क्रूरतम अकबर

प्रचलित भारत की इतिहास की पुस्तकों में छठी पीढ़ी में उतपन्न मुगल बादशाह ओरेंगजेब को क्रूरता, धोखेबाजी ओर क्रूरता का साक्षात मूर्त रूप प्रस्तुत किया है । किन्तु ओरेंगेजब का प्रति-पितामह अकबर उससे भी ज़्यादा क्रूर था । चाटुकारों द्वारा लिखे गए इतिहास ग्रन्थों ने अकबर के कुकृत्यों के मूल रूप को परवर्तित कर देने में , तमाम प्रमाणों को तीतर - बितर कर देने में , ओर बिखरे प्रमाणों को अकबर के शाही कालीन के निचे कुशलतापूर्वक छिपा देने का यत्न किया है । जिस व्यक्ति को भारत के इतिहास में महान बताया गया है, वह भारत का सबसे क्रूर विदेशी राजा था, भारत तो छोड़िए, पूरे विश्व का सबसे क्रूर राजा कहना उपयुक्त होगा ।

अकबर के व्यक्तित्व का सही आंकलन कर पाने के लिए यही उचित होगा की उस परिवार की परंपराओं तथा व्यवहार के स्तर का पर्यवेक्षण किया जाए जिससे कि अकबर का वंशानुगत क्रम है । अकबर एक शुद्ध विदेशी था, उसकी रगों में भारत के खून की एक बूंद भी नही थी । यह बात विसेंट नाम का एक अंग्रेज लेखक लिखता है। ओर भारत की पाठ्यपुस्तकों में यह तोते की तरह रटा दिया जाता है कि अकबर एक भारतीय शाशक था , उसके साथ यह भी की वह प्रमुखों में भी प्रमुखतम व्यक्ति था । इस लेख से यह साबित में करना चाहूंगा कि अपने सगे संबंधियों से लेकर भारतीयों तक वह सबसे घृणित व्यक्ति था ।


अकबर तैमुर लंग की सातवी पीढ़ी से था, ओर मातृपक्ष में वह चंगेज खान की ओर से था , जिसके जीवन काल मे पृथ्वी त्रास से थर्राती थी । किन्तु भारतीय इतिहास ग्रन्थ हमको विश्वास दिलाना चाहते है कि अकबर सन्त-परम्परा से सम्बन्ध रखता था ।

विसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक में लिखता है कि " तैमूरलंग के राजपरिवार के लिए मधपान उसी प्रकार जन्मपाय था, जिस प्रकार अन्य मुस्लिम राजघरानो की नैतिक दुर्बलता थी । बाबर गहरे पियक्कड़ स्वभाव का व्यक्ति था । हिमायूँ स्वम् अफीम की लत से जड़बुद्धि बनचुका था । अकबर अपने आप मे दोनो गुणो को समाए हुए था । अकबर के दो लड़के पुरानी जहरीली शराब पीकर मर गए थे । ओर इसका बड़ा भाई अपनी द्रढ़ शारीरिक सरंचना के कारण बच गया था, ना कि किसी गुण के कारण ।

अकबर के चाचा कामरान ने स्वभावतः अपने शत्रुओं को क्रूरतम यातनाएं देकर अपना मुंह काला कर लिया था । उसने बच्चो ओर महिलाओं तक को नृशंग अत्याचार का शिकार बनाया ।

जैसा कि भारत के समस्त मुस्लिम शाशको के साथ सामान्य बात रही थी, वैसा ही हिमायूँ भी अपने सम्पूर्ण जीवन मे अपने ही भाइयो के साथ युद्ध मे व्यस्त रहा । जहां तक अत्याचारों का सम्बंध था, वह कामरान का प्रतिस्पर्धी था । पकड़ लिए जाने पर कामरान को घोर यातनाएं दी गयी ।

अपने भाई के कष्टों से हिमायूँ को कोई पीड़ा नही हुई । कामरान को उसके आवास से घसीटकर लाया गया, उसे लिटाया गया, ओर उसके घुटनो पर एक आदमी बैठ गया । ओर दो धार वाला तेज नश्तर उसकी आँखों मे घुसेड दिया गया । थोड़ा सा नीबू का रस ओर नमक उसकी आंखो में रगड़ा गया, ओर तुरन्त पहरेदारों के साथ चलने के लिए उसे घोड़ी ओर बैठा दिया गया ।

