आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् ।
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ॥
जिस प्रकार आकाश से गिरा जल विविध नदीयों के माध्यम से अंतिमत: सागर से जा मिलता है उसी प्रकार सभी देवताओं को किया हुवा उपासना/नमस्कार एक ही परमेश्वर केशव को प्राप्त होता है ।
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ॥
जिस प्रकार आकाश से गिरा जल विविध नदीयों के माध्यम से अंतिमत: सागर से जा मिलता है उसी प्रकार सभी देवताओं को किया हुवा उपासना/नमस्कार एक ही परमेश्वर केशव को प्राप्त होता है ।
मौसल पर्व
यादव-राजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मद्य-मांस का सेवन भी करने लगे। परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे।
एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ वृष्णिवंशीय बालकों, जिनमें कृष्ण पुत्र साम्ब भी थे ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारकापुरी में आए रुद्र अवतार दुर्वासा मुनि के रूप व दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगे।
अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को कुष्ठ रोगी होने का शाप दिया। फिर भी साम्ब नहीं माने और वही कृत्य दोहराया। तब दुर्वासा मुनि के एक और शाप से साम्ब से लोहे का एक मूसल पैदा हुआ, जो अंतत: यदुवंश की बर्बादी और अंत का कारण बना।साम्ब के पेट से निकले मूसल को जब भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से रगड़ा गया था तो उसके चूर्ण को इसी तीर्थ के तट पर फेंका गया था जिससे उत्पन्न हुई झाड़ियों को यादवों ने एक-दूसरे को मारना शुरू किया था। ॠषि-शापवश साम्ब के उदर से मुसल की उत्पत्ति तथा समुद्र-तट पर चूर्ण करके फेंके गये मुसलकणों से उगे हुए सरकण्डों से यादवों का आपस में लड़कर विनष्ट हो गया |समुद्र द्वारा द्वारकापुरी को डुबो देने का वर्णन है। इन्हीं झाड़ियों ने तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों का काम किया ओर सारे प्रमुख यदुवंशियों का यहां विनाश हुआ। महाभारत के मौसल पर्व में इस युद्ध का रोमांचकारी विवरण है।
मुसलमान की उतपत्ति
मूसल द्वारा विस्थापित व्यक्तियों को "मुसलमान " अथवा मुसलमीन कहते है ।।
इस्लामी धर्म की शब्दावली वैदिक मूल धर्म की है , क्यो की मुस्लिम पूर्व युग के अरबवासी लोग भी वैदिक संस्कृति को मानने वाले लोग ही थे । सबसे बड़ी बात, उनके आराध्य अल्लाह का नाम ही कई संस्कृत ग्रन्थो में है, यह देवी का सूचक है ।
मुसलमान शब्द का कुरान में कहीं भी , कोई भी शाब्दिक अर्थ नही बताया गया है । फिर मुहम्मदी लोग मुसलमान यानी मुस्लिम नाम से क्यो पुकारे जाते है ? लेकिन यह शब्द आपको पुराण में मिल जाएगा । यह शब्द महाभारत के महाग्रन्थ में पाया जाता है । इसका एक अध्याय मौसल पर्व के नाम से है । अभी अभी ISIS द्वारा एक शहर को इराक़ी सेना ने आजाद करवाया था ! क्या नाम था उसका ? मौसल -- आपने गौर किया वह शब्द तो आपके धर्म ग्रन्थ में भी है ।
