Sunday, 12 November 2017

ब्राह्मणों द्वारा अत्याचार वामपंथी षड्यंत्र का हिस्सा

 ब्राह्मणों द्वारा अत्याचार एक झूठ है | जिसे वामपंथी मुग़ल इतिहास कार ने षड़यंत्र तहत हिन्दू समाज तोड़ा है |
लोग नदी तालाब के पास रहते थे ! लकड़ी खडाऊ पहनता था |
कोई शोचालय नही था ! कोई चमार नही था ना कोई चमरे का व्यापार ! पालतुपशु का दाह संसकार होता था !ज़िसका पशु होता था वो और उसके परिजन दाह संसकार करते थे !लोग फल फूल खाते थे ! शिकार सिर्फ हिंसक जानवर का होता था !कितना बाताऊँ घोडे का ज़िन और दास्ताने मुगल काल मे आये और मैला कारोबार ! मन्दिर मे ढ़ोल नही कीर्तान नही हवन और वैदिक मंत्रोचारांन होता था !
ढ़ोल कीर्तान भक्ती काल मे आये !
तांत्रिक पूजा मे तांत्रिक बलि देते है ! तांत्रिक ओउघड अाज भी देते है !
औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी बर्षो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा
हरिजन जाति गांधी ने बनाया ! संविधान ने ऊँच निच बनाया ! मनुस्मृति मनु माहाराज राजपूत ने लिखा तो ब्राहमन को गाली क्यों ?
चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।
ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया।
उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा :- ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥” यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया।
हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं।
हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।
चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है।
हमारे भगवान् संत रविदास ने इस प्रकार कहा है :
SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।

Saturday, 23 September 2017

अल्लाउद्दीन खिलजी एक कलंक

मुस्लिम इतिहास के हजार वर्षीय काले इतिहास में , जन्मा ओर पला प्रत्येक भारतीय मुस्लिम शाशक चाहे उसका नाम कुछ भी रहा हो, अकबर या ओरेंगजेब, अहमदशाह या अल्लाउद्दीन , वह बलात्कार, अत्याचार कपट ओर दुष्टता का साक्षात अवतार था । इस सच्चाई को जानने के लिए हमने जो सिर हमने हिन्दू-मुस्लिम एकता की दुहाई देकर जमीन में गाड़ रखा है, उसे बाहर निकालना होगा ! इन्ही शैतानों में एक नाम अल्लाउदीन खिलजी का है, जो अपनी दुष्टता में साक्षात जंगली हिंसक पशु ही था !

इस्लामी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए यह मल्लेछ अपने ससुर ओर चाचा जलालुद्दीन खिलजी का हत्यारा भी था ! गद्दी हड़पने के लिए अपने ही लोगो की हत्या करना इस्लाम की पुरानी परंपरा में शामिल रहा है, इन शांतिप्रिय लोगो ने तो मुहम्मद के परिवार तक को ना छोड़ा था !

घर के आपसी दंगे के बाद अल्लाउद्दीन सुल्तान बना, सुल्तान बनते ही इसकी आंखों में सबसे पहले मुल्तान खटका ! मुल्तान में पहले के सुल्तान जलालुद्दीन के पुत्रगण शाशन कर रहे थे ! इसलिए इसने पहले इनसे ही निपट लेने की ठानी ! मृत सुल्तान की पत्नियों, बच्चो, नोकरो, तथा सहायकों को घेरने के लिए इसने उधुल खान और जफर खान के नेतृत्व में विशाल सेना तैयार की ! जीवन की आशंका से भयभीत होकर मुल्तान के सुल्तानों ने आत्मसमर्पण का संधि पत्र अल्लाउद्दीन को भेज दिया, अल्लाउद्दीन ने भी उस निवेदन को स्वीकार कर लिया , ओर यथोचित आदरसम्मान देने का वचन दिया !

मुल्तान से इन लोगो को दिल्ली लाने के लिए सेना गयी ! अल्लाउद्दीन की ही आज्ञा लेकर नुसरत खान के एक दल ने दिल्ली पहुंचने से पहले सुनसान मार्गपर काफिले को रौका गया ! इसके बाद क्रूर और गंदे कामो की बिस्मिल्लाह हुई ! शाही बंदियों के सारे स्वर्ण आभूषण छीन लिए गए ! सुंदर और जवान नारियों को बलात्कार करने के लिए अलग छांट लिया , शिशुओं ओर बुढो का, जिनका कोई कामुक उपयोग नही था, उन्हें हलालकर ठंडा कर दिया गया , अगर कुछ लोगो को जिंदा भी छोड़ा गया था, तो तपती शलाखाओ से उनकी आंखों को फोड़कर ! जलालुद्दीन के पुत्रों को हाथों में हथकड़ियां डालकर दिल्ली लाया गया , जहां महल के एक गंदे तहखाने में उसे फेंक दिया गया ! जलालुद्दीन के सारे परिवार की महिलाओ को अल्लाउदीन ने अपने हरम में घसीट लिया ! एक मुसलमान अपने ही रक्त ओर मांस से निमित मुसलमान के साथ कितना नीच व्यवहार कर सकता था, उसका यह जीता जागता उदारहण है , काफ़िर तो रहे दर किनारे ....

अपनी श्रेष्ठ ओर अतुलनीय दुष्टता के उपहारस्वरूप नुसरत खान को मुख्यमंत्री का पद मिला ! अब आप यह ना समझे कि क्रूरता केवल अल्लाउद्दीन की बपौती थी, इनमे इन सब का बाप वो आसमानी चंपक की बकैती करने वाला था , यह अल्लाउदीन , अकबर, बकबर तो बस उसके बताए पदचिन्हों पर चल रहे थे , संयोग से अल्लाउदीन को बरनी जैसा चाटुकार इतिहास लेखक मिल गया, जिसने इस शैतान के खूनी कारनामो की प्रशंसा में कुछ अधिक पन्ने रंग डाले !

अल्लाउद्दीन की ताजपोशी के एक वर्ष के भीतर ही विशाल मुगल सेना ने सिंध के क्षेत्रों को कुचलना शुरू कर दिया था ! बढ़ते हुए मुगलो को रोकने के लिए अल्लाउदीन ने भी एक सेना भेज दी , जालंधर के समीप संग्राम हुआ ! विजयी अल्लाउद्दीन की सेना ने हाथ आये सारे मुगलो का सिर काट फेंका , गधो ओर ऊँटो पट लादकर इन सिरों को अल्लाउद्दीन के यहां पार्सल कर दिया गया ! जिसके लिए यह गले- सड़े सिर विजयी मधुवन में फूलो की तरह सुगंध देने वाली वस्तु थी ! अफ्रीका की एक जंगली जाति भी अपने शत्रुओं के सिरों की माला पहनकर इठलाती घूमती है, यह उसी सभ्यता की निशानी है !!

मुगलो को भगाने के बाद जालन्धर में हिन्दुओ पर अब अल्लाउद्दीन की सेना ने कहर ढाया ! मार्ग में जितने भी हिन्दू घर आये, सब लूट लिए गये ! हिन्दू मंदिरो को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया ! गायो को काट, हिन्दू नारियों का शील- भंग कर उनकी सारी संपत्ति लूट ली गयी !

हिन्दू - मुस्लिम एकता का बाजा बजाने वाले कुछ सनकी ओर झक्की लोग बड़े नाज ओर नखरों से यह तराना छेदते है, की मुस्लिम सन्तो ने भारत और पाक के मुसलमानो का धर्मपरिवर्तन उनकी इच्छा के अनुसार किया था , ऐतिहासिक द्रष्टिकोण से यह बात एक दम बकवास है, एक ओर बकवास यह कि मुसलमानो ने यहां मस्जिद ओर भवन बनाये, जबकि सच यह है, की हिन्दुओ को लाशों को कुत्तो को खिलाने वाले, हिन्दुओ के बच्चो को अपहरण कर उसका ख़तना वालो ने , एक दीवार भी भारत मे नही खड़ी की, कुतुबमीनार ओर लालकिला तो बहुत दूर की बात है !

वर्ष 1279 में अल्लाउद्दीन की सेना फिर से हिन्दुओ के वार्षिक लूट पर निकली, इस बार गुजरात की बारी थी ! अभियान का भार उधुल खान और नुसरत खान पर था ! तबाही फैलाने वाली मुस्लिम सेना के सामने अपनी राजधानी अहिलनबाड़ को छोड़ गुजरात के करनराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरि के रामराय के यहां शरण ली ! अन्हिलवाड़ ओर गुजरात को निर्विरोध निर्दयतापूर्ण लूटा गया ! रानी कमलीदेवी अन्तःपुर की अन्य रानियों के साथ मुसलमानो के हत्थे चढ़ गई ! उन सभी का बलात्कार हुआ !

बरनी हमे बताता है " सारा गुजरात आक्रमणकारियों का शिकार हो गया , महमूद गजनवी के लूट के बाद पुनर्स्थापित सोमनाथ की प्रतिमा को दिल्ली लाया गया, तथा लोगो के चलने के लिए उसे बिछा दिया गया ! ( इलियट एंड डाउसन पेज 163 पुस्तक 3 ) प्रत्येक मुस्लिम शाशक ने इन कुकृत्यों को बार बार दोहराया है । वे सभी मंदिर आज भी मस्जिद बने पड़े है ।

