महावीर ,गौतम गणधर,वीरनाथ,सिद्धार्थ में से असली बुद्ध कौन था
बुद्ध मत के बुद्ध का नाम पाली साहित्य में गोतम है लेकिन जैन आदिपुराण में
आया है :-
"गौतमदागतो देव: स्वर्गाग्रद गौतमो मत ,तेन प्रोक्तमधीनस्त्व चासो गौतामश्रुति " (दितीय पर्व श्लोक ५३ )
अर्थात महावीर स्वामी १६ वे स्वर्ग से
अवतरित हुए इसलिए उन्हें गौतम कहते है और गौतम की वाणी सुनने से आप का भी नाम गौतम है ,
अर्थात गोतम की वाणी सुनने वाला भी गोतम है और स्वयं गोतम भी गोतम है तो बड़ा संदेहास्पद विषय है कि ई गोतम है कौन? इस दृष्टि से गोतम कोई व्यक्ति विशेष नही है ? गोतम उपाधिनाम है ,
जैन मत की माने तो महावीर स्वामी के शिष्य गणधर ही बुद्ध है :-
आदिनाथ पुराण में आया है :-
" चतुर्भिश्रचमलेर्बोधैरबुद्धतस्व जगद यत:| प्रज्ञापारमित बुद्ध त्वा निराहुरतो बुधा:"
(दितीय पर्व श्लोक ५५ )
हे देव आपने ४ निर्मल ज्ञानो (४ आर्य सत्य ) के द्वारा संसार को जान लिया है तथा आप बुद्धि के पार को प्राप्त हुए है इसलिए संसार आपको बुद्ध कहता है ...
अतः इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि महावीर भी गौतम है और गणधर भी गौतम और सिद्धार्थ भी अत: तीनो बुद्ध है ...
लेकिन असली बुद्ध कौन ? ??
इतना ही नही बुद्ध की दावेदारी अभी खत्म नही होती एक और बुद्ध हमारे सामने है :-
दिगंबर जैन के एक और ग्रन्थ धर्म परीक्षा अमितगत (जैन
हितेषी पुस्तकालय कर्नाटक द्वारा प्रसारित पेज संख्या २५९ की पांति २४ पर उल्लेखित है कि:-
रुष्टश्रवारनाथस्य तपस्वीमोगलायन:|
शिष्य: श्रीपार्श्वनाथस्य विदधेबुद्धदर्शनम ||
पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले वीरनाथ ने रुष्ट हो कर बुद्ध धर्म स्थापित किया |इस प्रकार आप समझ सकते है कि यहा बुद्ध कहे जाने के चार दावेदार है ,
महावीर भी गोतम बुद्ध है , महावीर के शिष्य गणधर गौतम भी बुद्ध है और पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले विरनाथ भी बुद्ध है और सिद्धार्थ गोतम भी बुद्ध है
लेकिन असली वाला और वास्तविक बुद्ध कौन है यह प्रश्न ज्यो का त्यों बना हुवा है।
बुद्ध की यह कहानी तो तब और उलझ जाती है जब महावीर और सिद्धार्थ के जीवन के बीच घटी घटनाओ का हम निरीक्षण करते है क्यो की दोनो में इतनी समानता है कि दिमाग झन्ना जाता है की सिद्धार्थ असली बुद्ध है कि महावीर जी ?
आप स्वयं देख लीजिए :-
(१) बुद्ध ने खीर खा कर ज्ञान प्राप्त
किया महावीर ने भी खीर खा कर ही ज्ञान प्राप्त किया।
(२) सिद्धार्थ बिम्बसार के बाग़ में ठहरा था महावीर
भी ठहरे थे।
(३) महवीर जी शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण
बताया गया है बुद्ध का एक भिक्षु भी अग्निहोत्र
ब्राह्मण बताया है।
(४) माहवीर को सांप ने काटा तो दूध निकला सिद्धार्थ
को भी सांप ने काटा तो दूध निकला।
(५) चन्दन वाली नामी स्त्री नेमंगा वती साध्वी को इसलिए डाटा की को सारीरात महावीर के संघ में रही ...ललित विस्तार अनुसार
उसी नामी स्त्री ने मंगावती को इसलिए डाटा की वो सारी रात सिद्धार्थ के संघ मेंर ही |
अब इसे संयोग तो नही कह सकते न ? सिद्धार्थ और महावीर के बीच इस समानता से तो यह स्पष्ट है कि दोनों ही मतों में से किसी एक मत वाले ने दूसरे मत का कॉन्सेप्ट चुराया है , और उस पर अपना लेबल लगा कर मार्किट में उतार दिया है ,
साथ ही इन समानताओं से एक बात तो स्पष्ट है की महावीर भी बुद्ध सिद्ध होते है .. तो सवाल यह बनता है कि :-
( महावीर ,गौतम गणधर,वीरनाथ,सिद्धार्थ में से असली बुद्ध कौन था ?)