महाभारत युद्ध के पश्चात यादव लोगो को अपना द्वारिका साम्राज्य चारो ओर बिखरे पड़े अप्रयुक्त आवनींक के विस्फोटों तथा समुद्र की बाढ़ द्वारा क्षेत्र में जल प्लावन के कारण त्याग देना पड़ा । अब वहां जलप्रलय आया था, इसका प्रमाण यह है, की महाभारत काल की द्वारिका आज भी समुद्र में डूबी पड़ी है । जिसे ढूंढा भी जा चुका है ।।
उन प्रक्षेपणास्त्रो को संस्कृत भाषा मे "मूसल " कहते है । मूसल द्वारा विस्थापित व्यक्तियों को "मुसलमान " अथवा मुसलमीन कहते है ।।
इन लोगो यदुओं - यादवों के उपनाम सेमाइट्स को अर्थात भगवान श्याम उर्फ कृष्ण की प्रजा को अपना पैतृक प्रदेश द्वारिका छोड़कर जाना पड़ा , ओर यह लोग भटकते भटकते सऊदी अरब, जॉर्डन , फिलिस्तीन, इराक़, ईरान, तुर्कस्थान , मिस्र , रूस आदि में फैलते गए ।
यहूदी भी एक प्रकार से मुसलमान अर्थात मूसल द्वारा विस्थापित ही थे । महाभारत महाकाव्य में मौसल पर्व अर्थात "मिसाइल प्रक्षेपणास्त्र " अध्याय में उस महाविनाश का विवरण दिया गया है , जो अपने भु-क्षेत्र में इधर उधर बिखरे पड़े अप्रयुक्त युद्ध मिसाइलों से बालोचित शैतानी पूर्ण अबोध भाव मे यदु बालको ने शस्त्रों से छेड़खानी करके महाविनाश को आमंत्रण दे दिया था ।
कुरान में कहीं भी उल्लेखित न होने पर भी मुसलमान शब्द मुहम्मदी शब्द का प्रयाय बना रहा , क्यो की वे यादव अर्थात यहूदी जो यातना ओर अत्याचार द्वारा मुहम्मदी बन जाने के लिए मजबूर कर दिए गए, उन्होंने मुहम्मद पूर्व अपनी पहचान " मुसलमान " के रूप में अर्थात मिसाइलों के विस्फोट के रूप में विस्थापित हुए व्यक्तियों के रूप में बनाई रखी ।।
नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षि शिरोरुबाहवे
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युग धारिणे नमः |
मुकंकरोति वाचालं पंगुंलंघयते गिरीम्
यत्कृपा त्वमहम् वन्दे परमानन्द माधवम्
सन्त भगवान रविदास
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
ज्ञातव्य :ये तथ्यों पर आधारित लेख है | शिव ही जाने सत्य क्या है |
हरि ॐ तत्सत |
यादव-राजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मद्य-मांस का सेवन भी करने लगे। परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे।
एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ वृष्णिवंशीय बालकों, जिनमें कृष्ण पुत्र साम्ब भी थे ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारकापुरी में आए रुद्र अवतार दुर्वासा मुनि के रूप व दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगे।
अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को कुष्ठ रोगी होने का शाप दिया। फिर भी साम्ब नहीं माने और वही कृत्य दोहराया। तब दुर्वासा मुनि के एक और शाप से साम्ब से लोहे का एक मूसल पैदा हुआ, जो अंतत: यदुवंश की बर्बादी और अंत का कारण बना।साम्ब के पेट से निकले मूसल को जब भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से रगड़ा गया था तो उसके चूर्ण को इसी तीर्थ के तट पर फेंका गया था जिससे उत्पन्न हुई झाड़ियों को यादवों ने एक-दूसरे को मारना शुरू किया था। ॠषि-शापवश साम्ब के उदर से मुसल की उत्पत्ति तथा समुद्र-तट पर चूर्ण करके फेंके गये मुसलकणों से उगे हुए सरकण्डों से यादवों का आपस में लड़कर विनष्ट हो गया |समुद्र द्वारा द्वारकापुरी को डुबो देने का वर्णन है। इन्हीं झाड़ियों ने तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों का काम किया ओर सारे प्रमुख यदुवंशियों का यहां विनाश हुआ। महाभारत के मौसल पर्व में इस युद्ध का रोमांचकारी विवरण है।