Thursday, 21 September 2017

दलित नहीं था महिषासुर

तीनों लोकों में आतंक मचाने वाले महिषासुर नाम के दैत्य का जन्म असुरराज रम्भ और एक महिष (भैंस) त्रिहायिणी के संग से हुआ था। रम्भ को जल में रहने वाली महिष से प्रेम हो गया। उनके संयोग से उत्पन्न होने के कारण महिषासुर अपनी इच्छा के अनुसार कभी मनुष्य तो कभी भैंस का रूप ले सकता था ।
महिषासुर राजा बना तो उसने घोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे अमर होने का वरदान मांगा, जिसे देना संभव न बताते हुए ब्रह्माजी ने उससे कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। तब उसने वर मांगा कि देव, दानव व मानव- इन तीनों में से किसी भी पुरुष द्वारा मेरी मृत्यु न हो सके। स्त्री तो मुझे वैसे भी मार नहीं सकती। वर पा लेने के बाद उसने पृथ्वी को जीत लिया और स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं से वहां का आधिपत्य छीन लिया।डरे हुए देवतागण ब्रह्माजी के पास व शिवजी के पास गए। और फिर वहां से सब मिल कर भगवान विष्णु के पास गए व अपनी रक्षा एवं सहायता की प्रार्थना की। यहीं से देवी के प्रकट होने की कथा आरम्भ होती है । देवताओं ने भगवान विष्णु से पूछा कि ऐसी कौन स्त्री होगी जो दुराचारी महिषासुर को मार सके, तब भगवान विष्णु ने कहा कि यदि सभी देवताओं के तेज से, सबकी शक्ति के अंश से कोई सुंदरी उत्पन्न की जाये, तो वही स्त्री दुष्ट महिषासुर का वध करने में समर्थ होगी। सभी देवतोओं के तेज से ए सुन्दर तथा महतेजस्विनी नारी प्रकट हो गई । सिंह पर सवार, सर्वाभूषणों से सुसज्जित देवी शोभामयी लग रही थी। अब सब देवों ने उन्हें विविध शस्त्र प्रदान किये। इस प्रकार सब आभूषणों से, शस्त्राशस्त्र से सुसज्जित भगवती को देख कर उनकी स्तुति करने लगे एवं उन्हें महिषासुर द्वारा किये गए उपद्रवों के बारे में बता कर उनसे रक्षा की प्रार्थना की । इस पर भगवती ने कहा कि हे देवगण ! भय का त्याग करो, उस मंदमति महिषासुर को मैं नष्ट कर दूंगी ।
देवी ने मंत्रीगणों को कहा की अब तुम उस पापी से जाकर कह दो कि यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो तुरंत पाताल लोक चले जाओ, अन्यथा मैं बाणों से तुम्हारा शरीर नष्ट -भ्रष्ट करके तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगी । इसके बाद देवी और महिषासुर के दैत्यों में घोर युद्द हुआ और देवी ने सभी का वध कर दिया। अंत में महिषासुर स्वयं संग्राम के लिये चला। तब माता नो कहा अब तू मुझसे युद्ध कर या पाताल लोक में जा कर रह, अन्यथा मैं तेरा वध कर दूंगी । देवी द्वारा ऐसा कहने पर वह क्रोधित हो गया और महिष (भैंस) का रूप धारण किया व सींगों से देवी पर प्रहार करने लगा। तब भगवती चण्डिका ने अपने त्रिशूल से उस पर आक्रमण किया। इसके बाद देवी ने सहस्र धार वाला चक्र हाथ में ले कर उस पर छोड़ दिया और महिषासुर का मस्तक काट कर उसे युद्ध भूमि में गिरा दिया। इस प्रकार दैत्यराज महिषासुर का अंत हुआ व भगवती महिषासुरमर्दिनी कहलायीं। देवताओं ने आनंदसूचक जयघोष किया। राजा की मृत्यु से बचे हुए भयभीत दानव अपने प्राण बचा कर पाताल लोक भाग गए। देवी और महिषासुर तथा उसकी सेना के बिच पूरे नौ दिन युद्द चला इसलिए नवरात्रे बनाए जाते है और दशवें दिन महिषासुर का वध कर दिया इसलिए उस दिन विजयादशमी।
पुराणिक कथाओ के अनुसार महिषासुर एक असुर था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है।
महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने फिर से मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गये।
कोई उपाय न पाक देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का आह्वान किया जिसे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
ये भैंस (भैंसासुर), हाथी ( गजासुर ), वकासुर (बगुला), भ्रमर (भौंरा ), कागासुर (कौवा), सर्पसूर (सांप) ये सब किसी इंसान के पूर्वज कैसे हो सकते है |
अनुवादों को ही मूल भाव मान लिया जाए, तब भी तथ्य कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। आज का महिषासुर निश्चित रूप से मूल नाम न होकर किसी नाम का अपभ्रंश प्रतीत होता है। जैसे त्रेता का ब्राह्मण विद्वान दसग्रिव या दशानन, जिसने ऋषियों द्वारा स्वयं के लिए राम की उपाधि को ठुकरा कर “रमन” (राम का मनन करने वाला) कहलाना स्वीकार किया, जो कालांतर में बिगड़ कर रावण हो गया या जैसे द्वापर के “सुयोधन”, “सुशासन”, और “सुशीला”, बिगड़ी ज़ुबान के कारण दुर्योधन, दुशासन और दु:शिला कहलाए। कालांतर में शायद में महिषासुर के साथ भी यही हुआ। किसी भी अपभ्रंश में तथ्यों और जानकारी की कमी और भावुकता की प्रधानता होती है। आसुरिता या असुरता जो स्वयं किसी शब्द का अपभ्रंश है, दरअसल एक जीवन शैली है, एक जीवन पद्धति है। कोई अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार नर्म शैय्या पर सोना पसंद करता है, कोई भूमि पर सोने को अनिवार्य मानता है। कोई धोती या लुंगी में सहज होता है, तो कोई पैंट या पायजामे को सभ्यता की पोशाक मानता है। इसी प्रकार सभ्यता के विस्तार में कुछ वर्गों ने समाज को सुर और असुर में बांटा। उन्होंने स्वयं को देव और विरोधियों को दानव और असुर बतलाया। मूलतः कला, साहित्य और संगीत से जुड़े लोगों ने तब के तकनीकी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और गणितज्ञों में सुर, कला और माधुर्य की कमी का उल्लेख करके उन्हें असुर कहा। तब वाहन के रूप में अश्व, उष्ट्र, नंदी, महिष जैसे पशुओं का प्रयोग होता था। महिषासुर का महिष उस शासक के वाहन का भी संकेत हो सकता है।
ऋग्वेद के छठे मंडल के 27वें सूक्त में वरशिखा नामक “असुर” का उल्लेख मिलता है। जिनके नगर का उल्लेख “इरावती” या “हरियूपिय” के रूप में मिलता है, जिसे विद्वान “हड़प्पा” की सभ्यता से जोड़कर देखते हैं। ऋग्वेद में असुरों को मायावी यानि तब के विज्ञान अर्थात् माया शक्ति और तन्त्र शक्ति से समृद्ध माना।
मान्यताएं असुरों को अनुसूरिया या असीरिया यानि सुमेरिया के साथ फ़ारस और इरान के मूल निवासी भी मानती हैं, जो देहवाद, भौतिकवाद और तब के विज्ञान यानि तंत्र का अनुसरण करते थे, जिसके कारण उन्होंने ढेरों समर्थक तो जुटाए पर इसके साथ उन्होंने बहुत विरोधी और आलोचक भी बना लिए। मगर उस काल खंड में वर्ण व्यवस्था नहीं होने से जातियों का प्राकट्य नहीं हुआ था। जाति व्यवस्था तो सभ्यता के विकास के बहुत बाद मनु से उपजी, इसलिए महिषासुर के दलित होने की बात खुद-ब-खुद खारिज हो जाती है। बाद में ब्राह्मण ऋषि पुलस्‍त्‍य के दौहित्र और ऋषि विश्रवा का पुत्र “रमन” यानि रावण अपनी वैज्ञानिक और तांत्रिक निष्ठा के साथ भौतिकवाद से लगाव के कारण ही ब्राह्मण जाति होते हुए भी असुर कहलाया। कहीं कहीं मूल निवासियों को आक्रांताओं के प्रत्युत्तर में हिंसक होने के कारण भी असुर कहा गया।



Friday, 1 September 2017

यहूदी

जुडेइज्म - यदुइज्म का अशुद्ध विकृत उच्चारण है । क्यो की कुछ भू- क्षेत्रो में Y (य) ओर J (ज ) एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग में आते है ।
यदु उर्फ जदु उर्फ यहूदी भी भगवान कृष्ण के कुल के लोग ही थे । इनको अपनी मूल नगरी द्वारिका छोड़नी पड़ी थी, ओर पश्चिम में अन्य किसी सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा था ।
इन लोगो का नवीनतम साम्राज्य " इजरायल " दो खंडित संस्कृत शब्दो का मिश्रण है । ISR इस्र शब्द ईश्वर है, ओर AEL का अर्थ आलय बनता है, जो निवास या घर का धोतक बनता है । पूरा नाम ईश्वरालय उर्फ इजरायल ।
यहूदी लोग खुद को ईश्वर के सबसे प्रिय प्राणी मानते है, क्यो की उनका कुल भगवान श्री कृष्ण के कुल से सम्बंध रखता है ।
इन लोगो का मानना है कि इनकी भाषा हिब्रू का प्रथम अक्षर ईश्वर के नाम से लिया गया है । H ( ह ) नाम से भला यहूदियों में कौनसा ईश्वर है ? वह h या ह कोई और नही , हरिकृष्ण ही है ।

कौरव_कल्पना_या_सत्य

#कौरव_कल्पना_या_सत्य ---
मेरी पिछली पोस्ट पे एक मित्र ने कौरव के 100 भाई होने की जिज्ञासा प्रकट की थी कि कैसे कौरव संख्या में 100 हुए जो सम्भव नही प्रतीत होता है । आज इसका खंडन करेंगे ।।
किसी भी एक जोड़े मानव दंपत्ति से 100 पुत्र पैदा होना असंभव है ऐसा हो ही नही सकता है । महाभारत सिर्फ कल्पना है जिसका कोई अस्तित्व नही है सिर्फ पंडितो ने अपने जीवन यापन के लिए ये कहानियां गढ़ ली है ना तो इसके पात्रों का कोई अस्तित्व है और 100 कौरव पुत्र ये तो बस कल्पना की पराकाष्ठा है मूर्ख बनाने की ।।
#पिछली पोस्ट में आपको मैंने बताया कि किस तरह कृतिम गर्भधारण कराया जाता था और इससे वन्श वृद्धि की जाती थी और अपना वंश बढ़ाया जाता था ।
कौरवों के 100 होने के पीछे भी कोई चमत्कार नही बल्कि विशुद्ध विज्ञान था आइये आपको परिचित कराते है उस तकनीकी से हालांकि अभी वर्तमान तकनीकी उंसके समकक्ष नही कही जा सकती फिर भी उससे तुलना करने पे आपको समझ आ जयगा की इसी तकनीकी का इस्तेमाल किया गया था जो उस समय कही ज्यादा अग्रणी था ।।
#वैदिक_साहित्यो_के_अनुसार -- वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ ।
ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) वह क्रिया है जिससे विविध शारीरिक ऊतक अथवा कोशिकाएँ किसी बाह्य माध्यम में उपयुक्त परिस्थितियों के विद्यमान रहने पर पोषित की जा सकती हैं। यह भली भाँति ज्ञात है कि शरीर की विविध प्रकार की कोशिकाओं में विविध उत्तेजनाओं के अनुसार उगने और अपने समान अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यह भी ज्ञात है कि जीवों में एक आंतरिक परिस्थिति भी होती है। (जिसे क्लाउड बर्नार्ड की मीलू अभ्यंतर कहते हैं) जो सजीव ऊतक की क्रियाशीलता को नियंत्रित रखने में बाह्य परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक महत्व की है।
#ऊतक-संवर्धन-प्रविधि का विकास इस मौलिक उद्देश्य से हुआ कि कोशिकाओं के कार्यकारी गुणों के अध्ययन की चेष्टा की जाए और यह पता लगाया जाए कि ये कोशिकाएँ अपनी बाह्य परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं और उनपर स्वयं क्या प्रभाव डालती हैं। इसके लिए यह आवश्यक था कि कोशिकाओं को अलग करके किसी कृत्रिम माध्यम में जीवित रखा जाए जिससे उनपर समूचे जीव का प्रभाव न पड़े।फिर उस कोशिकाओं से पूरा जीव तैयार करना ही
ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) तकनीकी का हिस्सा है ।
#विशेष - आज के समय मे भी ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) से पूरी की पूरी एक नई पीढ़ी तैयार की जा रही है हालांकि ये अभी पौधों पे ही सफल हो पाई है और जीवो पे अभी इसका प्रयोग सफल तो हुआ है लेकिन उसकी दर कम है (क्लोनिंग) ।
तो अब आप को पता चल ही गया होगा कि कौरवों की संख्या 100 होना मात्र कल्पना नही एक सत्य है जिसकी पुष्टि आज का विज्ञान भी करता है ।।

गुरुकुल

भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?
कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद 1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के
शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले
का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है: “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे
जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”
इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल
गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के
गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जे
ल में डाला।
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50
हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानू न के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे।
ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।

