Tuesday, 25 July 2017

महावीर हनुमान मंदिर पटना

कुछ तथाकथित दलित चिंतकों (असल में वेटिकन के गुर्गे) का सदा से आरोप रहता है कि मंदिरों में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है, उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता. हालाँकि यह बात पहले ही सिद्ध हो चुकी है कि यह केवल दुष्प्रचार भर है, क्योंकि देश के हज़ारों मंदिरों में से इक्का-दुक्का को छोड़कर किसी भी मंदिर में घुसते समय, किसी से उसकी जाति नहीं पूछी जाती है.
मन्दिर में ऐसा कोई रजिस्टर या रसीद नहीं होती, जिसमें मंदिर में घुसते समय व्यक्ति का नाम अथवा जाति लिखनी पड़ती हो. यह तथ्य है कि मंदिरों में कोई भी आ-जा सकता है. परन्तु अब इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए देश के कई राज्यों में यह प्रयास शुरू हो गए हैं कि दलितों को मंदिरों में पुजारी भी नियुक्त किया जाए, और ऐसे प्रयास धीरे-धीरे सफल भी होने लगे हैं. इस आन्दोलन के आगे बढ़ने पर “दल-हित” चिंतकों का दूसरा नकली आरोप भी ध्वस्त हो जाएगा कि मंदिरों पर केवल ब्राह्मणों का एकाधिकार है (जबकि वास्तविकता यह है कि देश के अधिकाँश मंदिरों से होने वाली आय पर सम्बंधित राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, ब्राह्मणों या पुजारी का नहीं). ऐसे कई दलित पुजारियों की श्रृंखला में से एक उदाहरण आज आपके सामने पेश किया जा रहा है. यह है पटना का “महावीर हनुमान मंदिर”.

किसी भी मंदिर की तरह इस मंदिर में भी हनुमान की फूलों से सजी हुई मूर्ति के सामने बैठे दो पुजारी भक्तों के हाथों से प्रसाद ले रहे हैं, और उन्हें मूर्ति से उठाए हुए फूलों के साथ प्रसाद की टोकरी वापस कर रहे हैं. उनके सामने श्रद्धा से विनत भक्त खड़े हैं. उनके सिर श्रद्धा से झुके हुए हैं. पटना के महावीर मंदिर में किसी भी आम मंदिर के समान ही नजारा है, जहां हनुमान चालीसा, और रामायण के सुन्दर काण्ड का पाठ हो रहा है, और मंदिर की घंटियां भी बज रही हैं. आम मंदिर की तरह वहां पर भी पुजारियों के द्वारा प्रसाद और भक्तों के द्वारा पुजारी के पैर छूने के द्रश्य को बहुत आराम से देखा जा सकता है. वैसे तो यह नजारा भारत क्या संसार के हर हिन्दू मंदिर में आसानी से देखा जा सकता है. मगर अब आप सोचेंगे कि आखिर ऐसा क्या है जो इसे ख़ास बनाता है, ऐसा क्या है जो इस पर लेख लिखा जाए! यहाँ पर “अलग” है इन पुजारियों की पहचान, अलग है इन पुजारियों की जातिगत पहचान! चित्र में दिखाए गए सफेद धोती और मैचिंग उत्तरायण के साथ हैं पुजारी फलाहारी सूर्यवंशी दास. उनकी उम्र है 62 वर्ष और वे एक दलित हैं. किसी भी मंदिर में एक पंडित पुजारी के साथ दलित पुजारी का कंधे से कंधे मिलाकर पूजा कराना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम है. यह अपने आप में सांकेतिक ही सही मगर बहुत बड़ा बदलाव है.” ऐसा कहना है बिहार स्टेट बोर्ड ऑफ रिलीजियस ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष और सेवा निवृत्त पुलिस अधिकारी आचार्य किशोर कुनाल का. तीन सौ साल पुराने मंदिर में दलित का पुजारी होना एक आश्चर्य का विषय ही है.
अपने घर से काम के लिए जाते समय मंदिर पर रोज़ अपना सर झुकाने वाले विनय अग्रवाल का कहना है कि मंदिर में आने से पहले ही मुझे इस मंदिर के पुजारियों की जातियों का पता था. जब भी मैं यहाँ आता हूँ, तो फलाहारी बाबा के पैर तो एक बार छूता ही हूँ! पुजारी सूर्यवंशी दास की आँखों में एक अधिकार और निर्भयता का भाव है और उनके अन्दर यह भी भरोसा है कि उन्हें पटना में स्वीकार कर लिया गया है और वे अब बाहरी नहीं हैं. वे कई बार यह भी कहते हैं कि ब्राह्मण विद्वान् भी उनके दर्शन के लिए खूब आते हैं.
चूंकि सूर्यवंशी दास केवल फलाहार करते हैं, इसीलिए उनका नाम फलाहारी बाबा पड़ा है, वे कहते हैं कि मैं एक महात्मा हूँ. मैंने खुद को कभी भी दलित नहीं माना. संत रामदास ने भी कहा है कि जाति-पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे वो हरी का होई! भगवान ने कोई ऊंची और नीचे जाति नहीं बनाई है, यह सब केवल इंसानों का ही किया धरा है. दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई करने वाले डॉ. भीम राव आंबेडकर ने पूजापाठ के वर्चस्व को लेकर ब्राह्मण को बहुत कोसा था और उन्होंने एनिहिलेशन ऑफ कास्ट के नाम से एक भाषण में पुजारियों पर टिप्पणी करते हुए काफी कुछ लिखा था, जिसे हिन्दू सुधारवादी समूह जात पात तोड़क मंडल में पढ़ा जाना था, मगर उसे अंतिम समय में उसके आपत्तिपूर्ण विचारों के कारण उनका निमंत्रण ही अस्वीकृत कर दिया था. “हिन्दू पुजारी का पेशा ऐसा है जो किसी भी संहिता में नहीं आता है. पुजारी को हमेशा ही किसी न किसी नियम के अंतर्गत लाना चाहिए. यदि इसमें सभी जातियों के लोगों का प्रतिनिधत्व होगा तो न केवल इससे लोकतंत्रीकरण होगा बल्कि इससे जातिप्रथा की कुरीति भी अंतिम साँसें लेगी.
(पूर्व पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल)

बिहार में, इस परिवर्तन की अंगड़ाई 13 जून 1993 को होनी शुरू हुई, जब एक तीन सदस्यीय उच्च प्रतिनिधिमंडल ने दास को चुना! रामचंद्र परमहंस, बाबा गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ और महंत अवधकिशोर दास की उपस्थिति ने संकेत दिया, कि दास की नियुक्ति को हरी झंडी मिल चुकी है। लेकिन इस सबके पीछे थे मंदिर की देखभाल करने वाले किशोर कुणाल, जिन्होंने सामाजिक व्यवस्था को बदलने का बीड़ा उठाया, और जातिगत बंधन तोड़े. ये किशोर कुणाल ही थे, जिन्होनें मंदिर को सामाजिक बदलाव का माध्यम बनाया. किशोर कुणाल खुद व्यक्तिगत रूप से अयोध्या के संत रविदास मंदिर गए, और उनसे पटना में महावीर मंदिर के लिए पुजारी भेजने के लिए, वहां प्रमुख पुजारी से अनुरोध किया। उल्लेखनीय है कि संत रविदास पंद्रहवीं शताब्दी के भक्ति संत थे जिन्होंने भारत में एक जातिविहीन समाज का सपना देखा था। एक संत के रूप में दलित उनका आदर करते हैं और उनके नाम पर कई मंदिर बनाए गए हैं। कुणाल कहते हैं कि उन्हें यह लगा था कि ऐसी “ईशनिंदा” के कारण शायद उन्हें अयोध्या या बनारस में अपनी जान से हाथ धोना होगा, या कोई मेरे साथ मारपीट करेगा... मगर आश्चर्यजनक रूप से कुछ भी नहीं हुआ।
प्रारंभ में, रविदास मंदिर के कर्मचारियों को यह लगा कि किशोर कुणाल की कुछ राजनीतिक आकांक्षाएं हैं, और वे ये सब कुछ दलित वोट पाने के लिए कर रहे हैं। इस कारण से, उन्होंने तुरंत अपने किसी भी पुजारी को नहीं दिया, मगर कुछ दिनों के बाद दास का चयन और कई अन्य लोगों का साक्षात्कार हुआ। अब तक, किशोर कुणाल ने यहां दर्जन से अधिक मंदिरों में दलित पुजारी बनाए हैं. किशोर कुणाल ने “दलित देवो भव” नामक तीन खंडों की पुस्तक लिखी है, जो हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव और इतिहास में दलितों के मिथकों को तोडती है. शुरू-शुरू में हल्का-फुल्का विरोध था. कुछ लोगों ने कुणाल को एक दलित पुजारी की नियुक्ति के संभावित नतीजों के बारे में चेतावनी दी, लेकिन अंत में इसका परिणाम सुखद रहा। बहरहाल, बिहार अथवा महाराष्ट्र या कर्नाटक के कई मंदिरों में दलित पुजारियों की स्थापना का मतलब यह नहीं है, कि जाति अब देश या राज्य में अप्रासंगिक हो गई है, लेकिन निश्चित रूप से यह कदम जातिगत अवरोध तोड़ने की दिशा में एक छोटा कदम है.