पार्श्वनाथ का काल सिद्धार्थ से पहले का है और जैन
ग्रन्थ के अनुसार वीरनाथ ही बुद्ध था जो सिद्धार्थ से पहले का है तो क्या सिद्धार्थ को बुद्ध का लेबल चिपकाने वाले श्रमणों ने साख्य ,चार्वाक दर्शन के अलावा जैन मुनियों के भी कांसेप्ट और मान्यताये चुराई थी
और जो बुद्ध शब्द जैनियो का था वह टाइटल भी भी चुरा लिया हो क्यूंकि सिद्धार्थ के एक गुरु जैन भी थे जिनका नाम उदक रामपुत्र था।
मूर्ति अप्रमाणिक
दूसरा बुद्ध के कांसेप्ट में यह बात प्रमुखता से है कि बुद्ध मत मूर्ति पूजा या मूर्ति के प्रति आस्था का विरोधी मत है किंतु यह उल्टे बुद्ध की हजारों हजार मुर्तिया आप को मिल जाती है खुदाई में मतलब बुद्ध की ब्रांडिंग और मार्केटिंग का सबसे सुगम साधन था मूर्ति निर्माण , इन्ही मूर्तियों के द्वारा बुद्ध के काल्पनिक पात्र को जिंदा किया गया ,, अन्यथा अगर बुद्ध सच मे होते तो उनके सिधान्तो के खिलाफ उन्ही की मूर्ति क्यो बनाई जाती , और तो और बुद्ध की मूर्ति वाला बुद्ध सच मे कौन है यह कहना मुस्किल है , अगर हम यह सिद्धार्थ की मान भी ले तो सिद्धार्थ से पूर्व बुद्ध और बुद्धत्व की बात जैन मत में हो चुकी है विरनाथ को सिद्धार्थ से पहले बुद्ध कहा जा चुका है और बुद्ध मत का संस्थापक भी ,, साथ ही सिद्धार्थ बुद्ध और महावीर में इतनी समानताएं है जो इस बात का स्पष्टीकरण नही देती की वास्तव में यह घटाए किसके साथ घटित हुई और वास्तव में बुद्ध कौन है।
विभिन्न 28 बुद्ध होने की थ्योरी जैन धर्म मे हुए तीर्थकरों के होने से चुराई गयी है देखा जाये तो बिन्दुसार जैन सम्प्रदायवादी थे और चन्द्रगुप्त मौर्य भी जीवन के अन्तिम् समय जैन मत का अनुवाई माना जाता है तो निश्चय ही अशोक को जैन मतानुयायी ही होना चाहिये परन्तु बौद्ध साहित्य मे कलिंग युद्ध से पूर्व उसे सनातन धर्मी बताया गया जो प्रमाणिक नही लगता।
इतना ही नही बुद्ध की पहले पहल मूर्ति कनिष्क के काल मे बनी इससे पूर्व बुद्ध की मूर्ति का भी कोई अस्तित्व नही था , मूर्ति भी पूर्ण काल्पनिक और संदेहास्पद है कोई की भारतीय परिवेश में बुद्ध के तरह बाल नाक कान और कद काठी का व्यक्ति न पहले देखने को मिला है न बाद में , अग्रेजो ने तो बुद्ध के बाल कान और शारीरिक बनावट के आधार पर युथोपियन कहा है।
जन्म काल और राज्य का संदेहास्पद
नेपाल में लुम्बिनी में 2013 में पुरातत्वविदो को एक छोटा मंदिर मिला है जिसकी छत नहीं थी और उसके मध्य में बोधि वृक्ष था ।
पुरातत्वविदो के अनुसार कार्बन डेटिंग से उस मंदिर के निर्माण का काल 550 ईसापूर्व आया है ,यानि की विश्व का सबसे प्राचीन बोध मंदिर ।माना जाता था की पुरे भारतीय उप महाद्वीप पर बोद्ध मंदिर और मठो का निर्माण गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बने थे ।
अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद कई मंदिर बनवाये थे और गुप्त राजाओ ने भी इसमें अपना योगदान दिया था ।मध्यधारा के इतिहासकार मानते है कि 480 ईसापूर्व में गौतम बुद्ध जन्मे थे और कुछ के अनुसार 560 ईसापूर्व ।पर यदि उस मंदिर का काल 550 ईसापूर्व है तो या तो वह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवित रहते बना या फिर उनकी मृत्यु के बाद ।
