विश्वजगत के लिए वेद अपने आप मे बड़ी पहेली बने हुए है । वे क्या है, किंतने है, उनकी रचना या संगलन किसने किया, वेद कब रचे गए, या प्रकट हुए उनका विषय क्या है, यह सब बात दिमाग़ में आती है । इसके उत्तर भी दिए जाते है, लेकिन फिर भी समाधान नही मिलता ।।
वेद क्या है ?
इस विराट विश्व की समुचित समस्त यंत्रणा का ज्ञान भंडार ही वेद कहलाते है । "अनंता वै वेदाः" ऐसा वचन है ।। इस विराट विश्व का कर्ता-धर्ता ओर निर्माता ईश्वर उर्फ देव उन्ही के द्वारा वेद नामक ज्ञान भंडार मानव को प्राप्त हुआ । अब कुछ लोग यह सोचेंगे कि की आध्यात्मिक चमत्कार के रूप में इसे इतिहास में कैसे स्थान दे सकते है ?
तो उन्हें हम आस्तिक लोगो का यह कहना है :- कोटि ब्रह्मण्ड वाला यह विश्व क्या अपने आप मे एक चमत्कार नही है ? उसमे अनेक पीढियां निर्माण होना और गायब होना क्या एक चमत्कार नही है ? अंतरिक्ष मे निराधार घूमने वाली पृथ्वी को हम स्थिर ओर समतल समझकर जीवन बिताते हैं - क्या यह एक चमत्कार नही है ? जब ऐसे ऐसे चमत्कार विश्व मे है, तो वेदों का ईश्वर द्वारा दिया जाना कौनसी बड़ी बात है ? ऐसी ही एक बात पर आर्य समाजी मूर्ख मेरा मज़ाक बना रहे थे, की धरती शेषनाग पर टिकी है, तो शेषनाग किसपर टिका है ? तो जवाब है, उसी चमत्कार पर शेषनाग टिका है ? धरती कहीं टिकी है ही कहाँ, वह तो घूम रही है । लेकिन वेदों का विस्तृत वर्णन भी दिया जा रहा है --
वेद और देव
" देव और वेद " इन दो शब्दो पर आप ध्यान केंद्रित करें । दोनो एक दूसरे के पूरक है, देव यानी दिव - दिव यानी " प्रकाशमान " । देव वह होते है, जो स्वयं प्रकाशमान ऊर्जा के चेतना के अमर पुंज होते है । देवदत्त ज्ञान भंडार यानि वेद । अतः देवो में जो ज्ञान और तेज है, वही वेदों में है । अतः वेदों में दिव्य तेज है, क्यो की वह वेदवाणी है ।
वेद किसी को समझ मे नही आते
आप आजकल आर्य नमाज़ियों को कहते सुनते होंगे, वेद पढ़ो, वेद पढ़ो, दयानन्द ने उसे ट्रांसलेट कर दिया है खाना पीना छोड़ो वेद पढ़ो । वैदिक बनो । क्या देववाणी पढ़कर एक भी आर्य नमाजी ने कोई आविष्कार किया ?
सही बात यह है कि वेद ज्ञान के भंडार है, लेकिन किसी को समझ नही आते । यह पढ़कर आपको आश्चर्य होगा, लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नही । यंत्र की रचना ओर कार्यतंत्र को प्रस्तुत करने वाली पुस्तिका सबके समझ के बाहर की बात होना, स्वाभाविक सी बात है । जो व्यक्ति मोटर, रेफ्रिजरेटर , रेडियो, आदि पुस्तक साथ ले जाते है, उसे ऐसे ही खुली छोड़ देते है, दूसरा आदमी अगर चाहे तो उसे समझ नही आता, तो भला अनादि, अनन्तः ओर असीम विश्व की यंत्रणा के सम्पूर्ण ज्ञान वाले वेद किसी मानव को भला कैसे समझ आ सकते है ?
वेदों के भाष्य आस्क सायणाचार्य , दयाननद सरस्वती, स्वामी अरविंद घोष , विविध विश्वविद्यालयों के वेद पंडित , विविध वेद शोधक संस्थान सबके भाष्य एक दूसरे से अलग है ।
इसका कारण यह है कि अनादि , अनन्तः , असीम विश्व की समस्त कार्यप्रणाली का वेदों का ब्यौरा वेदों में सक्षम सांकेतिक भाषा मे है । 65 कलाओं के सूत्र का पूर्ण ज्ञान वेदों में निहित है । इन सारी कलाओं को सुलझाने वाला, विश्व मे कोई मानव हो ही नही सकता ।
वेदों का किसी भी अन्य भाषा मे अनुवाद करना उचित नही, उदारहण के तौर पर " धातु" शब्द ले । इसके विभिन्न अर्थ होंगे, एक अर्थ होगा पुरुष का वीर्य , एक का अर्थ होगा लोहा या खनिज , तीसरा अर्थ होगा विधाता का । ऐसे ओर भी कई अर्थ है , जो वेदों में अभिप्रेत है । आयुर्वेदचार्य उसे पुरुष का वीर्य समझेंगे, खनिजशास्त्री उसे लोहा या खनिज समझेंगे, ओर दर्शनशास्त्री उसे विधाता समझेंगे ।
वेद क्या है ?