मुसलमान की उतपत्ति
मूसल द्वारा विस्थापित व्यक्तियों को "मुसलमान " अथवा मुसलमीन कहते है ।।
इस्लामी धर्म की शब्दावली वैदिक मूल धर्म की है , क्यो की मुस्लिम पूर्व युग के अरबवासी लोग भी वैदिक संस्कृति को मानने वाले लोग ही थे । सबसे बड़ी बात, उनके आराध्य अल्लाह का नाम ही कई संस्कृत ग्रन्थो में है, यह देवी का सूचक है ।
मुसलमान शब्द का कुरान में कहीं भी , कोई भी शाब्दिक अर्थ नही बताया गया है । फिर मुहम्मदी लोग मुसलमान यानी मुस्लिम नाम से क्यो पुकारे जाते है ? लेकिन यह शब्द आपको पुराण में मिल जाएगा । यह शब्द महाभारत के महाग्रन्थ में पाया जाता है । इसका एक अध्याय मौसल पर्व के नाम से है । अभी अभी ISIS द्वारा एक शहर को इराक़ी सेना ने आजाद करवाया था ! क्या नाम था उसका ? मौसल -- आपने गौर किया वह शब्द तो आपके धर्म ग्रन्थ में भी है ।
महाभारत युद्ध के पश्चात यादव लोगो को अपना द्वारिका साम्राज्य चारो ओर बिखरे पड़े अप्रयुक्त आवनींक के विस्फोटों तथा समुद्र की बाढ़ द्वारा क्षेत्र में जल प्लावन के कारण त्याग देना पड़ा । अब वहां जलप्रलय आया था, इसका प्रमाण यह है, की महाभारत काल की द्वारिका आज भी समुद्र में डूबी पड़ी है । जिसे ढूंढा भी जा चुका है ।।
उन प्रक्षेपणास्त्रो को संस्कृत भाषा मे "मूसल " कहते है । मूसल द्वारा विस्थापित व्यक्तियों को "मुसलमान " अथवा मुसलमीन कहते है ।।
इन लोगो यदुओं - यादवों के उपनाम सेमाइट्स को अर्थात भगवान श्याम उर्फ कृष्ण की प्रजा को अपना पैतृक प्रदेश द्वारिका छोड़कर जाना पड़ा , ओर यह लोग भटकते भटकते सऊदी अरब, जॉर्डन , फिलिस्तीन, इराक़, ईरान, तुर्कस्थान , मिस्र , रूस आदि में फैलते गए ।
यहूदी भी एक प्रकार से मुसलमान अर्थात मूसल द्वारा विस्थापित ही थे । महाभारत महाकाव्य में मौसल पर्व अर्थात "मिसाइल प्रक्षेपणास्त्र " अध्याय में उस महाविनाश का विवरण दिया गया है , जो अपने भु-क्षेत्र में इधर उधर बिखरे पड़े अप्रयुक्त युद्ध मिसाइलों से बालोचित शैतानी पूर्ण अबोध भाव मे यदु बालको ने शस्त्रों से छेड़खानी करके महाविनाश को आमंत्रण दे दिया था ।
कुरान में कहीं भी उल्लेखित न होने पर भी मुसलमान शब्द मुहम्मदी शब्द का प्रयाय बना रहा , क्यो की वे यादव अर्थात यहूदी जो यातना ओर अत्याचार द्वारा मुहम्मदी बन जाने के लिए मजबूर कर दिए गए, उन्होंने मुहम्मद पूर्व अपनी पहचान " मुसलमान " के रूप में अर्थात मिसाइलों के विस्फोट के रूप में विस्थापित हुए व्यक्तियों के रूप में बनाई रखी ।।
मक्का का काबा जग्गनाथ मन्दिर
पूरी के जगन्नाथ मंदिर का ध्वज आपने अगर देखा हो, तो वही अर्धचंद्रमा ओर तारो का ध्वज है, लेकिन यह भगवावस्त्र पर रेखांकित है। ऐसा ही एक जग्गनाथ मंदिर सऊदी अरब में था, जिसे आज काबा कहते है ।
