Saturday, 26 August 2017

बौद्धिस्म में जातिवाद


#क्या_बौद्धिस्म_में_जातिवाद
आज आपको बौद्धों के बारे में बताता हूं क्योंकि ये कहते है कि सिर्फ हमारे धर्म मे कुछ भी कही भी अलगाव नही है हम सिर्फ बुद्ध की शिक्षाओं और बुद्ध को मानते है -
कहने को तो बौद्ध सम्प्रदाय एक है लेकिन इनमें भी महायान, थेरवाद, बज्रयान, मूलसर्वास्तिवाद, नवयान और 13 अन्य विभाजन है जो खुद को एक दूसरे से उच्च मानते है

#बौद्धों_ने भी समाज को काम के आधार पर चार वर्गों में बांटा गया है.– नोनो, फल्पा या थल्पा, गरा या दोंबा या ज़ोबा तथा बेदा या बेता । नोनो और फल्पा को सामाजिक सोपान के पदक्रम में ऊंची प्रस्थिति प्राप्त है तो मोन कहे जाने वाले गरा, दोंबा या जोबा तथा बेदा या बेता को दलित का दर्जा प्राप्त है । नोनो को शासक माना जाता है और फल्पा तथा थल्पा आम प्रजा और कृषक वर्ग। जोब़ा / गरा/ दोंबा का काम दैनिक या मध्य का माना जाता है जबकि बेदा या बेता मजदूर या सेवक(नौकर) आदि के कार्य करते हैं। जातिय पदक्रम में जोबा अपने को बेता से ऊंचा मानते हैं।

आइये कुछ प्रमुख वर्गीकृत भेदों को विस्तृत करके आप सभी को बताता हूँ -

#महायान -
महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी कहते हैं कि अधिकतर मनुष्यों के लिए निर्वाण-मार्ग अकेले ढूंढना मुश्किल या असम्भव है और उन्हें इस कार्य में सहायता मिलनी चाहिए। वे समझते हैं कि ब्रह्माण्ड के सभी प्राणी एक-दुसरे से जुड़े हैं और सभी से प्रेम करना और सभी के निर्वाण के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है। किसी भी प्राणी के लिए दुष्भावना नहीं रखनी चाहिए क्योंकि सभी जन्म-मृत्यु के जंजाल में फंसे हैं। एक हत्यारा या एक तुच्छ जीव अपना ही कोई फिर से जन्मा पूर्वज भी हो सकता है इसलिए उनकी भी सहायता करनी चाहिए। प्रेरणा और सहायता के लिए बोधिसत्त्वों को माना जाता है जो वे प्राणी हैं जो निर्वाण पा चुके हैं। महायान शाखा में ऐसे हज़ारों बोधिसत्त्वों को पूजा जाता है और उनका इस सम्प्रदाय में देवताओं-जैसा दर्जा है। इन बोधिसत्त्वों में कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं, उदाहरण के लिए अवलोकितेश्वर (अर्थ: 'दृष्टि नीचे जगत पर डालने वाले प्रभु'), अमिताभ (अर्थ: 'अनंत प्रकाश', 'अमित आभा'), मैत्रेय, मंजुश्री और क्षितिगर्भ।

#थेरवाद - 'थेरवाद' शब्द का अर्थ है 'बड़े-बुज़ुर्गों का कहना'। बौद्ध धर्म की इस शाखा में पालि भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर ज़ोर दिया जाता है। थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। इनके लिए गौतम बुद्ध एक गुरू एवं महापुरुष ज़रूर हैं लेकिन कोई अवतार या ईश्वर नहीं। वे उन्हें पूजते नहीं और न ही उनके धार्मिक समारोहों में बुद्ध-पूजा होती है। जहाँ महायान बौद्ध परम्पराओं में देवी-देवताओं जैसे बहुत से दिव्य जीवों को माना जाता है वहाँ थेरवाद बौद्ध परम्पराओं में ऐसी किसी हस्ती को नहीं पूजा जाता। थेरवादियों का मानना है कि हर मनुष्य को स्वयं ही निर्वाण का मार्ग ढूंढना होता है। इन समुदायों में युवकों के भिक्षुक बनने को बहुत शुभ माना जाता है और यहाँ यह रिवायत भी है कि युवक कुछ दिनों के लिए भिक्षु बनकर फिर गृहस्थ में लौट जाता है। थेरवाद शाखा दक्षिणी एशियाई क्षेत्रों में प्रचलित है, जैसे की श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, म्यान्मार, थाईलैंड और लाओस।