भेड़िया

एक भेड़िया था। जन्मजात धूर्त और मक्कार। एक जंगल मे उसने हिरण के बच्चे का शिकार किया और उसे खाने लगा।भेड़िये का परिवार भी उस हिरण के बच्चे का मांस खाने लगा, तभी मांस खाते वक्त भेड़िये और उसके बच्चे के गले में एक हड्डी अटक गई। बच्चा और भेड़िया दोनो तड़पने लगे, उन दोनों के गले लहूलुहान हो गए और उसमें गहरे घाव हो गए। #भेड़िया_भागा_भागा_तालाब_किनारे_रहने_वाले_सारस_के_पास_पहुँचा और दया की भीख मांगने लगा- "सारस भाई मदद करो मेरे और बच्चे दोनों के गले में हड्डी फंस गयीं हैं...केवल तुम ही इसे निकाल सकते हो।" सारस को उसपर दया आ गयी, उसने अपनी लम्बी चोंच से दोनों के गले में फंसी हड्डी निकाली और जंगल के पत्तो से बनी औषधी उसके गले में लगाई। सारस रोजाना उनके खाने पीने का भी इंतजाम करता। एक हफ्ते कि चिकित्सा के बाद वे दोनों पूरी तरह ठीक हो गए। भेड़िये ओर उसके बेटे दोनों को उस सारस के रहने की जगह इतनी पसन्द आयी कि वे वही रहने लगे और सारस के दाना पानी को ही खाने लगें और उसपर अपना अधिकार जताने लगे। सारस ओर उसका परिवार उन दोनों की हरकतों से परेशान हो गया। उन्होंने भेड़िये से निवेदन किया कि अब वे स्वस्थ हो गए हैं तो अब इस जगह को छोड़कर जाने की कृपा करें। सारस के मुंह से यह सुनते ही भेड़िया भड़क उठा, उसने उल्टा सारस को धमकाना शुरू कर दिया, किन्तु सारस और उसका परिवार विनम्रतापूर्वक अपने घर को मुक्त करने का निवेदन करता रहा। तब भेड़िये और उसके बच्चे ने क्रोधित होकर अपने जातिगत गुणों के अनुसार सारस पर हमला कर दिया और उसके पूरे परिवार को मारकर खा गये और उनकेे घर पर ही कब्जा करके रहने लगे।
=×=×=
2 साल पहले तीन साल का #एलन_कुर्दी अपने पांच साल के भाई और मां के साथ समुद्र में डूब गया। पूरा परिवार 12 अन्य लोगों के साथ जंग से जूझ रहे सीरिया से निकलकर यूरोप जा रहा था। नाव समुद्र में पलट गई। एलन का पिता अब्दुल्ला बच गया। बच्चे का शव तुर्की के मुख्य टूरिस्ट रिजॉर्ट के पास समुद्र तट पर औंधे मुंह पड़ा मिला। बच्चे के शव की तस्वीर के सामने आते ही पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई।
#यूरोप_के_लिबरल_मानवाधिकारवादी_मीडिया_और_संगठनो ने इस घटना को लेकर आसमान सर पर उठा लिया। आम लोगों के साथ-साथ सरकारों के बीच भी बहस छिड़ी। जर्मनी ने कहा कि यूरोप के सभी देश रिफ्यूजियों को जगह देने से इनकार करने लगेंगे तो इससे "आइडिया ऑफ यूरोप" ही खत्म हो जाएगा। ये बच्चा बच सकता था, यदि यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इनकार नहीं करते। तुरंत जर्मनी और फ्रांस ने एलान किया कि शरणार्थियों के लिए यूरोपीय देशों का कोटा तय होगा। मौजूदा नियम में भी ढील दी जाएगी, ताकि लोगों का आना आसान हो। यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में 3 लाख लोग समुद्र के रास्ते ग्रीस आ चुके हैं।
मानवीय आधार पर तुर्की ने 20 लाख शरणार्थियों को अपनाया है, वहीं पूरे यूरोप ने बीते 5 साल में 10 लाख से अधिक लोगों को शरण दी,इन यूरोपीय देशो को उम्मीद थी कि इससे ये शरणार्थी मानवीय ओर गरिमापूर्ण जीवन के साथ यूरोपीय जीवन की मुख्यधारा में शामिल हो जायेगें।
=×=×=
सोमवार को स्पेन के मशहूर पर्यटन शहर #बार्सिलोना_में_एक_वैन_से_भीड़_पर_हमला_किया_गया। इस हमले में कम से कम 13 लोग मारे गए हैं और करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। आतंकी संगठन Isis ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। स्पेन के बार्सिलोना से 100 किलोमीटर दूर #कैम्ब्रिल्स_में_एक_और_हमला_हुआ कार ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ कर भागने की कोशिश की। इसमें 7 नागरिक और एक पुलिस का जवान घायल हुआ है।
कुछ माह पूर्व ब्रिटेन के मैनचेस्टर शहर में अमेरिकी स्टार #एरियाना_ग्रांडे_के_पॉप_कॉन्सर्ट के दौरान हुए विस्फोट में 19 लोगों की मौत हो गई और करीब 50 अन्य लोग घायल हो गए।गए। कुछ माह पहले इंग्लेंड की संसद पर भी हमला हो चुका है। इससे पूर्व 2005 में भी लंदन में आत्मघाती हमला हुआ था जिसमें 52 लोग गऐ थे।
11 मार्च 2014 को स्पेन की राजधानी #मैड्रिड_में_इस्लामिक_चरमपंथियों_ने_कई_ट्रेनों_में_सीरियल_बम_ब्लास्ट_किया था। इस हमले में 191 लोग मारे गए थे जबकि 1800 से ऊपर लोग घायल हुए थे।अलकायदा से जुड़े मोरक्को के एक चरमपंथी ग्रुप ने लोकल ट्रेनों में 13 जगहों पर विस्फोटक सामग्री रख दी थी। सुबह दस बजे जब लोग ऑफिस के लिए जा रहे थे तभी बम धमाके हुए। मैड्रिड हमले के तीन हफ्ते बाद इसे अंजाम देने वाले सात लोगों ने पुलिस द्वारा घेरे जाने पर खुद को बम से उड़ा लिया था।
16 नवंबर, 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में कई जगह हुए आतंकी हमलो में 129 से ज्यादा लोग मारे गए थे। गोलीबारी और धमाकों में 200 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। घटना के बाद #फ्रांस_के_तत्कालीन_राष्ट्रपति_फ्रांस्वा_ओलांद ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसके बाद फ्रांस की सीमा सील कर कर दी गई थी।
फ्रांस के नीस शहर में राष्ट्रीय दिवस 'ब्रास्तील डे' पर आतिशबाजी देखने के लिए पहुंची भीड़ पर एक लॉरी के हमले में 84 लोगों की मौत हुई थी। इस हादसे में 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। मोहम्मद लावेइज बूहलल नाम के हमलावर ने ट्रक को भीड़ में दौड़ा दिया। करीब लगभग दो किलोमीटर तक ट्रक दौड़ाता रहा जिसके बाद पुलिस ने उसे गोली मार दी।
पिछले दो सालों में यूरोप के कई देशों में आतंकी घटनाओं में बेहताशा बढ़़ोतरी हुई है। और जांच में ये तथ्य सामने आया है कि इन सारे हमलों में एशियाई या अफ्रीकी देशो से आऐ इन शरणार्थियों का ही हाथ है। जबकि उनके साथ कहीं कोई भेदभाव या अत्याचार नहीं किया गया उन्हे पूरे सम्मान और अधिकार के रहने की सुविधा दी गयी है।
=×=×=
भारत में भी 5 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये/शरणार्थी पूर्वोत्तर, बंगाल सहित पूरे देश मे अवैध रूप से रह रहे है और लूट, हत्या जैसे अपराधो के साथ बमविस्फोट और आतंकी गतिविधियों में पकड़े जा चुके है। अब म्यांमार से आये#40हजार_से_अधिक_रोहिंग्या_शरणार्थी मानवीय आधार पर भारत में शरण मांग रहे है, भारत के मानवाधिकारवादी उनकी मांग का समर्थन कर रहे हैं, सरकार ने अभी इसपर कोई निर्णय नहीं लिया है।
सरकार जो भी निर्णय ले पर
ध्यान रहे
#भेड़िये_कभी_अपना_मूल_स्वभाव_नहीं_बदलतें...!!!

हिंदू धर्म

अगर हिंदू धर्म बुरा है :-
(1) तो क्यो
"नासा-के-वैज्ञानीको" 
ने माना की
सूरज
से
" ॐ "
की आवाज निकलती है?
(2) क्यो 'अमेरिका' ने
"भारतीय - देशी - गौमुत्र" पर
4 Patent लिया ,
व,
कैंसर और दूसरी बिमारियो के
लिये दवाईया बना रहा है ?
जबकी हम
" गौमुत्र "
का महत्व
हजारो साल पहले से जानते है,
(3) क्यो अमेरिका के
'सेटन-हाल-यूनिवर्सिटी' मे
"गीता"
पढाई जा रही है?
(4) क्यो इस्लामिक देश 'इंडोनेशिया'. के Aeroplane का नाम
"भगवान नारायण के वाहन गरुड" के नाम पर "Garuda Indonesia" है, जिसमे garuda का symbol भी है?
(5) क्यो इंडोनेशिया के
रुपए पर
"भगवान गणेश"
की फोटो है?
(6) क्यो 'बराक-ओबामा' हमेशा अपनी जेब मे
"हनुमान-जी"
की फोटो रखते है?
(7) क्यो आज
पूरी दुनिया
"योग-प्राणायाम"
की दिवानी है?
(8) क्यो
"भारतीय-हिंदू-वैज्ञानीको"
ने
' हजारो साल पहले ही '
बता दिया की
धरती गोल है ?
(9) क्यो जर्मनी के Aeroplane का
संस्कृत-नाम
"Luft-hansa"
है ?
(10) क्यो हिंदुओ के नाम पर 'अफगानिस्थान' के पर्वत का नाम
"हिंदूकुश" है?
(11) क्यो हिंदुओ के नाम पर
हिंदी भाषा,
हिन्दुस्तान,
हिंद महासागर
ये सभी नाम है?
(12) क्यो 'वियतनाम देश' मे
"Visnu-भगवान" की
4000-साल पुरानी मूर्ति पाई
गई?
(13) क्यो अमेरिकी-वैज्ञानीक
Haward ने,
शोध के बाद माना -
की
"गायत्री मंत्र मे " 110000 freq "
के कंपन है?
(14) क्यो 'बागबत की बडी मस्जिद के इमाम'
ने
"सत्यार्थ-प्रकाश"
पढने के बाद हिंदू-धर्म अपनाकर,
"महेंद्रपाल आर्य" बनकर,
हजारो मुस्लिमो को हिंदू बनाया,
और वो कई-बार
'जाकिर-नाईक' से
Debate के लिये कह चुके है,
मगर जाकिर की हिम्म्त नही हुइ,
(15) अगर हिंदू-धर्म मे
"यज्ञ"
करना
अंधविश्वास है,
तो ,
क्यो 'भोपाल-गैस-कांड' मे,
जो "कुशवाह-परिवार" एकमात्र बचा,
जो उस समय यज्ञ कर रहा था,
(16) 'गोबर-पर-घी जलाने से'
"१०-लाख-टन आक्सीजन गैस"
बनती है,
(17) क्यो "Julia Roberts"
(American actress and producer)
ने
हिंदू-धर्म
अपनाया और
वो हर रोज
"🔔मंदिर🔔"
जाती है,
(18)
अगर 🔔🚩"रामायण" 🚩🔔
झूठा है,
तो क्यो दुनियाभर मे केवल
"राम-सेतू"
के ही पत्थर आज भी तैरते है?
(19) अगर "महाभारत" झूठा है,
तो क्यो भीम के पुत्र ,
''घटोत्कच''
का विशालकाय कंकाल,
वर्ष 2007 में
'नेशनल-जिओग्राफी' की टीम ने,
'भारतीय-सेना की सहायता से'
उत्तर-भारत के इलाके में खोजा?
(20) क्यो अमेरिका के सैनिकों को,
अफगानिस्तान (कंधार) की एक
गुफा में ,
5000 साल पहले का,
महाभारत-के-समय-का
"विमान"
मिला है?
ये जानकारिया आप खुद google मे search कर
सकते है . .....
Plz aapke sabhi group me send kare plz
हनुमान चालीसा में एक श्लोक है:-
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
अर्थात हनुमानजी ने
एक युग सहस्त्र योजन दूरी पर
स्थित भानु अर्थात सूर्य को
मीठा फल समझ के खा लिया था |
1 युग = 12000 वर्ष
1 सहस्त्र = 1000
1 योजन = 8 मील
युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
1 मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 1536000000 किमी
अर्थात हनुमान चालीसा के अनुसार
सूर्य पृथ्वी से 1536000000 किमी की दूरी पर है |
NASA के अनुसार भी सूर्य पृथ्वी से बिलकुल इतनी ही दूरी पर है|
इससे पता चलता है की हमारा पौराणिक साहित्य कितना सटीक एवं वैज्ञानिक है ,
इसके बावजूद इनको बहुत कम महत्व दिया जाता है |
भारत के प्राचीन साहित्य की सत्यता को प्रमाणित करने वाली ये जानकारी