सऊदी अरब ने यह भंडा फुट जाने के डर से चांद तारो वाले ध्वज को ही हटा दिया, ओर उन चांद तारो को भी मानने से इनकार कर दिया ।। उसकी जगह तलवार के निशान पर अरबी में लिखा कुछ उटपटांग वह लोग मानने लगे । आज भी आप देखिए, सऊदी अरब के झंडे पर कहीं चांद सितारे नही है ।
लेकिन इतिहास आपका पीछा नही छोड़ता ! जिन्हें आप तुर्क ओर मंगोल कहते है, वह जगन्नाथ के ही भक्त थे, अपनी भाषा मे इसे वह " टेंगड़ी " कहते थे । जिसके मतलब होता है " धरती का राजा " । और जगन्नाथ का अर्थ भी होता है " धरती का राजा ।। उन्ही तुर्को की बड़ी श्रद्धा इस ध्वज पर थी ।
100 साल मुस्लिमो से लड़कर इस्लाम कबूल करने वाले तुर्को ने इस्लाम को कबूल किया, लेकिन कभी अपने जगन्नाथ को नही भूल पाए, आज भी तुर्की के राष्ट्रीय ध्वज पर वही जगन्नाथ का प्रतीक चिन्ह " चांद ओर सितारे " है ।
भारत पर भी विजय इन्ही तुर्को ने प्राप्त की थी, ना कि अरबी मुसलमानो ने, इसी कारण पाकिस्तान के झंडे पर भी वह जगन्नाथ का प्रतीक चांद सितारे आज भी है । और भारत के मुसलमान भी आज वही चांद सितारे मानते है । इसका एक प्रबल उदारहण यह भी है, की चंगेज खान ( हिन्दू ) ने पूरी दुनिया मे ढूंढ ढूंढ कर मुल्लो का नाश किया , लेकिन भारत पर हमला नही किया, उसने बोद्ध देश चीन को भी नही छोड़ा, वहां भी खूब बोद्ध उसने काटे, लेकिन भारत की तरफ कभी कोई आक्रमण उसने नही किया, क्यो की उसे अपने हिन्दू भाइयो से अथाह प्रेम था ।जिस पर बड़ा काला पर्दा पड़ा है, वहां शिव लिंग भी है। वहां विष्णु मूर्ति इसके अलावा 369 मुर्तिया और थी |
अभी गूगल करें,ओर जगन्नाथ का ध्वज देखे ।
और वहां शिव लिंग भी था, जो अब भी है। इसके अलावा 369 मुर्तिया ओर थी
अरबी भाषा की व्युत्पत्ति
संस्कृत से ही निकली है अरबी भाषा!
प्रस्तुति: फरहाना ताज
जेकालियट ने लिखा है कि अरबी भाषा की माता भी संस्कृत है। अरब का मुख्य धर्म इस्लाम है, लेकिन कितनी आश्चर्य की बात है कि मोमीन को छोड़ दें तो मुसलमान शब्द का उल्लेखन कुरान में कहीं नहीं, जबकि महाभारत में न केवल उल्लेख है वरन मौसल पर्व नाम से एक अध्याय भी है। शेख शब्द के पयार्यवाची दीक्षापाल, अनुयायी आदि हैं, लेकिन शेख शब्द शिष्य से निकला है। मौलाना शब्द संस्कृत यौगिक मौला अर्थात् सर्वोच्च और नः अर्थात् हम है। इस प्रकार मौलाना आध्यात्मिक नेता का द्योतक है। कव्वाली शब्द काव्यवली है। अरबी में ‘गना’ शब्द है जो ‘गान’ से पूर्णतः मिलता है। इसी प्रकार अंबर, कस्तूरी, मंझाविल यानी कि सोंठ, नार्जित यानी नारियल आदि शब्द तो ज्यों के त्यों कुरान में भी हैं। कुछ शब्दों के पर्यायवाची शब्द यहाँ दिए जा रहे हैं, जो मूलतः संस्कृत से ही उत्पन्न हुए हैं।
संस्कृत पर्यायवाची भाषा
विष वेष अरबी
आपत्ति आफत अरबी
इच्छा ईंशा अरबी
बुद्ध बुत अरबी
नमस नमाज़ अरबी
प्रगतम्बर पैगंबर अरबी
पितर पितर अरबी
अंबर अंबर अरबी
कस्तूरी कस्तूरी अरबी
मंझाविल मंझाविल अरबी
त्रिफला त्रिफला अरबी
कपास कैफस अरबी
हरर्य हरम अरबी
नर्जित नार्जित अरबी
आर्य आरिज फ़ारसी