सृष्टि, अंतरिक्ष और भूगोल : सब है ऋग्वेद के मन्त्रों में

सृष्टि विज्ञान के दो पहलू हैं। पहला पहलू है कि सृष्टि क्या है? आधुनिक विज्ञान यह मानता है कि आज से 13.7 अरब वर्ष पहले बिग बैंग यानी कि महाविस्फोट हुआ था। उसके बाद जब भौतिकी की रचना हुई, अर्थात्, पदार्थ में लंबाई, चौड़ाई और गोलाई आई, वहाँ से विज्ञान की शुरुआत हुई। उससे पहले क्या हुआ, इस पर विज्ञान मौन है। क्योंकि भौतिकी की यह सीमा है।
क्वांटम सिद्धांत के आधार पर अवश्य आगे का जानने के कुछ प्रयास हुए, परंतु उसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली। उससे जो कुछ निकाला गया, वह सारी बातें हमारे शास्त्रों में पहले से है। परंतु सृष्टि रहस्य को समझने से पहले हम यह जान लें कि यह ब्रह्मांड कैसा है, उसे हम किस तरह से देखते हैं और भारतीय विधा में उसे किस प्रकार से देखा गया। पहले इसका एक विवरण यहाँ प्रस्तुत है।
भगवद्गीता में दो प्रकार के जगत की बात कही गई है – क्षर और अक्षर जगत। क्षर जगत में यह संपूर्ण ब्रह्मांड आता है और इसकी विविधता में सन्निहित एकत्व को अक्षर ब्रह्म कहा गया है। अभी हम इसी क्षर जगत के विज्ञान यानी कि ब्रह्मांड का चित्र यहाँ रखूंगा। साथ ही इस ब्रह्मांड का जो चित्र आज के आधुनिकतम यंत्रों से देखा गया, वह भी प्रस्तुत किया जाएगा। सबसे पहले मनुष्यों के मन में प्रश्न उठा कि हम कौन हैं, कहाँ से आए, हमें बनाने वाला कौन है और ये सारी चीजें कब तक रहेंगी। इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का उन्होंने प्रयास किया तो ज्ञान की दो विधाएं प्रारंभ हुई। एक को हम दर्शन कहते हैं और दूसरे को विज्ञान कहते हैं। जिस समय मिस्र में शरीर को सुरक्षित रखने के लिए पिरामिडों का निर्माण किया जा रहा था, उस समय भारत ज्ञान में रमा हुआ था और शरीर से ऊपर उठ कर अध्यात्म तथा आत्मा को जानने का प्रयास कर रहा था। उसने पिरामिड तो नहीं बनाया, परंतु आत्मा को जानने का प्रयास किया। कई बार यह प्रश्न लोग पूछते हैं और यह प्रश्न मुझसे भी विदेशों में कई विज्ञानियों ने पूछा कि आज तो इतने विकसित दूरबीन जैसे यंत्र हैं जिससे हम आज ब्रह्मांड को देख रहे हैं, प्राचीन काल में तो ये यंत्र नहीं थे, फिर उन्होंने ब्रह्मांड को कैसे देखा?
इसको समझने के लिए मैं एक उदाहरण देना चाहूँगा। आप जल की एक बूंद को लें उसे कन्याकुमारी के समुद्र तट पर ले जाकर पूछें कि तुम कहाँ हो तो वह उत्तर देगी वह कन्याकुमारी के तट पर है। परंतु जैसे ही उस बूंद को समुद्र में मिला देंगे, उसी क्षण वह समुद्र हो जाएगी, तो वह बूंद केवल हिंद महासागर नहीं होगी, वह उसी क्षण अटलांटिक महासागर, प्रशांत महासागर, पीला सागर, लाल सागर सभी कुछ हो जाएगी क्योंकि पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जलमय है, तो फिर वह पूरे विश्व की खबर आपको देगी। ठीक इसी प्रकार हमारे ऋषियों ने समाधि अवस्था में जाकर अपनी व्यक्तिगत मेधा को ब्रह्मांडीय मेधा के साथ एकाकार कर दिया। इससे उन्हें ब्रह्मांड की सारी चीजें स्पष्ट हो गईं और उसे उन्होंने श्रुति परंपरा में डाल दिया। उसे ही बाद में लेखनीबद्ध किया। इसलिए इसे दर्शन कहा गया। इसे वह देखता है। कहा भी गया है "ऋषयो मंत्रद्रष्टार:"। ऋषि मंत्रों को देखते हैं... देख कर साक्षात्कार किया। इसलिए उन्होंने वेद-वेदांग, षड दर्शन, ब्राह्मण, आरण्यक आदि ग्रंथों की रचनाएं कीं। भारत के ज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैला। यहाँ तक कि वह चीन की दीवार पार करके वहाँ तक भी पहुँचा।
हमारे यहाँ अंकविद्या की बात होती है। ज्योतिष का अर्थ केवल फलित ज्योतिष नहीं है। ज्योतिष का अर्थ है नक्षत्र विद्या। अंकगणित के बारे में हमें यह बताया गया कि शून्य की खोज आर्यभट ने की। परंतु यजुर्वेद के एक मंत्र 17/2 में एक से लेकर एक पर घात सत्ताइस शून्य तक का वर्णन है। साफ है कि शून्य का ज्ञान आर्यभट के पहले से ही यजुर्वेद के काल से हमारे यहाँ रहा है। यहीं से यह अंक विद्या अरब और वहाँ से यूरोप पहुँची। इसलिए इसे वहाँ अरबी न्यूमेरल्स कहा जाता है। दुर्भाग्य से अपने यहाँ भी इसे अरबी न्यूमेरल्स ही कहा जाता है।
जब इटली में पीसा की मीनार बनाई जा रही थी, भारत वेधशालाओं का निर्माण कर रहा था। उज्जैन, जयपुर में और दिल्ली में वेधशालाएं बनाई गई थीं। पश्चिम में वर्ष 1609 में गैलिलियो ने दूरबीन बनाया था। वहाँ से यह आगे बढ़ता गया। इन दूरबीनों से देखने के बाद विज्ञानियों को यह समझ आया कि पृथिवी पर स्थित दूरबीन से हम देखें तो हम अपनी आकाशगंगा का एक हिस्सा भर ही देख सकते हैं। इससे अधिक देखने के लिए आकाश में दूरबीनें स्थापित करनी होंगी। नासा ने धरती से 486 कि.मी. की ऊँचाई पर हब्बल टेलिस्कोप स्थापित किया। फिर एक टेलीस्कोप चंद्राएक्सरे 7000 कि.मी. की ऊँचाई पर, और स्पिट्जर को धरती से 18 हजार कि.मी. की ऊँचाई पर स्थापित किया गया। इसके बाद और भी कई टेलिस्कोप अंतरिक्ष में स्थापित की गईँ ताकि हम ब्रह्मांड को देख सकें। अंतरिक्ष मे एक स्टेशन स्थापित किया गया है जो 7.66 कि.मी.प्रति सेकेंड की गति से चल रहा है। उस स्टेशन पर रहने वाले व्यक्ति के लिए चौबीस घंटे में सोलह दिन-रात होते हैं।
हमें बताया जाता है कि आर्यभट ने सबसे पहले कहा कि पृथ्वी गोल है... और हमें तो बचपन में यह पढ़ाया गया था कि कॉपरनिकस ने सबसे पहले कहा कि पृथ्वी गोल है। उसके साथ ईसाइयों ने बड़ा ही अमानवीय व्यवहार किया, क्योंकि बाइबिल के जेनेसिस के अध्याय में लिखा है कि पृथ्वी चपटी है। हमारे अंदर जब कुछ जागरुकता आई तो हम कॉपरनिकस से छोड़ा पीछे गए और कहा कि आर्यभट ने हमें बताया कि पृथ्वी गोल है। परंतु ऋग्वेद 1/33/8 में कहा है चक्राणास: परिणहं पृथिव्या। यानी पृथ्वी चक्र के जैसी गोल है। पृथ्वी से जुड़ा जो भी विषय हम पढ़ते हैं, वह विषय है भूगोल। यह नाम ही बताता है कि पृथ्वी गोल है।

फिर हमें वैदिक ऋषियों ने बताया कि माता भूमि: पुत्रोस्हं पृथिव्या:। यानी हम पृथ्वी संतानें हैं, वह हमारी माँ है। माता कैसे हैं? माँ के गर्भ में हम एक झिल्ली में होते हैं, ताकि माता के शरीर के अंदर के बैक्टीरिया को नुकसान नहीं पहुँचा पाता। माँ के गर्भ में ही इस झिल्ली से ही हमें सुरक्षित रखा गया है। तभी हम जन्म ले पाते हैं। ठीक इसी प्रकार पृथ्वी भी एक झिल्ली में सुरक्षित है। इसे हम ओजोन परत कहते हैं। यह परत हमें सूर्य के हानिकारक विकिरणों से सुरक्षित रखती है। नासा ने इसका चित्र लिया है। उससे पता चलता है कि यह सुनहरे रंग का दिखता है। ऋग्वेद में इसका उल्लेख पाया जाता है। वहाँ कहा गया है कि वह परत हिरण्य के रंग का अर्थात् सुनहरा है। इतनी सूक्ष्मता से ऋग्वेद इसका वर्णन करता है।
आज हम जानते हैं कि पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूम रही है। इसलिए सूर्योदय हमेशा पूरब में होता है। इस बात को ऋग्वेद (7/992) का ऋषि कहता है कि बूढ़ी औरत की तरह झुकी हुई पृथ्वी पूरब की ओर जा रही है। ऋग्वेद हमें यह भी बताता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है। आज आधुनिक विज्ञान भी बताता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.44 डिग्री पर झुकी हुई है। इसके अलावा एक घूमते हुए लट्टू में जो एक लहर सी आती है, उसी प्रकार पृथ्वी के घूर्णन में भी एक लहर आती है। इसके कारण पृथ्वी की एक और गति बनती है। इस चक्र को पूरा करने में पृथ्वी को छब्बीस हजार वर्ष लगते हैं। भास्कराचार्य ने इसे भचक्र सम्पात कहा है और इसकी कालावधि 25812 वर्ष निकाली थी। यह आज की गणना के लगभग बराबर ही है। इस गति के कारण पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के सामने और तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के विपरीत में होता है। जब यह सूर्य के विपरीत में होता है तो बर्फ युग होता है और जब यह सूर्य के सामने होगा तो यहाँ ताप बढ़ा जाएगा जिससे बर्फ पिघलने लगेगी। इसके लिए आधुनिक विज्ञानियों ने पिछले 161 हजार वर्षों के उत्तरी ध्रुव में होने वाले तापमान में परिवर्तन की एक तालिका बनाई है। इससे भी यह बात साबित हो जाती है।

अब हम आज जानते हैं कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। इसके बारे में भी ऋग्वेद का एक मंत्र 10/149/1 हमें बताता है कि सविता यानी कि सूर्य एक यंत्र की भांति पृथ्वी को अपने चारों ओर घुमा रहा है। पृथ्वी की गति 29.78 कि.मी. प्रति सेकेंड की गति से घूम रही है। यह अपना परिक्रमा पथ 365 दिन छह घंटे बाईस मिनट में पूरा करती है। सूर्य पृथ्वी को कैसे घुमा रहा है? यंत्र की भांति गुरुत्व के बल से। गुरुत्व की अगर बात की जाए तो सभी को यही पढ़ाया जाता है कि गुरुत्व का सिद्धांत आइजैक न्यूटन ने दिया। कहा जाता है कि उसने बगीचे में सेब को गिरते देख कर यह सिद्धांत दिया। अब आप वैशेषिक दर्शन का यह सूत्र देखें – अपां संयोगे अभावे गुरुत्वात् पतनम्। इसका साफ अर्थ है कि गुरुत्व के कारण गिर जाएगा। प्रश्न उठता है कि कणाद पहले हुए कि न्यूटन? कणाद तो काफी पहले हुए हैं। दूसरी बात यह है कि आज से सात वर्ष पहले लंदन के टाइम्स पत्रिका में एक खबर छपी थी कि न्यूटन के व्यक्तिगत पुस्तकालय में आर्यभटीय ग्रंथ मिला। इसमें आर्यभट की इस पुस्तक के उस पृष्ठ को चिह्नित किया हुआ था, जिसे संभवत: न्यूटन ने ही किया होगा, जिसमें आर्यभट के मुजफ्फरपुर में लीची को नीचे गिरते देखने और गुरुत्व के सिद्धांत की व्याख्या किए जाने की चर्चा है। इसका उल्लेख करके टाइम्स का संवाददाता लिखता है कि संभव है कि न्यूटन ने आर्यभट के इस उदाहरण की चोरी कर ली हो और लीची की जगह सेब देखने की बात कह दी।
पृथ्वी का परिक्रमा पथ बारह भागों में बाँटा गया है। इसे ही हम बारह राशियां कहते हैं। इसे कहा जाता है कि यह सारी जानकारी हमने बेबिलोनिया तथा ग्रीस से ली। ऋग्वेद के 1/164/48वें मंत्र में कहा है बारह राशियों की चर्चा पाई जाती है। ऋग्वेद तो ग्रीस के इतिहास से काफी पुराना है। ऐसे में राशियों का सिद्धांत भारत का अपना सिद्धांत साबित होता है। इसे कहीं बाहर से नहीं लिया गया। आज के विज्ञान ने पता लगाया है कि पृथ्वी सूर्य के चारो ओर एक झूले की तरह घूम रही है। उसका परिक्रमा पथ स्थिर नहीं है। वह सूर्य की ओर दोलन करता है। इसका कालखंड एक लाख से लेकर चार लाख वर्षों का है। इस दोलन में पृथ्वी कभी सूर्य के नजदीक चली जाती है और कभी सूर्य से एकदम दूर। इससे भी पृथ्वी के वायुमंडल में बदलाव आता है।
हमने एक पैराणिक कथा सुनी होगी अगस्त्य द्वारा समुद्र को पी लेने की। यह कहानी भी वास्तव में अंतरिक्ष के अगस्त्य तारे से जुड़ी हुई है। अगस्त्य ऋषि द्वारा खोजे जाने के कारण इस तारे का नाम अगस्त्य तारा पड़ा। अंतरिक्ष के पिंडो के नाम ऐसे ही उनके खोजकर्ताओं के नाम पर या किसी महान हस्ती के नाम पर रखे जाते हैं। बुध नाम के ऋषि ने बुध ग्रह को खोजा। इसी प्रकार शुक्र ऋषि ने शुक्र का और वृहस्पति ऋषि ने वृहस्पति की खोज की थी। यह अगस्त्य तारा हमारे सूर्य से सौ गुणा बड़ा है। अगस्त्य तारा दक्षिण में उगता है। यह मई में अस्त हो जाता है। यह तब उदय होता है जब सूर्य दक्षिणायण होते हैं। तो एक तो सूर्य की सारी उष्मा दक्षिण की ओर जा रही है, दूसरी ओर अगस्त्य की उष्मा भी आ रही है। दोनों की संयुक्त उष्मा पृथ्वी के दक्षिण में पड़ती है। हम जानते हैं कि सारे समुद्र दक्षिण में ही हैं। उन दोनों की उष्मा के कारण समुद्र से वाष्पीकरण होने लगता है। सूर्य जनवरी में उत्तरायण हो जाते हैं, परंतु अगस्त्य तारा मई तक रहता है, तब तक वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। इसे ही अगस्त्य का समुद्र पीना कहा जाता है। यह एक पर्यावरणीय घटना है। जैसे ही अगस्त्य तारा अस्त होता है, वाष्पीकरण की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

