Sunday, 12 November 2017

ब्राह्मणों द्वारा अत्याचार वामपंथी षड्यंत्र का हिस्सा

 ब्राह्मणों द्वारा अत्याचार एक झूठ है | जिसे वामपंथी मुग़ल इतिहास कार ने षड़यंत्र तहत हिन्दू समाज तोड़ा है |
लोग नदी तालाब के पास रहते थे ! लकड़ी खडाऊ पहनता था |
कोई शोचालय नही था ! कोई चमार नही था ना कोई चमरे का व्यापार ! पालतुपशु का दाह संसकार होता था !ज़िसका पशु होता था वो और उसके परिजन दाह संसकार करते थे !लोग फल फूल खाते थे ! शिकार सिर्फ हिंसक जानवर का होता था !कितना बाताऊँ घोडे का ज़िन और दास्ताने मुगल काल मे आये और मैला कारोबार ! मन्दिर मे ढ़ोल नही कीर्तान नही हवन और वैदिक मंत्रोचारांन होता था !
ढ़ोल कीर्तान भक्ती काल मे आये !
तांत्रिक पूजा मे तांत्रिक बलि देते है ! तांत्रिक ओउघड अाज भी देते है !
औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी बर्षो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा
हरिजन जाति गांधी ने बनाया ! संविधान ने ऊँच निच बनाया ! मनुस्मृति मनु माहाराज राजपूत ने लिखा तो ब्राहमन को गाली क्यों ?
चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।
ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया।
उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा :- ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥” यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया।
हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं।
हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।
चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है।
हमारे भगवान् संत रविदास ने इस प्रकार कहा है :
SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।

Saturday, 23 September 2017

अल्लाउद्दीन खिलजी एक कलंक

मुस्लिम इतिहास के हजार वर्षीय काले इतिहास में , जन्मा ओर पला प्रत्येक भारतीय मुस्लिम शाशक चाहे उसका नाम कुछ भी रहा हो, अकबर या ओरेंगजेब, अहमदशाह या अल्लाउद्दीन , वह बलात्कार, अत्याचार कपट ओर दुष्टता का साक्षात अवतार था । इस सच्चाई को जानने के लिए हमने जो सिर हमने हिन्दू-मुस्लिम एकता की दुहाई देकर जमीन में गाड़ रखा है, उसे बाहर निकालना होगा ! इन्ही शैतानों में एक नाम अल्लाउदीन खिलजी का है, जो अपनी दुष्टता में साक्षात जंगली हिंसक पशु ही था !

इस्लामी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए यह मल्लेछ अपने ससुर ओर चाचा जलालुद्दीन खिलजी का हत्यारा भी था ! गद्दी हड़पने के लिए अपने ही लोगो की हत्या करना इस्लाम की पुरानी परंपरा में शामिल रहा है, इन शांतिप्रिय लोगो ने तो मुहम्मद के परिवार तक को ना छोड़ा था !

घर के आपसी दंगे के बाद अल्लाउद्दीन सुल्तान बना, सुल्तान बनते ही इसकी आंखों में सबसे पहले मुल्तान खटका ! मुल्तान में पहले के सुल्तान जलालुद्दीन के पुत्रगण शाशन कर रहे थे ! इसलिए इसने पहले इनसे ही निपट लेने की ठानी ! मृत सुल्तान की पत्नियों, बच्चो, नोकरो, तथा सहायकों को घेरने के लिए इसने उधुल खान और जफर खान के नेतृत्व में विशाल सेना तैयार की ! जीवन की आशंका से भयभीत होकर मुल्तान के सुल्तानों ने आत्मसमर्पण का संधि पत्र अल्लाउद्दीन को भेज दिया, अल्लाउद्दीन ने भी उस निवेदन को स्वीकार कर लिया , ओर यथोचित आदरसम्मान देने का वचन दिया !