मुग़ल शासन का झूठ

#क्रूरबाबर का भारत पर आक्रमण हर तरह से महमूद गजनवी या मोहम्मद गौरी जैसा ही थी, जिन्होंने अपने हितों के खातिर किसी भी प्रकार के नरसंहार को सही माना. जाहिर तौर पर इतिहास में ऐसे क्रूर शासकों को उनकी क्रूरता के लिए कहीं ज्यादा याद किया जायेगा, बजाय किसी और बात के!
#बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया।
हुँमायुं को ठोक पीटकर भगा दिया।
मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।
कुल 100 वर्ष
(अकबर 1556ई से औरंगजेब 1658ई तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से ‪#इतिहास‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬ में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....
मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भागकर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....!
अब इस स्थिर(?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....
इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।
जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नही था।
दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था।
अब जरा विचार करें.....क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है?
#हर्यकवंश, #मौर्यसाम्राज्य, #गुप्तकाल, इनके वंशजों ने कई कई पीढ़ियों तक शानदार शासन चलाए।
अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की‪#हम्पी‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬‬ नगर में मण्डियां लगती थी।
पर उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है।
सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है।
कोचिंग वालों की नानी मर जाती है।
प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते है।
वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरुवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...! तुम्हें धिक्कार है!!!......
अब समय आ चुका है वांमपंथी इतिहास की पोल खोलने का.....सफाई जरूरी है....इतिहास में नेहरू ने बहुत कचड़ा पेल रखा हैं......
इकंलाब की आग हे हम,जलाएगें कलंकौ को
जय हिन्दुत्व,जय महाकाल


जागो भारतीयो सच जानो

Saturday, 26 August 2017

काल्पनिक कहानी

काल्पनिक कहानी (पात्र घटना स्थान सब काल्पनिक है )

#कैसे_बने_56_इस्लामिक_देश - प्रथम भाग ( सऊदी अरब ) 622 -634

अरब में जिहाद का मुख्य कर्ताधर्ता हमारे मुहम्मद साहब ही थे । इसलिए हमें इन लेख में उन्हें भी समझना होगा । सऊदी के उस समय के हालात को समझना होगा । अरब में उस समय दो जाती निवास करती थी, एक यहूदी ओर एक हिन्दू । इन दोनों जातियों में कोई द्वेष भाव नही था । गरीबी अपने चरम पर थी । रोजगार के साधन नही थे, भारत से ही खाने पीने को जाया करता था । सुमेर नाम का राजा या कोई राजघराना उस समय वहां शाशन कर रहा था, उसके भी आय का साधन भारत आए गयी वस्तुओं पर टैक्स वसूलकर ही राज्य चलाना ही था । सुमेरकाल के अवशेष आज भी अरब में टूटे फूटे खंडहर के रूप में बिखरे पड़े है ।


570 ईस्वी में अरब में एक बड़ी विकृत मानसिकता वाले बालक का जन्म हुआ । नाम मुहम्मद तो नही था, शायद महादेव नाम था । एक ब्राह्मण परिवार में इसका जन्म हुआ था । उसका कुल मक्का के मंदिर में मुख्य पुजारी का काम करता था । पिता का नाम था अब्दुल्लाह ( अल्ला: देवी का भक्त ) और माता का नाम था अमीना । माता का नाम संभवतः मैना या मीना था, जिसे अरबो ने अब अमीना कर दिया है ।

मुहम्मद के जन्म के कुछ महीने पूर्व ही उसके पिता का देहांत हो गया । और बचपन मे ही माँ मैना चल बसी । उसके चाचा ने इसे पाल पोषकर बड़ा किया । लेकिन यह सत्य है, मुहम्मद हमेशा माता पिता के वात्सल्य से वंचित ही रहा । चाचा आदि खाने को दो समय का भोजन दे देते यही बड़ी बात थी, उसके बदले कड़ी धूप में एक बालक को भेड़ बकरियां चराने भेज दिया जाता । एक बालक को जो जरूरी संस्कार मिलने चाहिए थे, वह मुहम्मद को कभी ना मिले, ऊपर से चाच के दुस्ट लड़के उसका यौनशोषण भी करते थे । पूरा बचपन इन तरह के अत्याचार में बिता , संस्कार मिले नही, चाची आदि अपने पुत्रों को प्रेम करती, लेकिन मुहहमद का कोई ख्याल किसी को नही था । यही कारण था, की स्त्री जात से मुहम्मद घृणा करने लगा । स्त्री की शक्ल देखना भी वो पंसद ना करता था । हिजाब , बुरका आदि उसके नियम इसी घृणा की उपज थे ।

जिसका पूरा परिवार एक सम्पन्न परिवार हो, ओर सिर्फ एक बच्चे के साथ ऐसा दुर्व्यवहार , यह सब अमानवीय व्यवहार ने मुहहमद को उम्र से पहले ही परिपक्कव बना देती है । उसने दर्द को सहना सिख लिया था । मिर्गी के दौरे पड़ते, कोई संभालने वाला नही था । खुद ही तड़पता, खुद ही संभल भी जाता । 30 वर्ष की आयु तक तो घरवालों ने उसके विवाह के बारे में भी नही सोचा । मुहम्मद की कुरूपता भी उसके लिए अभिशाप बन गयी । कहीं से भी उसे रतिभर भी प्रेम ना मिला ।

लेकिन यह बालक जो अब युवा हो चुका था, यह बड़ा विलक्षण प्रतिभाशाली था । वह सही मायनों में अब वन मेन आर्मी बन चुका था, उसको बेवकूफ कहना उचित नही, उसने खुद अपनी रणनीति बनाई, खुद ही सैनिक कमांडर था, खुद ही लोगो को प्रेरित करता था । इतना प्रतिभाशाली था, की अपनी बीमारी को भी उसने एक हथियार के रूप में उपयोग किया, जब भी उसे मिर्गी के दौरे पड़ते, तो कहता, वह अल्ला से मिल रहा है ।

इसी बीच मुहम्मद को भेड़ चराते चराते खदीजा नाम की धनवान स्त्री मिल गयी । वह विधवा थी, उम्र में मुहम्मद की माँ के बराबर, बहुत धनवान थी । इसी खदीजा से मुहहमद ने विवाह किया । अब मुहम्मद धनवान था, उसके पास सम्पति थी, की वह गुंडे इक्कठे कर सके । इसमे पहला गुंडा बना मुहम्मद का बचपन का दोस्त अबु बकर ।

स्त्री लूट के लालच, धन , घुस देकर मुहम्मद ने एक सुसंगठित सेना का निर्माण किया, जो कि लोगो के घरों में धावे बोलती, महिलाओ की आबरू लुटती, धन चुराती । यह माफिया अब धीरे धीरे अरब में फैल रहा था ।

इसी सनक के बढ़ते बढ़ते, ओर लगातार सफल होते मुहम्मद को लगने लगा, की वह ईश्वर ही है, वह ईश्वर का भेजा कोई दूत है । जो इस पाखण्ड को मिटा कर रख देगा, जो पूजा , अर्चना के नाम पर एक बच्चे से भी अच्छा व्यवहार ना कर सके । उसने खुद को पैग़मर घोषित कर दिया । इसका अरब में विरोध होने लगा । यहां तक कि मुहम्मद ने अब यह दावा भी ठोक दिया, की वही मक्का परिसर मंदिर का मुखिया होगा । एक नए भगवान को मानने के लिए अरबवासी तैयार नही थे । अतः विद्रोह होना ही था । लेकिन गरीब जनता पर मुहम्मद की तलवार भारी पड़ी । बल के दम पर उसने लोगो को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया । धीरे धीरे उसकी टोली में लुटेरो की संख्या बढ़ती ही जा रही थी ।

#मदीना_पर_आक्रमण

मदीना नाम से आपको समझ जाना चाहिए कृष्ण भक्त यहूदियों ने अपने ईश्वर श्री कृष्ण के मदन नाम पर ही इसका नामकरण किया था । इसका दूसरा नाम हेजीरा यातिभ भी था । जिसका अर्थ होता है प्रवासियों का शहर । महाभारत के युद्ध के बाद सौराष्ट्र मे आये प्रलय के कारण यहां आकर बसे थे । यहां बहुदेव पूजा होती थी । यहूदी केवल एक ईश्वर मानते है, लेकिन बहुदेव पूजा का होना यह स्पष्ठ है, की यहूदी ओर हिन्दू आपस मे किसी तरह का बैर भाव नही रखते थे । 620 में खुद को ईश्वर घोषित कर आतंक मचाने वाले मुहम्मद के विरुद्ध मदीना के हिन्दुओ ओर यहूदियों ने ठान लिया कि इस गुंडे को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा । लेकिन आमने सामने की लड़ाई ना लड़ते हुए इस डकैत ने लोगो के घरों में आग लगानी शुरू कर दी । बच्चो को बंधक बना लिया गया । कांफिरो को अपने छल कपट ओर धोखे से ऐसा तलवार का स्वाद चखाया की कुछ ही समय मे काफ़िर मुसलमान बन गए । मदीना की सारी काफिरियात मिटा दी गयी । मदीना से हिंदुत्व ओर यहूदियों का पूर्ण सफाया कर दिया गया । मदीना अब धर्म की नगरी नही, बल्कि गुंडों की नगरी बन चुका था ।


#जंगे_बद्र ( मक्का की लड़ाई )

जंग एक बद्र नाम से ही स्पष्ठ है, यह भगवान शिव उर्फ बद्री के भक्तो के विरुद्ध किया गया संग्राम था । मुहम्मद ओर उसके गुंडों ने पहले आसपास के पूरे मक्का शहर में ही आतंक के मायाजाल से लोगो के अंदर दहशत भर रखी थी । बच्चो को गुलाम बनाया जाता , महिलाए लूटी जाती । शहर भर में व्यभिचारी, अपराधी, लालची ओर कपटी लोग मुगम्मद की गैंग में आकर शामिल होने लगे । 300 लोगो की भीड़ लेकर मक्का के पुजारियों पर पत्थरबाजी करवाई गई थी । आज तक शैतानो को पत्थर मारने की परंपरा है, वह शैतान कोई और नही हिन्दू ही है । जिस समय मुहम्मद ने वहां हमला किया, उस समय पूजा अर्चना चल रही थी । 1000 श्रद्धालु ओर पंडित लोग मन्दिर प्रांगण में थे । मुस्लिम लोग कहते है, की इस लड़ाई में मुहम्मद साहब बिना हथियारों के गए, ओर उसके आगे ही यह भी कहते है कि अपने जहिल चाचा को हाथों में दोनों तलवार लेकर मार डाला । दरअसल वह चाचा हिन्दू ही था ।

मुहम्मद का चाचा उमर बिन्ना हश्शाम जो प्रार्थना करता था, उनमे से एक इस प्रकार है ;-

कफारोमल फिक्र मिल उल मीन अयसरू
कलुबन अभातुल हवाबस तजखरू !!

