Monday, 17 July 2017

अल्लाउद्दीन खिलजी

#अल्लाउद्दीन_खिलजी

मुस्लिम शाशन काल के हजार साल के युग मे जन्म प्रत्येक भारतीय मुस्लिम शाशक चाहे उसका नाम कुछ भी रहा हो, वह अत्याचार और कपट का साक्षात अवतार था । सभी एक दूसरे से बढ़कर शैतान थे । इस सच्चाई को जानने के लिए शाहरुख, आमिर या संजय लीला भंसाली, ओर सेक्युलर लोगो को अपना साम्प्रदायिक चश्मा उतारना होगा । इन्ही में से एक का नाम अलाउद्दीन खिलजी है, जो अपनी भयंकर दुष्टता से साक्षात हिंसक पशु था । अपने चाचा की हत्या कर वह दिल्ली की गद्दी पर बैठा था ।

एक बार अलाउद्दीन खिलजी ने काजी से पूछा, हिन्दुओ के लिए कानून में क्या विधान है ? काजी ने कहा, अगर कर वसूली वाला हिन्दुओ के पास जाकर चांदी मांगे, तो हिन्दुओ का फर्ज है, की उसे सोना दिया जाए, अगर मुसलमान हिन्दुओ के मुँह पर धूल फेंके, तो बिना किसी संकोच ओर हिचकिचाहट के हिन्दुओ को धूल खाने के लिए अपना मुंह खोल देना चाहिए । हिन्दुओ के मुकह पर गंदगी फेंकना, उन्हें अपमानित करना , इस्लाम का गौरव बढ़ाता है । क्यो की अल्लाह काफिरों से नफरत करता है । हिन्दू लोगो को दबाकर रखना हमारा धार्मिक कर्तव्य है , क्यो की वह मुहम्मद पैगम्बर के शत्रु है । पैगम्बर मुहम्मद ने हमे उन्हें हलाल करने, लूट लेने और बन्दी बना लेने की आज्ञा दी है । मतलब एक ही रास्ता, म्रत्यु या इस्लाम !! इस्लाम को अच्छी तरहसे समझने के लिए इस लेख को दो बार पढ़िए !!

1279 में अल्लाउदीन की लुटेरी मुस्लिम सेना हिन्दू क्षेत्र की वार्षिक लूट और नरसंघार पर निकली, बारी गुजरात की थी, अभियान का भार उलूम खान और नुसरत खान पर था , तबाही फैलाने वाली मुस्लिम सेना के सामने अपनी राजधानी अहिल्यावाड को छोड़कर गुजरात के करनराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरी के रामराय के यहां शरण ली । अहिल्यावाड और गुजरात को निर्विरोध लुटा गया । रानी कमलादेवी अन्य नारियो के साथ मुसलमानो के कब्जे में पड़ गयी । सारा गुजरात आक्रमणकारियों का शिकार हो गया । महमूद गजनवी की विजय के बाद पुनर्स्थापित सोमनाथ के शिवलिंग को दिल्ली ले जाकर चलने के बिछा दिया गया । प्रत्येक मुस्लिम शाशक ने बार बार इस कृत्य को दोहराया है। उनके लूटे गए मन्दिर आज भी मस्जिद बने पड़े है।

मुसलमान होते हुए भी बरनी ने यह सत्य ही लिखा है, इस्लाम को छोड़कर किसी अन्य धर्म मे मातृत्व का ऐसा अपमान नही हुआ है । सामूहिक रूप से बार बार बलात्कार , लाखो लोगो के सामने खुले मैदानों में उनके सिर पर उनके बच्चो को काट डालना , ओर ऐसी वीभत्स बर्बरता से मनोरंजन करना , इन मुसलमानो का पुराना शौक था ।

1303 में अल्लाउदीन में चितोड़ पर चढ़ाई कर दी, रति के समान सुंदर सौंदर्य देवी रानी पद्मिनी को पाने की लालसा उस नीच पापी मुसलमान के मन मे थी । मुस्लिम सेना पर भयंकर प्रहार करते हुए राजपूतो ने पापी, दुस्ट मुसलमानो को भारी नुकसान पहुंचाया ।

यह कहा जाता है कि चितोड़ पर प्रथम आक्रमण के दौरान जब अल्लाउदीन खिलजी की जब सारी आशाएं समाप्त हो गयी, तो राणा रत्न सिंह के पास उसने यह संदेश भेजा कि वह रानी पद्मिनी को दर्पण में देखकर ही संतुष्ट हो जाएगा , ओर दिल्ली वापस लौट जाएगा।

दर्पण में एक झलक देखने के बाद उसकी लालसा ओर बढ़ गयी, ओर उसने धोखा देने की गांठ बांध ली । अपने अतिथि की पूरा मान सम्मान करने वाले राजपूतो ने दुर्ग के बाहर तक अल्लाउद्दीन का साथ दिया । राणा रतनसिंह खुद अल्लाहुद्दीन खिलजी के साथ उसे विदा करने तम्बू तक आये । कपटी ओर मायावी अल्लाउदीन ने यहां राणा को उनके अंगरक्षकों के साथ कैद कर लिया , उसके बाद महल में यह संदेशा भिजवा दिया कि यदि रानी पद्मिनी उन्हें ना सौंपी गई, तो सारे साथियो के साथ वह राजा रतनसिंह को तड़पा तड़पा कर मार डालेगा ।