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार तो बोद्ध मंदिर और मठ तो गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद हुआ और यह मैं पहले ही बता चूका हु यानि कि गौतम बुद्ध जन्मे होंगे 630 ईसापूर्व में । गौतम बुद्ध 80 वर्ष जिए तो यदि उनकी मृत्यु 550 ईसापूर्व के आस पास हुई तो 550+80 होगा 630 ।
मैं पुराणों में वर्णित गौतम बुद्ध के जन्म काल को मानता हु जो कि है 1800 ईसापूर्व ।
गौतम बुद्ध जन्म - ५६३ ईशा पूर्व
सिद्धार्थ बुद्ध - १८८७ ईशा पूर्व
अब यही सच आपके समझने के लिए काफी होना चाहिए, की गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार नही है । और जो विष्णु के अवतार सिद्धार्थ है , उनके जन्म और गौतम बुद्ध के जन्म में कितना फर्क है ।।
भारतीय इतिहास के शोध में यह एक भयंकर भूल है । क्यो की यह सिद्ध करने के प्रबल साक्ष्य है कि भगवान विष्णु के अवतार सिद्धार्थ का जन्म १८८७ में हुआ । इसका अर्थ यह हुआ कि जिस गौतम को विष्णु का अवतार आज तक भीमटे मानते आए है, वो मात्र एक साधरण सन्यासी था, वो भी भटका हुआ । दोनो के बीच का अंतराल ही 1300 वर्षो का है ।
फिर प्रश्न उठता है, की भारत के इतिहास में इतनी भयंकर भूल कैसे हुई? तो इसका जवाब है कि भारत 1000 साल विदेशियों के गुलाम तो रहा है, साथ मे आजादी के बाद भी विश्वासघाती कांग्रेस और अन्य वामपंथी गद्दार यही रह गए, ओर वे ही इस देश के भाग्य निर्माता बन बेठे ।।
अंग्रेज लोगो को मानव सृष्टि के सम्बंध में बहुत अल्पज्ञान था , वे सोचते थे कि पृथ्वी को बने केवल कुछ हजार वर्ष ही तो हुए है । इसी प्रकार उन्होंने कल्पना कर दी कि भारतीय इतिहास भी 4-5 हजार वर्षों से अधिक पुराना नही । ओर उन्होंने इतिहास की हर घटना को तोड़ मरोड़ दिया ।।यह पोस्ट कर मैं यह बताना चाहता हु कि पश्चिमी मान्यता गौतम बुद्ध को लेकर और भारतीय सभ्यता को लेकर काफी गलत है ।
अब शुरू होती है असली गड़बड़
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार गौतम बुद्ध की मृत्यु के 218 वर्ष बाद अशोक मौर्य का राज्याभिषेक हुआ था और पश्चिमी मान्यता अनुसार अशोक का राज्याभिषेक 268 ईसापूर्व में हुआ ।यानि कि यदि गौतम बुद्ध कि मृत्यु 550 ईसापूर्व में हुई तो अशोक का राज्याभिषेक 332 ईसापूर्व में हुआ । साथ ही अशोक जब सम्राट बना तो उसके चार वर्ष बाद उसका राज्याभिषेक हुआ था अर्थात अशोक 336 ईसापूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा ।
अब बड़ी गड़बड़ यह है कि सिकंदर ने भारत पर आक्रमण 326 ईसापूर्व में किया तो उस समय भारत पर शासन करने वाला सम्राट नन्द न होकर अशोक था । सिकंदर को तब भारत के सम्राट के बारे में बताया जाता है कि भारत का सम्राट एक निर्दयी और क्रूर सम्राट है और प्रजा में अप्रिय भी है ।
अब कुछ लोग कहेंगे कि कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक एक क्रूर शासक था और प्रजा उसे चंदाशोक कहती थी पर यह गलत है ।