#बज्रयान -
वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तड़ित का वाहन है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है तथा भारत व पड़ोसी देशों में, विशेषकर तिब्बत में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में वज्रयान का उल्लेख महायान के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है।
वज्र -
‘वज्र’ शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा स्वयं अपने व अपनी प्रकृति के बारे में की गई कल्पनाओं के विपरीत मनुष्य में निहित वास्तविक एवं अविनाशी स्वरूप के लिये किया जाता है।
यान -
‘यान’ वास्तव में अंतिम मोक्ष और अविनाशी तत्त्व को प्राप्त करने की आध्यात्मिक यात्रा है।

#मूलसर्वास्तिवाद -
(परम्परागत चीनी : 根本說一切有部; ; pinyin: Gēnběn Shuō Yīqièyǒu Bù) भारत का एक प्राचीन आरम्भिक बौद्ध दर्शन है। इस दर्शन की उत्पत्ति के बारे में तथा इसका सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय से सम्बन्ध के बारे में प्रायः कुछ भी ज्ञात नहीं है। फिर भी, इसके बारे में कई सिद्धान्त मौजूद हैं। मूलसर्वास्तिवादी सम्प्रदाय का मठ अब भी तिब्बत में विद्यमान है।

#नवयान या भीमयान -
नवयान या भीमयान भारत का प्रमुख बौद्ध धर्म का सम्प्रदाय हैं। नवयान का अर्थ है– नव = नया या शुद्ध, यान = मार्ग या वाहन। नवयान को भीमयान या आंबेडकरवाद भी कहते हैं। नवयानी बौद्ध अनुयायिओं को नवबौद्ध (नये बौद्ध) भी कहा जाता, क्योंकि वे छह दशक पूर्व ही बौद्ध बने हैं। नवयान को भीमयान नाम डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के मूल भीमराव से पड़ा हैं।
स्वतंत्रता के बाद बहुत बड़ी संख्या में एक साथ आंबेडकर के नेतृत्व में ही बौद्ध धम्म परिवर्तन हुआ था। 14 अक्तूबर, 1956 को नागपुर में यह दीक्षा सम्पन्न हुई। भीमराव के 5,00,000 समर्थक बौद्ध बने है, उगले 2,00,000 फिर तिसरे दिन 16 अक्टूबर को चंद्रपूर में 3,00,000। इस तरह कुल 10 लाख से भी अधिक लोग भीमराव ने केवल तीन दिन में बौद्ध बनाये थे।
लेकिन ये नवयान बौद्ध दर्शन की मुख्य सिद्धांतो से बिल्कुल अलग है ये सिर्फ नाम के बौद्ध है जो न तो बौद्ध की शिक्षाओं को मानते है ना उनके सिद्धांत को

#विशेष - बुद्ध धर्म में जाति विभेद का नमूना अभी हाल के वर्ष में देखने को मिला जब 2007 में कुछ नीची कही जाने वाली जाति के बच्चों को कर्नाटक के मठ में बौद्ध भिक्षु की शिक्षा ग्रहण करने के लिए चुना गया । चुने जाने के बाद उन 16 बच्चों (8 से 28 वर्ष) को कर्नाटक के मठ भेज़ दिया गया, इसी इलाके के तथाकथित ऊंची जाति के बच्चे भी उसी मठ में रहते हैं उनसे यह सहन नहीं होना था और हुआ भी नहीं कि ये दबे हुए निचले तबके के लोग उनकी बराबरी करें । तो हर तरह से उन बच्चों के घरवालों को ड़राया-धमकाया तथा उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया गया और अंतत इस बात के लिए मज़बूर किया गया कि उन छाञों को वापिस बुलाना पड़ा । “संविधान के सामाजिक अन्याय” पुस्तक में इस घटना का विस्तृत वर्णन है

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