मुल्तान से इन लोगो को दिल्ली लाने के लिए सेना गयी ! अल्लाउद्दीन की ही आज्ञा लेकर नुसरत खान के एक दल ने दिल्ली पहुंचने से पहले सुनसान मार्गपर काफिले को रौका गया ! इसके बाद क्रूर और गंदे कामो की बिस्मिल्लाह हुई ! शाही बंदियों के सारे स्वर्ण आभूषण छीन लिए गए ! सुंदर और जवान नारियों को बलात्कार करने के लिए अलग छांट लिया , शिशुओं ओर बुढो का, जिनका कोई कामुक उपयोग नही था, उन्हें हलालकर ठंडा कर दिया गया , अगर कुछ लोगो को जिंदा भी छोड़ा गया था, तो तपती शलाखाओ से उनकी आंखों को फोड़कर ! जलालुद्दीन के पुत्रों को हाथों में हथकड़ियां डालकर दिल्ली लाया गया , जहां महल के एक गंदे तहखाने में उसे फेंक दिया गया ! जलालुद्दीन के सारे परिवार की महिलाओ को अल्लाउदीन ने अपने हरम में घसीट लिया ! एक मुसलमान अपने ही रक्त ओर मांस से निमित मुसलमान के साथ कितना नीच व्यवहार कर सकता था, उसका यह जीता जागता उदारहण है , काफ़िर तो रहे दर किनारे ....

अपनी श्रेष्ठ ओर अतुलनीय दुष्टता के उपहारस्वरूप नुसरत खान को मुख्यमंत्री का पद मिला ! अब आप यह ना समझे कि क्रूरता केवल अल्लाउद्दीन की बपौती थी, इनमे इन सब का बाप वो आसमानी चंपक की बकैती करने वाला था , यह अल्लाउदीन , अकबर, बकबर तो बस उसके बताए पदचिन्हों पर चल रहे थे , संयोग से अल्लाउदीन को बरनी जैसा चाटुकार इतिहास लेखक मिल गया, जिसने इस शैतान के खूनी कारनामो की प्रशंसा में कुछ अधिक पन्ने रंग डाले !

अल्लाउद्दीन की ताजपोशी के एक वर्ष के भीतर ही विशाल मुगल सेना ने सिंध के क्षेत्रों को कुचलना शुरू कर दिया था ! बढ़ते हुए मुगलो को रोकने के लिए अल्लाउदीन ने भी एक सेना भेज दी , जालंधर के समीप संग्राम हुआ ! विजयी अल्लाउद्दीन की सेना ने हाथ आये सारे मुगलो का सिर काट फेंका , गधो ओर ऊँटो पट लादकर इन सिरों को अल्लाउद्दीन के यहां पार्सल कर दिया गया ! जिसके लिए यह गले- सड़े सिर विजयी मधुवन में फूलो की तरह सुगंध देने वाली वस्तु थी ! अफ्रीका की एक जंगली जाति भी अपने शत्रुओं के सिरों की माला पहनकर इठलाती घूमती है, यह उसी सभ्यता की निशानी है !!

मुगलो को भगाने के बाद जालन्धर में हिन्दुओ पर अब अल्लाउद्दीन की सेना ने कहर ढाया ! मार्ग में जितने भी हिन्दू घर आये, सब लूट लिए गये ! हिन्दू मंदिरो को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया ! गायो को काट, हिन्दू नारियों का शील- भंग कर उनकी सारी संपत्ति लूट ली गयी !

हिन्दू - मुस्लिम एकता का बाजा बजाने वाले कुछ सनकी ओर झक्की लोग बड़े नाज ओर नखरों से यह तराना छेदते है, की मुस्लिम सन्तो ने भारत और पाक के मुसलमानो का धर्मपरिवर्तन उनकी इच्छा के अनुसार किया था , ऐतिहासिक द्रष्टिकोण से यह बात एक दम बकवास है, एक ओर बकवास यह कि मुसलमानो ने यहां मस्जिद ओर भवन बनाये, जबकि सच यह है, की हिन्दुओ को लाशों को कुत्तो को खिलाने वाले, हिन्दुओ के बच्चो को अपहरण कर उसका ख़तना वालो ने , एक दीवार भी भारत मे नही खड़ी की, कुतुबमीनार ओर लालकिला तो बहुत दूर की बात है !

