
सम्भवत: रविदास जी का अनुसरण कर वेद धर्म की ओर आयेंगे |
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