सनातन धर्म में गृहस्थ आश्रम में वर्ण व्यवस्था
राजा : किसी क्षेत्र देश के नेतृत्व करने वाला |
राजदरबार : मंत्री सेनापति सलाहकार पुरोहित इत्यादि
प्रजा सेवक : राज्य के देखरेख करने वाले सेवक सिपाही लेखाकार मठाधीश ग्राम तंत्र इत्यादि
राजा : किसी क्षेत्र देश के नेतृत्व करने वाला |
राजदरबार : मंत्री सेनापति सलाहकार पुरोहित इत्यादि
प्रजा सेवक : राज्य के देखरेख करने वाले सेवक सिपाही लेखाकार मठाधीश ग्राम तंत्र इत्यादि
प्रजा : राज्य में निवास करने वाले निवासी
स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।
शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।शूद्र : जो साधक तप में प्रवेश करता है उसे शूद्र कहा जाता है |
सनातन धर्म में श्री हरि को पाने के लिए तपाश्रम (वानप्रस्थ) आश्रम
सनातन धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए योग और तप का महत्व है| तप में वर्ण व्यवस्था को जाने |
स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।
शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।शूद्र : जो साधक तप में प्रवेश करता है उसे शूद्र कहा जाता है |
इसे पैर से कमर के निचे के भाग तक माना जाता है |
वैश्य : जिसने तप में प्रवेश कर मूलाधार चक्र से सुष्मना नाडी तक जागृत कर लिया वैस्य कहलाया |
इसे कमर से हृदय तक के भाग तक माना जाता है |
इसे कमर से हृदय तक के भाग तक माना जाता है |
क्षत्रिय : जब साधक सुष्मना नाड़ी चंद्र नाड़ी आज्ञाचक्र को जागृत कर सूर्य नाड़ी तक जागृत करने तक क्षत्रिय वर्ण कहलाता है |
हृदय से मुख के निचे के भाग तक के भाग को जागृत करने वाले को कहा गया
हृदय से मुख के निचे के भाग तक के भाग को जागृत करने वाले को कहा गया
ब्राह्मण : जो साधक ब्रह्मरंध्र को जान जान जाता है ब्राह्मण कहलाता है |
ये मुख से लेकर ब्रह्मरंध्र तक का जागृत अवस्था है |
ऋषि महर्षि : जब साधक आत्मा रूप में प्रवेश और विचरण कर सकता है ऋषि मुनि कहलाता है|
ये मुख से लेकर ब्रह्मरंध्र तक का जागृत अवस्था है |
ऋषि महर्षि : जब साधक आत्मा रूप में प्रवेश और विचरण कर सकता है ऋषि मुनि कहलाता है|
मोक्ष : जब साधक हरि को पा लेता है मोक्ष मिल जाता है | पुनर्जन्म से बहार हो जाता है | श्री हरी में विलीन हो जाता है |
गौतम बुद्ध (महावीर), विवेकानंद, शंकराचार्य श्री रामकृष्णपरमहंस इस श्रेणी में आते हैं
हरि ॐ तत्सत
राम नाम सत्य है |
गौतम बुद्ध (महावीर), विवेकानंद, शंकराचार्य श्री रामकृष्णपरमहंस इस श्रेणी में आते हैं
SANT RAVIDAS :
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed:
the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
राम नाम सत्य है |
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