वा ताबख़्यरोबा उदन कलावन्दे -ए - लिखो आबा
बलुकायने जललति - हे रोमा तब अयशरू

वा आबा लोल्हा अजबु अमीमन महादेव - ओ
मनोबली इनामुद्दीन मिनहुम या सयतरु

मय्यसरे अखलाखन हस्सान कुल्लहूम
नुजमुम अता अत सुम्मा गुबुल हिन्दू

इस कविता का अर्थ इस प्रकार है

यदि कोई व्यक्ति पापी या अधर्मी बने
वह काम और क्रोध में डूबा रहे
किन्तु पश्चाताप कर वह सद्गुणी बन जाये
तो क्या उसे सद्गति प्राप्त हो सकती है ?
हां ! अवश्य यदि वह शुद्ध अंतःकरण से
शिवभक्ति में लीन हो जाये तो
उसकि आध्यात्मिक उन्नति होगी
हे भगवान शिव मुझे मेरे सारे जीवन के बदले
मुझे केवल एक दिन भारत निवास का अवसर दे
जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो ।
भारत की एक मात्र यात्रा करने से , सबको पुन्यप्राप्ति ओर सन्तसमागम का लाभ प्राप्त होता है । इसे मुसलमा लोग जहिल अर्थात बुद्धू कहने लगे थे ।

ईसे ही मुहम्मद ने मार डाला, मंदिर परिसर के सारे श्रद्धालुओ के प्राण ले लिए गए, पूजा आरती के आनन्द की जगह अब रक्त ही रक्त फैला हुआ था ।

यहां मक्का के मंदिर में घुसकर मुहम्मद में भयंकर तोड़ तोड़ मचाई । 379 मुर्तिया उस मंदिर में थी । एक मूर्ति का नाम Al - Debran नाम की मूर्ति थी यह वरुण देव मि मूर्ति थी । एक मूर्ति का नाम allat देवी था, यह अल्लाह कोई ओर नही मा दुर्गा की मूर्ति ही थी । al - ozi यह सुमेरिया राजघराने की कुल देवी थी । जो ऊर्जा का प्रतीक वाली देवी थी । एक मूर्ति अव्वल देवता की थी, अव्वल यानी प्रथम यह गणेश जी की मूर्ति थी । बग नाम की मूर्ति जो भगवान शब्द का ही उच्चार था ।भगवान से वान हटकर भग बना, उसी से बग । काबा के मंदिर को विश्व की नाभि कहा जाता है मेरा अनुमान है, की यहां भगवान विष्णु लेती अवस्था मे की विशाल प्रतिमा थी । जिसपर आज काला पर्दा पड़ा हुआ है । एक बजर नाम के देव की मूर्ति थी, यह बज्र इंद्र का नाम है ।
अब पूरे मक्का ओर काबा मंदिर पर मुहम्मद का अधिकार हो चुका था । इन सभी मूर्तियों को तोड़ फोड़ दिया गया ।


#यहूदियों_पर_अत्याचार_की_एक_झलकी

बहुत लंबे समय तक यहूदियों ओर मुसलमानों के बीच संघर्ष चलता रहा । मदीना से लगभग 90 किलोमीटर दूर कुरुजा नाम के स्थान पर एओ यहूदी कबीला रहा करता था । मुहम्मद ने इस कबीले पर अचानक धावा बोल दिया । उस समय पुरुष जानवरो को पानी पिला रहे थे, महिलाए घर के काम मे लगी थी, बच्चे खेल रहे थे । उस कबीले के सरदार ओर धर्मगुरु किनाना की शादी एक दिन पहले ही 20 साल की जुबैरिया के साथ हुई थी । जुबैरिया अद्भुत सुंदरी थी । शादी के माहौल, एकदम मातम में बदल दिया, इस्लामी गुंडो ने अचानक घरों में आग लगानी शुरू की, बच्चो को जबदस्ती कलमा पढ़ाने लगे, पुरषो को काट काट कर फेंका जाने लगा । सभी स्त्री पुरषो ओर महिलाओ को बंधक बना लिया गया । जुबैरिया ने मुहम्मद के पांव पकड़ लिए, की इन्हें बक्श दीजिये । लेकिन मुहम्मद ने जान के बदले जुबैरिया के सामने संभोग की शर्त रख दी म निःसहाय अबला नारी को इतने प्राणों के बदले यह मानना ही पड़ा । बंधक बनाकर जुबैरिया को मुहम्मद अपने व्यभिचार के लिए ले आया ।

इसी तर्ज पर पूरे अरब में इस्लाम फैला । 622 से 634 तक पूरा सऊदी अरब इस्लामिक बन गया । गुंडो की टोली तैयार थी, निगाहों में ईरान, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान था ।

