क्रिसमस या कृष्णमहोत्सव

आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् ।
सर्वदेहनमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति ॥
आकाश से गिरा हुआ जल, जिस किसी भी प्रकार सागर को हि जा मिलता है; वैसे हि किसी भी रुप की उपासना/नमस्कार, एक हि परमेश्वर केशव को पहुँचती है ।
युधिष्ठिर ने अग्रपूजा का मान भगवन श्री कृष्ण को दिया। युद्ध समाप्ति के वर्ष दिसंबर के उत्तरनारायण के पर्व की २ और विशेषता थी, एक तो युद्ध समाप्ति के आनंद की और दूसरी विशेषता कृष्ण के मार्गप्रशस्त से विजय की।
इस तरह उत्तरनारायण के इस पर्व का कृष्ण महोत्सव नाम पड़ा
हम सभी भारतीयों का सबसे बड़ा दोष यह रहा है की हमने दुसरो के लिखे इतिहास को सच्चा मानना शुरू कर दिया , उनकी मान्यताओ को मानना शुरू कर दिया लेकिन विधर्मियो के तथ्य वो है ही नहीं जो माने जा सके, और सत्य को यह लोग स्वीकार नहीं करते , चाहे कितने भी प्रमाण आप इनके सामने रख दे , आप यह कटे है की जितने भी किले मस्जिदे आदि है वो कभी हिन्दू मंदिर को तोड़ कर बनायी गयी थी , आप इससे आगे बढिए , सारे गिरजाघर भी कभी हिन्दू मंदिर ही थे, जिन्हें बाद में इशाईयोँ ने नस्ट कर के अपना अधर्म का अड्डा बना लिया। ईसाई मत का तो सारा ढांचा ही कृतिम है 

एक छोटी सी बात ले आप अंग्रेजी भाषा में FATHER INSIDE CAP मुहावरा है , हिंदी में अर्थ हुआ टोपी पर पंख चढ़ाना , अब श्री कृष्णाके अलावा टोपी पर मयूर पंख लगाने वाले कौन थे ??? लेटिन भाषा में i तथा j समान ही लिखे जाते है , इसलिए ieues chrisn की जगह इन्हें यह लोग jesus christ इसे यह लोग लिखने लगे कहने लगे उसी कारण कृष्णमास का उच्चारण क्रिस्टमॉस रूढ़ हुआ , जीसस की जन्म तारीख अंट - सट २५ दिसंबर तय की गयी , पर इसका कोई भी ऐतिहासिक आधार नहीं , यह तारिक बस रोम ने दे दी , बिना किसी प्रमाण के , जिससे खुद ईसाई सहमत नहीं है।
भगवत गीता में '' मासनं मार्गशीर्षोहमः " ऐसा भगवन श्री कृष्ण का वचन है , दिसंबर ही मार्ग शीर्ष मार्ग है , इसीलिए महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण उत्सव बनाया जाने लगा , भगवन श्री कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि का है , अतः इस समय घंटिया बजाकर उत्सव बनाने की परम्परा पड़ी , युद्ध दिसम्बर में ही समाप्त हुआ और सारे कौरव मारे गए पांडव भगवन श्री कृष्ण के मार्गदर्शन में विजयी हुए , अतः युधिस्तिर ने अग्रपूजा का मान भगवन श्री कृष्ण को दिया। युद्ध समाप्ति के वर्ष दिसंबर के उत्तरनारायण के पर्व की २ और विशेषता थी, एक तो युद्ध समाप्ति के आनंद की , और दूसरी विशेषता कृष्ण के मार्गप्रशस्त से विजय की।
इस तरह उत्तरनारायण के इस पर्व का कृष्ण महोत्सव नाम पड़ा , यह हमें अपने अपने इतिहास से नहीं , यूरोप के क्रिसमस से पता चलता है , अतः ईसाई लोग यह जान ले की वो आज तक सिर्फ कृष्ण महोत्सव बनाते आये है।chrismas को वे X 'mas भी लिखते है , क्यों ???? यह तो शायद ईसाई खुद नहीं जानते।
वो लोग यह इस कारण लिखते है सितंबर , अक्टूबर , नवम्बर , दिसम्बर , यह सारे के सारे सप्ताम्बर संस्कृत के शब्द है , जैसे सप्ताम्बर , असताम्बर , नवाम्बर , दशाम्बर जिसका अर्थ है सातवाँ , आंठवा , नोवा , और दसवा महीना , रोमन लिखाई में १० का आंकड़ा Xलिखा जाता है , यानि के १० वा महीना। दिसंबर उर्फ़ दिशाम्बर का ठेठ अर्थ वही है , हिन्दू विश्व साम्राज्य के समय मार्च ( चेत्र ) पहला महीना होता था उस हिसाब से यह आंकड़े बिलकुल ठीक है।