वर्ष 1279 में अल्लाउद्दीन की सेना फिर से हिन्दुओ के वार्षिक लूट पर निकली, इस बार गुजरात की बारी थी ! अभियान का भार उधुल खान और नुसरत खान पर था ! तबाही फैलाने वाली मुस्लिम सेना के सामने अपनी राजधानी अहिलनबाड़ को छोड़ गुजरात के करनराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरि के रामराय के यहां शरण ली ! अन्हिलवाड़ ओर गुजरात को निर्विरोध निर्दयतापूर्ण लूटा गया ! रानी कमलीदेवी अन्तःपुर की अन्य रानियों के साथ मुसलमानो के हत्थे चढ़ गई ! उन सभी का बलात्कार हुआ !

बरनी हमे बताता है " सारा गुजरात आक्रमणकारियों का शिकार हो गया , महमूद गजनवी के लूट के बाद पुनर्स्थापित सोमनाथ की प्रतिमा को दिल्ली लाया गया, तथा लोगो के चलने के लिए उसे बिछा दिया गया ! ( इलियट एंड डाउसन पेज 163 पुस्तक 3 ) प्रत्येक मुस्लिम शाशक ने इन कुकृत्यों को बार बार दोहराया है । वे सभी मंदिर आज भी मस्जिद बने पड़े है ।