वराहमीहिर के सिद्धांत के अनुसार साढ़े छह महीने में मेघ गर्भधारण कर लेता है। इसलिए अगस्त्य के अस्त होते हैं मई के अंतिम सप्ताह से मानसून केरल से शुरू हो जाता है और जून के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत में आ जाता है। कालीदास के मेघदूत को अगर हम पढ़ें तो उसमें हमें मानसून का यह पूरा चक्र मिल जाएगा। प्रकाश की गति के बारे में ऋग्वेद 1/50/9 में कहा गया है "..तरणिर्वश्वदर्शतो ज्योतिकृदसि सूर्य विश्वमाभासिरोचन.."। इसकी व्याख्या में सायणाचार्य ने लिखा है कि आधे निमिष में प्रकाश 2202 योजन यानी कि 186 हजार मील की दूरी तय करता है। आधुनिक गणना से भी यही गति प्राप्त होती है। यह बात संस्कृत के विद्वानों को तो पता है, और वे इसे कहते भी हैं। इसको ही आगे बढ़ाते हुए ऋग्वेद 3/53/8 में कहा गया है, "..त्रिर्यत् दिव: परिमुहुर्तम् आ अगात् स्वै:.."। अर्थात् एक मुहुर्त में सूर्य का प्रकाश तीन बार पृथ्वी पर आ जाता है। एक मुहुर्त में 24.5 मिनट होते हैं। इस गणना से सूर्य का प्रकाश पृथिवी पर 8.17 मिनट में पहुंचता है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है। वह सूर्य के प्रकाश के पृथ्वी तक पहुंचने का समय 8.19 मिनट बताता है। इससे हम सूर्य से पृथ्वी की दूरी की भी गणना कर सकते थे। ऋग्वेद की इस गणना की बात कोई नहीं करता। सायण तो नौवीं शताब्दी में हुए हैं। ऋग्वेद तो काफी पुराना ग्रंथ है।
अपने शास्त्रों में पृथ्वी को अग्निगर्भा यानी कि अग्नि के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है। आधुनिक विज्ञान ने आज से साढ़े चार अरब वर्ष पहले की पृथ्वी का जो चित्र बनाया है, उससे यह सही साबित होता है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि उस समय पृथ्वी एक हॉट बॉल यानी कि आग का गोला थी। धीरे-धीरे वह ठंडी हुई। महाभारत में भीष्म पृथ्वी की गोलाई को बारह हजार कोस यानी कि चौबीस हजार मील बताते हैं। इसको किलोमीटर में बदलें तो यह अड़तीस हजार छह सौ चौबीस कि.मी. आता है। आज का विज्ञान भी पृथ्वी की परिधि को चालीस हजार कि.मी. ही मानता है। यह लगभग समान ही है। वैदिक ज्योतिष में पृथ्वी का भार भी मापा गया है और 1600 शंख मन बताया गया है। इसे यदि हम किलोग्राम में बदलें तो आधुनिक गणना के अनुसार निकाले गए मान 6 गुणा 1024 के निकट ही आता है।
सौर मंडल को अगर हम देखें तो अपने यहाँ पुराणों में बहुत सारी कथाएं ऐसी मिलेंगी जो आपत्तिजनक प्रतीत होती हैं। जैसे कि एक कथा वृहस्पति की पत्नी और चंद्रमा के जार से बुध की उत्पत्ति होने की है। वास्तव में ऐसी कथाएं अंतरिक्ष जगत की हैं। यह कथा वृहस्पति के विभिन्न नक्षत्रों में भ्रमण करने और चंद्रमा के उसके घर में प्रवेश करने के ज्योतिषीय घटना की है। ऐसी कथाओं को बनाने का उद्देश्य इतना भर ही था कि यदि ज्योतिषीय ज्ञान कभी लुप्त भी हो तो इन्हें डिकोड करके उसे फिर से समझा जा सकेगा। इसी प्रकार आज हम देखते हैं कि शनि की काफी महिमा मानी जाती है। वास्तव में देखा जाए तो हमारे सौर मंडल में शनि का विशेष महत्व है भी। शनि और सूर्य के बीच में क्षुद्र ग्रहों की एक विशाल पट्टी है। इन्हें शनि अपनी ओर खींचता रहता है। यदि शनि इन्हें अपनी ओर नहीं खींचता तो ये सूर्य की खिंच जाते। ऐसे में क्षुद्र ग्रहों के पृथ्वी से टकराने की काफी अधिक आशंका होती। लगभग प्रतिदिन कोई न कोई क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराता रहता और फिर यहाँ जीवन संभव ही नहीं होता। इसलिए भी भारतीयों ने शनि को इतना महत्वपूर्ण माना।

सौर मंडल के अलग-अलग ग्रहों का परिक्रमा पथ अलग-अलग है और इस कारण उनके एक वर्ष का मान भी अलग-अलग हैं। जैसे वरूण यानी कि नेपच्यून ग्रह का एक वर्ष पृथ्वी के 164 वर्ष का है। यानी यदि आप नेपच्यून पर एक वर्ष बिता कर लौटेंगे तो पृथ्वी पर 164 वर्ष बीत चुके होंगे। इसको समझाने के लिए भी पुराणों में रेवती की एक कथा आती है। इस कथा में रेवती के विवाह के लिए चिंतित उसके पिता उसे लेकर ब्रह्मलोक चले जाते हैं। वहाँ वे ब्रह्मा से रेवती के लिए योग्य वर के बारे में पूछते हैं। ब्रह्मा कहते हैं कि शीघ्रता से वापस पृथ्वी पर जाओ अन्यथा वहाँ वर नहीं मिल पाएगा। वे सतयुग में पृथ्वी से गए थे और लौटे तो यहाँ द्वापर युग का अंत चल रहा था। फिर उन्होंने रेवती की शादी बलराम से की। इस प्रकार ब्रह्मांड में भिन्न-भिन्न संदर्भों में भिन्न-भिन्न वर्ष होते हैं।
आज हम यह जानते हैं कि चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। यह बात यजुर्वेद 18/40 का ऋषि भी कहता है। वहाँ कहा गया है – सूर्य रश्मि: चन्द्र्मसं प्रति दीप्यते। सूर्य की रश्मि से चंद्रमा प्रकाशमान है। भारतीय मासों के नाम चंद्रमा के अनुसार ही तय किए गए हैं। चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसके नाम पर ही उस मास का नाम होता है। चित्रा नक्षत्र में चंद्रमा हो तो वह चैत्र मास कहलाता है, विशाखा में हो तो वैशाख, ज्येष्ठा में हो तो ज्येष्ठ कहलाएगा। इस प्रकार भारतीय कालगणना पूरी तरह विज्ञान पर आधारित है...
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साभार :- भारतीय धरोहर


Monday, 24 July 2017

अल्लोपनिषद और मुसलमान

मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु इनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनु तथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं कि अल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है...पर आदम शब्द संस्कृत शब्द "आदि" से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सब भाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.

इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भी है "अल्लोपनिषद". चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाता है.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में "या" शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे "या देवी सर्वभूतेषु....", "या वीणा वर ...." वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं "या अल्लाह"..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.
चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद में लोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लिया ताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म के बजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थे अपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्म से अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एक पुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगर उसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों का वैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटा पाए और मिटा भी नही सकते....

भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर" का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..

चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं--

ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..

जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया...इस तरह से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं...

अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,लेकिन इस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसे सिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान,तजाकिस्थान,आदि..} घोड़े हरे-भरे स्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..

इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!

चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.ये इस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.

चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमान हर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मन में आएगा ही...अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर पर टिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाता है..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता है

क्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकर रखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरक की बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती...!

एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भी पर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी से बचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..

कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .

ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे...

ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह के भेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त के परिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव के प्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वो अपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..

देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत के मुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र "शिथ" भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..

और ये "लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा" इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..

कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए... ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..

प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचाने के लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इस बात का वर्णन होना कि "मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनका कत्ल करो" ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामने झुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावे किसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रात ज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिर इनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरान में..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते...जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयु हजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगों के विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में

कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपस्या में ही दर्शन देने लगे..

धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..

यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता...हिंदु धर्म संस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान ये कामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है...

हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विष बना देते हैं..

मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है...?? ये अफसोस की बात है कि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..

इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरब पर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब में वैदिक संस्कृति के प्रमाण दिए यथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व में ही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछ चित्र जोड़ रहा हूँ...

-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैं जो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुए दिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ में शायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इस पौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभ मानते हैं.....


यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर के संग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगर एथेंस से ६० कि.मी. दूर है.प्राचीनकाल से ही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यह भव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिर से प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथ भी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लग रहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्र को एक देहाती दृश्य का नाम दिया है यूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेक प्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार में जो यूरोपीय इतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्ण नीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही के कारण नष्ट हो रहे हैं.जरुरत है हमें जगने की और पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की..