जॉर्डन देश तक हिन्दू धर्म ही था , यहाँ पुरोहितो के मार्ग दर्शन में पूजा पाठ और तीर्थ प्रशाद होता था , पाप मुक्ति और जीवन मुक्ति में उनका विश्वाश था , खुद जॉर्डन ' जनार्दन " के नाम पर ही तो है।
इस तरह कृष्ण को माने वाला समुदाय क्रस्ट समुदाय ही कहलाया जो की गलतीसे कृष्ण को क्रस्ट ही उच्चारण करते थे , जैसे कन्नड़ के लोग आज भी कृष्ण की क्रस्ट ही कहते है। ग्रीक के प्राचीन लोग भगवान के नामाक्षर XP लिखते थे , ठीक ही तो है , कृष्ण - पुरूषत्तम। अब प्रचीनकाल में फिर इसे ISH भी लिखा जाता था , ( H के ऊपर क्रूस लगाकर परमात्मा का निर्देश दिया जाता था , अब अंग्रेजो का यही प्रतिक बन गया है ,IHS को पूरा करें तो मतलब निकलता है ईश्वर हरी कृष्णा , जैसे क्रूस बदलते बदलते पूरा बदल गया , जिस कपोलकल्पित क्रस्ट पर ईशा को को लटगाया गया था , ईसाई उसी का लॉकेट बनाकर गले में डालकर घूमते है , क्या ईशा को अगर बन्दुक से मारा जाता तो क्या बन्दुक गले में डालकर घूमते ???

वो बेचारे क्या जाने उनका यह टुटा फुट पंथ हिन्दू धर्म का ही एक भाग था। क्यू की उनका तो टुटा फुटा रटा रटाया ग्रन्थ है , वो क्या जाने उनके धार्मिक प्रतीकों चिन्हों के पीछे सच्चई क्या है ??? इनका क्रूस एक वैदिक चिन्ह है , श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी एक पन्थ का निजी पंथ चिन्ह था , जिसे यहूदी अपना बताते है , जिसे वह DEVISTAR ( देवी - स्टार ) यानि देवी का दिया सितारा , परसुराम का फरसा भी एक पंथ का धार्मिक चिन्ह था।जीजस की माँ ---- मरियम्मा ईस्वी सन पूर्व के समय तक देवी मरियम्मा के मंदिर होते थे , , भारत के बड़ोदा में बाबाजी पूरा में मरी मातानो खांचो गली में मरीमाता के मंदिर आज भी है , भारत में तमिल लोग मरीमाता को मानते है , उसी माता को यह ईसाई त्याग नहीं कर पाए और MARY बना दिया , जीजस की माता कुंवारी थी , फिर भी जीजस का जन्म हुआ , अब साफ़ है कुंवारी कभी माता नहीं होती , और माता कभी कुंवारी नहीं होती , इस तरह ईसाई धर्म की तो पूरी नींव ही उटपटांग है।यूरोप भर में मैरी या मेडोना आदि नाम के जितने गिरजाघर गुफाएं या धर्म स्थान है , वो सब हिन्दू देवी देवताओ के मंदिर है , जैसे जैसे विविध प्रदेशो के लोग ईसाई बनते गए , उन्ही के पुराने देवी देवताओ को ईसाई का ठप्पा लगाकर ईसाई बना दिया , मेडोना नाम भी माताः नः का संस्कृत उच्चारण है , जिसका अर्थ है हमारी माता , कहीं ब्लैक मेडोना के मंदिर है , यानी हमारी काली माताके मंदिर , जैसे माँ का मदर ईसाइयो ने बड़ी सफाई से किया उसी तरह मरियम्मा को भी मेरी बना लिया। क्रिस्चन कुछ और नहीं , कृष्ण के पंथ पर ही चलने वाला समुदाय था , जिसने धर्म और वेदों का अपमान किया नाश किया। कृष्ण ने स्वमं भी कहा है , चाहे पापी हो या महात्मा सब मेरे है , में सबका हूँ।
......... और हाँ मेरा प्रभु चरवाहा है।ऐसा कई चर्चों में मैंने लिखा देखा है।श्रीकृष्ण से बड़ा चरवाहा कौन होगा?

No comments:

Post a Comment