#अंग्रेजो_की_गुलामी_का_मुख्य_कारण_
#गद्दार_मीर_जाफर
1750 के आते आते लगभग् आधे से ज़्यादा भारत पर अंग्रेज कब्जा कर चुके थे, उस समय बंगाल पर सिरोजुदौला नामक नवाब का शासन था, वह अंग्रेजो के विरोध में उतर आया और 1757 मे अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
उस समय अंग्रेजो के पास सिर्फ 300 सैनिक एवं सिराजुदौला की तरफ से 18000 सैनिक थे
इस युद्ध मे भाग लेने वाले सैनिको की संख्या आज भी भारत की किसी किताब में नही मिलेगी।
यह जानकारी अंग्रेजो के दस्तावेज जो लंदन में है वहां से जुटाई गई।
अंग्रेजो की सेना का सेनापति रोबर्ट क्लाइव था और नबाब
की सेना का सेनापति मीर जाफर था।
अंग्रेजो ने युद्ध से पहले डर की वजह से ब्रिटिश पार्लियामेंट को 2 पत्र लिखे जिसमे और सैनिक भेजने की मांग की गई लेकिन ब्रिटिश आर्मी के ज़्यादातर सैनिक नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ लड़ रहे थे,इसलिए ब्रिटिश पार्लियामेंट ने सैनिक भेजने मे असमर्थता दिखाई।
तब रोबर्ट क्लाइव को मीर जाफर के बारे में पता चला, वह किसी भी तरीके से बंगाल का नवाब बनना चाहता था।
अंग्रेजो ने उसे रिश्वत दी और उससे अपने सैनिको का अंग्रेजी सैनिको के आगे आत्मसमर्पण कराने को कहा।
इसके बदले मे अंग्रेजो ने बंगाल की 95 प्रतिशत सत्ता मीर जाफर को देने का वादा किया।
मीर जाफर राजी हुआ और युद्ध वाले दिन मात्र 20 मिनट में ही युद्ध खत्म हो गया, सेनापति के आदेश से सारी सेना ने अपने हथियार डाल दिये।
अंग्रेजो ने उन 18000 सैनिको को बंदी बनाकर 10 दिन तक भूखा रखा और 11वे दिन उन 18000 सैनिको की हत्या करा दी ,फिर बंगाल के नवाब सिरोजुदौला की भी हत्या करा दी गयी, और पूरा भारत अंग्रेजो के कब्जे में हो गया। यह युद्ध आज भी प्लासी के युद्ध के नाम से आज भी इतिहास में पढ़ाया जाता है।
लेकिन यह जानकारी आजतक किसी भारतीय किताब में नही पढ़ाई गयी
उस मीर जाफर ने यदि ग़द्दारी ना की होती तो इस आज़ादी के लिए हमे 10 लाख स्वतंत्रता सेनानियों को खोना नही पड़ता।
खिलाफत आंदोलन मतलब स्वतन्त्रता संग्राम नहीं सत्ता के खिलाफ अन्दोलन (ज़िहाद) कर ईसलामिक सम्राजय (गजवा हिन्द) बनाना और शरिया लागु करना जैसे सिरिया ईराक ईरान और ज़िन्ना ने पाकिस्तान बनाया |
ये हर समय खिलाफत कि आग में जलते है | पहले ये काफिर मारते है | सुन्नी सत्ता में हो शिया खिलाफत ज़िहाद कर सुन्नी को मारते है | शिया रहे तो सुन्नी खिलाफत करते है | ये हमेशा एक दुसरे को मारकर खिलाफत ज़िहाद करते है |उसके बाद यह ये जाति - उपजाति के खिलाफत ज़िहाद करते है |
मुसलमान दावा करते हैं उन्होनें आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। यह सरासर झूठ है।
उसका मकसद सिर्फ इस्लामी हक़ूमत क़ायम करना था है और रहेगा |
आज़ादी की लड़ाई अंग्रेजों के खिलाफ थी, जो कि क्रिश्चियन अर्थात 'अहल अल किताब' थे। दूसरी ओर काफिर हिन्दू थे।
इस्लाम के अनुसार, यदि लड़ाई 'अहल अल किताब' और काफ़िरों के बीच हो तो मुसलमान 'अहल अल किताब' का साथ देंगे।
और जो लड़ाई मुसलमानों ने लड़ी वह खिलाफ़त थी, न कि आज़ादी की लड़ाई।
खिलाफ़त का अर्थ अंग्रेजों की खिलाफ़त (विरोध) नहीं है जैसा कि झूठे इतिहासकार बताते हैं।
खिलाफ़त का अर्थ, खलीफ़ा की इस्लामी हक़ूमत क़ायम करना है।
यह वही खिलाफ़त थी जिसे स्थापित करने के लिये मुसलमानों नें निहत्थे अंग्रेज आदमियों, औरतों और बच्चों को चर्च में तलवारों से काट डाला था।
इसका आज़ादी की लड़ाई से कोई सम्बंध नहीं है।
यह ठीक वैसी ही खिलाफ़त थी |जैसे खिलाफ़त कर ज़िन्ना ने इस्लामिक रिपबलिक पाकिस्तान बनाया | आज 'इस्लामिक स्टेट' (ISIS) की खिलाफ़त इराक और सीरिया में चल रही है।
1965 में जब पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था उस वक्त मुस्लिम रेजिमेंट और मुस्लिम राईफल्स को हमला करने के आदेश जारी किये उस वक्त मुस्लिम रेजिमेंट और मुस्लिम राईफल्स ने पाकिस्तान पर हमला करने से साफ़ मना कर दिया था और लगभग बीस हज़ार मुस्लिम सेना ने पाकिस्तान के सामने अपने हथियार दाल दिए थे जिस वजह से उस वक्त भारत को काफि मुश्किलों सामना करना पड़ा था क्यूँ की मुस्लिम राईफल्स और मुस्लिम रेजिमेंट के ऊपर बहुत ज्यादा यकीन कर के इनको भेजा गया था लेकिन इसके बाद इन दोनों को हटा दिया गया उसके बाद 1971 में पाकिस्तान के साथ फिर युद्ध हुआ उस वक्त सेना में एक भी मुस्लिम नहीं था उस वक्त भारत ने पाकिस्तान के नब्बे हज़ार सेना के हथियार डलवा कर उनको बंदी बना लिया था और लिखित तौर पर आत्मसमर्पण करवाया था , तब से लेकर आज तक भारतीय सेना में मुस्लिम रेजिमेंट या मुस्लिम राईफल्स नाम की कोई सेना नही है ।
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