Sunday, 23 July 2017

भीमटा अमर्यादिक ग्रुप खतरे का संकेत तो नहीं

अरे ओ "भीमटावादी धर्मपरिवर्तन वाले समूह" वाले कटुवे वामिये जरा गौर से सुनो |
हमारे बिहार में हनुमान जी के मंदिर में ५० % से अधिक दलित पुजारी ही है | जिसे सब पैर छुके आशीर्वाद लेते है | ये दलित पंडित शुद्ध खाना खाते है | जिसके यहाँ से निमंत्रण आता है शुद्ध खाना ही खाते है | सात्विकता और संयम का ध्यान रखते है | ये सब को आशिरवाद देते है | प्रसाद देते है ये नहीं पूछते तुम किस जाती के हो |
एक बात तो भूल गया दो तिहाई मंदिर में पहलवान है | जो बजरंगबली की पूजा करते है | अगर तूने उल्टा सीधा बोला तो वही धोबी पता पढ़ा देंगे | कोई ज़ाकिर नायक का बाप भी नहीं बचाएगा | नदी से लेकर गांव | सड़क से लेकर घर तक | मंदिर से आंगन तक तुझे के श्री राम और बजरंग भक्त मिलेंगे | तेरी सब हेकड़ी और ज़ाकिर ज्ञान बाहर कर देंगे |
कुछ तथाकथित दलित चिंतकों (असल में वेटिकन के गुर्गे) का सदा से आरोप रहता है कि मंदिरों में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है, उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता. हालाँकि यह बात पहले ही सिद्ध हो चुकी है कि यह केवल दुष्प्रचार भर है, क्योंकि देश के हज़ारों मंदिरों में से इक्का-दुक्का को छोड़कर किसी भी मंदिर में घुसते समय, किसी से उसकी जाति नहीं पूछी जाती है.
मन्दिर में ऐसा कोई रजिस्टर या रसीद नहीं होती, जिसमें मंदिर में घुसते समय व्यक्ति का नाम अथवा जाति लिखनी पड़ती हो. यह तथ्य है कि मंदिरों में कोई भी आ-जा सकता है. परन्तु अब इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए देश के कई राज्यों में यह प्रयास शुरू हो गए हैं कि दलितों को मंदिरों में पुजारी भी नियुक्त किया जाए, और ऐसे प्रयास धीरे-धीरे सफल भी होने लगे हैं. इस आन्दोलन के आगे बढ़ने पर “दल-हित” चिंतकों का दूसरा नकली आरोप भी ध्वस्त हो जाएगा कि मंदिरों पर केवल ब्राह्मणों का एकाधिकार है (जबकि वास्तविकता यह है कि देश के अधिकाँश मंदिरों से होने वाली आय पर सम्बंधित राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, ब्राह्मणों या पुजारी का नहीं). ऐसे कई दलित पुजारियों की श्रृंखला में से एक उदाहरण आज आपके सामने पेश किया जा रहा है. यह है पटना का “महावीर हनुमान मंदिर”.
भगोड़ा ज़ाकिर नायक की कट्टरपंथ धर्मपरिवर्तन संस्था पर प्रतिबन्ध के बाद धर्मपरिवर्तन का खेल पर रोक लगी | इससे भारत पाकिस्तान अरब में बैठे धर्मपरिवर्तन कराने वाले संस्था को हताशा हाथ लगी | इसलिए ये संगठन अब एक नए हथियार के रूप में फिर से इक्क्ठे हो गए है | इन धर्मपरिवर्तन समूह ने "बौद्ध भीमटावादी मनु ब्राह्मण " इत्यादि हिन्दू विभाजनकारी मंशा है | इस धर्मपरिवर्तन समूह ने अभी हिन्दू की रणनीति के तहत सबसे पहले " दलित हिन्दू " को निशाने पर लिया है | कुछ वामपंथी और सेक्युलर राजनितिक संगठन का इस धर्मपरिवर्तन समूह (भीमटावादी धर्मपरिवर्तन समूह) का समर्थन प्राप्त है | ये ज़ाकिर नायक के वेद हिन्दू विरोधी झूठी काल्पनिक बातों से ब्रैनवॉश कर युवा का धर्म परिवर्तन करवाते है |



---:भीमटावादी धर्मपरिवर्तन समूह की रोचक बातें :---
नायक :--अफजल गुरु, गजनवी, बाबर,मुग़ल लूटेरे
विषय :-- मुसलिम धर्म की महत्ता और ज्ञान
आराध्य :-- ओवैसी, इमरान मसूद, आजमखान, हाजी
वेद व्यास :-- जाकिर नायक
बुद्धत्व ज्ञान:-- "दलित हिन्दू " आंदोलन करो और धर्म परिवर्तन करो |
प्रवक्ता :-- जाकिर नायक प्रेरित गुर्गे
तथ्य :-- देश, महापुरुष ,भगवान्, वेद हिन्दू धर्म विरोधी झूठे काल्पनिक आधारित दस्तावेज
विरोध पक्ष : मनुवाद, ब्राह्मणवाद , संघवाद, मोदीवाद, हिन्दू
मक्का :--JNU
धरमसार :-- बौद्ध धर्म + २२ हिन्दू विरोधी वामपंथी प्रतिज्ञा + जाकिर नायक का वेद ज्ञान
कर्म :-- मोदी आरएसएस हिन्दू को गाली देवी देवता का अपमान
उद्देश्य :-- सारे दलित को मुस्लमान बनाना
मन्त्र :-- सेक्युलर वामपंथी जीताय नमः | मोदी हराय नमः
गुरु :--पंक्चर और सलून वाले बुद्धिजीवी और छुटभैये मुल्ले
सदस्य : सड़क कॉलेज मोहल्ला में निक्क्मे लोग
पाठशाला :--- मस्जिद (वेद ज्ञान आश्रम )
योग्यता :--- निक्कमापन हर समस्या के लिए मोदी जिम्मेवार
प्रेमी देश :--पाक अरब अब तो चीन वालो को भी हमदर्दी है
जन्म :-- उत्तरप्रदेश इलेक्शन काल बिहार इलेक्शन में असहिष्णुता हुई थी
उपयोगिता : -- गुजरात राजस्थान इलेक्शन
अंत : लोकसभा इलेक्शन २०१९ में होगा
ये भीमटा धर्म का सम्पूर्ण जीवन सार है |
निष्कर्ष : "भीमटावादी धर्मपरिवर्तन समूह" एक अलोकतांत्रिक अवैध धर्मपरिवर्तन समूह है ::::
भीमटावादी धर्मपरिवर्तन समूह सभ्य समाज के लिए कलंक है|
भीमटा धर्म कहते है| इनके माने वाले खुद को भीमटा कहते है |
भीमटा कहते है बुद्ध ही सत्य है वैज्ञानिक धर्म है यहाँ का मूल धर्म है। लेकिन इन बातो का कोई ठोस आधार नही है ।ये बाते सिर्फ तर्को से ही खण्डित हो जाती है।और अगर ये बाते सत्य थी तो इनमे को वामपंथियो विचारधारा की 22 प्रतिज्ञा और जाकिर नायक का वेद ज्ञान की जोड़ने की क्या आवश्यकता थी।।











क्या भीमटावाद ( छद्म कट्टर शांतिदूतो) ऐसा अमर्यादिक ग्रुप खतरे का संकेत तो नहीं ?




हिन्दू ह्रदय सम्राट "दलित हिन्दू" का राष्ट्रपति होना भारत के लिए गर्व का विषय है |

इससे पाकिस्तानी चीनी अरब देश से "दलित हिन्दू " प्यार उभर आया है | पाकिस्तानी मीडिया का ग्रुप रोज हिन्दू दलितों पर हो रहे अन्याय पर रो रहा है | पाकिस्तान का ऐसा प्यार पाक मुल्क से जो प्यार "हिन्दू दलितों " पर हिलकोरे मार रहा है | इतना प्यार कभी नहीं था | सारे वामपंथी चिंतक दिन रात दलितों पर अतयाचार को उजागर कर रहे है | बौद्ध धर्म + २२ वामपंथी प्रतिज्ञा + ज़ाकिर का वेद ज्ञान + मानवाधिकार का समूह का रकम | हिन्दू दलित के उत्थान के लिए "हिन्दू दलित" का धर्म परिवर्तन के लिए विशेष अभियान ऐसा सराहनीय कदम के लिए देश विदेश से वामपंथी संगठन का आना और हिन्दू विरोधी जहर घोलना क्या इसरा करता है| आप सोशल मीडिया देखो उसमे एक ही ज्ञान मिलेगा की " दलित हिन्दू " आंदोलन करो और धर्म परिवर्तन करो |




क्या एक सभ्य लोकतान्त्रिक समाज और देश में भीमटा जैसा अमर्यादिक ग्रुप जिसका उद्देश्य केवल राजनितिक और समाज में द्वेष फैलाना है | जो सिर्फ हिन्दू देवी देवता को गाली देता हो और सिर्फ समाज में जहर घोलता हो | फेसबुक पर हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर घोलता है | देवी देवता का अपमान और अमर्यादित बातें करता है | मायावती इमरान मसूद हाजी इक़बाल सिर्फ वोट बैंक के लिए जिसका उपयोग करता है |

अगर किसी दल को राजनीती करनी है | जनता में जाये और काम करे | सिर्फ और सिर्फ नफरत की जहर समाज में घोलना | हिन्दू धर्म को अपमानित कर वोट की रोटी सेकना कहा तक जायज है | वोट के लिए हमने नरेश अग्रवाल को भगवान् राम का अपमान करते सुना | हर जगह वोट के लिए या नफरत के लिए हिन्दू धर्म पर चोट करना कहाँ तक जायज है | ये उग्र समूह हर जगह चौराहे पर मनुवाद ब्राह्मणवाद इत्यादि चिल्लाते है | सोशल मीडिया पर हिन्दू को गाली देते है | ये समूह आज घाव नासूर बन गया है कैंसर बनते देर नहीं लगेगी | इसका इलाज सामाजिक संगठन और राजनितिक संघठन को करना होगा |




देवी देवता और हिन्दू धर्म का अपमान करने का हक़ इस भीमटावादी छद्म कट्टर शांतिदूतो को किसने दिया |