क्रिश्चियनिटी के बहस

अगर आप #धार्मिक_बहस करते है -- जरुर पढे!!!
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चर्च में फ़ादर के साथ क्रिश्चियनिटी और हिंदुत्व पर धार्मिक बहसः
क्रिश्चियनिटी के गाल पर हिंदुत्व का थपेड़ा
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अभी कुछ महीने पहले ही नई यूनिट में ट्रान्सफर आया हूँ चूँकि पिछली यूनिट में कई लोगों ने मेरी छवि एक सांप्रदायिक कट्टर हिन्दू की बना दी थी और कुछ लोगों ने मुझे इस्लाम और क्रिश्चियनिटी विरोधी बता दिया था,
सो इस यूनिट में मैं काफ़ी शाँत रहता था किसी भी धर्म पर मैं कोई भी बात नही करता था।
मेरे साथ एक सीनियर हैं जो 4 साल पहले हिंदू से क्रिस्चियन में कन्वर्ट हुए हैं, वो दिन रात क्रिश्चियनिटी की प्रशंसा करते रहते और हिंदुत्व को गालियाँ देते रहते थे, चूँकि उन्हें मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और नाही उन्होंने मेरी हिस्ट्री पढ़ी थी।
सो कल रविवार को बातों हिं बातों में उन्होंने मुझे क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने का ऑफ़र दे दिया और क्रिश्चियनिटी के फ़ायदे बताने लगे।
मैं कई दिनों से ऐसे मौके की तलाश में था क्योंकि मेरे दिमाग में क्रिस्चियन कन्वर्शन वाले मुद्दे को लेकर बड़ा फ़ितूर चल रहा था, मैं उसके ज्ञान का लेवल जानता था मैं जानता था की उसे क्रिश्चियनिटी और बाइबिल में कुछ भी नही आता है इसलिए मैंने उससे बहस करना जायज़ नही समझा। मैं बाइबिल को लेकर बड़े क्रिस्चियन फादर से बहस करना चाहता था सो मैंने उनका ऑफ़र स्वीकार कर लिया।
कल शाम को मैं अपने आठ जूनियर और उस सीनियर के साथ चर्च पहुँच गया, वहाँ कुछ परिवार भी हिन्दू से क्रिस्चियन कन्वर्शन के लिए आये हुए थे, और धर्म परिवर्तन कराने के लिए गोआ के किसी चर्च के फादर बुलाये गए थे। चर्च में प्रेयर हुई फिर उन्होंने क्रिश्चियनिटी और परमेश्वर पर लेक्चर दिया और होली वाटर के साथ धर्मान्तरण की प्रोसेस शुरू की।
मैंने अपने सीनियर से कहा की वो फ़ादर से रिक्वेस्ट करें की सबसे पहले मुझे कन्वर्ट करें।
फिर फ़ादर ने मुझे बुलाया और बोला " जीसस ने अशोक को अपनी शरण में बुलाया है मैं अशोक का क्रिश्चियनिटी में स्वागत करता हूँ"
मैंने फ़ादर से कहा की मुझे कन्वर्ट करने से पहले क्रिस्चियन और हिन्दू को कम्पेयर करते हुए उसके मेरिट और डिमेरित बताएँ। मैं कन्वर्ट होने से पहले बाइबिल पर आपके साथ चर्चा करना चाहता हूँ कृपिया मुझे आधा घण्टे का समय दें और मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें।
फ़ादर को मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और उन्हें अंदाजा भी नही था की मैं यहाँ अपना लक्ष्य पूरा करने आया हूँ और उन्हें पता ही नही था की मैं अपना काम अपने प्लान के मुताबिक़ कर रहा हूँ।
उस फ़ादर को इस बात का अंदेशा भी नही था की आज वो कितनी बड़ी आफ़त में फ़ंसने वाले हैं, सो फ़ादर बाइबिल पर चर्चा करने के लिए तैयार हो गए ।
【मैंने पूछा फ़ादर " क्रिश्चियनिटी हिन्दूत्व से किस तरह बेहतर है, परमेश्वर और बाइबिल में से कौन सत्य है,अगर बाइबिल और यीशु में से एक चुनना हो तो किसको चुनें"】
अब फ़ादर ने क्रिश्चियनिटी की प्रसंशा और हिंदुत्व की बुराइयाँ करनी शुरू की और कहा
1.यीशु ही एक मात्र परमेश्वर है और होली बाइबिल ही दुनियाँ में मात्र एक पवित्र क़िताब है। बाइबिल में लिखा एक एक वाक्य सत्य है वह परमेश्वर का आदेश है।
परमेश्वर ने ही पृथ्वी बनाई है।
2.क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है जबकि हिन्दुओँ की किताबों में केवल अंध विश्वास है।
3.क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है जबकि हिंदुओं में जातिप्रथा है।
4.क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान हैं जबकि हिन्दुओँ में लेडिज़ का रेस्पेक्ट नही है , हिन्दू धर्म में लेडिज़ के साथ सेक्सुअल हरासमेंट ज़्यादा है।
5.क्रिस्चियन कभी भी किसी को धर्म के नाम पर नही मारते जबकि धर्म के नाम् पर लोगों को मारते हैं बलात्कार करते हैं हिन्दू बहुत अत्याचारी होते हैं।
6.हिंदुओ में नंगे बाबा घूमते हैं सबसे बेशर्म धर्म है हिन्दू।
अब मैंने बोलना शुरू किया की फ़ादर मैं आपको बताना चाहता हूँ की
1. जैसा आपने कहा की परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई है और बाईबल में एक एक वाक्य सत्य लिखा है और वह पवित्र है,
तो बाईबल के अनुसार पृथ्वी की उत्त्पति ईशा के जन्म से 4004 वर्ष पहले हुई अर्थात बाइबिल के अनुसार अभी तक पृथ्वी की उम्र 6020 वर्ष हुई जबकि साइंस के अनुसार(कॉस्मोलॉजि) पृथ्वी 4.8 बिलियन वर्ष की है जो बाइबिल में बतायी हुई वर्ष के बहुत ज़्यादा है। आप भी जानते हो साइंस ही सत्य है
अर्थात बाइबिल का पहला अध्याय ही बाइबिल को झूँठा घोषित कर रहा है मतलब बाइबिल एक फ़िक्शन बुक है जो मात्र झूँठी कहानियों का संकलन है,
जब बाइबिल ही असत्य है तो आपके परमेश्वर का कोई अस्तित्व ही नही बचता।
2.आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है तो आपको बता दूँ की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान नाम का कोई शब्द नही है , याद करो जब "ब्रूनो" ने कहा था की पृथ्वी सूरज की परिक्रमा लगाती है तो चर्च ने ब्रूनो को 'बाइबिल को झूंठा साबित करने के आरोप में जिन्दा जला दिया था और गैलीलियो को इस लिए अँधा कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था 'पृथ्वी के आलावा और भी ग्रह हैं' जो बाइबिल के विरुद्ध था ।
अब आता हूँ हिंदुत्व में तो फ़ादर हिंदुत्व के अनुसार पृथ्वी की उम्र ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है जो लगभग 1.97 बिलियन वर्ष है जो साइंस के बताये हुए समय के बराबर है और साइंस के अनुसार ग्रह नक्षत्र तारे और उनका परिभ्रमण हिन्दुओँ के ज्योतिष विज्ञानं पर आधारित है , हिन्दू ग्रंथो के अनुसार 9 ग्रहों की जीवनगाथा वैदिक काल में ही बता दी गयी थी। ऐसे ज्ञान देने वाले संतो को हिन्दुओँ ने भगवान के समान पूजा है नाकि जिन्दा जलाया या अँधा किया।
केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ज्ञान और गुरु को भगवान से भी ज़्यादा पूज्य मानता है जैसे
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवोमहेश्वरः
गुरुर्साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरूवे नमः।।
और फ़ादर दुनियाँ में केवल हिन्दू ही ऐसा है जो कण कण में ईश्वर देखता है और ख़ुद को "अह्मब्रह्मस्मि" बोल सकता है इतनी आज़ादी केवल हिन्दू धर्म में ही हैं।
3. आपने कहा की 'क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है तो आपको बता दूँ की
क्रिश्चियनिटी पहली शताब्दी में तीन भागों में बटी हुई थी जैसे Jewish Christianity , Pauline Christianity, Gnostic Christianity.
जो एक दूसरे के घोर विरोधी थे उनके मत भी अलग अलग थे।
फिर क्रिश्चियनिटी Protestant, Catholic Eastern Orthodoxy, Lutherans में विभाजित हुई जो एक दूसरे के दुश्मन थे, जिनमें ' कुछ लोगों को मानना था की "यीशु" फिर जिन्दा हुए थे तो कुछ का मानना है की यीशु फिर जिन्दा नही हुए, और कुछ ईसाई मतों का मानना है की "यीशु को सैलिब पर लटकाया ही नही गया"
आज ईसाईयत हज़ार से ज़्यादा भागों में बटी हुई है, जो पूर्णतः रँग भेद (श्वेत अश्वेत ) और जातिगत आधारित है आज भी पुरे विश्व में कनवर्टेड क्रिस्चियन की सिर्फ़ कनवर्टेड से ही शादी होती है।
आज भी अश्वेत क्रिस्चियन को ग़ुलाम समझा जाता है।
फ़ादर भेदभाव में ईसाई सबसे आगे हैं हैम के वँशज के नाम पर अश्वेतों को ग़ुलाम बना रखा है।
4. आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार है, तो बाईबल के प्रथम अध्याय में एक ही अपराध के लिये परमेश्वर ने ईव को आदम से ज्यादा दण्ड क्यों दिया, ईव के पेट को दर्द और बच्चे जनने का श्राप क्यों दिया आदम को ये दर्द क्यों नही दिया अर्थात आपका परमेश्वर भी महिलाओं को पुरुषों के समान नही समझता।
आपके ही बाइबिल में "लूत" ने अपनी ही दोनों बेटियों का बलात्कार किया और इब्राहीम ने अपनी पत्नी को अपनी बहन बनाकर मिस्र के फिरौन (राजा) को सैक्स के लिए दिया।
आपकी ही क्रिश्चियनिटी ने पोप के कहने पर अब तक 50 लाख से ज़्यादा बेक़सूर महिलाओं को जिन्दा जला दिया। ये सारी रिपोर्ट आपकी ही बीबीसी न्यूज़ में दी हुईं हैं।
आपकी ही ईसाईयत में 17वीं शताब्दी तक महिलाओं को चर्च में बोलने का अधिकार नही था, महिलाओं की जगह प्रेयर गाने के लिए भी 15 साल से छोटे लड़को को नपुंसक बना दिया जाता था उनके अंडकोष निकाल दिए जाते थे महिलाओं की जगह उन बच्चों से प्रेयर करायी जाती थी।
बीबीसी के सर्वे के अनुसार सभी धर्मों के धार्मिक गुरुवों में सेक्सुअल केस में सबसे ज़्यादा "पोप और नन" ही एड्स से मरे हैं जो ईसाई ही हैं।
फ़ादर क्या यही क्रिश्चियनिटी में नारी सम्मान है।
अब आपको हिंदुत्व में बताऊँ। दुनियाँ में केवल हिन्दू ही है जो कहता है " यत्र नारियन्ति पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहीँ देवताओं का निवास होता है,।
5. फ़ादर आपने कहा की क्रिस्चियन धर्म के नाम पर किसी को नही मारते तो आपको बता दूँ 'एक लड़का हिटलर जो कैथोलिक परिवार में जन्मा उसने जीवनभर चर्च को फॉलो किया उसने अपनी आत्मकथा "MEIN KAMPF" में लिखा ' वो परमेश्वर को मानता है और परमेश्वर के आदेश से ही उसने 10 लाख यहूदियों को मारा है' हिटलर ने हर बार कहा की वो क्रिस्चियन है। चूँकि हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण था जिसमें सारे ईसाई देश एक दूसरे के विरुद्ध थे इसलिए आपके चर्च और पादरियों ने उसे कैथोलिक से निकाल कर Atheist(नास्तिक) में डाल दिया।
फ़ादर मैं इस्लाम का हितेषी नही हूँ लेकिन आपको बता दूँ क्रिस्चियनों ने सन् 1096 में ने "Crusade War" धर्म के आधार पर ही स्टार्ट किया था जिसमें पहला हमला क्रिस्चियन समुदाय ने मुसलमानों पर किया।
जिसमें लाखों मासूम मारे गए।
फ़ादर "आयरिश आर्मी" का इतिहास पढ़ो किस तरह कैथोलिकों ने धर्म के नाम पर क़त्ले आम किया जो आज के isis से भी ज़्यादा भयानक था।
धर्म के नाम पर क़त्लेआम करने में क्रिस्चियन मुसलमानों के समान ही हैं, वहीँ आपने हिन्दुओँ को बदनाम किया तो आपको बता दूँ की "हिन्दू ने कभी भी दूसरे धर्म वालों को मारने के लिए पहले हथियार नही उठाया है, बल्कि अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाया है।
6. फ़ादर आपने कहा की हिन्दुओँ में नंगे बाबा घूमते हैं "हिन्दू बेशर्म" हैं तो फ़ादर आपको याद दिला दूँ की बाइबिल के अनुसार यीशु ने प्रकाशितवाक्य (Revelation) में कहा है की " nudity is best purity" नग्नता सबसे शुद्ध है।
यीशु कहता है की मेरे प्रेरितों अगर मुझसे मिलना है तो एक छोटे बच्चे की तरह नग्न हो कर मुझसे मिलों क्योंकि नग्नता में कोई लालच नही होता।
फ़ादर याद करो यूहन्ना का वचन 20:11-25 और लूका के वचन 24:13-43 क्या कहते नग्नता के बारे में।
फ़ादर ईसाईयत में सबसे बड़ी प्रथा Bapistism है, जो बाइबिल के अनुसार येरूसलम की यरदन नदी में नग्न होकर ली जाती थी।
अभी इस वर्ष फ़रवरी में ही न्यूजीलैंड के 1800 लोगों ने जिसमे 1000 महिलाएं थी ने पूर्णतः नग्न होकर बपिस्टिसम लिया। और आप कहते हो की हिन्दू बेशर्म है।
अब चर्च के सभी लोग मुझ पर भड़क चुके थे और ग़ुस्से में कह रहे थे आप यहाँ क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने नही आये हो आप फ़ादर से बहसः करने आये हो, परमेश्वर आपको माँफ नही करेगा।
मैंने फ़ादर से कहा की यीशु ने कहा है " मेरे प्रेरितों मेरा प्रचार प्रसार करो" अब जब आप यीशु का प्रचार करोगे तो आपसे प्रश्न भी पूछे जाएँगे आपको ज़बाब देना होगा, मैं यीशु के सामने बैठा हुआ हूँ और वालंटियर क्रिस्चियन बनने आया हूँ ।
मुझे आप सिर्फ़ ज्ञान के सामर्थ्य पर क्रिस्चियन बना सकते है धन के लालच में नही।
अब फ़ादर ख़ामोश बैठा हुआ था शायद सोच रहा होगा की आज किस से पाला पड़ गया।
मैंने फिर कहा फ़ादर आप यीशु के साथ गद्दारी नही कर सकते " आप यहाँ सिद्ध करके दिखाओ की ईसाईयत हिंदुत्व से बेहतर कैसे है"
मैंने फिर फ़ादर से कहा की फ़ादर ज़वाब दो आज आपसे ही ज़वाब चाहिए क्योंकि आपके ये 30 ईसाई इतने सामर्थ्यवान नही है की ये हिन्दू के प्रश्नों का ज़वाब दे सकें।
फ़ादर अभी भी शाँत था, मैंने कहा फ़ादर अभी तो मैंने शास्त्र खोले भी नही है शास्त्रों के ज्ञान के सामने आपकी बाइबिल कहीं टिकती भी नही है।
अब फ़ादर ने काफ़ी सोच समझकर रविश स्टाइल में मुझसे पूछा 'आप किस जाति से हो'
मैंने भी चाणक्य स्टाइल में ज़वाब दे दिया ,
"मैं सेवार्थ शुद्र, आर्थिक वैश्य, रक्षण में क्षत्रिय, और ज्ञान में ब्राह्मण हूँ।
और हाँ फ़ादर मैं कर्मणा "फ़ौजी" हूँ और जाति से "हिन्दू"
अब चर्च में बहुत शोर हो चूका था मेरे जूनियर बहुत खुश थे बाकि सभी ईसाई मुझ पर नाराज़ थे, लेकिन करते भी क्या मैने उनकी ही हर बात को काटने के लिए बाइबिल को आधार बना रखा था और हर बात पर बाइबिल को ही ख़ारिज कर रहा था।
मैंने फ़ादर से कहा मेरे ऊपर ये जाति वाला मन्त्र ना फूँके, आप सिर्फ़ मेरे सवालों का ज़वाब दें।
अब मैंने उन परिवारों को जो कन्वर्ट होने के लिए आये थे को कहा " क्या आप लोगों को पता है की वेटिकन सिटी एक हिन्दू से क्रिस्चियन कन्वर्ट करने के लिए मिनिमम 2 लाख रुपये देती है जिसमें से आपको 1लाख या 50 हज़ार दिया जाता है बाकि में 20 से 30 हज़ार तक आपको कन्वर्ट करने के लिए चर्च लेकर आने वाले आदमी को दिया जाता है बाकि का 1 लाख चर्च रखता है।
जब आप कन्वर्ट हो जाते हो तब आपको परमेश्वर के नाम से डराया जाता है फिर आपको हर सन्डे चर्च आना पड़ता है और हर महीने अपनी पॉकेट मनी या फिक्स डिपाजिट चर्च को डिपॉजिट करना पड़ता है, आपको 1 लाख देकर चर्च आपसे कम से कम दस लाख वसूल करता है, अगर आपके पास पैसा नही होता तो आपको परमेश्वर के नाम से डराकर आपकी जमीन किसी क्रिस्चियन ट्रस्ट के नाम पर डोनेट(दान) करा ली जाती है,
अब आप मेरे सीनियर को ही देख लो, इन्होंने कन्वर्ट होने के लिए 1 लाख लिया था लेकिन 4 साल से हर महीने 15 हज़ार चर्च को डिपाजिट कर रहे हैं, अभी भी वक्त है सोच लो।
आप सभी को बता दूँ की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में धार्मिक आधार पर सबसे ज़्यादा जमीन क्रिस्चियन ट्रस्टों पर हैं, जिन्हें आप जैसे मासूम कन्वर्ट होने वालो से परमेश्वर के नाम पर डरा कर हड़प लिया गया है।
अब मेरा इतना कहते ही सारे क्रिस्चियन भड़क चुके थे तभी यहाँ के पादरी ने गोआ वाले फ़ादर से कहा की 11बज चुके हैं चर्च को बन्द करने का टाइम है।
मैंने फ़ादर से कहा की आपने मेरे सवालों का ज़वाब नही दिया मैं आपसे बाइबिल पर चर्चा करने आया था,
आप जो पैसे लेकर कन्वर्ट करते हो वो बाईबल में सख्त मना है याद करो गेहजी, यहूदा इस्तविको का हस्र जिसनें धर्म में लालच किया। जिस तरह परमेश्वर ने उन्हें मारा ठीक उसी तरह आपका ही परमेश्वर आपको मारेगा , आप में से किसी भी क्रिस्चियन को जो पैसे लेकर कन्वर्ट हुआ फ़िरदौस ( यीशु का राज्य) में प्रवेश नही मिलेगा।
अब चर्च बंद होने का समय हो चूका था मैंने जाते जाते फ़ादर को "थ्री इडियट" स्टाइल में कहा " फ़ादर फिर से बाईबल पढ़ो समझों, और जहाँ समझ ना आये तो मुझे फ़ोन करके पूछ लेना क्योंकि मैं अपने कमज़ोर स्टूडेंट का हाथ कभी नही छोड़ता,
और आते आते मैं सारे क्रिस्चियनों को बोल आया की "मेरे क्रिस्चियन भाइयों अपने वेटिकन वाले चचाओं को बता दो की भारत से ईसाईयत का बोरी बिस्तर उठाने का समय आ गया है उन्हें बोल दो अब भारत में हिन्दू जाग चूका है अब हिन्दू ने भी शस्त्र के साथ शास्त्र उठा लिया है जितना जल्दी हो यहाँ से कट लो"
जय हिन्द जय भारत
#रमेश_चन्द्रा