अशोक का साम्राज्य ईरान तक था न कि आज के राजस्थान तक जैसा कि यूनानी लेख कहते है ।
अब या तो पश्चिमी विद्वानों की तिथिया गलत है या फिर सिकंदर कभी भारत तक आया ही नहीं ,बस केवल ईरान तक पहोचकर वापस चला गया अशोक के बारे में सुनकर। और यवनी अपने देवता रूपी सम्राट की हार देख नहीं पाए और झेलम नदी के युद्ध की कहानी गड़ दी ,ऐसे तो सिकंदर के सिक्के आज तक कभी भारत में या सिंधु घाटी में मिले नहीं आज तक ।
नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षि शिरोरुबाहवे
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युग धारिणे नमः |
मुकंकरोति वाचालं पंगुंलंघयते गिरीम्
यत्कृपा त्वमहम् वन्दे परमानन्द माधवम्
SANT RAVIDAS :
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
Read more at: http://hindi.oneindia.com/news/2009/01/25/1232837057.html
बुद्ध मत के बुद्ध का नाम पाली साहित्य में गोतम है लेकिन जैन आदिपुराण में
आया है :-
"गौतमदागतो देव: स्वर्गाग्रद गौतमो मत ,तेन प्रोक्तमधीनस्त्व चासो गौतामश्रुति " (दितीय पर्व श्लोक ५३ )
अर्थात महावीर स्वामी १६ वे स्वर्ग से
अवतरित हुए इसलिए उन्हें गौतम कहते है और गौतम की वाणी सुनने से आप का भी नाम गौतम है ,
अर्थात गोतम की वाणी सुनने वाला भी गोतम है और स्वयं गोतम भी गोतम है तो बड़ा संदेहास्पद विषय है कि ई गोतम है कौन? इस दृष्टि से गोतम कोई व्यक्ति विशेष नही है ? गोतम उपाधिनाम है ,
जैन मत की माने तो महावीर स्वामी के शिष्य गणधर ही बुद्ध है :-
आदिनाथ पुराण में आया है :-
" चतुर्भिश्रचमलेर्बोधैरबुद्धतस्व जगद यत:| प्रज्ञापारमित बुद्ध त्वा निराहुरतो बुधा:"
(दितीय पर्व श्लोक ५५ )
हे देव आपने ४ निर्मल ज्ञानो (४ आर्य सत्य ) के द्वारा संसार को जान लिया है तथा आप बुद्धि के पार को प्राप्त हुए है इसलिए संसार आपको बुद्ध कहता है ...
अतः इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि महावीर भी गौतम है और गणधर भी गौतम और सिद्धार्थ भी अत: तीनो बुद्ध है ...
लेकिन असली बुद्ध कौन ? ??
इतना ही नही बुद्ध की दावेदारी अभी खत्म नही होती एक और बुद्ध हमारे सामने है :-
दिगंबर जैन के एक और ग्रन्थ धर्म परीक्षा अमितगत (जैन
हितेषी पुस्तकालय कर्नाटक द्वारा प्रसारित पेज संख्या २५९ की पांति २४ पर उल्लेखित है कि:-
रुष्टश्रवारनाथस्य तपस्वीमोगलायन:|
शिष्य: श्रीपार्श्वनाथस्य विदधेबुद्धदर्शनम ||
पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले वीरनाथ ने रुष्ट हो कर बुद्ध धर्म स्थापित किया |इस प्रकार आप समझ सकते है कि यहा बुद्ध कहे जाने के चार दावेदार है ,
महावीर भी गोतम बुद्ध है , महावीर के शिष्य गणधर गौतम भी बुद्ध है और पार्श्वनाथ के तपस्वी चेले विरनाथ भी बुद्ध है और सिद्धार्थ गोतम भी बुद्ध है
लेकिन असली वाला और वास्तविक बुद्ध कौन है यह प्रश्न ज्यो का त्यों बना हुवा है।
बुद्ध की यह कहानी तो तब और उलझ जाती है जब महावीर और सिद्धार्थ के जीवन के बीच घटी घटनाओ का हम निरीक्षण करते है क्यो की दोनो में इतनी समानता है कि दिमाग झन्ना जाता है की सिद्धार्थ असली बुद्ध है कि महावीर जी ?