Saturday, 22 July 2017

भीमटा धर्म या भीमटावाद की निरर्थकता

अतः वामपंथियों ने उन्होंने बौद्ध धर्म चुना जिसको न कोई मानाने वाला न कोई जानने वाला और जिसका न कोई धर्म गुरु भारत में था। जिसके साथ ये अपनी term & condition आसानी से जोड़ सकते थे और कोई रोकने वाला भी नही था।और हिन्दू चूँकि बुद्ध को भगवान मानते थे तो उन्हें कोई बुद्ध से समस्या भी नही थी। और बुद्ध के नाम पे ही इन्होंने राजनीती की शुरुआत की ।।
अब वामपंथी फिर एक बार मिशन भीमटा की ओर चल पड़े है |
इस नए राजनितिक धर्म का नाम "भीमटा धर्म" है जो राजनितिक है | जिसे मायावती, इमरान मसूद, हाजी इक़बाल इत्यादि नेता करते है |
भीमटा धर्म = बौद्ध धर्म + २२ हिन्दू विरोधी वामपंथी की प्रतिज्ञा जिससे समाज में राजनितिक रोटी सेंकी जा सके |
---:भीमटा धर्म की रोचक बातें :---
भीमटा धर्म के आराध्य :-- मायावती , हाजी इक़बाल इमरान मसूद, ओवैसी,लालू ,केजरीवाल इत्यादि सेक्युलर नेता
भीमटा धर्म के वेद व्यास :-- जाकिर नायक
भीमटा धर्म के प्रवक्ता :-- ब्राह्मण पंडित रविश कुमार, कन्हैया उमर खालिद
भीमटा धर्म का मक्का :--JNU
भीमटा धर्म का सार :-- बौद्ध धर्म + २२ हिन्दू विरोधी वामपंथी प्रतिज्ञा + जाकिर नायक का वेद ज्ञान
भीमटा का कर्म :-- मोदी आरएसएस हिन्दू को गाली देवी देवता का अपमान
भीमटा का नायक :--- चंद्रशेखर रावण
भीमटा का उद्देश्य :-- सारे दलित को मुस्लमान बनाना
भीमटा का मन्त्र :-- मायावती जीताय नमः | मोदी हराय नमः
भीमटा गुरु :--पंक्चर और सलून वाले बुद्धिजीवी और छुटभैये मुल्ले
भीमटा सदस्य : सड़क कॉलेज मोहल्ला में निक्क्मे लोग
भीमटा पाठशाला :--- मस्जिद (वेद ज्ञान आश्रम )
भीमटा का भ्रम कि वो अपने पूर्वज से ज्ञानी है |
भीमटा योग्यता :--- निक्कमापन हर समस्या के लिए मोदी जिम्मेवार
भीमटा प्रेमी देश :--पाक अरब अब तो चीन वालो को भी हमदर्दी है
भीमटा जन्म :उत्तरप्रदेश इलेक्शन काल बिहार इलेक्शन में असहिष्णुता हुई थी
भीमटा की उपयोगिता : गुजरात राजस्थान इलेक्शन
भीमटा धर्म का अंत : लोकसभा इलेक्शन २०१९ में होगा
ये भीमटा धर्म का सम्पूर्ण जीवन सार है |
निष्कर्ष : भीमटा धर्म एक राजनितिक धर्म है ::::
भीमटा धर्म = बौद्ध धर्म + २२ हिन्दू विरोधी प्रतिज्ञा + ज़ाकिर नायक वेद ज्ञान
भीमटा धर्म कहते है| इनके माने वाले खुद को भीमटा कहते है |
भीमटा कहते है बुद्ध ही सत्य है वैज्ञानिक धर्म है यहाँ का मूल धर्म है। लेकिन इन बातो का कोई ठोस आधार नही है ।
ये बाते सिर्फ तर्को से ही खण्डित हो जाती है।और अगर ये बाते सत्य थी तो इनमे को वामपंथियो विचारधारा की 22 प्रतिज्ञा और जाकिर नायक का वेद ज्ञान की जोड़ने की क्या आवश्यकता थी।।
भीमटावाद क्या है ?
गौतम बुद्ध और आंबेडकर के नाम के पीछ छुप छुपकर जाकिरवाद कायम करना | भीमटे स्कूल कॉलेज आते जाते लड़के लड़कियों को ज़ाकिरवाद (भीमटाधर्म) जहर पढ़ाते है|
भीमटा शास्त्र में न बुद्ध ज्ञान,न आंबेडकर मार्ग सिर्फ ज़ाकिर नायक का जहरीला ज्ञान है| भीमटे अपना पाप आंबेडकर, बुद्ध की आड़ में और मनुवादी बोलकर छुपाते है|भीमटो के नाम से मुल्ले भारत व पाकिस्तान से भी हिन्दू देवी देवता को गाली देते है|
भीमटाने हिन्दू विरोधी ग्रुप बनाये है ७०% से अधिक मुल्ले है भगवान अपमान करते है| भीमटा शास्त्र के लिए वेद मुल्ले लिखते है जिससे हिन्दू में झगड़ा हो |
जाकिर के वेद हिन्दू विरोधी बातों से भीमटे आक्रामक हो गए हैं| मनुवादी से बदला नारा है| भीमटा शास्त्र में भगोड़ा जाकिर नाईक का वेद ज्ञान है| जिसे पढ़कर हिन्दू द्वेष में आते है|
हमारे राम का अपमान का हक़ मुल्लो भीमटो सेक्युलर को किसने दिया ?
आज आहत व् दुःखी हूँ| हिन्दू के देवी देवता, राम ने करोड़ो लोगो को ताड़ा उसे संसद सोशल मीडिया अपमान बुरा है |

🚩🚩ब्राह्मण समाज 🚩🚩
हमें गर्व है -::-
🚩🇮🇳 हमारे नायक महान क्रांतिकारी पंडित चंद्रशेखर आजाद है|🚩🇮🇳
हमें शर्म है |
"पंडित रबिश कुमार पांडे" आप अपने आपको क्रन्तिकारी कहते है|
🇮🇳 भीमटे सदमे में 🇮🇳
🇮🇳 🇮🇳 भीमटा धर्म की देवी मायावती का इस्तीफा 🇮🇳 🇮🇳
🇮🇳 🇮🇳 दलित हिन्दू का राष्ट्रपति बनना भीमटा धर्म के लिए खतरा🇮🇳 🇮🇳
भीमटा धर्म उत्थान के लिए एक नई राष्ट्रिय पार्टी बनाने की तैयारी है| भीमटा की नई पार्टी का अभी नेता, झंडा, नारा और नाम ने लिए मतभेद और मंथन जारी है| मायावती के इस्तीफा से भीमटा धर्म में खलबली और निराशा के कारन बगावत हो गया है |
भिमटों को ये भ्रम हो गया है कि "दलित हिन्दू" मायावती की पूजा करते है| भीमटा धर्म में किसकी मूर्ति पूजा होगी हाजी इक़बाल, चंद्रशेखर रावण, इमरान मसूद या मायावती की | गुरु ज़ाकिर नायक फरार हैं |
भिमटों को ये भ्रम हो गया है कि "दलित हिन्दू" मायावती की पूजा करते है|भिमटों को ये भ्रम हो गया है कि "ब्राह्मण हिन्दू" रावण की पूजा करते है|भिमटों को ये भ्रम हो गया है कि "क्षत्रिय हिन्दू" कंस की पूजा करते है|
हिन्दु सम्राट दलित राष्ट्रपति बने कोविंद जी और भीमटा की पूजनीय देवी संसद से ही बाहर| एक दलित हिन्दू का राष्ट्रपति होना भीमटा धर्म पर गहरा आघात है |
🇮🇳 🇮🇳 प्रेम से बोलो भारत माता की जय |🇮🇳 🇮🇳
🚩🇮🇳 जय हिंदुत्व |🇮🇳 🚩
🚩🚩जय रविदास | जय श्री राम | 🚩  






खबर ये भी भारत के टॉप 50 मोस्ट वांटेड !! जरा सोचिये !!
1. हाफिज मोहम्मद सईद
2. साजिद माजिद
3. सैयद हाशिम अब्दुर्रहमान पाशा 4. मेजर इकबाल
5. इलियास कश्मीरी
6. राशिद अब्दुल्लाह
7. मेजर समीर अली
8. दाऊद इब्राहिम
9. मेमन इब्राहिम
10.छोटा शकील
11. मेमन अब्दुल रज्जाक
12. अनीस इब्राहिम
13. अनवर अहमद हाजी जमाल
14. मोहम्मद दोसा
15. जावेद चिकना
16. सलीम अब्दुल गाजी
17. रियाज खत्री
18. मुनाफा हलरी
19. मोहम्मद सलीम मुजाहिद
20. खान बशीर अहमद
21. याकूब येदा खान
22. मोहम्मद मेमन
23. इरफान चौगले
24. फिरोज राशिद खान
25. अली मूसा
26. सगीर अली शेख
27. आफताब बटकी
28. मौलाना मोहम्मद मसूद अजहर 29. सलाउद्दीन
30. आजम चीमा
31. सैयद जबीउद्दीन जबी
32. इब्राहिम अतहर
33. अजहर युसुफ
34. जहूर इब्राहिम मिस्त्री 35. अख्तर सईद
36. मोहम्मद शकीर
37. रऊफ अब्दुल
38. अमानुल्ला खान
39. सूफियान मुफ्ती
40. नाछन अकमल
41. पठान याकूब खान
42. कैम बशीर
43. आयेश अहमद
44 अल खालिद हुसैन
45 इमरान तौकीब रजा
46 शब्बीर तारिक हुसैन
47. अबू हमजा
48. जकी उर रहमान लखवी
49. अमीर रजा खान
50. मोहम्मद मोहसिन
.
लेकिन सेक्युलर कहते है,
आतंकवाद का कोई धर्म नही होता । 😕
तो फिर लिस्ट कोनसा धर्म बताती है
😡😡🚩 

वामपंथी विचारधारा समाज और धर्म विरोधी

वामपंथी विचारधारा समाज और धर्म विरोधी 
आर्य शब्द का अर्थ विशिष्ट तथा श्रेष्ठ गुण जन है। आर्यो के आक्रमण से संबंद्धित सिद्धांत औपनिवेशिक भारत के दुष्परिणामों में से एक है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रायोजित विद्वानों ने बलपूर्वक आर्य शब्द के जातीय संदर्भ ढूंढ़कर द्रविड़ के सामने खड़ा किया। उत्तर-दक्षिण तथा निम्न उच्च आदि विवाद भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं।
क्या आर्य हिन्दू विदेशी है ?
उत्तर : नहीं
एशिया और यूरोप को अंग्रेजी में यूरेसिया हिंदी (आर्याव्रत) कहते है |
यूरेशिया में एशिया |
एशिया में भारत है | कावेरी नदी भारत में है |

आर्य का जन्म कावेरी नदी के किनारे गोंडवाना लैंड के पास हुआ !
यूरेसिया (यरोप+एशिया) | एशिया में भारत |
भारत में कावेरी नदीके गोंडवाना लैंड में जन्मे आर्य स्वदेशी है |
कावेरी नदी के किनारे से ही मानव (मनु के संतान - मनुष्य) सभ्यता का जन्म और विकास हुआ था |
हिंदी शब्द के अंग्रेजी और संस्कृत में समानार्थक शब्द
पृथ्वी:
अर्थ EARTH = पृथ्वी
आर्याव्रत :
यूरेसिया (यरोप+एशिया) EURASIA ( Europe + Asia ) = आर्याव्रत
जम्बू द्वीप :
एशिया = जम्बू द्वीप
भारतबर्ष:
ईरान + अफगानिस्तान+पाकिस्तान+नेपाल +भारत +म्यांमार +भूटान +बंग्लादेश + श्रीलंका = भारतबर्ष
हिन्दुस्तान
इंडिया = हिन्दुस्थान

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?
हिन्दू धर्म का उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है इसलिए कुछ अति बुद्धिमान (सेक्यूलर) लोग कहते हैं कि हिन्दू शब्द फारसियों की देन है.
हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में वर्णित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित इस प्रकार से हैं :-
1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!
"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
(अर्थात, हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं)
2- सिर्फ वेद ही नहीं अपितु मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....
"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"
(अर्थात, जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)
3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है....!
"हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।"
(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है )
4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है....!
"हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते ।।"
(अर्थात, जो अपने तप से शत्रुओं, दुष्टों और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है )
5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है....!
"ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य: ।
गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।
(अर्थात, वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है )।