Thursday, 21 September 2017

दलित नहीं था महिषासुर

तीनों लोकों में आतंक मचाने वाले महिषासुर नाम के दैत्य का जन्म असुरराज रम्भ और एक महिष (भैंस) त्रिहायिणी के संग से हुआ था। रम्भ को जल में रहने वाली महिष से प्रेम हो गया। उनके संयोग से उत्पन्न होने के कारण महिषासुर अपनी इच्छा के अनुसार कभी मनुष्य तो कभी भैंस का रूप ले सकता था ।
महिषासुर राजा बना तो उसने घोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे अमर होने का वरदान मांगा, जिसे देना संभव न बताते हुए ब्रह्माजी ने उससे कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। तब उसने वर मांगा कि देव, दानव व मानव- इन तीनों में से किसी भी पुरुष द्वारा मेरी मृत्यु न हो सके। स्त्री तो मुझे वैसे भी मार नहीं सकती। वर पा लेने के बाद उसने पृथ्वी को जीत लिया और स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं से वहां का आधिपत्य छीन लिया।डरे हुए देवतागण ब्रह्माजी के पास व शिवजी के पास गए। और फिर वहां से सब मिल कर भगवान विष्णु के पास गए व अपनी रक्षा एवं सहायता की प्रार्थना की। यहीं से देवी के प्रकट होने की कथा आरम्भ होती है । देवताओं ने भगवान विष्णु से पूछा कि ऐसी कौन स्त्री होगी जो दुराचारी महिषासुर को मार सके, तब भगवान विष्णु ने कहा कि यदि सभी देवताओं के तेज से, सबकी शक्ति के अंश से कोई सुंदरी उत्पन्न की जाये, तो वही स्त्री दुष्ट महिषासुर का वध करने में समर्थ होगी। सभी देवतोओं के तेज से ए सुन्दर तथा महतेजस्विनी नारी प्रकट हो गई । सिंह पर सवार, सर्वाभूषणों से सुसज्जित देवी शोभामयी लग रही थी। अब सब देवों ने उन्हें विविध शस्त्र प्रदान किये। इस प्रकार सब आभूषणों से, शस्त्राशस्त्र से सुसज्जित भगवती को देख कर उनकी स्तुति करने लगे एवं उन्हें महिषासुर द्वारा किये गए उपद्रवों के बारे में बता कर उनसे रक्षा की प्रार्थना की । इस पर भगवती ने कहा कि हे देवगण ! भय का त्याग करो, उस मंदमति महिषासुर को मैं नष्ट कर दूंगी ।
देवी ने मंत्रीगणों को कहा की अब तुम उस पापी से जाकर कह दो कि यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो तुरंत पाताल लोक चले जाओ, अन्यथा मैं बाणों से तुम्हारा शरीर नष्ट -भ्रष्ट करके तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगी । इसके बाद देवी और महिषासुर के दैत्यों में घोर युद्द हुआ और देवी ने सभी का वध कर दिया। अंत में महिषासुर स्वयं संग्राम के लिये चला। तब माता नो कहा अब तू मुझसे युद्ध कर या पाताल लोक में जा कर रह, अन्यथा मैं तेरा वध कर दूंगी । देवी द्वारा ऐसा कहने पर वह क्रोधित हो गया और महिष (भैंस) का रूप धारण किया व सींगों से देवी पर प्रहार करने लगा। तब भगवती चण्डिका ने अपने त्रिशूल से उस पर आक्रमण किया। इसके बाद देवी ने सहस्र धार वाला चक्र हाथ में ले कर उस पर छोड़ दिया और महिषासुर का मस्तक काट कर उसे युद्ध भूमि में गिरा दिया। इस प्रकार दैत्यराज महिषासुर का अंत हुआ व भगवती महिषासुरमर्दिनी कहलायीं। देवताओं ने आनंदसूचक जयघोष किया। राजा की मृत्यु से बचे हुए भयभीत दानव अपने प्राण बचा कर पाताल लोक भाग गए। देवी और महिषासुर तथा उसकी सेना के बिच पूरे नौ दिन युद्द चला इसलिए नवरात्रे बनाए जाते है और दशवें दिन महिषासुर का वध कर दिया इसलिए उस दिन विजयादशमी।
पुराणिक कथाओ के अनुसार महिषासुर एक असुर था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है।
महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने फिर से मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गये।
कोई उपाय न पाक देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का आह्वान किया जिसे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
ये भैंस (भैंसासुर), हाथी ( गजासुर ), वकासुर (बगुला), भ्रमर (भौंरा ), कागासुर (कौवा), सर्पसूर (सांप) ये सब किसी इंसान के पूर्वज कैसे हो सकते है |
अनुवादों को ही मूल भाव मान लिया जाए, तब भी तथ्य कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। आज का महिषासुर निश्चित रूप से मूल नाम न होकर किसी नाम का अपभ्रंश प्रतीत होता है। जैसे त्रेता का ब्राह्मण विद्वान दसग्रिव या दशानन, जिसने ऋषियों द्वारा स्वयं के लिए राम की उपाधि को ठुकरा कर “रमन” (राम का मनन करने वाला) कहलाना स्वीकार किया, जो कालांतर में बिगड़ कर रावण हो गया या जैसे द्वापर के “सुयोधन”, “सुशासन”, और “सुशीला”, बिगड़ी ज़ुबान के कारण दुर्योधन, दुशासन और दु:शिला कहलाए। कालांतर में शायद में महिषासुर के साथ भी यही हुआ। किसी भी अपभ्रंश में तथ्यों और जानकारी की कमी और भावुकता की प्रधानता होती है। आसुरिता या असुरता जो स्वयं किसी शब्द का अपभ्रंश है, दरअसल एक जीवन शैली है, एक जीवन पद्धति है। कोई अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार नर्म शैय्या पर सोना पसंद करता है, कोई भूमि पर सोने को अनिवार्य मानता है। कोई धोती या लुंगी में सहज होता है, तो कोई पैंट या पायजामे को सभ्यता की पोशाक मानता है। इसी प्रकार सभ्यता के विस्तार में कुछ वर्गों ने समाज को सुर और असुर में बांटा। उन्होंने स्वयं को देव और विरोधियों को दानव और असुर बतलाया। मूलतः कला, साहित्य और संगीत से जुड़े लोगों ने तब के तकनीकी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और गणितज्ञों में सुर, कला और माधुर्य की कमी का उल्लेख करके उन्हें असुर कहा। तब वाहन के रूप में अश्व, उष्ट्र, नंदी, महिष जैसे पशुओं का प्रयोग होता था। महिषासुर का महिष उस शासक के वाहन का भी संकेत हो सकता है।
ऋग्वेद के छठे मंडल के 27वें सूक्त में वरशिखा नामक “असुर” का उल्लेख मिलता है। जिनके नगर का उल्लेख “इरावती” या “हरियूपिय” के रूप में मिलता है, जिसे विद्वान “हड़प्पा” की सभ्यता से जोड़कर देखते हैं। ऋग्वेद में असुरों को मायावी यानि तब के विज्ञान अर्थात् माया शक्ति और तन्त्र शक्ति से समृद्ध माना।
मान्यताएं असुरों को अनुसूरिया या असीरिया यानि सुमेरिया के साथ फ़ारस और इरान के मूल निवासी भी मानती हैं, जो देहवाद, भौतिकवाद और तब के विज्ञान यानि तंत्र का अनुसरण करते थे, जिसके कारण उन्होंने ढेरों समर्थक तो जुटाए पर इसके साथ उन्होंने बहुत विरोधी और आलोचक भी बना लिए। मगर उस काल खंड में वर्ण व्यवस्था नहीं होने से जातियों का प्राकट्य नहीं हुआ था। जाति व्यवस्था तो सभ्यता के विकास के बहुत बाद मनु से उपजी, इसलिए महिषासुर के दलित होने की बात खुद-ब-खुद खारिज हो जाती है। बाद में ब्राह्मण ऋषि पुलस्‍त्‍य के दौहित्र और ऋषि विश्रवा का पुत्र “रमन” यानि रावण अपनी वैज्ञानिक और तांत्रिक निष्ठा के साथ भौतिकवाद से लगाव के कारण ही ब्राह्मण जाति होते हुए भी असुर कहलाया। कहीं कहीं मूल निवासियों को आक्रांताओं के प्रत्युत्तर में हिंसक होने के कारण भी असुर कहा गया।