आप स्वयं देख लीजिए :-
(१) बुद्ध ने खीर खा कर ज्ञान प्राप्त
किया महावीर ने भी खीर खा कर ही ज्ञान प्राप्त किया।
(२) सिद्धार्थ बिम्बसार के बाग़ में ठहरा था महावीर
भी ठहरे थे।
(३) महवीर जी शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण
बताया गया है बुद्ध का एक भिक्षु भी अग्निहोत्र
ब्राह्मण बताया है।
(४) माहवीर को सांप ने काटा तो दूध निकला सिद्धार्थ
को भी सांप ने काटा तो दूध निकला।
(५) चन्दन वाली नामी स्त्री नेमंगा वती साध्वी को इसलिए डाटा की को सारीरात महावीर के संघ में रही ...ललित विस्तार अनुसार
उसी नामी स्त्री ने मंगावती को इसलिए डाटा की वो सारी रात सिद्धार्थ के संघ मेंर ही |
अब इसे संयोग तो नही कह सकते न ? सिद्धार्थ और महावीर के बीच इस समानता से तो यह स्पष्ट है कि दोनों ही मतों में से किसी एक मत वाले ने दूसरे मत का कॉन्सेप्ट चुराया है , और उस पर अपना लेबल लगा कर मार्किट में उतार दिया है ,
साथ ही इन समानताओं से एक बात तो स्पष्ट है की महावीर भी बुद्ध सिद्ध होते है .. तो सवाल यह बनता है कि :-
( महावीर ,गौतम गणधर,वीरनाथ,सिद्धार्थ में से असली बुद्ध कौन था ?)
पार्श्वनाथ का काल सिद्धार्थ से पहले का है और जैन
ग्रन्थ के अनुसार वीरनाथ ही बुद्ध था जो सिद्धार्थ से पहले का है तो क्या सिद्धार्थ को बुद्ध का लेबल चिपकाने वाले श्रमणों ने साख्य ,चार्वाक दर्शन के अलावा जैन मुनियों के भी कांसेप्ट और मान्यताये चुराई थी
और जो बुद्ध शब्द जैनियो का था वह टाइटल भी भी चुरा लिया हो क्यूंकि सिद्धार्थ के एक गुरु जैन भी थे जिनका नाम उदक रामपुत्र था।
मूर्ति अप्रमाणिक
दूसरा बुद्ध के कांसेप्ट में यह बात प्रमुखता से है कि बुद्ध मत मूर्ति पूजा या मूर्ति के प्रति आस्था का विरोधी मत है किंतु यह उल्टे बुद्ध की हजारों हजार मुर्तिया आप को मिल जाती है खुदाई में मतलब बुद्ध की ब्रांडिंग और मार्केटिंग का सबसे सुगम साधन था मूर्ति निर्माण , इन्ही मूर्तियों के द्वारा बुद्ध के काल्पनिक पात्र को जिंदा किया गया ,, अन्यथा अगर बुद्ध सच मे होते तो उनके सिधान्तो के खिलाफ उन्ही की मूर्ति क्यो बनाई जाती , और तो और बुद्ध की मूर्ति वाला बुद्ध सच मे कौन है यह कहना मुस्किल है , अगर हम यह सिद्धार्थ की मान भी ले तो सिद्धार्थ से पूर्व बुद्ध और बुद्धत्व की बात जैन मत में हो चुकी है विरनाथ को सिद्धार्थ से पहले बुद्ध कहा जा चुका है और बुद्ध मत का संस्थापक भी ,, साथ ही सिद्धार्थ बुद्ध और महावीर में इतनी समानताएं है जो इस बात का स्पष्टीकरण नही देती की वास्तव में यह घटाए किसके साथ घटित हुई और वास्तव में बुद्ध कौन है।
विभिन्न 28 बुद्ध होने की थ्योरी जैन धर्म मे हुए तीर्थकरों के होने से चुराई गयी है देखा जाये तो बिन्दुसार जैन सम्प्रदायवादी थे और चन्द्रगुप्त मौर्य भी जीवन के अन्तिम् समय जैन मत का अनुवाई माना जाता है तो निश्चय ही अशोक को जैन मतानुयायी ही होना चाहिये परन्तु बौद्ध साहित्य मे कलिंग युद्ध से पूर्व उसे सनातन धर्मी बताया गया जो प्रमाणिक नही लगता।
इतना ही नही बुद्ध की पहले पहल मूर्ति कनिष्क के काल मे बनी इससे पूर्व बुद्ध की मूर्ति का भी कोई अस्तित्व नही था , मूर्ति भी पूर्ण काल्पनिक और संदेहास्पद है कोई की भारतीय परिवेश में बुद्ध के तरह बाल नाक कान और कद काठी का व्यक्ति न पहले देखने को मिला है न बाद में , अग्रेजो ने तो बुद्ध के बाल कान और शारीरिक बनावट के आधार पर युथोपियन कहा है।
जन्म काल और राज्य का संदेहास्पद