इन सब से भी अकबर का चरित्र और ही विरला था, भद्दा ओर कुरूप । औसत दर्जे का डिल-डोल ऊंचाई में लगभग पांच फुट 9 इंच चोड़ी छाती, पतली कमर और लंबे बाजू । उसके पैर भीतर की ओर मुड़े हुए थे । चलते समय अपने बाएं पैर को कुछ घसीटता सा था । मानो वह लंगड़ा हो । उसका सिर दाएं कंधे की ओर झुका हुआ था । नाक कुछ छोटी सी, ओर बीच की हड्डी उभरी हुई थी । नाथुन ऐसे लगते थे, मानो क्रोध से फुले हुए हो । मत्रंके आकार का एक मस्सा उसके होंठ को नथुनों से जोड़ता था । इस प्रकार की भद्दी आकृति होते हुए भी समकालीन व्यक्तियों द्वारा निर्लज चाटुकार अबुल फजल उसको " विश्व का सबसे सुंदर व्यक्ति की संज्ञा देते हुए नही थकता ।

तेज नशीली जड़ीबूटियो तथा मगांध ( ड्रग्स ) का सेवन करने वाला अकबर घोर व्यसनी था । इस तरह के अनेक उदारहण से उसका इतिहास भरा पड़ा है । वह नशीले पेय तथा खाद वस्तुओं से निर्मित नशीले पदार्थो का सेवन भीबकर लेता था । अकबर का बेटा जहांगीर स्वम् कहता है कि " मेरा पिता चाहे शराब पिये हो, या स्थिर रहे हो, मुझे हमेशा शेखू बाबा कहकर ही पुकारते थे । इसका अर्थ यह है कि अकबर हर समय लगभग शराब के नशे में ही रहता था । " यधपि अकबर के चाटुकार भाँडो ने उसकी मदिरापान अवस्था का कोई वर्णन नही किया है । तथापि यह निश्चित है कि उसने अपने परिवार की झूठे इतिहास लिखने की परम्परा बनाई रखी । ओर वह प्रायः आवश्कता से अधिक शराब ही पिता था ।


अकबर दरबार का ईसाई पादरी अक्कविवा कहता है कि " अकबर इतनी शराब पीने लगा था कि वह प्रायः अपने आगुन्तको से बात करते करते ही सो जाया करता था । कई बार तो वह ताड़ी पीता था । वह अत्यंत मादक ताड़ की शराब होती थी, ओर कई बार त्रिस्त की शराब पीता था, जो कि अफीम में अनेक वस्तुएं मिलाकर बनाई जाती थी । मदिरापान के दुर्गुण के उसके बुरे उदारहण का निष्ठापूर्ण पालन उसके तीनो बेटों ने युवावस्था प्राप्त होने पर किया । उल्लेख है कि जब वह आवश्यकता से अधिक पी लेता था तो पागलो के जैसी हरकते भी किया करता था । उसको एक अति नशीली ताड़ से निकली शराब अत्यंत पसन्द थी । उसके बदले में चकने की जगह चटपटी अफीम का सेवन करता था । अनेक पीढ़ियों से चली आ रही अफीम को विभिन्न रुप से सेवन करने की परम्परा को उसने चलाये रखा, अनेक बार तो अतिपान करके इसने इस परम्परा को निभाया ।

सभी इतिहासकारों ने सर्वसम्मत शब्दोंमें पुष्टि की है कि वो निरक्षर था । उसका बेटा जहांगीर पुष्टि कर चुका है कि उसका बाप ना तो पढ़ सकता था ना लिख सकता था । किन्तु खुद को प्रदर्शित ऐसे करता था, जैसे बहुत पढ़ा लिखा व्यक्ति हो । अकबर का खुद को ऐसा प्रदर्शित करब बुरी बात नही है, किन्तु अन्य लोगो का यह प्रदर्शित करना कि जो कुछ अकबर के मुंह से निकलता था, वह अति-बुद्धिमता सम्पन्न होता था , यह बुरा है । क्रूर और सिद्धांतशून्य राजा के आगे और वह कर भी क्या सकते थे ।