Friday, 1 September 2017

यहूदी

जुडेइज्म - यदुइज्म का अशुद्ध विकृत उच्चारण है । क्यो की कुछ भू- क्षेत्रो में Y (य) ओर J (ज ) एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग में आते है ।
यदु उर्फ जदु उर्फ यहूदी भी भगवान कृष्ण के कुल के लोग ही थे । इनको अपनी मूल नगरी द्वारिका छोड़नी पड़ी थी, ओर पश्चिम में अन्य किसी सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा था ।
इन लोगो का नवीनतम साम्राज्य " इजरायल " दो खंडित संस्कृत शब्दो का मिश्रण है । ISR इस्र शब्द ईश्वर है, ओर AEL का अर्थ आलय बनता है, जो निवास या घर का धोतक बनता है । पूरा नाम ईश्वरालय उर्फ इजरायल ।
यहूदी लोग खुद को ईश्वर के सबसे प्रिय प्राणी मानते है, क्यो की उनका कुल भगवान श्री कृष्ण के कुल से सम्बंध रखता है ।
इन लोगो का मानना है कि इनकी भाषा हिब्रू का प्रथम अक्षर ईश्वर के नाम से लिया गया है । H ( ह ) नाम से भला यहूदियों में कौनसा ईश्वर है ? वह h या ह कोई और नही , हरिकृष्ण ही है ।