नेपाल में लुम्बिनी में 2013 में पुरातत्वविदो को एक छोटा मंदिर मिला है जिसकी छत नहीं थी और उसके मध्य में बोधि वृक्ष था ।
पुरातत्वविदो के अनुसार कार्बन डेटिंग से उस मंदिर के निर्माण का काल 550 ईसापूर्व आया है ,यानि की विश्व का सबसे प्राचीन बोध मंदिर ।माना जाता था की पुरे भारतीय उप महाद्वीप पर बोद्ध मंदिर और मठो का निर्माण गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बने थे ।
अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद कई मंदिर बनवाये थे और गुप्त राजाओ ने भी इसमें अपना योगदान दिया था ।मध्यधारा के इतिहासकार मानते है कि 480 ईसापूर्व में गौतम बुद्ध जन्मे थे और कुछ के अनुसार 560 ईसापूर्व ।पर यदि उस मंदिर का काल 550 ईसापूर्व है तो या तो वह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवित रहते बना या फिर उनकी मृत्यु के बाद ।
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार तो बोद्ध मंदिर और मठ तो गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद हुआ और यह मैं पहले ही बता चूका हु यानि कि गौतम बुद्ध जन्मे होंगे 630 ईसापूर्व में । गौतम बुद्ध 80 वर्ष जिए तो यदि उनकी मृत्यु 550 ईसापूर्व के आस पास हुई तो 550+80 होगा 630 ।
मैं पुराणों में वर्णित गौतम बुद्ध के जन्म काल को मानता हु जो कि है 1800 ईसापूर्व ।
गौतम बुद्ध जन्म - ५६३ ईशा पूर्व
सिद्धार्थ बुद्ध - १८८७ ईशा पूर्व
अब यही सच आपके समझने के लिए काफी होना चाहिए, की गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार नही है । और जो विष्णु के अवतार सिद्धार्थ है , उनके जन्म और गौतम बुद्ध के जन्म में कितना फर्क है ।।
भारतीय इतिहास के शोध में यह एक भयंकर भूल है । क्यो की यह सिद्ध करने के प्रबल साक्ष्य है कि भगवान विष्णु के अवतार सिद्धार्थ का जन्म १८८७ में हुआ । इसका अर्थ यह हुआ कि जिस गौतम को विष्णु का अवतार आज तक भीमटे मानते आए है, वो मात्र एक साधरण सन्यासी था, वो भी भटका हुआ । दोनो के बीच का अंतराल ही 1300 वर्षो का है ।
फिर प्रश्न उठता है, की भारत के इतिहास में इतनी भयंकर भूल कैसे हुई? तो इसका जवाब है कि भारत 1000 साल विदेशियों के गुलाम तो रहा है, साथ मे आजादी के बाद भी विश्वासघाती कांग्रेस और अन्य वामपंथी गद्दार यही रह गए, ओर वे ही इस देश के भाग्य निर्माता बन बेठे ।।
अंग्रेज लोगो को मानव सृष्टि के सम्बंध में बहुत अल्पज्ञान था , वे सोचते थे कि पृथ्वी को बने केवल कुछ हजार वर्ष ही तो हुए है । इसी प्रकार उन्होंने कल्पना कर दी कि भारतीय इतिहास भी 4-5 हजार वर्षों से अधिक पुराना नही । ओर उन्होंने इतिहास की हर घटना को तोड़ मरोड़ दिया ।।यह पोस्ट कर मैं यह बताना चाहता हु कि पश्चिमी मान्यता गौतम बुद्ध को लेकर और भारतीय सभ्यता को लेकर काफी गलत है ।
अब शुरू होती है असली गड़बड़
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार गौतम बुद्ध की मृत्यु के 218 वर्ष बाद अशोक मौर्य का राज्याभिषेक हुआ था और पश्चिमी मान्यता अनुसार अशोक का राज्याभिषेक 268 ईसापूर्व में हुआ ।यानि कि यदि गौतम बुद्ध कि मृत्यु 550 ईसापूर्व में हुई तो अशोक का राज्याभिषेक 332 ईसापूर्व में हुआ । साथ ही अशोक जब सम्राट बना तो उसके चार वर्ष बाद उसका राज्याभिषेक हुआ था अर्थात अशोक 336 ईसापूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा ।