अबुल फजल यह दोहराते हुए नही थकता की अकबर प्रारम्भ के चार वर्ष पर्दे के पीछे ही रहा, इसका अर्थ यह निकलता है कि वह अधिकतम समय हरम में ही व्यतीत करता था । उसके ईसाई पादरी ने उसके कामुक संबंधों के लिए फटकार लगाने का अत्यंत साहस किया था, किन्तु अकबर ने लज्जारहित होते हुए, स्वम् को क्षमा कर दिया ।

अकबर के हरम का वर्णन करते हुए अबुल फजल लिखता है शहंशाह ने अपने आराम करने के लिए विशाल चारदीवारी बनाई है ।जिसमे अत्यंत भव्य भवन है । हरम में 5000 से अधिक महिलाएं है, किन्तु अकबर ने सभी को अपना व्यक्तिगत भवन दे रखा है। आगे अबुल फजल लिखता है कि हरम में ही अकबर ने शराब की एक दुकान भी लगवाई है दुकान से इतनी अधिक वेश्याएं आकर इकट्ठी हो गयी है, जिसकी गणना करना भी कठिन है। अकबर लौंडेबाजी का भी शौखिन था, कई बार तो इतने लौंडे हो जाते, की शराब के नशे में खून खराबा भी हो जाया करता था । सम्राट एक बार स्वम् कुछ वेश्याओ कप बुलाया और पूछा कि तुम्हरा कौमार्य भंग किसने किया ।

अब यह सवाल उठता है कि यह वेश्याएं कौन थी ? टिड्डी दल की भांति वेश्याओं की फ़ौज की फ़ौज अकबर के पाआस कैसे आकां पहुची? उत्तर इसका यह है कि यह वेश्याएं हिन्दू ओरतो के अलावा और कोई नही थी । हिन्दू घरों को प्रतिदिन लुटा जाता, पुरषों का या तो धर्म परिवर्तन होता, या उनका वध कर दिया जाता । ओर महिलाएं हरम में घसीट ली जाती ।

अकबर की नजर एक बार बैरम खान की पत्नी पर लग गयी, तो उसकी हत्या करवाकर उसकी पत्नी बोर भी इसने डाका डाल लिया । इससे यह तो अंदाज लगाया ही जा सकता है, की अकबर कितना महान था ।

पानीपत के युद्ध के पश्चात अकबर के सम्मुख घायल अवस्था तथा अर्द्धचेतन अवस्था मे हेमू को जब लाया गया तब अकबर ने टेढ़ी तलवार से उसकी गर्दन पर वार किया । अकबर उस समय केवल 15 वर्ष का था । उस छोटी आयु से ही उसने कायरों की भांति अपने पराभूत तथा असहाय शत्रुओं की हत्या करने का यश अर्जित किया था । इस प्रकार का उसका लालन -पालन था ।


पानीपत की लड़ाई के बाद विजयी सेनाएं दिल्ली की ओर कूच कर गयी । जहां उसके लिए द्वार खोल दिये गए । अकबर राज्य में जा घुसा ओर आगरा भी उसके अधीन आ गया । उस काल की पैशाचिक प्रथा के अनुसार कत्ल किये गए व्यक्तिओ का एक स्तंभ बनाया गया । हेमू के परिवार के साथ ही विपुल कोष भी ले लिया गया । हेमू के बूढ़े बाप का कत्ल कर दिया गया ।

चितोड़ पर जब उसने चढ़ाई की, तो वहां राजपूतो से जम कर वो मार खा कर आया, उसका गुस्सा उसने दिल्ली की जनता पर निकाला, 30000 ( तीस हजार ) लोगों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया । लाखो लोग बंदी बनाये गए ।