ग्रीवा गरेवां फ़ारसी
बाहू बाजू फ़ारसी
'उर्दू' शब्द की व्युत्पत्ति
मुहम्मद हुसैन आजाद, उर्दू की उत्पत्ति ब्रजभाषा से मानते हैं। 'आबे हयात' में वे लिखते हैं कि 'हमारी जबान ब्रजभाषा से निकली है।
साहित्य
यह प्रमाण मिलता है कि शाहजहाँ के समय में पंडित चन्द्रभान बिरहमन ने बाज़ारों में बोली जाने वाली इस जनभाषा को आधार बनाकर रचनाएँ कीं। ये फ़ारसी लिपि जानते थे। अपनी रचनाओं को इन्होंने फ़ारसी लिपि में लिखा। धीरे-धीरे दिल्ली के शाहजहाँनाबाद की उर्दू-ए-मुअल्ला का महत्त्व बढ़ने लगा।
उर्दू के कवि मीर साहब (1712-181. ई.) ने एक जगह लिखा है- दर फ़ने रेख़ता कि शेरस्त बतौर शेर फ़ारसी ब ज़बानेउर्दू-ए-मोअल्ला शाहजहाँनाबाद देहली। भाषा तथा लिपि का भेद रहा है क्योंकि बादशाही दरबारों की भाषा फ़ारसी थी तथा लिपि भी फ़ारसी थी। उन्होंने अपनी रचनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए भाषा तो जनता की अपना ली, लेकिन उन्हें फ़ारसी लिपि में लिखते रहे।
वेदो में विज्ञान पुस्तक का एक अंश, दिल्ली बुक फेयर में मिलेगी!
पूरी के जगन्नाथ मंदिर का ध्वज आपने अगर देखा हो, तो वही अर्धचंद्रमा ओर तारो का ध्वज है, लेकिन यह भगवावस्त्र पर रेखांकित है। ऐसा ही एक जग्गनाथ मंदिर सऊदी अरब में था, जिसे आज काबा कहते है ।
सऊदी अरब ने यह भंडा फुट जाने के डर से चांद तारो वाले ध्वज को ही हटा दिया, ओर उन चांद तारो को भी मानने से इनकार कर दिया ।। उसकी जगह तलवार के निशान पर अरबी में लिखा कुछ उटपटांग वह लोग मानने लगे । आज भी आप देखिए, सऊदी अरब के झंडे पर कहीं चांद सितारे नही है ।
लेकिन इतिहास आपका पीछा नही छोड़ता ! जिन्हें आप तुर्क ओर मंगोल कहते है, वह जगन्नाथ के ही भक्त थे, अपनी भाषा मे इसे वह " टेंगड़ी " कहते थे । जिसके मतलब होता है " धरती का राजा " । और जगन्नाथ का अर्थ भी होता है " धरती का राजा ।। उन्ही तुर्को की बड़ी श्रद्धा इस ध्वज पर थी ।
100 साल मुस्लिमो से लड़कर इस्लाम कबूल करने वाले तुर्को ने इस्लाम को कबूल किया, लेकिन कभी अपने जगन्नाथ को नही भूल पाए, आज भी तुर्की के राष्ट्रीय ध्वज पर वही जगन्नाथ का प्रतीक चिन्ह " चांद ओर सितारे " है ।
भारत पर भी विजय इन्ही तुर्को ने प्राप्त की थी, ना कि अरबी मुसलमानो ने, इसी कारण पाकिस्तान के झंडे पर भी वह जगन्नाथ का प्रतीक चांद सितारे आज भी है । और भारत के मुसलमान भी आज वही चांद सितारे मानते है । इसका एक प्रबल उदारहण यह भी है, की चंगेज खान ( हिन्दू ) ने पूरी दुनिया मे ढूंढ ढूंढ कर मुल्लो का नाश किया , लेकिन भारत पर हमला नही किया, उसने बोद्ध देश चीन को भी नही छोड़ा, वहां भी खूब बोद्ध उसने काटे, लेकिन भारत की तरफ कभी कोई आक्रमण उसने नही किया, क्यो की उसे अपने हिन्दू भाइयो से अथाह प्रेम था ।जिस पर बड़ा काला पर्दा पड़ा है, वहां शिव लिंग भी है। वहां विष्णु मूर्ति इसके अलावा 369 मुर्तिया और थी |
अभी गूगल करें,ओर जगन्नाथ का ध्वज देखे ।
और वहां शिव लिंग भी था, जो अब भी है। इसके अलावा 369 मुर्तिया ओर थी
अरबी भाषा की व्युत्पत्ति
संस्कृत से ही निकली है अरबी भाषा!