भारत बंगलादेश पाकिस्तान के मुसलमान



भारत बंगलादेश पाकिस्तान के मुसलमान (अल हिन्द मुसकिन )
÷मुसलमानो कि प्रमुख समुदाय ÷
1÷शिया
2÷सुन्नी
÷मुसलमानो कि प्रमुख जाति÷
1÷कसाई
2÷गद्दी
3÷अंसारी
4÷हज्जाम
5÷कायमखानी
6÷सय्यद
7÷पठान
8÷शेख
9÷शैफी
10÷मनिहार
11÷सलमानी ( धोबी)
12÷इदरीसी ( दर्जी)
13÷मंसूरी (धुनें)
14÷बाबर्ची
15÷मिरासी
16÷भांड

मुसलामानों की जाति/ क्षेत्रवार फिरका आधारित
मुसलामानों में 300 से अधिक जातियाँ/क्षेत्रवार फिरका आधारित हैं।
1-महकमिय्या 2-अजराकिया 3- आयुजि 4-नजरात 5-असफरिया 6-अबाजिया 7-अहसाम्य्या 8-बहशिस्यह 9-नागलियाह 10-अजजदह 11-अख्वास्या 12-शैबानीयह्ह् 13-मकराम्या 14-वासलिय्या 15- हज़ेलिया 16-नजामिया 17-अस्वारिया 18-अस्काफिया 19-मज्वारिया 20-बशरिया 21-अस्मरिया 22-हसामिया 23-साल्जियह 24 हाबतिया 25-मुकमरिया 26-समामिया 27-जाख्तिया 28-हरीबा 29-जाफरिया 30-बहशमिया 31-जबानिया 32-कबेया 33-ख्यातेया 34-गरसानिया 35-सोबानिया 36-सोबेया 37-अहदया 38-बर्गोसिया 39-नाफेरानिया 40-ब्यानिया 41-मुगिरिया 42-कामलिया 43-मंसूरिया 44-खताबिया 45-अजआबिया 46-जमिया 47-मुस्तदरिकिया48-मुजसामिया 49-करामिया 50-जाहिमिया

51-हनफिया 52-मालकिय्या 53-शाफ्या 54-हम्बिलिया 55-सूफिया 56-दावड़िया 57-सबाइया 58-मफज़जलिया 59-जारिया 60-इशहकिया 61-शेतानिया 62-मफुजिया 63-कसानिया 64-रजानिया 65-इस्माइल्लिया66-नासिरिया 67-जैदिया 68-नारुसिया 69-अहफटया 70-वाकफीफीया 71-गलात 72-हशविया 73-उल्वेया 74-अबड़िया 75-शमसिया 76-अब्बासिया 77-इमामिया 78-नावस्या 79-तनासुख्या 80-मूर्तजिया 81-राजइय्या 82-खलिफिया 83-कंजिया 84-हज़तरिया 85-मोतजलिया 86-मैमुनिया 87-अफालिया 88-माबिया 89-तारक्या 90-नजमैमुनिया 91-हज़तिया 92-कंदरिया 93-अहरिया 94-वहमिय्या 95-मोटलिया 96-मुतरआ बसिया 97-मुतरफिया 98-मखलुखिया 99-मुतराफिया 100-वबरिया

101-मजिया 102-शाबाइया 103-अमालिया 104-मुस्तसिया105-मुशबह्य्या 106-सालमिया 107-कास्मिया 108-कनामिया 109-खारिजया 110-तर्किया 111-हज़ीमिया112-दहरिया 113-साआल्बिया 114-वहाबिया 115-नसारिया 116-मझुलिया 117-सलया 118-अख़बसया 119-बहसिया 120-समराख्या 121-अतबिया 122-गालिया 123-कतएया 124-कुर्बिया 125-मुहमदीया 126-हसनिया 127-क़राबतइया 128-मुबारिकिया 129-श्मतिया 130-अमारिया 131-मख्तुरिया 132-मोसुमिया 133-नानेया 134-तयारिया 135-यतरायह 136-सैरफिया 137-सरीइयह 138-जारुदिया 139-सुलेमनिया 140-तबारिया 141-नइमया 142-याक़ूबिया 143-शमरिया 144-युनानिया 145-बखारिया 146-गेलिन्या 147-शाएबिया 148-समहाज़िया 149-मरसिया 150-हासमिया

151-खरारिया 152-क्लाबिया 153-हालिया 154-बाटनिया155-अबाजिया 156-ब्राह्मिया 157-अशअरिया 158-सोफ्सतैया 159-फिलसफिया 160-समिनिया 161-मशाईन 162-अश्राकिन 163-अजुसियह 164-उम्बिया 165-वजीदीया 166-अलीळालाहिया167-सादकिया 168-फुरकानिया 169-फरुकिया 170-शेखिय्या 171-शम्ससया 172-सम्मिस्या 173-फरकिया 174-नक़्शबंदिया 175-कादरिया 176-नेचीरिया 177-मिजाइय्या 178-आगखानिया 179-शहर बदीया 180-चिश्तिया 181-क्रानिया 182-नजदीया 183-बाबिया184-मवाहदीया वहाबी 185-राफजिया 186-नजिया 187-जस्तीया 188-इबारिया 189-जबरिया 190-टबरिया 191-सल्फिया 192-अकलिया 193-सफत्या 194-तकलिया 195-मुट्सफिया 196-हमाओसत 197-शमाफिया 198-हफ्तइमामिया199-हश्तइमामिया200-अशन अशारिया

2०1-अखबारिय्यिन 202-मुतकल्लमिन 203-मुत्सररइन 204-रोशनियां 205-कोकबिया 206-तबकुमिया 207-अर्शेआसेयानी 208-तातिलिया 209 अन्सारिया 210-रखबिया 211-रहमानिया 212-रुहानिया 213-अन्नजिया 214-हबिबिया 215-अजिया 216-हबिरिया 217-सक्तिया 218-जनिदिया 219-जबिया 220-आरहिमिया 221-क्लद्रिया 222-फिरडोमिया 223-मदारिया 224-रजजिया 225-सफाइय्या 226-खाकिया 227-वादिया 228-तशनिया 229-आविया 230-तैकुरिया 231-दवाया 232-शैतारिया 233-तबकानिया 234-सय्यद जमालुद्दीन 235-मतबरिया 236-आर्गुनिया 237-आल्याया 238-गजिरुनिया 239-जाहडिया 240-तोबिया 241-कजिया 242-तशिरिया 243-हलालिया 244-नूरिया 245-एदुसिया 246-यस्विया 247-रफइय्या 248-मोइन्या 249-शकरगजिया 250-महबुने इलहिया

251-महमुदिया 252-फखरुदिनिया 253-नुरे मुहामादिया 254-वुनसुया 255-अल्लाहबक्षिया 256-हाफजिया 257-खिजरुया 258-कर्मनिया 259-करिमियऑ 260-जलिलिया 261-जमालिया 262-कुडिसिया 263-साबरिया 264-मखदुमिया 265-हज़रूमिया 266-निजामिया 267-अबूलअलैया 268-हसमिया चितस्या 269-निजमहिरिया270-बखारिया 271-हमजआशाही 272-फखरिया 273-नायजिया274-जायइया 275-फक्रिया फरीदइया 276-शमशिया सुलमानिया 277-फखरिया सुलमानिया 278-सुदुशाही 279-रजाकिया 280-वहाविया 281-नोशाही 282-शय्येदशाही 283-हुस्सैनशाही284-कबिसिया 285-मुहम्मदशाही286-बहलोलशाही 287-हासशाही 288-सुदुशाही 289-मुकियशाही 290-महुवदशाही 291-कासिमशाही 292-नंतुल्लाहशाही 293-मिरशाही 294-सुफियाहमीडिया 295-कंमसिय्या 296-दोलशाही 297-रसुलशाही 298-सुहागशाही 299-सफबीय्या 300-लालशाही

301-बाजिया 302-बुखारिया 303-कर्मजहलि 304-हबिबशाही 305-मूर्तज़शाही 306-अब्दुलकरिमि307-इस्मैलशाही 308-हलिमशाही 309-रुजाकशाही 310-मिजाकशाही 311- संगरिया 312-अय्याजिया 313-नासिरिया

सिख कहने वाले यह अवश्य पढ़ें


#खुद_को_सिख_कहने_वाले_यह_अवश्य_पढ़ें

जहांगीर का एक बेटा था खुसरो , अकबर के बाद अकबर इसे ही अपना उत्तराधिकारी भी बनाना चाहता था, क्यो की यह हिन्दुओ के लिए क्रूर था, जहांगीर की तरह नशेबाज नही था । लेकिन मानसिंहः में बुद्धि का प्रयोग करते हुए जहांगीर के लिए राह आसान कर दी, की यह कमजोर शाशक बैठेगा, तो हिन्दुओ के लिए जीना , ओर प्रगति करना थोड़ा आसान हो गया ।

खुसरो ओर जहांगीर बाप बेटे आपस मे गाली-गलौज करते थे । उसने जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, कुछ मुस्लिम सेनापति भी उसके साथ हो लिए ।


विद्रोह के बाद वह भागकर पंजाब चला गया । लाहौर के शाशक ने उसके नगर-प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया । तीन सप्ताह के भीतर ही खुसरो पकड़ा गया । उसे जंजीरों में बांधकर जहांगीर के समक्ष लाया गया ।

इसमे वीर हिन्दू शिष्य सेना ( जिन्हें आज सिख कहकर हिन्दुओ से अलग कर दिया गया है ) के नेता अर्जुन देव को इस बहाने पकड़ लिया गया कि उन्होंने खुसरो के विद्रोह को उभारा है । गुरु की संपत्ति तथा कटार छीनकर उन पर जुर्माना लगा दिया गया ।