अहमदाबाद के शाशक को हराकर उसने सभी विरोधियों को हांथी से कुचलवाकर मरा दिया। अपने एक निकट संबंधी हुसैन मुहम्मद मिर्जा की आंखों को उसने सुई से सिलवा दिया । वह उसके विरुद्ध बगावत करने के बाद पकड़ा गया था । उसके अन्य 300 सहायकों के चेहरे पर मरे हुए गधों, भेड़ो, तथा कुत्ते की खाल चढ़ाकर अकबर के सम्मुख घसीटकर लाया गया, जिनको बड़ी क्रूरतापूर्वक उसने मरवा डाला ।

अहमदाबाद के युद्ध मे उसने विजय प्राप्त करने केबाद 2000 नरमुंडों का एक स्तूप बनवाया ।

बंगाल के शाशक दाऊद खा को जब पराजित किया गया , तब उस समय के बर्बरतापूर्ण रिवाजो का अनुसरण करते हुए अकबर के सेनानायक मुनीर खान ने बंधक लोगो को मौत के घाट उतार दिया । उनके सिरों को संख्या 8 गगनचुंबी स्तूप बनाने के लिए पर्याप्त थी । प्यास से व्हाकुल होने के बाद जब दाऊद ने पीने के लिए पानी मांगा तब उन लोगो ने जूतियों में पानी भरकर उसके सामने पेश किया । ( यह आप अकबरनामा में देख सकते है )

यह उदारहण क्या काफी नही है? या साबित करने के लिए, की अकबर कहीं से महान नही था । वह साक्षत दैत्य का ही एक अवतार था ।

हल्दीघाटी का युद्ध तो वास्तव में राजपूतो का राजपूतो के विरुद्ध युद्ध ही था । अकबर ने अपने आतंकित करने वाले अत्याचारों से अनेक राजपूत प्रमुखों को अपने वश में कर लिया था , तथा अब उन्ही के द्वारा सर्वाधिक स्वाभिमानी महाराणा प्रताप के सर को नीचा करना चाहता था । एक अवसर पर जब घमासान युद्ध चल रहा था, तब यह पहचानना मुश्किल था कि कौनसी राजपूत सेना है, ओर कौनसी अकबर की सेना , तब अकबर की ओर से लड़ रहे बंदायूनी ने अकबर के सेनापति से पूछा, की वह गोली कहाँ चलाये, की जिससे केवल शत्रु ही मर पाएं । तब सेनानायक ने कहा इससे कोई फर्क नही पड़ता, वह गोली कहीं भी चलाएगा, काफीर ही मरेंगे, ओर इस्लाम को लाभ होगा । बाँदायूनी को पूरा विश्वाश मिल जाने के बाद की कोई सावधानी की जरूरत नही है उसने अंधाधुन गोलियों की बारिश करवानी शुरू कर दी ।


एक बार अकबर दोपहर के समय अपने कक्ष में विश्राम कर रहा था तो अनेपक्षित रूप से जल्दी उठ गया । ओर तुरन्त किसी सेवक को ना देख पाया पलँग के पास आया तो एक अभागे सेवक को नींद में लुढ़का पाया । इस दृश्य से कुपित होकर अकबर ने आदेश दिया की इस सेवक को मीनार के नीचे जमीन पर पटक दिया जाए । उसकी देह के टुकड़े टुकड़े हो गए ।

कुछ हरामखोर यह कहते है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी रोया था । और अकबर के गुणगान में लग जाते है । राणा पर आक्रमण करने के लिए कोई विशेष घटना तो हई ही नही थी। वह बस राणा के नाश करने और राजपूताने को गुलाम बनाने के लिए युद्ध किया गया । अकबर ने राणा की मृत्यु ओर उसकी जमीन हड़प लेने की कामना की थी ।
राणा प्रताप ओर अकबर के युद्ध मे दोनो पक्षो को महान कैसे बताया जा सकता है । राणा प्रताप इसी धरती का पुत्र था, ओर अकबर विदेशी । क्या इतना कारण पर्याप्त नही था ? कि राणा प्रताप ही असली नायक था ।

1 comment:

  1. सही बात लिखी है आपने लेकिन इसको और विस्तृत करने की जरूरत है।क्या आप बता सकते हैं कि दुर्गावती और राणा प्रताप में क्या सम्बन्ध थे और उनदोनो से सम्बंधित घटनाओं के बारे में

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