प्रस्तुति: फरहाना ताज
जेकालियट ने लिखा है कि अरबी भाषा की माता भी संस्कृत है। अरब का मुख्य धर्म इस्लाम है, लेकिन कितनी आश्चर्य की बात है कि मोमीन को छोड़ दें तो मुसलमान शब्द का उल्लेखन कुरान में कहीं नहीं, जबकि महाभारत में न केवल उल्लेख है वरन मौसल पर्व नाम से एक अध्याय भी है। शेख शब्द के पयार्यवाची दीक्षापाल, अनुयायी आदि हैं, लेकिन शेख शब्द शिष्य से निकला है। मौलाना शब्द संस्कृत यौगिक मौला अर्थात् सर्वोच्च और नः अर्थात् हम है। इस प्रकार मौलाना आध्यात्मिक नेता का द्योतक है। कव्वाली शब्द काव्यवली है। अरबी में ‘गना’ शब्द है जो ‘गान’ से पूर्णतः मिलता है। इसी प्रकार अंबर, कस्तूरी, मंझाविल यानी कि सोंठ, नार्जित यानी नारियल आदि शब्द तो ज्यों के त्यों कुरान में भी हैं। कुछ शब्दों के पर्यायवाची शब्द यहाँ दिए जा रहे हैं, जो मूलतः संस्कृत से ही उत्पन्न हुए हैं।
संस्कृत पर्यायवाची भाषा
विष वेष अरबी
आपत्ति आफत अरबी
इच्छा ईंशा अरबी
बुद्ध बुत अरबी
नमस नमाज़ अरबी
प्रगतम्बर पैगंबर अरबी
पितर पितर अरबी
अंबर अंबर अरबी
कस्तूरी कस्तूरी अरबी
मंझाविल मंझाविल अरबी
त्रिफला त्रिफला अरबी
कपास कैफस अरबी
हरर्य हरम अरबी
नर्जित नार्जित अरबी
आर्य आरिज फ़ारसी
ग्रीवा गरेवां फ़ारसी
बाहू बाजू फ़ारसी
'उर्दू' शब्द की व्युत्पत्ति
मुहम्मद हुसैन आजाद, उर्दू की उत्पत्ति ब्रजभाषा से मानते हैं। 'आबे हयात' में वे लिखते हैं कि 'हमारी जबान ब्रजभाषा से निकली है।
साहित्य
यह प्रमाण मिलता है कि शाहजहाँ के समय में पंडित चन्द्रभान बिरहमन ने बाज़ारों में बोली जाने वाली इस जनभाषा को आधार बनाकर रचनाएँ कीं। ये फ़ारसी लिपि जानते थे। अपनी रचनाओं को इन्होंने फ़ारसी लिपि में लिखा। धीरे-धीरे दिल्ली के शाहजहाँनाबाद की उर्दू-ए-मुअल्ला का महत्त्व बढ़ने लगा।
उर्दू के कवि मीर साहब (1712-181. ई.) ने एक जगह लिखा है- दर फ़ने रेख़ता कि शेरस्त बतौर शेर फ़ारसी ब ज़बानेउर्दू-ए-मोअल्ला शाहजहाँनाबाद देहली। भाषा तथा लिपि का भेद रहा है क्योंकि बादशाही दरबारों की भाषा फ़ारसी थी तथा लिपि भी फ़ारसी थी। उन्होंने अपनी रचनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए भाषा तो जनता की अपना ली, लेकिन उन्हें फ़ारसी लिपि में लिखते रहे।
वेदो में विज्ञान पुस्तक का एक अंश, दिल्ली बुक फेयर में मिलेगी!
नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षि शिरोरुबाहवे
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युग धारिणे नमः |
मुकंकरोति वाचालं पंगुंलंघयते गिरीम्
यत्कृपा त्वमहम् वन्दे परमानन्द माधवम्
सन्त भगवान रविदास
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
ज्ञातव्य :ये तथ्यों पर आधारित लेख है | शिव ही जाने सत्य क्या है |
हरि ॐ तत्सत |
No comments:
Post a Comment