"मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी!
इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए। "- रानी दुर्गावती!
इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से वर्णित अदम्य साहसी वीरांगना महारानी दुर्गावती का बलिदान!
अकबर ने सन 1563 ई० में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया!
यह समाचार मिलते ही रानी दुर्गावती ने अपनी व्यूह रचना आरंभ कर दी!
सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं!
अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा दिया और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी!
रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया एक पहाड़ की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावतीका सामना हुआ!
बडे आवेशसे युद्ध हुआ मुगल सेना विशाल थी!
उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे!
परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की!
इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित कर दिया!
आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ!
अंत में वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगौरगढ पर घेरा डाला!
परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई यह समाचार पाते ही आसफखान ने रानी का पीछा किया!
पुनः युद्ध आरंभ हो गया दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची!
रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं इतनेमें रानी के पुत्र वीर नारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई!
सैनिक भागने लगे रानी के पास केवल 300 सैनिक थे!
उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होने पर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी!
उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की!
परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए”
अंत में घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा“अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है!
परंतु हमारे शरीरका नख भी शत्रुके हाथ न लगे यही हमारी अंतिम इच्छा है!
इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए!
हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”!
परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला ली!
वह दिन था 24 जून 1564 का!
इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वह झूझती रही!
गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का शासन था जो मुगलोंने नष्ट किया!
और उस महान पराक्रमी माँ दुर्गा की साक्षात प्रतिरूप रानी दुर्गावती का अंत हुआ!
इस महान वीरांगना को हमारा शत शत नमन!
जय भवानी
जय मातृभूमि
इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए। "- रानी दुर्गावती!
इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से वर्णित अदम्य साहसी वीरांगना महारानी दुर्गावती का बलिदान!
अकबर ने सन 1563 ई० में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया!
यह समाचार मिलते ही रानी दुर्गावती ने अपनी व्यूह रचना आरंभ कर दी!
सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं!
अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा दिया और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी!
रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया एक पहाड़ की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावतीका सामना हुआ!
बडे आवेशसे युद्ध हुआ मुगल सेना विशाल थी!
उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे!
परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की!
इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित कर दिया!
आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ!
अंत में वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगौरगढ पर घेरा डाला!
परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई यह समाचार पाते ही आसफखान ने रानी का पीछा किया!
पुनः युद्ध आरंभ हो गया दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची!
रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं इतनेमें रानी के पुत्र वीर नारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई!
सैनिक भागने लगे रानी के पास केवल 300 सैनिक थे!
उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होने पर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी!
उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की!
परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए”
अंत में घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा“अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है!
परंतु हमारे शरीरका नख भी शत्रुके हाथ न लगे यही हमारी अंतिम इच्छा है!
इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए!
हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”!
परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला ली!
वह दिन था 24 जून 1564 का!
इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वह झूझती रही!
गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का शासन था जो मुगलोंने नष्ट किया!
और उस महान पराक्रमी माँ दुर्गा की साक्षात प्रतिरूप रानी दुर्गावती का अंत हुआ!
इस महान वीरांगना को हमारा शत शत नमन!
जय भवानी
जय मातृभूमि
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