क्या है मूलनिवासी दिवस ?
अमेरिका में आदिवासी जाति रहती थी । वहां पर आदिवासी जाति अंग्रेजो की गुलामी स्वीकार नहीं करती थी । वहां की आदिवासी जाति को नष्ट करने के लिए अंग्रेजो ने समाज तोड़ो शासन करो नीति के तहत । मूलनिवासी मुद्दा को उठाया । जिससे मूलनिवासी ने अमेरिका के निवासी के विरूद्ध लड़ाई छेड़ दिया । उसके बाद अंगेजो ने बड़ी बर्बरता के साथ वहाँ के मूलनिवासी का सफाया किया था ।
यह मूलनिवासी दिवस पश्चिम के गोरों की देन है. कोलंबस दिवस के रूप में भी मनाये जाने वाले इस दिन को वस्तुतः अंग्रेजों के अपराध बोध को स्वीकार करनें के दिवस के रूप में मनाया जाता है. अमेरिका से वहां के मूलनिवासियों को अतीव बर्बरता पूर्वक समाप्त कर देनें की कहानी के पश्चिमी पश्चाताप दिवस का नाम है मूलनिवासी दिवस. इस पश्चिमी फंडे मूलनिवासी दिवस के मूल में अमेरिका के मूलनिवासियों पर जो बर्बरतम व पाशविक अत्याचार हुए व उनकी सैकड़ों जातियों को जिस प्रकार समाप्त कर दिया गया वह मानव सभ्यता के शर्मनाक अध्यायों में शीर्ष पर हैं. इस सबकी चर्चा एक अलग व वृहद अध्ययन का विषय है जो यहां पर इस संक्षिप्त रूप में ही वर्णन किया है .
दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल और मूलनिवासी


जोगेंद्र नाथ मंडल ने जिन्ना का साथ दिया और मुसलमान को गले लगाया दलित- मुसलिम भाई भाई का नारा दिया था । मूलनिवासी जिंदाबाद कहा । जिन्ना के इसारे पर जोगेंद्र नाथ मंडल ने मुस्लिम - दलित साथ मिलकर भारत के खिलाफ जंग छेड़ दी । बंगाल, असम में सवर्णो की खून की होली खेली । कलकत्ता की धरती खून से लाल हो गयी । जिन्ना ने कहा हम बर्बाद भारत या अलग भारत चाहिए । जो आंदोलन का अंत बिहार में हुआ । बिहार में बखूबी इस खून की होली का बदला लिया गया । इस मुस्लिम - दलित आंदोलन के कारन भारत का विभाजन पूर्वी पाकिस्तान के नाम से हुआ जिसका आज नाम बांग्लादेश है |
वर्तमान जाति व्यवस्था का ज़िक्र शास्त्र में नहीं है | ये सारे जाति मुग़ल काल के है |
औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी महीनो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा |


अरब और मुग़ल की सच्ची इतिहास की सच्चाई से अध्ययन करने पर पता चलता है| मुग़ल अपने गुलामो का धर्म परिवर्तन करवाता था | जिसे वो कनवर्टेड हिन्दू "अल हिंदी-मुस्‍कीन" कहते है अतः पाकिस्तान बंग्लादेश और भारत के मुसलमान को गुलाम कहते है |
हिन्दू वीरो ने विदेशी लूटेरे आक्रन्ता हमलावर मुगलो के दन्त खट्टे कर दिए और कभी गुलामी स्वीकार नहीं की | मुग़ल काल में बहुत सारे राज्य स्वतंत्र थे जहां मुग़ल का शाशन नहीं था |
अब सच जाने|
मुग़लकाल में भी हिन्दू स्वतंत्र और गुलाम मुसलमान बने|
हिन्दू नहीं भारत पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश के मुसलमान गुलाम थे

प्रिंस सुलेमान भारत पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश के मुसलमानों को अल हिंदी-मुस्‍कीन कहते हैं। इसका अर्थ है कि वह दोयम दर्जे के मुस्लिम हैं। अरब में यह ख्‍यालात सिर्फ प्रिंस के ही नहीं बल्कि आम लोगों के भी हैं। यहां के लोगों के लिए यह सोच बेहद सामान्‍य है। वहीं दूसरी ओर इन लोगों को सऊदी अरब में किसी भी बड़ी पोस्‍ट पर नहीं रखा जाता है। टॉप पोस्‍ट सिर्फ अरब मुस्लिमों के लिए ही सुरक्षित रखी जाती हैं।

सनातन वर्ण व्यवस्था
सनातन धर्म में गृहस्थ आश्रम में वर्ण व्यवस्था


राजा : किसी क्षेत्र देश के नेतृत्व करने वाला |
राजदरबार : मंत्री सेनापति सलाहकार पुरोहित इत्यादि
प्रजा सेवक : राज्य के देखरेख करने वाले सेवक सिपाही लेखाकार मठाधीश ग्राम तंत्र इत्यादि

प्रजा : राज्य में निवास करने वाले निवासी


सनातन धर्म में श्री हरि को पाने के लिए तपाश्रम (वानप्रस्थ) आश्रम
सनातन धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए योग और तप का महत्व है| तप में वर्ण व्यवस्था को जाने |
स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।
शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।शूद्र : जो साधक तप में प्रवेश करता है उसे शूद्र कहा जाता है |
इसे पैर से कमर के निचे के भाग तक माना जाता है |

वैश्य : जिसने तप में प्रवेश कर मूलाधार चक्र से सुष्मना नाडी तक जागृत कर लिया वैस्य कहलाया |
इसे कमर से हृदय तक के भाग तक माना जाता है |

क्षत्रिय : जब साधक सुष्मना नाड़ी चंद्र नाड़ी आज्ञाचक्र को जागृत कर सूर्य नाड़ी तक जागृत करने तक क्षत्रिय वर्ण कहलाता है |
हृदय से मुख के निचे के भाग तक के भाग को जागृत करने वाले को कहा गया

ब्राह्मण : जो साधक ब्रह्मरंध्र को जान जान जाता है ब्राह्मण कहलाता है |
ये मुख से लेकर ब्रह्मरंध्र तक का जागृत अवस्था है |
ऋषि महर्षि : जब साधक आत्मा रूप में प्रवेश और विचरण कर सकता है ऋषि मुनि कहलाता है|

मोक्ष : जब साधक हरि को पा लेता है मोक्ष मिल जाता है | पुनर्जन्म से बहार हो जाता है | श्री हरी में विलीन हो जाता है |
गौतम बुद्ध (महावीर), विवेकानंद, शंकराचार्य श्री रामकृष्णपरमहंस इस श्रेणी में आते हैं


SANT RAVIDAS :
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed:
the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।हरि ॐ तत्सत
राम नाम सत्य है |

Friday, 21 July 2017

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति


हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?

हिन्दू धर्म का उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है इसलिए कुछ अति बुद्धिमान (सेक्यूलर) लोग कहते हैं कि हिन्दू शब्द फारसियों की देन है.

हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में वर्णित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित इस प्रकार से हैं :-

1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!

"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।

तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।

(अर्थात, हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं)

2- सिर्फ वेद ही नहीं अपितु मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....

"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"

(अर्थात, जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)

3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है....!

"हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।"

(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है )

4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है....!

"हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते ।।"

(अर्थात, जो अपने तप से शत्रुओं, दुष्टों और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है )

5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है....!

"ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य: ।

गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।

(अर्थात, वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है )।

6- केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद ( ८:२:४१ ) में विव हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है । जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी और ऋग्वेद मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है ।

7- ऋग्वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था । जो मध्यकाल में आगे चलकर "हैन्दव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए, जिसका बाद में अपभ्रंश होकर हिन्दू बन गया...!!

8- इसके अतिरिक्त भी कई स्थानों में हिन्दू शब्द उल्लेखित है....।।

इसलिये गर्व से कहो, हाँ हम हिंदू थे, हिन्दू हैं और सदैव सनातनी हिन्दू ही रहेंगे ॥

*आखिर हिन्दू मूर्ति पूजा क्यों करते है ???*
*सटीक जवाब विवेकानंद जी का*
स्वामी विवेकानंद को एक मुल्ला राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला,
*"तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हो जो मिट्टी, पीतल और पत्थर की बनी हुई रहती है, पर मैं ये सब नही मानता ये तो केवल एक पदार्थ है।”*
उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी।
विवेकानंद जी ने राजा से पूछा,”राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?”
राजा बोला, *मेरे पिताजी की*
स्वामी जी बोले,”उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।”
राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।
स्वामीजी ने राजा से कहा *अब आप उस तस्वीर पर थूकिए*
राजा :”ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामीजी ?
स्वामीजी :”मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!”
राजा (क्रोध से) :”स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।”
स्वामी जी बोले,”क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है।”
और स्वामी जी बोलते गए,”इसमें ना हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूंक नहीं सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो।
और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।”
थोड़े मौन के बाद स्वामीजी ने आगे कहाँ,
“वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की बनी मूर्ति की पूजा भगवान का स्वरूप मानकर करते हैं।
*भगवान तो कण-कण मे है, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए ही हम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हैं*
स्वामी जी की बात सुनकर राजा ने स्वामी जी से क्षमा माँगी।
#भारत_का_हर_राजपूत_राजस्थानी

जैसे तपश्या आदि करने के लिए ब्राह्मण ऋषिय प्रदेश जाते थे, जिसे हम आज का रूस कहते है । कारण की वहां हिमपात होता है, प्राकृतिक शांति है ।।
उसी प्रकार राजपूतो को शिक्षा के लिए राजस्थान भेजा था । इसके कारण थे, क्यो की राजस्थान ही ऐसा प्रदेश है, जहां गर्मी के समय प्रचंड गर्मी पड़ती है, उतनी ही, जितनी अरब देशों में ।
ओर ठंड के समय उतनी ही ठंड, जितनी विदेशों में पड़ती है ।। और युद्ध अभ्यास के लिए ऐसा राज्य दूसरा नही हो सकता था , जैसी जलवायु राजस्थान में है ।
यहां से ही राजपूत जीतते जीतते पूरे भारत मे फेल गए । पूरे भारत को जीतते हुए ( जिसमे आज का पाकिस्तान भी है ) वो अलग अलग राज्यो में बस गए ।। जो आज भी अन्य अन्य राज्यो में है ।।
लेकिन अपनी पीढ़ी का इतिहास उठाकर देखेंगे, तो मूल उद्गम राजस्थान से ही निकलेगा ।।