कौरव_कल्पना_या_सत्य

#कौरव_कल्पना_या_सत्य ---
मेरी पिछली पोस्ट पे एक मित्र ने कौरव के 100 भाई होने की जिज्ञासा प्रकट की थी कि कैसे कौरव संख्या में 100 हुए जो सम्भव नही प्रतीत होता है । आज इसका खंडन करेंगे ।।
किसी भी एक जोड़े मानव दंपत्ति से 100 पुत्र पैदा होना असंभव है ऐसा हो ही नही सकता है । महाभारत सिर्फ कल्पना है जिसका कोई अस्तित्व नही है सिर्फ पंडितो ने अपने जीवन यापन के लिए ये कहानियां गढ़ ली है ना तो इसके पात्रों का कोई अस्तित्व है और 100 कौरव पुत्र ये तो बस कल्पना की पराकाष्ठा है मूर्ख बनाने की ।।
#पिछली पोस्ट में आपको मैंने बताया कि किस तरह कृतिम गर्भधारण कराया जाता था और इससे वन्श वृद्धि की जाती थी और अपना वंश बढ़ाया जाता था ।
कौरवों के 100 होने के पीछे भी कोई चमत्कार नही बल्कि विशुद्ध विज्ञान था आइये आपको परिचित कराते है उस तकनीकी से हालांकि अभी वर्तमान तकनीकी उंसके समकक्ष नही कही जा सकती फिर भी उससे तुलना करने पे आपको समझ आ जयगा की इसी तकनीकी का इस्तेमाल किया गया था जो उस समय कही ज्यादा अग्रणी था ।।
#वैदिक_साहित्यो_के_अनुसार -- वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ ।
ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) वह क्रिया है जिससे विविध शारीरिक ऊतक अथवा कोशिकाएँ किसी बाह्य माध्यम में उपयुक्त परिस्थितियों के विद्यमान रहने पर पोषित की जा सकती हैं। यह भली भाँति ज्ञात है कि शरीर की विविध प्रकार की कोशिकाओं में विविध उत्तेजनाओं के अनुसार उगने और अपने समान अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यह भी ज्ञात है कि जीवों में एक आंतरिक परिस्थिति भी होती है। (जिसे क्लाउड बर्नार्ड की मीलू अभ्यंतर कहते हैं) जो सजीव ऊतक की क्रियाशीलता को नियंत्रित रखने में बाह्य परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक महत्व की है।
#ऊतक-संवर्धन-प्रविधि का विकास इस मौलिक उद्देश्य से हुआ कि कोशिकाओं के कार्यकारी गुणों के अध्ययन की चेष्टा की जाए और यह पता लगाया जाए कि ये कोशिकाएँ अपनी बाह्य परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं और उनपर स्वयं क्या प्रभाव डालती हैं। इसके लिए यह आवश्यक था कि कोशिकाओं को अलग करके किसी कृत्रिम माध्यम में जीवित रखा जाए जिससे उनपर समूचे जीव का प्रभाव न पड़े।फिर उस कोशिकाओं से पूरा जीव तैयार करना ही
ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) तकनीकी का हिस्सा है ।
#विशेष - आज के समय मे भी ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) से पूरी की पूरी एक नई पीढ़ी तैयार की जा रही है हालांकि ये अभी पौधों पे ही सफल हो पाई है और जीवो पे अभी इसका प्रयोग सफल तो हुआ है लेकिन उसकी दर कम है (क्लोनिंग) ।
तो अब आप को पता चल ही गया होगा कि कौरवों की संख्या 100 होना मात्र कल्पना नही एक सत्य है जिसकी पुष्टि आज का विज्ञान भी करता है ।।

गुरुकुल

भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?
कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद 1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के
शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले
का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है: “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे
जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”
इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल
गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के
गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जे
ल में डाला।
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50
हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानू न के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे।
ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।