अब बड़ी गड़बड़ यह है कि सिकंदर ने भारत पर आक्रमण 326 ईसापूर्व में किया तो उस समय भारत पर शासन करने वाला सम्राट नन्द न होकर अशोक था । सिकंदर को तब भारत के सम्राट के बारे में बताया जाता है कि भारत का सम्राट एक निर्दयी और क्रूर सम्राट है और प्रजा में अप्रिय भी है ।
अब कुछ लोग कहेंगे कि कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक एक क्रूर शासक था और प्रजा उसे चंदाशोक कहती थी पर यह गलत है ।
अशोक का साम्राज्य ईरान तक था न कि आज के राजस्थान तक जैसा कि यूनानी लेख कहते है ।
अब या तो पश्चिमी विद्वानों की तिथिया गलत है या फिर सिकंदर कभी भारत तक आया ही नहीं ,बस केवल ईरान तक पहोचकर वापस चला गया अशोक के बारे में सुनकर। और यवनी अपने देवता रूपी सम्राट की हार देख नहीं पाए और झेलम नदी के युद्ध की कहानी गड़ दी ,ऐसे तो सिकंदर के सिक्के आज तक कभी भारत में या सिंधु घाटी में मिले नहीं आज तक ।
सांस्कृतिक टकराव
काठमांडू, 25 जनवरी: बॉलीवुड फिल्म 'चांदनी चौक टू चाइना' में भगवान बुद्ध के जन्म स्थान को भारत बताए जाने को लेकर उठा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अब यह विवाद देश के सबसे पुराने शिक्षण संस्थान त्रिभुवन विश्वविद्यालय तक पहुंच गया है। विश्वविद्यालय में ऐसी पुस्तक पढ़ाई जा रही है, जिसमें उसी गलती को दोहराया जा रहा है, जिसे 'चांदनी चौक टू चाइना' में दिखाया गया है। नेपाली समाचार पत्र 'नया पत्रिका' ने इस संबंध में खबर प्रकाशित की है। समाचार पत्र के अनुसार अमेरिकी लेखक चार्ल्स वॉन डोरेन की पुस्तक 'ए हिस्ट्री ऑफ नॉलेज : पास्ट, प्रजेंट एंड फ्यूचर' की पुस्तक में भी कहा गया है कि बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था, जो बड़ी गलती है। इस पुस्तक को विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग ने स्वीकृति दी है। समाचार पत्र ने लिखा है, "इस समय नेपाल सरकार बुद्ध के जन्म संबंधी गलत संदेश के कारण 'चांदनी चौक टू चाइना' के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा चुकी है, वहीं विश्वविद्यालय में यही गलती दोहराई जा रही है।" समाचार पत्र ने 'त्रिभुवन विश्वविद्यालय पढ़ा रहा है कि बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था' नामक शीर्षक से खबर प्रकाशित की है। वॉन की पुस्तक में कहा गया है कि 563 ईसा पूर्व बुद्ध का जन्म उत्तर भारत के एक राज परिवार में हुआ था, जबकि सच्चाई यह है कि बुद्ध का जन्म दक्षिणी नेपाल के लुंबनी में हुआ था। समाचार पत्र ने विश्वविद्यालय के एक छात्र के हवाले से कहा है कि जब उसने गलती के बारे में शिक्षकों को बताया तो उन्होंने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रमुख कृष्णचंद्र शर्मा ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी और यदि यह गलत है तो पाठ्यक्रम से वॉन की पुस्तक हटा दी जाएगी। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
निष्कर्ष :
महावीर, सिद्धार्थ, गणधर, वीरनाथ को गौतम बुद्ध कहा गया यानि इन चारो ने बुद्धत्व पा लिया है इसलिए ये बुद्ध कहलाये |
गौतम बुद्धत्व अवस्था, महावीर से पाए गए ज्ञान को गणधर ने शिक्षा के रूप में सहेज दिया |भगवान् महावीर के शिष्य गणधर ( गौतम बुद्ध अवस्था प्राप्त ) की शिक्षा को वीरनाथ ने बुद्धत्व के प्रचार के लिए उपयोग किया | वीरनाथ ने भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में स्थापित किया | जिसमे उन्होंने महावीर के परम शिष्य गणधर का ज्ञान, धर्म, बुद्धत्व मार्ग की शिक्षा का प्रसार किया | जिससे गौतम बुद्धत्व प्राप्त हो सके | अतः इस प्रकार भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में जाना गया |