इसके उत्तर में वीर क्षत्रियो ने एक साहसी योजना बनाई, उन्होंने यह समाचार भेजा की अन्य दासियों के साथ पद्मिनी अल्लाउदीन के तम्बू तक पहुंचा दी जाएगी । इसके बाद दासियों के बदले वीर , प्रवीण ओर सहस्त्र राजपूत छिपकर पालकियों में जा बैठे । ९००पालकियों का यह काफिला अल्लाउद्दीन के पड़ाव के पास पहुंचा , ओर अल्लाउद्दीन से यह निवेदन किया, की अंतिम विदाई के लिए पद्मिनी ओर राणा राणा रतनसिंह को मिलने का अवसर दे ।

अपने द्वार पर ९०० राजपूत रमणियों के साथ काम-केली की कल्पना में अत्यंत आनंदित होकर अल्लाउद्दीन ने राणा भीमसिंह को ध्वस्त कर दिया । रतनसिंह जैसे ही राजपूत काफिले के पास पहुँचेज़ चुनिंदा राजपूतो ने उन्हें सुरक्षा घेरे में चित्तौड़ भेज दिया । साथ ही अन्य राजपूत अपने असली रंग में आ गये, ओर " जय एकलिंग " की गर्जना के साथ हिन्दू रोष से अल्लाउद्दीन के पड़ाव पर टूट पड़े ।अनेक शताब्दियों से हिन्दुओ को लूटने बर्बाद करने और अपमानित करने वाले तुर्की , अरबी, अफगानी, आदि गुंडो के सिर धड़ गाजर मूली की तरह काट काट के फेंकने लगे ।

मुस्लिम दुष्टता के के अंधकार में सूर्य की भांति चमकती वीर राजपूतो की देशभक्ति इस मध्यकालीन वीरगाथा में दो वीर नक्षत्रों की भांति चमक उठे । उसी समय वे दोनों वीर पौराणिक हो गए । उनकी देशभक्ति ओर उनका बलिदान राजस्थान के लोक गीतों में अमर हो गया । ये गोरा ओर बादल थे । यह दोनों रतनसिंह की सुरक्षा में अंगरक्षक थे ।

जैसे ही मुसलमानो के पास खबर पहुंची की राणा रतनसिंह भाग रहे है, अल्लाउदीन की सेना उनका पीछा करने लगीथी । इस लड़ाई में जिस भी मुसलमान ने इन दोनों के सामने आने का साहस किया, गौरा ओर बादल ने उन्हें काटकर फेंक दिया । इधर राणा रतनसिंह दुर्ग में प्रविष्ट हुए, उधर रक्त में बहते हुए घावों ओर आघातों के बीच पहाड़ की तरह अडिग यह दोनों वीर संज्ञाहीन होकर दुर्गद्वार पर ही गिर पड़े । देवी कार्य को निष्ठापूर्ण सम्पन्न करने वाली तृप्त स्वर्गीय मुस्कान उन दोनों के अधरों पर क्रीड़ा कर रही थी।

राजपूतो ने पद्मिनी को दर्पण से देखने की अनुमति दे दी थी, यह विचारधारा एकदम बे-सिर -पाँव की अपवाह है। यह अपवाह की कल्पना पापी मुसलमान कवि जायसी ने की थी। राणा रतनसिंह ने अपनी पत्नी पर किसी नीच मुसलमान कज नजर तक नही पड़ने दी । अल्लाउद्दीन ने चितोड़ विजय से निराश होकर आत्मसमर्पण ओर संधि का प्रस्ताव भेजा था । पश्चात्ताप के बहाने वह रतनसिंह से संधि की बात करने अपने तम्बू तक ले आया था । उसने कुरान की कसमें खाई , की उसका इरादा धोखा देना है । हिन्दू सादगी और वीरता की परंपरा नई निभाते हुए इस कपटी मायाजाल में फंस गए । 900 सेनिको के साथ ही उन्हें इंट का जवाब पत्थर से दिया गया ।

इस संग्राम से नाक कटवाकर अल्लाउद्दीन को दिल्ली भाग जाना पड़ा । वह अपने व्यभिचार की धधकती प्यास को बुझाने पुनः पद्मिनी की खोज में दिल्ली से चितोड़ आया, अपने पूर्ववर्ती अभियान में उसने क्षेत्रीय ग्रामीणों को मुसलमान बना दिया था । इन्ही नए मुसलमानो ने अपने ही भाइयो के विरुद्ध युद्ध किया ।

सोमवार 26-5-1303 को चितोड़ का पतन होता है मगर मुस्लिम सेना के दुर्ग में पहुंचने से पहले ही राजपूत रमणीया सती हो गयी । राख में हाथ मलते हुए हताश अल्लाउद्दीन ने हजारों बच्चो का वहां खून बहाया ।।

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