कोई तपस्वी साधु सन्यासी अप्सरा के लिए प्राण नहीं देता है ना लेता है | आज तक सुना है | अप्सरा पाना है तो आज हजार की जान लेना है | अतः हिन्दू एक शूद्रत्व से मोक्षत्व तक का मार्ग है |
ये बातें उसको नहीं समझ में नहीं आएगी जो ७२ हुड के लिए जान देता हो | कभी पढ़ा है की बड़े साधु ने अप्सरा के लिए तप किया है | अप्सरा साधु सन्यासी के तप भंग करने आते थे | लेकिन फिर भी वो हरी के लिए साधना करते है | अतः हर के लिए मरने वाले कामी कापुरुष के मुंह से ये सब बातें अछि नहीं लगती है |
आज दिन रात जो राक्षस मल्लेछ हुड के लिए जान देते और लेते है उसे ऐसी बातें करना शोभा नहीं देता है |
अब सच जाने |
मृत्यु भवन के राजा दो है| काल ( धर्मराज ) और इंद्र
धर्मराज को सब जानते है | जो पापी जीव को दंड देते है |
अब बात करे देवराज इंद्र कि ये भगवान् विष्णु के ही अंश है | जो पालन कार्य में सहायता करते है | भगवान इन्द्र को जीव को हर इन्द्रिय में में वास् माना गया है |
मोक्ष पाने के लिए जीव को पाप और पुण्य से ऊपर उठकर ब्रह्म में लें होना पड़ता है | जब जीव को दुःख और सुख का गति से मुक्ति नहीं मिलती तब तक परमात्मा नहीं मिलता है |
जहाँ धर्मराज बहुत सारा कष्ट देकर जीव की परीक्षा और पवित्रता की जाँच करता है | उसी प्रकार भगवान् इंद्र जीव को सुख और मोक्षता की जाँच करते है | धर्मराज के यम जिस प्रकार जीव को प्रताड़ना देते है | उसीप्रकार भगवान् इंद्र के अप्सरा और उनके देवगन जीव को सुख देते है | जिससे जीव की परीक्षा हो जाये | अगर जीव हर सुख और दुःख में भगवान हरी को नहीं भूलता तो उसे मुक्ति मिल जाती है | मतलब हरिपद प्राप्त होआ है | अप्सरा , यक्ष, गंधर्व ,कामदेव इत्यादि इंद्र के सहायक है |
अतः जीव को काल और इंद्र दोनों की परीक्षा में सफल होना पड़ता है |
स्वर्ग और नर्क दोनों जगह से दुख और सुख भोगने के बाद पुनः जन्म होता है | ये क्रम तबतक चलता है जब तक जीव मोक्ष ना पाले |
किसी भी तपस्वी ऋषि ने अप्सरा पाने के लिए तपस्या नहीं की | किसी ने स्वर्ग पाने के लिए कुछ भी नहीं किया | इन्होने सर्वस्व हरि को दिया और हरि में विलीन हो गया |
कभी कोई तपस्वी इन्द्रासन के लिए तप नहीं करते है | उसे सिर्फ राम चाहिए |
कोई तपस्वी साधु सन्यासी अप्सरा के लिए प्राण नहीं देता है ना लेता है | आज तक सुना है | अप्सरा पाना है तो आज हजार की जान लेना है | अतः हिन्दू एक शूद्रत्व से मोक्षत्व तक का मार्ग है |
ये बातें उसको नहीं समझ में नहीं आएगी जो ७२ हुड के लिए जान देता हो | कभी पढ़ा है की बड़े साधु ने अप्सरा के लिए तप किया है | अप्सरा साधु सन्यासी के तप भंग करने आते थे | लेकिन फिर भी वो हरी के लिए साधना करते है | अतः हर के लिए मरने वाले कामी कापुरुष के मुंह से ये सब बातें अछि नहीं लगती है
ये बातें उसको नहीं समझ में नहीं आएगी जो ७२ हुड के लिए जान देता हो | कभी पढ़ा है की बड़े साधु ने अप्सरा के लिए तप किया है | अप्सरा साधु सन्यासी के तप भंग करने आते थे | लेकिन फिर भी वो हरी के लिए साधना करते है | अतः हर के लिए मरने वाले कामी कापुरुष के मुंह से ये सब बातें अछि नहीं लगती है |
आज दिन रात जो राक्षस मल्लेछ हुड के लिए जान देते और लेते है उसे ऐसी बातें करना शोभा नहीं देता है |
अब सच जाने |
मृत्यु भवन के राजा दो है| काल ( धर्मराज ) और इंद्र
धर्मराज को सब जानते है | जो पापी जीव को दंड देते है |
अब बात करे देवराज इंद्र कि ये भगवान् विष्णु के ही अंश है | जो पालन कार्य में सहायता करते है | भगवान इन्द्र को जीव को हर इन्द्रिय में में वास् माना गया है |
मोक्ष पाने के लिए जीव को पाप और पुण्य से ऊपर उठकर ब्रह्म में लें होना पड़ता है | जब जीव को दुःख और सुख का गति से मुक्ति नहीं मिलती तब तक परमात्मा नहीं मिलता है |
जहाँ धर्मराज बहुत सारा कष्ट देकर जीव की परीक्षा और पवित्रता की जाँच करता है | उसी प्रकार भगवान् इंद्र जीव को सुख और मोक्षता की जाँच करते है | धर्मराज के यम जिस प्रकार जीव को प्रताड़ना देते है | उसीप्रकार भगवान् इंद्र के अप्सरा और उनके देवगन जीव को सुख देते है | जिससे जीव की परीक्षा हो जाये | अगर जीव हर सुख और दुःख में भगवान हरी को नहीं भूलता तो उसे मुक्ति मिल जाती है | मतलब हरिपद प्राप्त होआ है | अप्सरा , यक्ष, गंधर्व ,कामदेव इत्यादि इंद्र के सहायक है |
अतः जीव को काल और इंद्र दोनों की परीक्षा में सफल होना पड़ता है |
स्वर्ग और नर्क दोनों जगह से दुख और सुख भोगने के बाद पुनः जन्म होता है | ये क्रम तबतक चलता है जब तक जीव मोक्ष ना पाले |
किसी भी तपस्वी ऋषि ने अप्सरा पाने के लिए तपस्या नहीं की | किसी ने स्वर्ग पाने के लिए कुछ भी नहीं किया | इन्होने सर्वस्व हरि को दिया और हरि में विलीन हो गया |
कभी कोई तपस्वी इन्द्रासन के लिए तप नहीं करते है | उसे सिर्फ राम चाहिए |
कोई तपस्वी साधु सन्यासी अप्सरा के लिए प्राण नहीं देता है ना लेता है | आज तक सुना है | अप्सरा पाना है तो आज हजार की जान लेना है | अतः हिन्दू एक शूद्रत्व से मोक्षत्व तक का मार्ग है |
ये बातें उसको नहीं समझ में नहीं आएगी जो ७२ हुड के लिए जान देता हो | कभी पढ़ा है की बड़े साधु ने अप्सरा के लिए तप किया है | अप्सरा साधु सन्यासी के तप भंग करने आते थे | लेकिन फिर भी वो हरी के लिए साधना करते है | अतः हर के लिए मरने वाले कामी कापुरुष के मुंह से ये सब बातें अछि नहीं लगती है
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