मिहिरकुल

सबसे पहले तो आपके मन से यह वहम दूर हो जाना चाहिए की मिहिरकुल हुण था । मिहिरकुल का तो असली नाम क्या था, वामपंथी इतिहास के कारण यह भी अज्ञात है । मिहिरकुल इसका अर्थ होता है - सूर्य के वंश से । अर्थात सुर्यवंशी राजा ।।
स्पष्ठ है, सुर्यवंशी राजा केवल राजपूतो में हुए है । जहां तक बात है हूणों की ! हुण बंजारे थे ! यह एक लुटेरी किस्म की प्रजाति थी, जो रूस और यूरोप के मध्य बसती थी ! जबकि मिहिरकुल के पिता तोरमाण आज के पाकिस्तान के शाशक थे !!!
किसी भी वंश या राष्ट्र का पतन होना हो, तो वह धर्मनिरपेक्षता धारण करता है ! वह चाहे मौर्य धर्मनिरपेक्ष बन के अपना नाश करवाये, या फिर गुप्त साम्राज्य !!
अपने अंतकाल में गुप्त साम्राज्य भी धर्मनिरपेक्ष हो चुका था ! बोद्धमठो का अड्डा भारत बन चुका था ! एक ओर बढ़ती हुई शक्ति थी जैन !!
जैन और बौद्धों ने मिलकर भारत का सर्वनाश करना प्रारम्भ कर दिया ! जैन जहां धन आदि का लालच देकर सनातनियो का धर्मपतन कर रहे थे , वहीं बोद्ध सनातनीयो की हत्या आदि कर भारत का नाश कर रहे थे । बौद्धों ओर मुसलमानो में कोई फर्क नही है !! जबकि बोद्ध तो नीचता की सीमा हर बार पर किये है, भारत की पीठ में छुरा घोंपकर !!
गुप्त साम्राज्य के अंत समय मे सनातनीयो को यह भय सताने लगा था, की धर्म अब बचेगा भी या नही ? क्यो की आज के ईसाइयो की तरह जैन भारतियों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे, ओर मुसलमानो की तरह बोद्ध !!
लेकिन राजपूत समाज ने हमेशा धर्म की रक्षा की है --- इसी समय एक राजपूत क्षत्रिय का उदय हुआ -- नाम था उसका मिहिरकुल
मिहिरकुल इतना कट्टर था कि जिसके बारे में बौद्ध और जैन धर्मग्रंथों में विस्तार से जिक्र मिलता है। वह भगवान शिव के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाता था। यहां तक कि कोई हिन्दू संत उसके विचारों के विपरीत चलता तो उसका भी अंजाम वही होता, जो शाक्य मुनियों का हुआ। मिहिरकुल के सिक्कों पर 'जयतु वृष' लिखा है जिसका अर्थ है- जय नंदी।
राजा मिहिरकुल एक विशाल घुड़सवार सेना और कम से कम 2 हजार हाथियों के साथ चलता था वह भारत का स्वामी था ।
मिहिरकुल के भारत की गद्दी पर बैठने से पूर्व भारत के हिस्से अफगानिस्तान, आज का भारतीय पंजाब तो पूर्ण बोद्ध देश बन चुके थे, फैलते फैलते यह बिहार तक आ पंहुचा था ।
मिहिरकुल ने बड़ी वीरता के साथ सबसे पहले गुप्त साम्राज्य को ध्वस्त किया ! धीरे धीरे उसने राजस्थान और गुजरात के प्रदेश भी जीते ।
एक बार किसी बोद्ध ने उसका अपमान कर दिया !! जैसे आज मुसलमान हिन्दू शाशक नरेंद्र मोदी का करते है !! उस दिन बौद्धों ने अपने विनाश को निमंत्रण दे दिया !! मिहिरकुल ने घोषणा करवा दी, की जो भी बोद्ध ओर जैनियों के गले काट कर लाएगा , उसे स्वर्ण मुद्राएं प्रदान की जाएगी ।
ओर उसने अपना सैन्य अभियान घर की सफाई में लगाया सो अलग .....
जैन व बौद्ध ग्रंथो ने मिहिरको कल्की अवतार माना है कल्की अवतार के बारे मै लिखा है । इस तरह बोद्ध ओर जैन ने खुद अपनी गद्दारी स्वीकार की है ।
भारत से बोद्ध को उसने पूरी तरह खदेड़ दिया ! गैर- सनातनी होने का मतलब था , मृत्यु या सनातन में वापसी । हर हर महादेव का नारा भी उसी का लगाया था ! उसी की सेना हर हर महादेव के नारों के साथ मल्लेछो का संघार करती थी । पूरे भारत से उसने बौद्धों को खदेड़ चीन तक पहुंचा दिया !! गिने चुने बोद्ध ओर जैनी भारत मे रह गए थे । जो आज तक तकलीफ दे रहे है ।
अनेको शिवमन्दिर के निर्माता मिहिरकुल ने जीवन भर महादेव के अलावा किसी के आगे सिर नही झुकाया ! वह सुर्यवंशी राजा था ! और आज भी उसका नाम सूर्य की भांति ही चमक रहा है । आप ओर में हिन्दू है , तो मिहिरकुल की वजह से, नही तो भारत आज बोद्ध राष्ट्र ही होता ।।

Thursday, 20 July 2017

महावीर स्वामी के शिष्य गणधर ही बुद्ध


आदिनाथ पुराण में आया है :-
" चतुर्भिश्रचमलेर्बोधैरबुद्धतस्व जगद यत:| प्रज्ञापारमित बुद्ध त्वा निराहुरतो बुधा:"
(दितीय पर्व श्लोक ५५ )
हे देव आपने ४ निर्मल ज्ञानो (४ आर्य सत्य ) के द्वारा संसार को जान लिया है तथा आप बुद्धि के पार को प्राप्त हुए है इसलिए संसार आपको बुद्ध कहता है
जैन आदिपुराण में
आया है :-
"गौतमदागतो देव: स्वर्गाग्रद गौतमो मत ,तेन प्रोक्तमधीनस्त्व चासो गौतामश्रुति "(दितीय पर्व श्लोक ५३ )
अर्थात महावीर स्वामी १६ वे स्वर्ग से
अवतरित हुए इसलिए उन्हें गौतम कहते है और
गौतम की वाणी सुनने से आप का भी नाम गौतम है ,,,
अर्थात गोतम की वाणी सुनने वाला भी गोतम है और स्वयं गोतम भी गोतम है
गौतम बुद्ध जन्म - ५६३ ईशा पूर्व
सिद्धार्थ बुद्ध - १८८७ ईशा पूर्व
मैं पुराणों में वर्णित गौतम बुद्ध के जन्म काल को मानता हु जो कि है 1800 ईसापूर्व ।
अब यही सच आपके समझने के लिए काफी होना चाहिए, की गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार नही है । और जो विष्णु के अवतार सिद्धार्थ है , उनके जन्म और गौतम बुद्ध के जन्म में कितना फर्क है ।।
भारतीय इतिहास के शोध में यह एक भयंकर भूल है । क्यो की यह सिद्ध करने के प्रबल साक्ष्य है कि भगवान विष्णु के अवतार सिद्धार्थ का जन्म १८८७ में हुआ । इसका अर्थ यह हुआ कि जिस गौतम को विष्णु का अवतार आज तक भीमटे मानते आए है, वो मात्र एक साधरण सन्यासी था, वो भी भटका हुआ । दोनो के बीच का अंतराल ही 1300 वर्षो का है ।
फिर प्रश्न उठता है, की भारत के इतिहास में इतनी भयंकर भूल कैसे हुई? तो इसका जवाब है कि भारत 1000 साल विदेशियों के गुलाम तो रहा है, साथ मे आजादी के बाद भी विश्वासघाती कांग्रेस और अन्य वामपंथी गद्दार यही रह गए, ओर वे ही इस देश के भाग्य निर्माता बन बेठे ।।
अंग्रेज लोगो को मानव सृष्टि के सम्बंध में बहुत अल्पज्ञान था , वे सोचते थे कि पृथ्वी को बने केवल कुछ हजार वर्ष ही तो हुए है । इसी प्रकार उन्होंने कल्पना कर दी कि भारतीय इतिहास भी 4-5 हजार वर्षों से अधिक पुराना नही । ओर उन्होंने इतिहास की हर घटना को तोड़ मरोड़ दिया ।।
नेपाल में लुम्बिनी में 2013 में पुरातत्वविदो को एक छोटा मंदिर मिला है जिसकी छत नहीं थी और उसके मध्य में बोधि वृक्ष था ।
पुरातत्वविदो के अनुसार कार्बन डेटिंग से उस मंदिर के निर्माण का काल 550 ईसापूर्व आया है ,यानि की विश्व का सबसे प्राचीन बोध मंदिर ।माना जाता था की पुरे भारतीय उप महाद्वीप पर बोद्ध मंदिर और मठो का निर्माण गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बने थे ।
अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद कई मंदिर बनवाये थे और गुप्त राजाओ ने भी इसमें अपना योगदान दिया था ।मध्यधारा के इतिहासकार मानते है कि 480 ईसापूर्व में गौतम बुद्ध जन्मे थे और कुछ के अनुसार 560 ईसापूर्व ।पर यदि उस मंदिर का काल 550 ईसापूर्व है तो या तो वह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवित रहते बना या फिर उनकी मृत्यु के बाद ।
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार तो बोद्ध मंदिर और मठ तो गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद हुआ और यह मैं पहले ही बता चूका हु यानि कि गौतम बुद्ध जन्मे होंगे 630 ईसापूर्व में । गौतम बुद्ध 80 वर्ष जिए तो यदि उनकी मृत्यु 550 ईसापूर्व के आस पास हुई तो 550+80 होगा 630 ।


गौतम बुद्धत्व अवस्था, महावीर से पाए गए ज्ञान को गणधर ने शिक्षा के रूप में सहेज दिया |भगवान् महावीर के शिष्य गणधर ( गौतम बुद्ध अवस्था प्राप्त ) की शिक्षा को वीरनाथ ने बुद्धत्व के प्रचार के लिए उपयोग किया | वीरनाथ ने भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में स्थापित किया | जिसमे उन्होंने महावीर के परम शिष्य गणधर का ज्ञान, धर्म, बुद्धत्व मार्ग की शिक्षा का प्रसार किया | जिससे गौतम बुद्धत्व प्राप्त हो सके | अतः इस प्रकार भगवान् महावीर को गौतम बुद्ध के रूप में जाना गया |
अतः इसप्रकार से भगवान् महावीर ने गौतम बुद्ध के रूप में ख्याति पायी |

नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षि शिरोरुबाहवे
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युग धारिणे नमः |
मुकंकरोति वाचालं पंगुंलंघयते गिरीम्
यत्कृपा त्वमहम् वन्दे परमानन्द माधवम्

SANT RAVIDAS :
Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed the knower is absorbed.
हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।
ज्ञातव्य :ये तथ्यों पर आधारित लेख है | शिव ही जाने सत्य क्या है |
हरि ॐ तत्सत |

जंजुआ राजपूत राजा जयपाल

भारतीय इतिहास के पन्नो से गायब किया गया एक और वीरो की गौरवगाथा जिसे पढ़कर ही आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा!

यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि राजपूतों ने धरती का कोना कोना अपने विरोक्त लहू से लहू लुहान कर दिया पर बदले में उन्हें इतिहास में मिला सिर्फ बदनामी!

वामपंथियों के छापे झूठे इतिहास में हमे हमेशा पढाया जाता रहा कि भारत के राजा कभी एक नहीं हुए तभी भारत गुलाम बना!
बल्कि वास्तविकता तो ये है कि वीर राजपूतों के तलवार की धार का सामना करने वाला कोई आक्रमणकारी पैदा ही नही हुआ था धरती पर!
पढ़िए इतिहास में छुपायी गई एक गौरवगाथा!
8.5 लाख विदेशी सेना को रौंद के फेंक दिया भारत 1 लाख क्षत्रिय वीरो ने!

राजपूत राजाओं की एकता ने मेवाड़, कन्नौज, अजमेर एवं चंदेल राजा धंग और काबुल शाही जंजुआ राजपूत राजा जयपाल ने सुबुक्तगीन की 8.5 लाख सेना को धुल चटाया था!
ऐसे ही हमारे भारत के गौरवशाली इतिहास की गौरवगाथाओ को छुपाकर इतिहास में केवल ये लिखा गया राजपूतों ने गद्दारी की थी और उन्हें गद्दार बता गया!
सुबुक्तगीन ने जाबुल शाही जंजुआ राजपूत राजा जयपाल के साम्राज्य पर हमला किया था !