काठमांडू, 25 जनवरी: बॉलीवुड फिल्म 'चांदनी चौक टू चाइना' में भगवान बुद्ध के जन्म स्थान को भारत बताए जाने को लेकर उठा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अब यह विवाद देश के सबसे पुराने शिक्षण संस्थान त्रिभुवन विश्वविद्यालय तक पहुंच गया है। विश्वविद्यालय में ऐसी पुस्तक पढ़ाई जा रही है, जिसमें उसी गलती को दोहराया जा रहा है, जिसे 'चांदनी चौक टू चाइना' में दिखाया गया है। नेपाली समाचार पत्र 'नया पत्रिका' ने इस संबंध में खबर प्रकाशित की है। समाचार पत्र के अनुसार अमेरिकी लेखक चार्ल्स वॉन डोरेन की पुस्तक 'ए हिस्ट्री ऑफ नॉलेज : पास्ट, प्रजेंट एंड फ्यूचर' की पुस्तक में भी कहा गया है कि बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था, जो बड़ी गलती है। इस पुस्तक को विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग ने स्वीकृति दी है। समाचार पत्र ने लिखा है, "इस समय नेपाल सरकार बुद्ध के जन्म संबंधी गलत संदेश के कारण 'चांदनी चौक टू चाइना' के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा चुकी है, वहीं विश्वविद्यालय में यही गलती दोहराई जा रही है।" समाचार पत्र ने 'त्रिभुवन विश्वविद्यालय पढ़ा रहा है कि बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था' नामक शीर्षक से खबर प्रकाशित की है। वॉन की पुस्तक में कहा गया है कि 563 ईसा पूर्व बुद्ध का जन्म उत्तर भारत के एक राज परिवार में हुआ था, जबकि सच्चाई यह है कि बुद्ध का जन्म दक्षिणी नेपाल के लुंबनी में हुआ था। समाचार पत्र ने विश्वविद्यालय के एक छात्र के हवाले से कहा है कि जब उसने गलती के बारे में शिक्षकों को बताया तो उन्होंने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रमुख कृष्णचंद्र शर्मा ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी और यदि यह गलत है तो पाठ्यक्रम से वॉन की पुस्तक हटा दी जाएगी। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
निष्कर्ष :
महावीर, सिद्धार्थ, गणधर, वीरनाथ को गौतम बुद्ध कहा गया यानि इन चारो ने बुद्धत्व पा लिया है इसलिए ये बुद्ध कहलाये |
गौतम बुद्धत्व अवस्था, महावीर से पाए गए ज्ञान को गणधर ने शिक्षा के रूप में सहेज दिया |भगवान् महावीर के शिष्य गणधर ( गौतम बुद्ध अवस्था प्राप्त ) की शिक्षा को वीरनाथ ने बुद्धत्व के प्रचार के लिए उपयोग किया | वीरनाथ ने भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में स्थापित किया | जिसमे उन्होंने महावीर के परम शिष्य गणधर का ज्ञान, धर्म, बुद्धत्व मार्ग की शिक्षा का प्रसार किया | जिससे गौतम बुद्धत्व प्राप्त हो सके | अतः इस प्रकार भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में जाना गया |
अतः इसप्रकार से भगवान् महावीर ने गौतम बुद्ध के रूप में ख्याति पायी |
नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षि शिरोरुबाहवे
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युग धारिणे नमः |
मुकंकरोति वाचालं पंगुंलंघयते गिरीम्
यत्कृपा त्वमहम् वन्दे परमानन्द माधवम्
SANT RAVIDAS :
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
ज्ञातव्य :ये तथ्यों पर आधारित लेख है | शिव ही जाने सत्य क्या है |
हरि ॐ तत्सत |
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