इस विराट विश्व की समुचित समस्त यंत्रणा का ज्ञान भंडार ही वेद कहलाते है । "अनंता वै वेदाः" ऐसा वचन है ।। इस विराट विश्व का कर्ता-धर्ता ओर निर्माता ईश्वर उर्फ देव उन्ही के द्वारा वेद नामक ज्ञान भंडार मानव को प्राप्त हुआ । अब कुछ लोग यह सोचेंगे कि की आध्यात्मिक चमत्कार के रूप में इसे इतिहास में कैसे स्थान दे सकते है ?
तो उन्हें हम आस्तिक लोगो का यह कहना है :- कोटि ब्रह्मण्ड वाला यह विश्व क्या अपने आप मे एक चमत्कार नही है ? उसमे अनेक पीढियां निर्माण होना और गायब होना क्या एक चमत्कार नही है ? अंतरिक्ष मे निराधार घूमने वाली पृथ्वी को हम स्थिर ओर समतल समझकर जीवन बिताते हैं - क्या यह एक चमत्कार नही है ? जब ऐसे ऐसे चमत्कार विश्व मे है, तो वेदों का ईश्वर द्वारा दिया जाना कौनसी बड़ी बात है ? ऐसी ही एक बात पर आर्य समाजी मूर्ख मेरा मज़ाक बना रहे थे, की धरती शेषनाग पर टिकी है, तो शेषनाग किसपर टिका है ? तो जवाब है, उसी चमत्कार पर शेषनाग टिका है ? धरती कहीं टिकी है ही कहाँ, वह तो घूम रही है । लेकिन वेदों का विस्तृत वर्णन भी दिया जा रहा है --
वेद और देव
" देव और वेद " इन दो शब्दो पर आप ध्यान केंद्रित करें । दोनो एक दूसरे के पूरक है, देव यानी दिव - दिव यानी " प्रकाशमान " । देव वह होते है, जो स्वयं प्रकाशमान ऊर्जा के चेतना के अमर पुंज होते है । देवदत्त ज्ञान भंडार यानि वेद । अतः देवो में जो ज्ञान और तेज है, वही वेदों में है । अतः वेदों में दिव्य तेज है, क्यो की वह वेदवाणी है ।
वेद किसी को समझ मे नही आते
आप आजकल आर्य नमाज़ियों को कहते सुनते होंगे, वेद पढ़ो, वेद पढ़ो, दयानन्द ने उसे ट्रांसलेट कर दिया है खाना पीना छोड़ो वेद पढ़ो । वैदिक बनो । क्या देववाणी पढ़कर एक भी आर्य नमाजी ने कोई आविष्कार किया ?
सही बात यह है कि वेद ज्ञान के भंडार है, लेकिन किसी को समझ नही आते । यह पढ़कर आपको आश्चर्य होगा, लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नही । यंत्र की रचना ओर कार्यतंत्र को प्रस्तुत करने वाली पुस्तिका सबके समझ के बाहर की बात होना, स्वाभाविक सी बात है । जो व्यक्ति मोटर, रेफ्रिजरेटर , रेडियो, आदि पुस्तक साथ ले जाते है, उसे ऐसे ही खुली छोड़ देते है, दूसरा आदमी अगर चाहे तो उसे समझ नही आता, तो भला अनादि, अनन्तः ओर असीम विश्व की यंत्रणा के सम्पूर्ण ज्ञान वाले वेद किसी मानव को भला कैसे समझ आ सकते है ?
वेदों के भाष्य आस्क सायणाचार्य , दयाननद सरस्वती, स्वामी अरविंद घोष , विविध विश्वविद्यालयों के वेद पंडित , विविध वेद शोधक संस्थान सबके भाष्य एक दूसरे से अलग है ।
इसका कारण यह है कि अनादि , अनन्तः , असीम विश्व की समस्त कार्यप्रणाली का वेदों का ब्यौरा वेदों में सक्षम सांकेतिक भाषा मे है । 65 कलाओं के सूत्र का पूर्ण ज्ञान वेदों में निहित है । इन सारी कलाओं को सुलझाने वाला, विश्व मे कोई मानव हो ही नही सकता ।
वेदों का किसी भी अन्य भाषा मे अनुवाद करना उचित नही, उदारहण के तौर पर " धातु" शब्द ले । इसके विभिन्न अर्थ होंगे, एक अर्थ होगा पुरुष का वीर्य , एक का अर्थ होगा लोहा या खनिज , तीसरा अर्थ होगा विधाता का । ऐसे ओर भी कई अर्थ है , जो वेदों में अभिप्रेत है । आयुर्वेदचार्य उसे पुरुष का वीर्य समझेंगे, खनिजशास्त्री उसे लोहा या खनिज समझेंगे, ओर दर्शनशास्त्री उसे विधाता समझेंगे ।
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