हम आपको बता दें कि जंजुआ राजपूत वंश भी तोमर वंश की शाखा है और अब यह अधिकतर पाकिस्तान के पंजाब में मिलते हैं!
अब कुछ थोड़े से हिन्दू जंजुआ राजपूत भारतीय पंजाब में भी मिलते हैं!

उस समय अधिकांश अहिगणस्थान(अफगानिस्तान), और समूचे पंजाब पर जंजुआ शाही राजपूतो का शासन था!


जाबुल के महाराजा जयपाल की सहायता के लिये मेवाड़, अजमेर, कन्नौज, चंदेल राजा धंग ने भी गजनी के सुल्तान सुबुक्तगीन के विरुद्ध युद्ध के लिए अपनी सेना, धन, गज सेना सब दे दिया था!

और सभी राजपूत राजाओं ने भरपूर योगदान दिया!
सुबुक्तगीन ने 8.5 लाख की सेना के साथ यह आक्रमण करने ९७७ ई. (977A.D) के मध्य में आया था!


उसकी मदद के लिए उसका पिता उज़्बेकिस्तान के सुल्तान सामानिद सेना के साथ आया!
इतनी बड़ी सेना का यह भारत के भूभाग पर पहला आक्रमण था!
मित्रो 8.5 लाख की सेना का युद्ध कोई छोटा मोटा युद्ध नही अपितु एक ऐसा भयंकर तूफान होता है जिसके सामने किसी का भी रूकना असंभव होता है!
मैदानों की सीधी लड़ाई लड़कर इतनी बड़ी सेना को परास्त करना महावीर रणबांकुरों का और अदम्य युद्धनीति के ज्ञाताओं का ही काम हो सकता है!
प्राचीन काल से युद्धनीति और युद्धकौशल में भारत सदा अग्रणी रहा है!
व्यूह रचना के विभिन्न प्रकार और फिर उन्हें तोडऩे की युद्धकला विश्व में भारत के अतिरिक्त भला और किसके पास रही हैं?
इसलिए 8.5 लाख सेना के इस भयंकर तूफान को रोकने के लिए भारत के क्षत्रियो की भुजाएं फड़कने लगीं!


सुबुक्तगीन ने कई बार भारत के विषय में सुन रखा था कि इसकी युद्ध नीति ने पूर्व में किस प्रकार विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाई थी?
इसलिए वह विशाल सेना के साथ भारतवर्ष का राज्य जाबुल की ओर बढ़ा!
यह बात नितांत सत्य है कि भारत के अतिरिक्त यदि किसी अन्य देश की ओर इतनी बड़ी सेना कूच करती तो कई स्थानों पर तो बिना युद्ध के ही सुबुक्तगीन की विजय हो जानी निश्चित थी!
पर हमारे भारत के वीर राजपुताना के पौरूष ने 8.5 लाख की विशाल सेना की चुनौती स्वीकार की!
मेरे अनुसार तो इस चुनौती को स्वीकार करना ही भारतवर्ष की पहली जीत थी और सुबुक्तगीन की पहली हार थी!
क्योंकि सुबुक्तगीन ने इतनी बड़ी सेना का गठन ही इसलिए किया था कि भारत इतने बड़े सैन्य दल को देखकर भयभीत हो जाएगा और उसे भारतवर्ष की राजसत्ता यूं ही थाली में रखी मिल जाएगी!
उसने सेना का गठन यौद्घिक स्वरूप से नही किया था, और ना ही उसका सैन्य दल बौद्धिक रूप से संचालित था!
वह आकस्मिक उद्देश्य के लिए गठित किया गया संगठन था जो समय आने पर बिखर ही जाना था!
समय का चक्र बढ़ता गया और वो समय आ गया सन ९७७ ईस्वी (977A.D) में जाबुल और पंजाब के सीमांतीय पर लड़ा गया यह ऐतिहासिक युद्ध जहाँ एक तरफ थी!
सुबुक्तगीन की 8.5 लाख की लूटेरो सेना!
और दूसरी तरफ थी भारत माता की संस्कृति मातृभूमि के रक्षकों की 1 लाख सेना!
जिनमें मेवाड़, अजमेर, कन्नौज, जेजाभुक्ति प्रान्त (वर्त्तमान बुन्देलखण्ड) के राजा धंग चंदेल, जाबुल शाही जंजुआ राजपूत राजाधिराज जयपाल सब एक हो गये!
जाबुल पंजाब सीमान्त पर क्षत्रिय वीर अपने महान पराक्रमी राजाओं के नेतृत्व में मातृभूमि के लिए धर्मयुद्ध लड़ रहे थे!
जबकि विदेशी आततायी सेना अपने सुल्तान के नेतृत्व में भारत की अस्मिता को लूटने के लिए युद्ध कर रही थी!
8.5 लाख सेना सायंकाल तक 3.5 लाख से भी आधा भी नही बची थी!
गजनी के सुल्तान की सेना युद्ध क्षेत्र से भागने को विवश हो गयी युद्ध में स्थिति स्पष्ट होने लगी इस भयंकर युद्ध में लाशों के लगे ढेर में मुस्लिम सेना के सैनिकों की अधिक संख्या देखकर शेष शत्रु सेना का मनोबल टूट गया!
और समझ गया था कि राजपूत इस बार भी खदेड़, खदेड़ कर काट कर फेंक देंगे!
क्षत्रिय सेना के पराक्रमी प्रहार को देखकर सुबुक्तगीन का हृदय कांप रहा था!
९७७ ईस्वी (977A.D) में इस युद्ध में सुबुक्तगीन की मृत्यु राजा जयपाल के हाथो होती हैं!
युद्ध में विजय श्री भी होती है!
परन्तु इस बात को वामपंथी इतिहासकार छुपा देते हैं!
सुबुक्तगीन की मृत्यु का भेद तक नही बताते हैं!
परन्तु इतिहासकार प्रकांड ज्ञानी डॉ. एस.डी.कुलकर्णी ने अपनी किताब The Struggle for Hindu Supremacy एवं Glimpses of Bhāratiya में लिखा गया हैं इस स्वर्णिम इतिहास का क्षण “1 लाख राजपूत राजाओं के संयुक्त सैन्य अभियान से सुबुक्तगीन की 8.5 लाख की विशाल सेना को परास्त कर मध्य एशिया के आमू-पार क्षेत्र तक भगवा ध्वज लहराकर भारतवर्ष के साम्राज्य में सम्मिलित किया था!
युद्ध का फलस्वरूप राजाधिराज जयपाल के प्रहार से सुबुक्तगीन की मृत्यु होती हैं”!
बहुत समय से ही राष्ट्र के प्रति इन राजाओं के पराक्रम की उपेक्षा के पीछे एक षडयंत्र काम करता रहा है!
जिसके अंतर्गत बार-बार पराजित किये गए मुस्लिम आक्रांताओं में से यदि एक बार भी कोई विजय प्राप्त कर लेता तो वह नायक बना दिया जाता है!
और पराजित को खलनायक बना दिया जाता रहा है!
इसलिए हम आज भी अपने इतिहास में विदेशी नायक और क्षत्रिय खलनायकों का चरित्र पढऩे के लिए अभिशप्त हैं!
विदेशी नायकों का गुणगान करने वाले इतिहास लेखक तनिक हैवेल के इस कथन को भी पढ़ें-जिसमें वह कहता है-’यह भारत था न कि यूनान जिसने इस्लाम को अपनी युवावस्था के प्रभावशाली वर्षों में बहुत कुछ सिखाया इसके दर्शन को तथा धार्मिक आदर्शों को एक स्वरूप दिया तथा बहुमुखी साहित्य कला तथा स्थापत्यों में भावों की प्रेरणा दी!
साम्प्रदायिक मान्यताएं होती हैं!
घातक इतिहास के तथ्यों के साथ गंभीर छेड़छाड़ कराने के लिए साम्प्रदायिक मान्यताएं और साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह सबसे अधिक उत्तरदायी होते हैं!
साम्प्रदायिक आधार पर जो आक्रांता किसी पराजित जाति या राष्ट्र पर अमानवीय और क्रूर अत्याचार करते हैं!
प्रचलित इतिहास लेखकों की शैली ऐसी है कि उन अमानवीय और क्रूर अत्याचारों का भी वह महिमामंडन करती है!
यदि इतिहास लेखन के समय लेखक उन अमानवीय क्रूर अत्याचारों को करने वाले व्यक्ति की साम्प्रदायिक मान्यताओं या पूर्वाग्रहों को कहीं न कहीं उचित मानता है!
या उनसे सहमति व्यक्त करता है!
तब तो ऐसी संभावनाएं और भी बलवती हो जाती हैं!
भारतवर्ष की पावन भूमि प्राचीन काल से राजपूत राजाओं के अनुकरणीय बलिदान की रक्त साक्षी दे रही है!
जिन्होंने विदेशी आक्रांता को यहां धूल चटाई थी और विदेशी 8.5 लाख सेना को गाजर मूली की भांति काटकर अपनी राजपुताना रियासत में एकता की धाक जमाई थी!
उनका वह रोमांचकारी इतिहास और बलिदान हमें बताता है कि भारतवर्ष का भूतपूर्व हिस्सा रहे जाबुल की भूमि ने हिंदुत्व की रक्षार्थ जो संघर्ष किया!
उनका बलिदान निश्चय ही भारत के स्वातंत्र समर का एक ऐसा राष्ट्रीय स्मारक है!
जिसकी कीर्ति का बखान युग युगांतरो तक किया जाना चाहिए!
हिन्दुओ हमने इतिहास से ही शत्रु को चांटे ही नही मारे अपितु शत्रु को ही मिटा डाला!
हमारा वह पुरूषार्थ उस गांधीवादी परंपरा से बहुत बड़ा है!
निस्संदेह बहुत बड़ा है!
जिन्होंने शत्रु से चांटा एक गाल पर खाया तो दूसरा गाल भी चांटा खाने के लिए आगे कर दिया और अंत में चांटा मारने वालों की मानसिक दासता को उसकी स्मृतियों के रूप में यहां बचाकर रख लिया!
हमने कृतज्ञता को महिमामंडित करना था!
पर हम लग गये कृतघ्नता को महिमामंडित करने!
इसे क्या कहा जाये!

1.आत्म प्रवंचना?
2.आत्म विस्मृति?
3.राष्ट्र की हत्या?
4.राष्ट्रीय लज्जा?

रोमिला थापर जैसी कम्युनिस्ट इतिहासकार की मान्यता है कि महमूद किसी मंदिर को तोडऩे नही आया था, वह तो अरब की किसी पुरानी देवी की मूर्ति ढूंढऩे आया था जिसे स्वयं पैगंबर साहब ने तोडऩे को आज्ञा दी थी!
(दैनिक जागरण 1 जून 2004, एस. शंकर-’रोमिला का महमूद’)
रोमिला थापर जैसे इतिहासकार तथ्यों की उपेक्षा कर रही है!
और अपनी अपनी मान्यताओं को स्थापित करते जा रहे हैं!
और मान्यताएं भी ऐसी कि जिनका कोई आधार नही जिनके पीछे कोई तर्क नही और जिनका कोई औचित्य नही!

संदर्भ-:

1. S.D Kulkarni The Struggle for Hindu Supremacy

2. Glimpses of Bhāratiya Rajendra Singh Kushwaha

3. Mitra, Sisirkumar (1977). The Early Rulers of Khajurāho

4. Smith, Vincent Author (1881). "History of Bundelkhand"

5. Dikshit, R. K. (1976). The Candellas of Jejākabhukti