उन्हें आदेश दिया गया कि अपने पवित्र ग्रँथ जिसमे हिन्दुओ के भी बहुत श्लोक ओर भजन है, उन्हें निकाल दिया जाए । हिन्दुओ की रक्षार्थ का वचन देने वाले अर्जुन सिंहः ने जुर्माना देने, ओर हिन्दू श्लोकों को हटाने से साफ मना कर दिया ।

जून 1606 में वीर अर्जुन देव सिंह को लाहौर के लाबी तट पर भरी गर्मी में गर्म मिट्टी ने आधा जिस्म बुर दिया । तब भी प्राण उन्होंने नही त्यागे तो ड्रम में नीचे आग लगाकर उबले पानी मे उन्हें डुबोकर अर्जुन देव सिंह को उबालकर उनकी हत्या कर दी ।

अर्जुन देव सिंहः ने कभी खुद को सिख नही कहा था, उन्होंने खुद को हिन्दू ही कहा । अपने गुरुओ के यह आज के सिख नही है । यह मल्लेछ है, जो अपने गुरु पर , अपने लोगो पर अत्याचार करने वालो के साथ खड़े होकर हिन्दुओ से शत्रुता का भाव रखते है ।

बौद्धिस्म में जातिवाद


#क्या_बौद्धिस्म_में_जातिवाद
आज आपको बौद्धों के बारे में बताता हूं क्योंकि ये कहते है कि सिर्फ हमारे धर्म मे कुछ भी कही भी अलगाव नही है हम सिर्फ बुद्ध की शिक्षाओं और बुद्ध को मानते है -
कहने को तो बौद्ध सम्प्रदाय एक है लेकिन इनमें भी महायान, थेरवाद, बज्रयान, मूलसर्वास्तिवाद, नवयान और 13 अन्य विभाजन है जो खुद को एक दूसरे से उच्च मानते है

#बौद्धों_ने भी समाज को काम के आधार पर चार वर्गों में बांटा गया है.– नोनो, फल्पा या थल्पा, गरा या दोंबा या ज़ोबा तथा बेदा या बेता । नोनो और फल्पा को सामाजिक सोपान के पदक्रम में ऊंची प्रस्थिति प्राप्त है तो मोन कहे जाने वाले गरा, दोंबा या जोबा तथा बेदा या बेता को दलित का दर्जा प्राप्त है । नोनो को शासक माना जाता है और फल्पा तथा थल्पा आम प्रजा और कृषक वर्ग। जोब़ा / गरा/ दोंबा का काम दैनिक या मध्य का माना जाता है जबकि बेदा या बेता मजदूर या सेवक(नौकर) आदि के कार्य करते हैं। जातिय पदक्रम में जोबा अपने को बेता से ऊंचा मानते हैं।

आइये कुछ प्रमुख वर्गीकृत भेदों को विस्तृत करके आप सभी को बताता हूँ -

#महायान -
महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी कहते हैं कि अधिकतर मनुष्यों के लिए निर्वाण-मार्ग अकेले ढूंढना मुश्किल या असम्भव है और उन्हें इस कार्य में सहायता मिलनी चाहिए। वे समझते हैं कि ब्रह्माण्ड के सभी प्राणी एक-दुसरे से जुड़े हैं और सभी से प्रेम करना और सभी के निर्वाण के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है। किसी भी प्राणी के लिए दुष्भावना नहीं रखनी चाहिए क्योंकि सभी जन्म-मृत्यु के जंजाल में फंसे हैं। एक हत्यारा या एक तुच्छ जीव अपना ही कोई फिर से जन्मा पूर्वज भी हो सकता है इसलिए उनकी भी सहायता करनी चाहिए। प्रेरणा और सहायता के लिए बोधिसत्त्वों को माना जाता है जो वे प्राणी हैं जो निर्वाण पा चुके हैं। महायान शाखा में ऐसे हज़ारों बोधिसत्त्वों को पूजा जाता है और उनका इस सम्प्रदाय में देवताओं-जैसा दर्जा है। इन बोधिसत्त्वों में कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं, उदाहरण के लिए अवलोकितेश्वर (अर्थ: 'दृष्टि नीचे जगत पर डालने वाले प्रभु'), अमिताभ (अर्थ: 'अनंत प्रकाश', 'अमित आभा'), मैत्रेय, मंजुश्री और क्षितिगर्भ।

#थेरवाद - 'थेरवाद' शब्द का अर्थ है 'बड़े-बुज़ुर्गों का कहना'। बौद्ध धर्म की इस शाखा में पालि भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर ज़ोर दिया जाता है। थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। इनके लिए गौतम बुद्ध एक गुरू एवं महापुरुष ज़रूर हैं लेकिन कोई अवतार या ईश्वर नहीं। वे उन्हें पूजते नहीं और न ही उनके धार्मिक समारोहों में बुद्ध-पूजा होती है। जहाँ महायान बौद्ध परम्पराओं में देवी-देवताओं जैसे बहुत से दिव्य जीवों को माना जाता है वहाँ थेरवाद बौद्ध परम्पराओं में ऐसी किसी हस्ती को नहीं पूजा जाता। थेरवादियों का मानना है कि हर मनुष्य को स्वयं ही निर्वाण का मार्ग ढूंढना होता है। इन समुदायों में युवकों के भिक्षुक बनने को बहुत शुभ माना जाता है और यहाँ यह रिवायत भी है कि युवक कुछ दिनों के लिए भिक्षु बनकर फिर गृहस्थ में लौट जाता है। थेरवाद शाखा दक्षिणी एशियाई क्षेत्रों में प्रचलित है, जैसे की श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, म्यान्मार, थाईलैंड और लाओस।

#बज्रयान -
वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तड़ित का वाहन है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है तथा भारत व पड़ोसी देशों में, विशेषकर तिब्बत में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में वज्रयान का उल्लेख महायान के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है।
वज्र -
‘वज्र’ शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा स्वयं अपने व अपनी प्रकृति के बारे में की गई कल्पनाओं के विपरीत मनुष्य में निहित वास्तविक एवं अविनाशी स्वरूप के लिये किया जाता है।
यान -
‘यान’ वास्तव में अंतिम मोक्ष और अविनाशी तत्त्व को प्राप्त करने की आध्यात्मिक यात्रा है।

#मूलसर्वास्तिवाद -
(परम्परागत चीनी : 根本說一切有部; ; pinyin: Gēnběn Shuō Yīqièyǒu Bù) भारत का एक प्राचीन आरम्भिक बौद्ध दर्शन है। इस दर्शन की उत्पत्ति के बारे में तथा इसका सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय से सम्बन्ध के बारे में प्रायः कुछ भी ज्ञात नहीं है। फिर भी, इसके बारे में कई सिद्धान्त मौजूद हैं। मूलसर्वास्तिवादी सम्प्रदाय का मठ अब भी तिब्बत में विद्यमान है।

#नवयान या भीमयान -
नवयान या भीमयान भारत का प्रमुख बौद्ध धर्म का सम्प्रदाय हैं। नवयान का अर्थ है– नव = नया या शुद्ध, यान = मार्ग या वाहन। नवयान को भीमयान या आंबेडकरवाद भी कहते हैं। नवयानी बौद्ध अनुयायिओं को नवबौद्ध (नये बौद्ध) भी कहा जाता, क्योंकि वे छह दशक पूर्व ही बौद्ध बने हैं। नवयान को भीमयान नाम डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के मूल भीमराव से पड़ा हैं।
स्वतंत्रता के बाद बहुत बड़ी संख्या में एक साथ आंबेडकर के नेतृत्व में ही बौद्ध धम्म परिवर्तन हुआ था। 14 अक्तूबर, 1956 को नागपुर में यह दीक्षा सम्पन्न हुई। भीमराव के 5,00,000 समर्थक बौद्ध बने है, उगले 2,00,000 फिर तिसरे दिन 16 अक्टूबर को चंद्रपूर में 3,00,000। इस तरह कुल 10 लाख से भी अधिक लोग भीमराव ने केवल तीन दिन में बौद्ध बनाये थे।
लेकिन ये नवयान बौद्ध दर्शन की मुख्य सिद्धांतो से बिल्कुल अलग है ये सिर्फ नाम के बौद्ध है जो न तो बौद्ध की शिक्षाओं को मानते है ना उनके सिद्धांत को

#विशेष - बुद्ध धर्म में जाति विभेद का नमूना अभी हाल के वर्ष में देखने को मिला जब 2007 में कुछ नीची कही जाने वाली जाति के बच्चों को कर्नाटक के मठ में बौद्ध भिक्षु की शिक्षा ग्रहण करने के लिए चुना गया । चुने जाने के बाद उन 16 बच्चों (8 से 28 वर्ष) को कर्नाटक के मठ भेज़ दिया गया, इसी इलाके के तथाकथित ऊंची जाति के बच्चे भी उसी मठ में रहते हैं उनसे यह सहन नहीं होना था और हुआ भी नहीं कि ये दबे हुए निचले तबके के लोग उनकी बराबरी करें । तो हर तरह से उन बच्चों के घरवालों को ड़राया-धमकाया तथा उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया गया और अंतत इस बात के लिए मज़बूर किया गया कि उन छाञों को वापिस बुलाना पड़ा । “संविधान के सामाजिक अन्याय” पुस्तक में इस घटना का विस्तृत वर्णन है

वैदिक धर्म और मुसलमान

एक कड़वा सच
कूछ मुसलमान मित्रों का कहना है पहले अपना वेद पुराण पढ़ो फ़िर इस्लाम के लिये बोलना उसी वेद पुरा

मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु इनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनु तथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं कि अल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है...पर आदम शब्द संस्कृत शब्द "आदि" से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सब भाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.
इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भी है "अल्लोपनिषद". चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाता है.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में "या" शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे "या देवी सर्वभूतेषु....", "या वीणा वर ...." वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं "या अल्लाह"..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.
चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद में लोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लिया ताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म के बजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थे अपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्म से अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एक पुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगर उसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों का वैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटा पाए और मिटा भी नही सकते....
भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर" का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..
चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं--
ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..
जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया...इस तरह से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं...
अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,लेकिन इस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसे सिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान,तजाकिस्थान,आदि..} घोड़े हरे-भरे स्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..
इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!
चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.ये इस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.
चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमान हर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मन में आएगा ही...अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर पर टिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाता है..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता है
क्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकर रखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरक की बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती...!
एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भी पर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी से बचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..
कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे...
ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह के भेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त के परिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव के प्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वो अपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..
देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत के मुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र "शिथ" भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..
और ये "लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा" इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..
कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए... ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..
प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचाने के लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इस बात का वर्णन होना कि "मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनका कत्ल करो" ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामने झुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावे किसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रात ज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिर इनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरान में..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते...जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयु हजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगों के विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में
कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपस्या में ही दर्शन देने लगे..
धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..
यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता...हिंदु धर्म संस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान ये कामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है...
हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विष बना देते हैं..
मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है...?? ये अफसोस की बात है कि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..
इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरब पर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब में वैदिक संस्कृति के प्रमाण दिए यथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व में ही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछ चित्र जोड़ रहा हूँ...
-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैं जो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुए दिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ में शायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इस पौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभ मानते हैं.....

यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर के संग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगर एथेंस से ६० कि.मी. दूर है.प्राचीनकाल से ही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यह भव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिर से प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथ भी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लग रहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्र को एक देहाती दृश्य का नाम दिया है यूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेक प्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार में जो यूरोपीय इतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्ण नीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही के कारण नष्ट हो रहे हैं.जरुरत है हमें जगने की और पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की..
हर हर महादेव।।नया सबेरा।