भेड़िया

एक भेड़िया था। जन्मजात धूर्त और मक्कार। एक जंगल मे उसने हिरण के बच्चे का शिकार किया और उसे खाने लगा।भेड़िये का परिवार भी उस हिरण के बच्चे का मांस खाने लगा, तभी मांस खाते वक्त भेड़िये और उसके बच्चे के गले में एक हड्डी अटक गई। बच्चा और भेड़िया दोनो तड़पने लगे, उन दोनों के गले लहूलुहान हो गए और उसमें गहरे घाव हो गए। #भेड़िया_भागा_भागा_तालाब_किनारे_रहने_वाले_सारस_के_पास_पहुँचा और दया की भीख मांगने लगा- "सारस भाई मदद करो मेरे और बच्चे दोनों के गले में हड्डी फंस गयीं हैं...केवल तुम ही इसे निकाल सकते हो।" सारस को उसपर दया आ गयी, उसने अपनी लम्बी चोंच से दोनों के गले में फंसी हड्डी निकाली और जंगल के पत्तो से बनी औषधी उसके गले में लगाई। सारस रोजाना उनके खाने पीने का भी इंतजाम करता। एक हफ्ते कि चिकित्सा के बाद वे दोनों पूरी तरह ठीक हो गए। भेड़िये ओर उसके बेटे दोनों को उस सारस के रहने की जगह इतनी पसन्द आयी कि वे वही रहने लगे और सारस के दाना पानी को ही खाने लगें और उसपर अपना अधिकार जताने लगे। सारस ओर उसका परिवार उन दोनों की हरकतों से परेशान हो गया। उन्होंने भेड़िये से निवेदन किया कि अब वे स्वस्थ हो गए हैं तो अब इस जगह को छोड़कर जाने की कृपा करें। सारस के मुंह से यह सुनते ही भेड़िया भड़क उठा, उसने उल्टा सारस को धमकाना शुरू कर दिया, किन्तु सारस और उसका परिवार विनम्रतापूर्वक अपने घर को मुक्त करने का निवेदन करता रहा। तब भेड़िये और उसके बच्चे ने क्रोधित होकर अपने जातिगत गुणों के अनुसार सारस पर हमला कर दिया और उसके पूरे परिवार को मारकर खा गये और उनकेे घर पर ही कब्जा करके रहने लगे।
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2 साल पहले तीन साल का #एलन_कुर्दी अपने पांच साल के भाई और मां के साथ समुद्र में डूब गया। पूरा परिवार 12 अन्य लोगों के साथ जंग से जूझ रहे सीरिया से निकलकर यूरोप जा रहा था। नाव समुद्र में पलट गई। एलन का पिता अब्दुल्ला बच गया। बच्चे का शव तुर्की के मुख्य टूरिस्ट रिजॉर्ट के पास समुद्र तट पर औंधे मुंह पड़ा मिला। बच्चे के शव की तस्वीर के सामने आते ही पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई।
#यूरोप_के_लिबरल_मानवाधिकारवादी_मीडिया_और_संगठनो ने इस घटना को लेकर आसमान सर पर उठा लिया। आम लोगों के साथ-साथ सरकारों के बीच भी बहस छिड़ी। जर्मनी ने कहा कि यूरोप के सभी देश रिफ्यूजियों को जगह देने से इनकार करने लगेंगे तो इससे "आइडिया ऑफ यूरोप" ही खत्म हो जाएगा। ये बच्चा बच सकता था, यदि यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इनकार नहीं करते। तुरंत जर्मनी और फ्रांस ने एलान किया कि शरणार्थियों के लिए यूरोपीय देशों का कोटा तय होगा। मौजूदा नियम में भी ढील दी जाएगी, ताकि लोगों का आना आसान हो। यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में 3 लाख लोग समुद्र के रास्ते ग्रीस आ चुके हैं।
मानवीय आधार पर तुर्की ने 20 लाख शरणार्थियों को अपनाया है, वहीं पूरे यूरोप ने बीते 5 साल में 10 लाख से अधिक लोगों को शरण दी,इन यूरोपीय देशो को उम्मीद थी कि इससे ये शरणार्थी मानवीय ओर गरिमापूर्ण जीवन के साथ यूरोपीय जीवन की मुख्यधारा में शामिल हो जायेगें।
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सोमवार को स्पेन के मशहूर पर्यटन शहर #बार्सिलोना_में_एक_वैन_से_भीड़_पर_हमला_किया_गया। इस हमले में कम से कम 13 लोग मारे गए हैं और करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। आतंकी संगठन Isis ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। स्पेन के बार्सिलोना से 100 किलोमीटर दूर #कैम्ब्रिल्स_में_एक_और_हमला_हुआ कार ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ कर भागने की कोशिश की। इसमें 7 नागरिक और एक पुलिस का जवान घायल हुआ है।
कुछ माह पूर्व ब्रिटेन के मैनचेस्टर शहर में अमेरिकी स्टार #एरियाना_ग्रांडे_के_पॉप_कॉन्सर्ट के दौरान हुए विस्फोट में 19 लोगों की मौत हो गई और करीब 50 अन्य लोग घायल हो गए।गए। कुछ माह पहले इंग्लेंड की संसद पर भी हमला हो चुका है। इससे पूर्व 2005 में भी लंदन में आत्मघाती हमला हुआ था जिसमें 52 लोग गऐ थे।
11 मार्च 2014 को स्पेन की राजधानी #मैड्रिड_में_इस्लामिक_चरमपंथियों_ने_कई_ट्रेनों_में_सीरियल_बम_ब्लास्ट_किया था। इस हमले में 191 लोग मारे गए थे जबकि 1800 से ऊपर लोग घायल हुए थे।अलकायदा से जुड़े मोरक्को के एक चरमपंथी ग्रुप ने लोकल ट्रेनों में 13 जगहों पर विस्फोटक सामग्री रख दी थी। सुबह दस बजे जब लोग ऑफिस के लिए जा रहे थे तभी बम धमाके हुए। मैड्रिड हमले के तीन हफ्ते बाद इसे अंजाम देने वाले सात लोगों ने पुलिस द्वारा घेरे जाने पर खुद को बम से उड़ा लिया था।
16 नवंबर, 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में कई जगह हुए आतंकी हमलो में 129 से ज्यादा लोग मारे गए थे। गोलीबारी और धमाकों में 200 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। घटना के बाद #फ्रांस_के_तत्कालीन_राष्ट्रपति_फ्रांस्वा_ओलांद ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसके बाद फ्रांस की सीमा सील कर कर दी गई थी।
फ्रांस के नीस शहर में राष्ट्रीय दिवस 'ब्रास्तील डे' पर आतिशबाजी देखने के लिए पहुंची भीड़ पर एक लॉरी के हमले में 84 लोगों की मौत हुई थी। इस हादसे में 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। मोहम्मद लावेइज बूहलल नाम के हमलावर ने ट्रक को भीड़ में दौड़ा दिया। करीब लगभग दो किलोमीटर तक ट्रक दौड़ाता रहा जिसके बाद पुलिस ने उसे गोली मार दी।
पिछले दो सालों में यूरोप के कई देशों में आतंकी घटनाओं में बेहताशा बढ़़ोतरी हुई है। और जांच में ये तथ्य सामने आया है कि इन सारे हमलों में एशियाई या अफ्रीकी देशो से आऐ इन शरणार्थियों का ही हाथ है। जबकि उनके साथ कहीं कोई भेदभाव या अत्याचार नहीं किया गया उन्हे पूरे सम्मान और अधिकार के रहने की सुविधा दी गयी है।
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भारत में भी 5 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये/शरणार्थी पूर्वोत्तर, बंगाल सहित पूरे देश मे अवैध रूप से रह रहे है और लूट, हत्या जैसे अपराधो के साथ बमविस्फोट और आतंकी गतिविधियों में पकड़े जा चुके है। अब म्यांमार से आये#40हजार_से_अधिक_रोहिंग्या_शरणार्थी मानवीय आधार पर भारत में शरण मांग रहे है, भारत के मानवाधिकारवादी उनकी मांग का समर्थन कर रहे हैं, सरकार ने अभी इसपर कोई निर्णय नहीं लिया है।
सरकार जो भी निर्णय ले पर
ध्यान रहे
#भेड़िये_कभी_अपना_मूल_स्वभाव_नहीं_बदलतें...!!!